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कई खंडों में खुल रहीं चुनौतियां

हेमंत सोरेन के सामने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना, नौकरशाही का असर कम करना और सामाजिक अस्थिरता जैसी कई समस्याएं
नई चुनौतीः पत्थलगड़ी क्षेत्र में सात लोगों की हत्या के बाद पीड़ित परिवारों से मिले मुख्यमंत्री

हमारी सरकार बदले की भावना से काम नहीं करेगी। हम ऐसा कोई फैसला नहीं लेंगे, जो झारखंड की जनता के लिए तकलीफदेह हो।” विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल करने के बाद जब पिछले साल 24 दिसंबर को हेमंत सोरेन मीडिया के सामने यह बयान दे रहे थे, खनिज संपदा से भरपूर झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता अपनी आकांक्षाओं को पंख लगते देख रही थी। करीब एक महीने बाद 28 जनवरी को जब मुख्यमंत्री हेमंत अपनी कैबिनेट में सात मंत्रियों को शामिल कर रहे थे, वे सपने थोड़े और ऊंचे हो गए। अगले दिन, यानी सत्ता संभालने के ठीक एक महीने बाद मंत्रियों के विभागों का बंटवारा हुआ और उसके बाद हेमंत सोरेन एक्शन मोड में आ गए। उन्होंने झारखंड के लोगों को, और खासकर अपने मंत्रियों को, जिसे उन्होंने ‘टीम झारखंड’ नाम दिया है, संदेश दिया कि चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार पूरी तरह तैयार है। कैबिनेट विस्तार में उन्होंने संथाल परगना और कोल्हान के छह विधायकों को मंत्री बना कर इन दोनों क्षेत्रों को भरपूर इनाम दिया। हेमंत ने कैबिनेट में क्षेत्रीय संतुलन का ध्यान तो रखा, लेकिन जातिगत संतुलन नहीं बना सके। कुल 11 मंत्रियों में दो अल्पसंख्यक और पांच आदिवासी हैं। केवल एक महिला को मंत्री बनाया गया है। बाकी चार में दो अगड़े, एक पिछड़ा और एक वैश्य है।

सत्ता संभालने और कैबिनेट को ठोस आकार दिए जाने के बीच एक महीने के दौरान हेमंत ने कई बार साफ किया कि सरकार की कार्यशैली क्या होगी। कैबिनेट की पहली बैठक में उन्होंने दो महत्वपूर्ण फैसले किए। पहला फैसला पत्थलगड़ी और सीएनटी-एसपीटी एक्ट से संबंधित मामले वापस लेने का, और दूसरा राज्य के साढ़े सात लाख से अधिक संविदाकर्मियों के बकाया भुगतान का था। दोनों फैसलों ने मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत की लोकप्रियता बढ़ा दी। लेकिन उनके लिए चुनौतियां भी खड़ी हो रही थीं। चाईबासा के बुरुगुलीकेरा में पत्थलगड़ी आंदोलन का खूनी अध्याय लिखा जा रहा था और इसकी परिणति सात लोगों की हत्या से हुई। हेमंत उस दिन दिल्ली में थे। अगले दिन रांची लौटने के फौरन बाद उन्होंने उच्चस्तरीय बैठक की और घटना की एसआइटी जांच के आदेश दिए। अगले दिन वह बुरुगुलीकेरा पहुंचे और प्रभावितों से बातचीत की। इसका असर यह हुआ कि इलाका शांत हो गया।

लोहरदगा की सांप्रदायिक हिंसा हेमंत की दूसरी बड़ी चुनौती थी। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के समर्थन में निकाले गए जुलूस पर उपद्रवियों ने पथराव कर दिया। इससे फैले तनाव के बाद कर्फ्यू लगाना पड़ा। स्थिति को संभालने के लिए मुख्यमंत्री ने प्रशासनिक अमले को कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया, और वरिष्ठ मंत्री तथा लोहरदगा के विधायक डॉ. रामेश्वर उरांव को वहां भेजा।

भाजपा ने दोनों घटनाओं का लाभ उठाने की कोशिश की, पर कामयाबी नहीं मिली। पार्टी हार के सदमे से पूरी तरह उबर नहीं पाई है। संगठनात्मक ढांचा बिखरा हुआ है। न तो विधायक दल के नेता का चुनाव हुआ है, न हार की समीक्षा हुई है। प्रदेश महासचिव दीपक प्रकाश कहते हैं, “भाजपा रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए तैयार है। हम सरकार के फैसलों पर नजर रख रहे हैं। जहां जरूरत होगी, हम विरोध करेंगे।” नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन की कवायदों के बीच झारखंड विकास मोर्चा के विलय की औपचारिकताएं भी पूरी की जा रही हैं, ताकि भाजपा को बाबूलाल मरांडी के रूप में बड़ा आदिवासी चेहरा मिल सके। उधर, मरांडी के दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की कांग्रेस में जाने के लिए तैयार हो चुके हैं।

