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जम्मू ने जीती पहली लड़ाई

आक्रोश देखकर भाजपा सरकार को नौकरियों में आरक्षण पर नई नीति बनानी पड़ी
भविष्य की चिंताः घाटी में सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा देते युवा

अनुच्छेद 370 और 35ए को निष्क्रिय करने के आठ महीने बाद कोविड-19 महामारी के बीच 31 मार्च की रात को केंद्र सरकार ने प्रशासनिक आदेश के जरिए एक कानून को अधिसूचित किया, जिसमें जम्मू-कश्मीर के निवासी होने और सरकारी नौकरियों में पात्रता की परिभाषा तय की गई। इससे कश्मीर में भारी निराशा फैल गई और जम्मू क्षेत्र में गुस्सा भड़क गया। इस आदेश में तय किया गया कि जो लोग जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में पिछले 15 साल से रह रहे हैं या फिर जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में स्थित किसी शिक्षण संस्थान से 10वीं या 12वीं की परीक्षा दी है और सात साल तक यहां अध्ययन किया है, उन्हें स्थानीय निवासी माना जाएगा। लेकिन इस कानून में ग्रुप 4 यानी चपरासी जैसी नौकरियां ही स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित की गईं और बाकी नौकरियां देश भर के उम्मीदवारों के लिए खोल दी गईं।

कभी राज्य रहे और बाद में दर्जा घटाकर केंद्रशासित क्षेत्र बनाए गए जम्मू-कश्मीर के कानूनों के स्थान पर यह आदेश जारी हुआ है। केंद्र ने राज्य के 109 कानूनों में संशोधन और 29 कानूनों को खत्म किया है। सरकार ने ‘जेऐंडके के स्थायी निवासी’ के स्थान पर ‘जेऐंडके यूनियन टेरीटरी के निवासी’ कर दिया। इस संशोधन के दूरगामी नतीजे होंगे।

समूचे जम्मू में लोग इससे ठगे हुए महसूस कर रहे हैं। जम्मू के युवाओं ने असंतोष जताने के लिए सोशल मीडिया अभियान शुरू कर दिया। जम्मू की एक युवती अंकिता शर्मा ने फेसबुक पर अपने पांच मिनट के वीडियो में इस आदेश को लोगों का अपमान बताया। अंकिता ने कहा, “हमारा बार-बार अपमान किया जा रहा है। सबसे बड़ा अपमान तब किया गया जब कभी भी ब्रिटिशराज के अधीन नहीं रहे जम्मू- कश्मीर का दर्जा घटाकर यूटी बना दिया गया और हमारे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। हम चुप रहे, क्योंकि उन्होंने कहा कि क्षेत्र में तेज विकास होगा। डोमिसाइल कानून जेऐंडके के युवाओं के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक है। आप सोचते हैं कि हम जवाब नहीं देंगे, तो आप गलत हैं।” उसने कहा कि भाजपा जेऐंडके को इस क्षेत्र से बाहर वोट मशीन के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। अब लोग चुप नहीं रहेंगे। वह कहती है, “यह हिंदू-मुस्लिम का मामला नहीं है। यह हमारे सामूहिक भविष्य और हमारे बच्चों के भविष्य का मामला है। हम इस अन्याय के खिलाफ लड़ेंगे।”

इस वीडियो और इसी तरह के दूसरे पोस्ट को जम्मू-कश्मीर में भारी समर्थन मिला, जिसके कारण भाजपा के स्थानीय नेतृत्व को उन लोगों को चुप कराना पड़ा, जो केंद्रीय नेतृत्व को गुपचुप तरीके से गुस्सा शांत करने के लिए कदम उठाने की सलाह दे रहे थे। सोशल मीडिया पोस्ट में जम्मू के युवक मांग कर रहे हैं कि जेऐंडके में सिर्फ उन लोगों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट दिया जाए, जो 25 साल या इससे अधिक समय से यहां रह रहे हैं।

