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सेंधमारी की कोशिश

राज्यसभा चुनाव में दोनों पक्ष एक-दूसरे के विधायक तोड़ने के प्रयास में
झामुमो के शिबू सोरेन

झारखंड के 20 साल के इतिहास में अब तक हुए सभी राज्यसभा चुनाव काफी चर्चा में रहे हैं। कभी विधायकों की खरीद-फरोख्त, कभी छीना-झपटी, कभी क्रॉस वोटिंग तो कभी अंतिम समय में विधायकों को वोट डालने से रोकने के कारण अतीत के चुनावों ने सुर्खियां बटोरी हैं। इस बार दो सीटों के लिए 19 जून को होने वाला चुनाव भी इसी राह पर आगे बढ़ रहा है। झामुमो और कांग्रेस जहां दोनों सीटों पर कब्जा जमाने की रणनीति तैयार करने में जुटी हैं, वहीं भाजपा उनकी रणनीति की काट खोजने में व्यस्त है। दोनों पक्ष इस बात पर भी मंथन कर रहे हैं कि किस तरह एक-दूसरे के खेमे में सेंध लगाई जाए।

राज्यसभा की दो सीटों के लिए तीन उम्मीदवार मैदान में हैं। झामुमो ने शिबू सोरेन को और सत्ता में उसकी सहयोगी कांग्रेस ने शाहजादा अनवर को उम्मीदवार बनाया है, जबकि भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश पर दांव लगाया है। विधानसभा की मौजूदा स्थिति से लगता है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-एक सीट आसानी से जीत लेगा, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार की पराजय लगभग तय है। 81 सदस्यीय विधानसभा में इस वक्त 79 विधायक हैं। दुमका और बेरमो की सीट खाली है। इस हिसाब से राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए कम से कम 27 वोट चाहिए। झामुमो ने विधानसभा चुनाव में 30 सीटें जीती थीं, लेकिन हेमंत सोरेन के दुमका सीट छोड़ने के बाद उसके 29 विधायक हैं। कांग्रेस ने 16 सीटें जीती थीं, बाद में झाविमो के प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के उसमें शामिल होने के बाद उसकी संख्या 18 हो गई थी। लेकिन बेरमो विधायक राजेंद्र सिंह के निधन के कारण कांग्रेस के पास अभी 17 विधायक हैं। सरकार में शामिल राजद के पास एक विधायक है। इस हिसाब से सत्ताधारी गठबंधन के कुल 47 विधायक हुए। इनमें से 27 विधायक शिबू सोरेन को वोट दे देंगे, तो उसके पास 20 अतिरिक्त वोट बचेंगे। कांग्रेस उम्मीदवार को जीतने के लिए और सात वोटों की जरूरत पड़ेगी। माले के विनोद सिंह और राकांपा के कमलेश सिंह के वोट उसे मिल सकते हैं। फिर भी पांच वोटों की कमी रहेगी।

भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 25 सीटें जीती थीं और बाद में बाबूलाल मरांडी उसमें शामिल हो गए। इस तरह पार्टी के 26 विधायक हैं। इसके अलावा उसे आजसू के दो विधायकों का समर्थन है। निर्दलीय अमित यादव भी भाजपा का साथ दे सकते हैं। सब मिलाकर भाजपा के 29 वोट हो जाते हैं। पार्टी के एक विधायक ढुल्लू महतो जेल में हैं, इसलिए उनका वोट भाजपा को मिलेगा या नहीं, इस पर संशय है। फिर भी कम से कम 28 वोट तो हैं ही, यानी उसके उम्मीदवार की जीत पक्की मानी जा सकती है। यह इतना सीधा-सपाट भी नहीं है। सत्ता पक्ष का दावा है कि उसके दोनों उम्मीदवार जीतेंगे। सत्ता पक्ष की रणनीति है कि वोटिंग के लिए कम से कम विधायक मतदान केंद्र तक पहुंचें। भाजपा खेमा इसकी काट संवैधानिक दायरे में तलाश रहा है। भाजपा की रणनीति है कि यदि सत्ता पक्ष उसके चार विधायकों को वोट डालने से रोकता है, तो वह बाबूलाल मरांडी के रूप में अपना ब्रह्मास्त्र चलेगी और अस्तित्वविहीन हो चुके झाविमो को फिर जिंदा किया जाएगा। मरांडी झाविमो अध्यक्ष की हैसियत से ह्विप जारी करेंगे और कांग्रेस में शामिल हो चुके प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के हाथ बांध देंगे। संविधान और संसदीय प्रणाली के जानकारों का कहना है कि ऐसा संभव है।

कांग्रेस का दावा है कि वह पांच वोटों का जुगाड़ कर लेगी। उसका यह दावा तभी सही हो सकता है, जब वह भाजपा खेमे में सेंधमारी कर ले या आजसू और निर्दलीय अमित यादव को अपने पक्ष में कर ले। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में यह मुश्किल दिखता है। कांग्रेस को यह भी ध्यान में रखना चाहिए भाजपा की ओर से भी ऐसी कोशिश की जा सकती है। इस गणित के बीच निर्दलीय सरयू राय ने आम सहमति की बात कही है। उनका कहना है कि राज्यसभा चुनावों में हॉर्स ट्रेडिंग और दूसरे हथकंडे अपनाए जाने की वजह से झारखंड पहले से ही बदनाम रहा है। इस बार यह दाग धोने का अच्छा मौका है। लेकिन कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम की दलील है कि पहले भी पर्याप्त संख्या बल नहीं होने के बावजूद उम्मीदवार जीते हैं। इसलिए इस बार भी वैसा कुछ हो जाए, तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है।

राज्यसभा का यह चुनाव जहां सत्ताधारी गठबंधन के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है, तो भाजपा के लिए भी जीवन-मरण का सवाल है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि अपने अल्पसंख्यक समर्थक स्टैंड के कारण ही कांग्रेस इस चुनाव में उतरी है। यदि वह चुनाव हार जाती है, तो इसका दूरगामी असर पड़ना स्वाभाविक है। उधर, भाजपा यदि यह चुनाव हार जाती है, तो विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद यह उसके लिए एक और धक्का होगा।

 

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