सीएए पर विपक्ष की आलोचना कर मरांडी भाजपा के करीब आ गए हैं। लगातार चुनावी विफलताओं ने उन्हें ‘भाजपा के ताबूत में अंतिम कील ठोंकने’ के अपने संकल्प को भुलाने पर मजबूर कर दिया। विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के फौरन बाद उन्होंने हेमंत सोरेन को समर्थन की चिट्ठी सौंपी थी, लेकिन एक महीने बाद ही समर्थन वापस ले लिया। इतना ही नहीं, पहले उन्होंने बंधु तिर्की को पार्टी से निकाला और बाद में प्रदीप यादव को भी विधायक दल के नेता पद से हटा दिया। मरांडी के करीबियों का कहना है कि ऐसा कर उन्होंने इन दोनों को अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र कर दिया है। मरांडी बार-बार कह रहे हैं कि उनका भाजपा में जाना अभी तय नहीं है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में उनके इसी महीने भाजपा में शामिल होने की चर्चा है।

नौकरशाही के चंगुल से राज्य की व्यवस्था को मुक्त कराना आने वाले दिनों में हेमंत सोरेन की प्रमुख चुनौतियों में एक है। इसमें शक नहीं कि रघुवर दास ने झारखंड को राजनीतिक अस्थिरता के दलदल से निकाला, लेकिन कॉरपोरेट कार्यशैली ने उनके अच्छे कामों को भी विवादास्पद बना दिया। रघुवर की ‘टीम झारखंड’ में आइएएस-आइपीएस अधिकारी शामिल थे, जिन्होंने राजनीतिक नेतृत्व को आम लोगों से काट दिया था। अधिकारियों की ताकतवर लॉबी पूरी व्यवस्था पर हावी हो गई थी। हेमंत सोरेन ने इसे तोड़ने की पहल शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ाने के अलावा खुद आम लोगों से मिल कर उनकी समस्याओं का त्वरित समाधान करने की मुख्यमंत्री की पहल का स्वागत हो रहा है। प्रशासनिक मोर्चे पर मुख्यमंत्री ने ताकतवर इंजीनियर लॉबी के मजबूत किरदार रास बिहारी सिंह के खिलाफ एक्शन लेकर बता दिया है कि वे व्यवस्था में परिवर्तन चाहते हैं।

हेमंत की एक प्रमुख चुनौती राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की है। इस मोर्चे पर सरकार को कई कड़े फैसले लेने होंगे। सरकारी खर्चे में कटौती के साथ राजस्व संग्रह बढ़ाना होगा। रघुवर दास को हरानेवाले निर्दलीय सरयू राय ने इस बाबत मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा है और पिछली सरकार के दौरान हुई वित्तीय गड़बड़ियों की जांच कराने की सलाह दी है। एक और चुनौती बोर्ड-निगमों के खाली पड़े पदों को भरने की है, जिसके लिए जोड़-तोड़ शुरू हो गया है। झामुमो के साथ कांग्रेस और राजद के नेता भी अपनी गोटी सेट करने में लगे हैं। राज्य में 40 से अधिक बोर्ड-निगम हैं, जिनके अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की नियुक्ति की जानी है। इसके अलावा बेरोजगारी और स्थानीयता नीति का मुद्दा भी है, जिससे हेमंत सोरेन को दो-चार होना है। वह इनसे कैसे निबटते हैं, यह देखना सचमुच दिलचस्प होगा।

किसी भी सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिए एक महीने का वक्त बहुत कम होता है, लेकिन हेमंत सोरेन के कामकाज पर अभी से नजर है। विपक्ष के साथ-साथ आम लोग भी उनके फैसलों और उनकी कार्यशैली पर नजर रखे हुए हैं। सरकार में सहयोगी कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं, यह सरकार झारखंडी आकांक्षाओं का प्रतीक बनेगी। लोगों के लिए काम करेगी। बस थोड़ा सा समय दीजिए, देख लिजिएगा कि यह सरकार झारखंड के विकास की नयी गाथा लिखेगी। राजद के प्रदेश अध्यक्ष अभय सिंह कहते हैं, यह गरीब-गुरबों की सरकार है। यह झारखंड के तमाम शोषितों, वंचितों, पिछड़ों और आदिवासियों के सपनों को साकार करेगी। झामुमो के महासचिव विनोद पांडेय कहते हैं, “यह गुरु जी और हेमंत के सपनों की सरकार है। यह सरकार झारखंड के धरती-पुत्रों की है और यह अपनी माटी का कर्ज चुकाएगी।” पार्टी के दूसरे महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, “हेमंत सोरेन सरकार जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरेगी। यह सरकार जनता की है और झारखंड की जनता ही इसका मार्ग निर्देशन करेगी।” लेकिन भाजपा अभी से  हमलावर है। पार्टी के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं, “यह सरकार केवल ट्विटर और सोशल मीडिया पर चल रही है। झारखंड में कोई काम नहीं हो रहा है।”

लेकिन हेमंत सोरेन अपने हिसाब से चल रहे हैं। विपक्ष की आलोचनाओं को ध्यान में रख कर वही फैसले कर रहे हैं, जो जरूरी हैं। सरकार की नीतियां क्या होंगी, इसके संकेत देते हुए वह अपनी सरकार को चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार कर चुके हैं। अब यह तो समय ही बताएगा कि 19 साल के किशोर झारखंड में पहली बार बनी पूर्ण बहुमत की गैर-भाजपा सरकार इस राज्य को विकास की दौड़ में कितना आगे ले जाती है।

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पत्थलगड़ी और लोहरदगा में हिंसा की घटनाओं ने सोरेन को आगे आने वाली चुनौतियों से जैसे आगाह किया है

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