भारी दबाव के चलते केंद्र सरकार को तीन अप्रैल की शाम को संशोधन लाना पड़ा, जिसके अनुसार सरकारी नौकरियां जेऐंडके के निवासियों के लिए आरक्षित कर दी गईं। पिछले साल पांच अगस्त से पहले जब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए प्रभावी थे, उस समय तत्कालीन राज्य की सभी नौकरियां जेऐंडके के स्थायी निवासियों के लिए आरक्षित थीं। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू- कश्मीर का अपना संविधान था, जो जम्मू-कश्मीर का संविधान कहलाता था जबकि अनुच्छेद 35ए बाहर के लोगों को जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीदने से प्रतिबंधित करता था और स्थायी निवासियों के लिए नौकरियों में आरक्षण सुनिश्चित करता था। अनुच्छेद 35ए जेऐंडके सरकार को तत्कालीन राज्य के स्थायी निवासी का दर्जा देने के लिए लोगों का वर्गीकरण करने और सरकारी नौकरियों और अचल संपत्ति खरीद में लोगों को विशेषाधिकार देने के लिए सरकार को अधिकार देता था।

राजौरी के कांग्रेस नेता शाफीक मीर कहते हैं, “डोमिसाइल कानून में संशोधन कर दिया गया है। अब नौकरियां जेऐंडके के निवासियों के लिए आरक्षित होंगी, न कि यहां के स्थायी निवासियों के लिए। जेएंडके की नौकरियां सभी के लिए उपलब्ध हो गई हैं।” मीर, जो जेऐंडके पंचायत एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, कहते हैं, “हमने जम्मू के युवाओं में गुस्सा देखा है। हर कोई ठगा हुआ महसूस कर रहा है।” भाजपा खुद को मुश्किल में देख रही है और वह केंद्रीय नेतृत्व से नियम बदलने का अनुरोध कर रही है। कठुआ में एक वर्ग के लोगों ने भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना के खिलाफ नारेबाजी और प्रदर्शन किया।

अपने दक्षिणपंथी विचार के लिए मशहूर जम्मू के वकील अकुंर शर्मा भाजपा पर धोखा देने और तीन दिन के भीतर ही डोमिसाइल कानून बदलकर अलगाववादी ताकतों के आगे झुकने का आरोप लगाते है। शर्मा ने आउटलुक को बताया, “जम्मू जेऐंडके के बाकी भारत में पूरी तरह शामिल होने का पक्षधर था। डोमिसाइल कानून विस्तृत रणनीति का हिस्सा था। लेकिन भाजपा अलगाववादियों और पाकिस्तान के सामने झुक गई।” पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने डोमिसाइल कानून की आलोचना की है। पाक पीएम इसे जेऐंडके में अवैध रूप से आबादी का स्वरूप बदलने के प्रयास के तौर पर “हिंदूवादी मोदी सरकार” का कदम बताया।

जम्मू के लेखक जफर चौधरी कहते हैं, “ऐसे मुद्दों पर पाकिस्तान का चिंता जताना समस्याएं पैदा करता है और दक्षिणपंथी ताकतें विरोध प्रदर्शन करने के लोगों के अधिकार का उल्लंघन करने लगती हैं। इस बार हम सब एक साथ हैं। यह जेऐंडके के लोगों और केंद्र सरकार के बीच लड़ाई है।” उनका कहना है, “समस्या तब पैदा होने लगती है जब पाकिस्तान ऐसे मुद्दों पर बोलने लगता है। इधर अतिवादी सोच वाले लोग हम पर पाकिस्तान की भाषा बोलने के आरोप लगाने लगते हैं।” इस बार सरकार ने सामूहिक आकांक्षा और इच्छा के अनुसार रुख बदला है।

अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी कानून की आलोचना करने वाले पहले नेता थे। उन्होंने सरकार से समीक्षा करने की मांग की। तीन अप्रैल को बुखारी ने कहा कि कानून में बदलाव होगा। उसी शाम सरकार ने नियम बदल दिए। वह कहते हैं कि जम्मू- कश्मीर का हर मुद्दा केंद्र से जुड़ा है। 15 मार्च को गृह मंत्री अमित शाह ने बुखारी के प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया था कि क्षेत्र में आबादी का स्वरूप बदलने की सरकार की मंशा नहीं है। जेऐंडके की डोमिसाइल पॉलिसी दूसरे राज्यों से बेहतर होगी।

