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मरांडी पर फंसा पेंच

राज्यसभा चुनाव ने मुश्किल की नेता प्रतिपक्ष पद की राह
चाल बदलीः प्रदर्शन करते भाजपा विधायक

देश भर में चर्चित झारखंड के निर्दलीय विधायक सरयू राय ने एक दिलचस्प ट्वीट किया। उन्होंने राज्य में जारी दल-बदल और दल-विलय के मामले को ‘नैतिक राजनीति बनाम राजनैतिक रणनीति’ के द्वंद्व की उपज बताते हुए कहा, ‘मैं जहां, सच वहीं’ की सोच इसे गंभीर मोड़ पर ले जा रही है। विधानसभा स्पीकर डॉ. रवींद्र नाथ महतो के लिए असमंजस है। राय का ट्वीट राज्य के राजनीतिक माहौल को सटीक ढंग से परिभाषित करता है।

14 साल बाद भाजपा में लौटे बाबूलाल मरांडी को पार्टी ने विधायक दल का नेता बनाकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने चुनौती तो पेश कर दी, लेकिन उसकी चाल को झामुमो-कांग्रेस के रणनीतिकारों ने फिलहाल विफल कर दिया है। भले ही ऐसा करने से विधानसभा अध्यक्ष कटघरे में आ गए हैं, लेकिन नैतिक राजनीति पर राजनीतिक रणनीति भारी पड़ गई है। विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो गया, लेकिन मरांडी को न तो भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता दी गई, न ही नेता प्रतिपक्ष के रूप में। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा है कि वह इस मामले पर उचित समय पर कानून सम्मत  फैसला लेंगे। जोर-शोर से यह मुद्दा उठा रही भाजपा ने कहा कि जब तक मरांडी को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता नहीं दी जाती, वह सदन नहीं चलने देगी।

झारखंड के लिए यह सब नया नहीं है। चौथी विधानसभा में मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के छह विधायक चुनाव जीतने के फौरन बाद भाजपा में चले गए और उनमें से दो मंत्री भी बन गए। उन्होंने तत्कालीन स्पीकर डॉ. दिनेश उरांव से जल्द फैसले की अपील की, लेकिन निर्णय साढ़े चार साल बाद पांचवीं विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले आया। तब भाजपा सत्ता में थी, तो उसने ‘मैं जहां, सच वहीं’ का फॉर्मूला अपनाया था। अब झामुमो इसी फॉर्मूले पर चल रहा है, तो भाजपा को नागवार गुजर रहा है।

मरांडी को हेमंत सोरेन के सामने खड़ा करने के पीछे भाजपा की रणनीति अपने गैर-आदिवासी प्रयोग की विफलता के बाद उबरने की है। वह सोरेन के सामने आदिवासी चेहरे की चुनौती भी पेश कर रही है। लेकिन झामुमो और कांग्रेस ने स्पीकर के ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल कर इस चाल को विफल कर दिया है। झारखंड विधानसभा के पहले अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी कहते हैं, “स्पीकर को जल्द फैसला करना चाहिए। देरी से स्पीकर पर सवाल होने लगते हैं।”

राज्यसभा चुनाव पर है ध्यान

दरअसल इस खेल के पीछे राज्यसभा की दो सीटों के चुनाव हैं। विधानसभा की वर्तमान दलगत स्थिति के अनुसार सत्ता पक्ष एक सीट पर तो आसानी से जीत हासिल कर लेगा, लेकिन उसकी नजर दूसरी सीट पर भी है। भाजपा कम से कम एक सीट पर कब्जा चाहती है। अभी विधानसभा में 80 सदस्य हैं और राज्यसभा चुनाव में जीतने के लिए 27 वोट जरूरी हैं। सत्ता पक्ष के 46 सदस्य हैं और झाविमो के दो विधायकों, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के अलावा राकांपा के कमलेश सिंह और माले के बिनोद सिंह का समर्थन भी सत्ता पक्ष को है। यानी दूसरी सीट के लिए चार और वोट चाहिए। भाजपा के पास 25 विधायकों के अलावा बाबूलाल मरांडी का वोट है। मरांडी को अधर में लटका कर सत्ता पक्ष उनका वोट रद्द कराना चाहता है। भाजपा के भूमिगत विधायक ढुल्लू महतो वोट नहीं दे पाएंगे। तो भाजपा के पास 24 वोट बचेंगे। आजसू के दो वोट मिलने पर भी एक वोट कम पड़ेगा।

इस जोड़-तोड़ के बीच स्पीकर की संवैधानिक संस्था कटघरे में है। सरयू राय ने जहां इसे स्पीकर के लिए असमंजस बताया है, वहीं भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश कहते हैं कि स्पीकर को तत्काल फैसला करना चाहिए। नेता प्रतिपक्ष के बिना बजट सत्र कैसे चल सकता है। मरांडी ने तो कह दिया है कि स्पीकर यदि उन्हें फर्श पर भी बैठने को कहेंगे, तो वह इसके लिए तैयार हैं। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री कहते हैं, “10वीं अनुसूची और दलबदल के मामले में फैसले का अधिकार स्पीकर का है। भाजपा इसे  स्वीकार ही नहीं कर पा रही है कि सत्ता उसके हाथ से चली गई है। वह बेवजह हंगामा कर रही है।” इस विवाद का नतीजा कुछ भी हो, नुकसान तो झारखंड का हो रहा है।

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बाबूलाल मरांडी के बारे में फैसला सही समय पर लूंगा। मेरा फैसला कानून सम्मत होगा

डॉ रवींद्र नाथ महतो, विधानसभा अध्यक्ष

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