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पहचान के नए संकट से मुठभेड़

डोमिसाइल सर्टिफिकेट के नियम पर उठ रहे अनेक सवाल
घाटी में चिंताः नए डोमिसाइल नियमों पर घाटी के लोगों को जम्मू की प्रतिक्रिया का इंतजार

जम्मू-कश्मीर में स्थानीय निवासी प्रमाण-पत्र पाने की प्रक्रिया तय करने वाले जम्मू-कश्मीर ग्रांट ऑफ डोमिसाइल सर्टिफिकेट (प्रॉसीजर) रूल्स, 2020 जारी करने में जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन ने बहुत फुर्ती दिखाई। ये नियम जारी करने के तुरंत बाद सरकार ने 10 हजार पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए, जिनमें स्थानीय निवासी होने की शर्त जोड़ी गई। स्थानीय राजस्व अधिकारियों को किसी तरह की आपत्ति का निस्तारण 15 दिन के भीतर करना होगा। अगर कोई राजस्व अधिकारी देरी करता है, तो सरकार उसके वेतन से 50,000 रुपये जुर्माने के तौर पर काट लेगी।

नए नियम के मुताबिक, 31 अगस्त 2019 से पहले जिन लोगों को परमानेंट रेजीडेंट सर्टिफिकेट (पीआरसी) जारी हो चुका है, उन्हें डोमिसाइल सर्टिफिकेट पाने के लिए पीआरसी देना होगा। लोगों का कहना है कि यह कश्मीरियों के लिए नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) की तरह है।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू कहते हैं, “यहां कई पीढ़ियों से रह रही राज्य की प्रताड़ित जनता के लिए डोमिसाइल का दर्जा हासिल करना अपमानजनक है।” राज्य के लोगों को पीआरसी देना होगा और बाहरी लोगों को राशन कार्ड। द्राबू सवाल करते हैं, “कोई गुप्त एजेंडा नहीं है तो भर्ती के लिए उन लोगों से डोमिसाइल सर्टिफिकेट मांगने का कोई तुक नहीं है, जिनके पास पहले से ही पीआरसी है।” उनके अनुसार, डोमिसाइल की नई व्यवस्था कश्मीर की जड़ों पर प्रहार करती है।

नए डोमिसाइल ऑर्डर के नियम बनने के कुछ दिनों के भीतर ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन निर्वाचित सरकार की तरह सक्रिय हो गया। उप-राज्यपाल गिरिश चंद्र मुर्मू का कार्यालय रोजाना बयान जारी कर रहा है कि पूर्व और वर्तमान शीर्ष सरकारी अधिकारियों सहित बड़ी संख्या में लोग नए डोमिसाइल नियमों का स्वागत कर रहे हैं। हालांकि भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर अधिकांश राजनैतिक दलों ने डोमिसाइल नियमों का विरोध किया है।

नए नियमों के तहत, सरकार ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट के लिए मुख्य पात्रताएं तय की हैं। एक अप्रैल के डोमिसाइल ऑर्डर के अनुसार, 15 साल से जम्मू-कश्मीर में रह रहे या सात साल तक इस क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों में शिक्षा पाने और 10वीं और 12वीं की परीक्षा देने वाले लोग स्थानीय निवासी माने जाएंगे। इसके अनुसार, सार्वजनिक उपक्रमों और बैंकों सहित केंद्र सरकार के अधिकारी अगर 10 साल तक यहां तैनात रह चुके हैं, तो उनके बच्चे भी डोमिसाइल स्टेटस पाने के हकदार होंगे। आदेश में कहा गया है कि राहत और पुनर्वास आयुक्त के यहां पंजीकृत सभी प्रवासी और उनके बच्चे भी डोमिसाइल सर्टिफिकेट पा सकेंगे। जम्मू-कश्मीर के निवासियों के बाहर रह रहे बच्चे, पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी और अन्य भी डोमिसाइल सर्टिफिकेट पा सकेंगे।

पैंथर्स पार्टी के नेता हर्ष देव सिंह कहते हैं कि डोमिसाइल नियमों से जम्मू-कश्मीर की आबादी तेजी से बढ़ेगी। लेकिन भाजपा ऐसी आलोचनाओं को भय फैलाने का प्रयास बताकर खारिज करती है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र रैना ने आउटलुक को बताया, “इससे आबादी में भारी बढ़ोतरी नहीं होगी, बल्कि अनेक वर्गों, जिन्हें पहले डोमिसाइल अधिकार सहित मूलभूत अधिकार नहीं दिए गए, को स्थानीय निवासी बनने का अवसर मिलेगा। डोमिसाइल ऑर्डर का समाज के अधिकांश वर्गों ने स्वागत किया है।”

कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कॉन्फ्रेंस इसके खिलाफ हैं लेकिन पीडीपी ने इसकी खुलकर आलोचना की है। उसका कहना है, “आबादी का स्वरूप बदलने और लोगों का मताधिकार छीनने से जम्मू-कश्मीर समस्या और पेचीदा होगी। सभी लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीकों से इसका विरोध किया जाएगा।”

राजनैतिक विश्लेषक और स्तंभकार रियाज अहमद कहते हैं, “कश्मीरी पहचान के सामने गंभीर चुनौती है। पिछले 400 वर्षों में कश्मीर मुगल, अफगान, सिख और डोगरा सहित अनेक शासकों के अधीन रहा लेकिन किसी ने यहां की आबादी का स्वरूप बदलने के लिए इतनी बर्बरता नहीं दिखाई।”

जम्मू में भी इसी तरह की चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं लेकिन रुख थोड़ा नरम है। जम्मू के सामाजिक कार्यकर्ता सुनील डिंपल कहते हैं, “अनुच्छेद 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाकर विभाजन किए जाने के बाद हमारे पास सिर्फ एक चीज बची है, वह है पीआरसी। यह घोर अन्याय है।” 

अनुच्छेद 370 और 35ए समाप्त किए जाने के आठ महीने बाद एक अप्रैल को जब नए डोमिसाइल नियम लागू करने के लिए अधिसूचना जारी की गई, तो जम्मू में कड़ा विरोध हुआ। तीन अप्रैल को नियमों में संशोधन करना पड़ा और सभी नौकरियां राज्य के लोगों के लिए आरक्षित करनी पड़ीं। लेकिन जब नियम बनाए गए तो उनमें लचीलापन रखा गया। इस मुद्दे पर कश्मीर घाटी मौन है। कश्मीर में चिंता का माहौल है। कश्मीरी जम्मू की ओर देख रहे हैं कि डोगरा क्षेत्र के लोग नए कानून को कैसे लेते हैं?

 

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