कश्मीर में यह संशोधन कोई खुशी नहीं ला सका, बल्कि इससे आशंकाएं और बढ़ गईं कि भाजपा घाटी में आबादी का स्वरूप बदलेगी। पिछले आठ महीनों में पहली बार अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाली हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने कहा कि जम्मू- कश्मीर में आबादी का स्वरूप बदलने की प्रक्रिया अगस्त 2019 में शुरू हुई थी। अब इसे नियोजित तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है। डोमिसाइल कानून इसी का हिस्सा है। कानून की खिलाफत करने वालों को गिरफ्तारी की कश्मीर के पुलिस प्रमुख की चेतावनी के बावजूद कश्मीरियों ने विरोध करना बंद नहीं किया। शिक्षाविद अतहर जिया ने लिखा, “नौकरशाहों और बड़े नेताओं के रूप में उपनिवेशवादी राक्षस स्वच्छंद हैं। पर्यवेक्षक कहते हैं कि डोमिसाइल कानून में बदलाव भी हजारों अप्रवासी कश्मीरी मुस्लिमों और 1947 से ही पाकिस्तान और अन्य देशों में निर्वासित हजारों लोगों का मताधिकार छीन सकता है। लोग इस कानून को इजरायल की तरह का “गेम प्लान” मान रहे हैं, जिसके तहत श्रीनगर और दूसरे जिलों में बस्तियां बन सकती हैं।

पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू कहते हैं कि इसका अहम पहलू यह है कि डोमिसाइल कानून की अधिसूचना जारी होने के दो दिन के भीतर ही संशोधन कर दिया गया। उन्होंने कहा, “संवैधानिक व्यवस्था की जगह अस्थायी और एकतरफा कानून लागू किया गया है। इसका दुष्परिणाम यह होगा कि इन पर अनौपचारिक रूप से सौदेबाजी भी हो सकती है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज इस कानून को लोगों को अधिकारविहीन और वंचित करने के प्रयासों के तौर पर देखते हैं। वह कहते हैं, “अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त करने के बाद कश्मीर में अब कोई भ्रम नहीं है कि भाजपा की और केंद्र की असली मंशा क्या है। लेकिन जम्मू के लोगों के लिए यह बड़ा झटका है, जिन्हें उम्मीद थी कि सरकार उनके हितों की रक्षा करेगी।” फिलहाल जम्मू के लोगों ने लड़ने का फैसला किया है। इससे पता चलेगा कि यह क्षेत्र भाजपा को कहां तक झुका पाता है।

 

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कोरोना के बहाने पेड़ों पर निशाना

कोरोनावायरस का नवीनतम वाहक कौन है? अगर कश्मीर घाटी के अधिकारियों की मानें तो विदेशी प्रजाति के पॉपलर के पेड़ कोरोना फैला सकते हैं। दक्षिणी कश्मीर में अनंतनाग जिले के जिलाधिकारी ने सभी मादा ‘रशियन पॉपलर ट्री’ की कटाई करने के आदेश दिए हैं। जिलाधिकारी के अनुसार, बसंत ऋतु आने वाली है। पेड़ से रोएंदार पराग कण गिरकर हवा में तैरने लगते हैं। किसी भी सतह को छूकर हल्की सी हवा में वे दोबारा उड़ने लगते हैं। इस तरह उनसे कोरोना का संक्रमण एक से दूसरे स्थान पर फैलने का खतरा है।

पेड़ मालिकों को कटाई करने के लिए कहा गया है। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। जिलाधिकारी ने पुलिस और वन विभाग को आदेश लागू करवाने का निर्देश दिया है।

कश्मीर घाटी में ये पेड़ उगाने की शुरुआत 1982 में विश्व बैंक से सहायता प्राप्त सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के तहत हुई थी। रशियन पॉपलर नाम का यह पेड़ पश्चिमी अमेरिका की प्रजाति का है जिसे अमेरिका में ईस्टर्न कॉटनवुड कहते हैं। कश्मीर में लोग देसी के प्रजाति के बजाय इसे उगाना पसंद करते हैं क्योंकि इसका विकास तेजी से होता है। तीन साल में पेड़ 20 से 30 फुट लंबा हो जाता है और इसकी आयु 40 साल होती है। इसका इस्तेमाल मुख्य तौर पर फलों की पैकेजिंग के लिए बॉक्स बनाने में किया जाता है। क्षेत्र में 1.5 करोड़ पेड़ होने का अनुमान है।

पहली बार नहीं है, जब इस पेड़ को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया गया है। 2014 में हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में इन पेड़ों को काटने की मांग की गई थी। हाईकोर्ट ने कहा, “कश्मीर में इन पेड़ों के पराग कणों से सांस की बीमारियां होती हैं जो जानलेवा हो सकती हैं।” इसके बाद श्रीनगर और अन्य जिलों में लाखों पेड़ काटे गए। हालांकि कई विशेषज्ञ कहते हैं कि अप्रैल-मई में पॉपलरों पेड़ों से एलर्जी होने के कोई सबूत नहीं हैं। इस आशंका का भी कोई सबूत नहीं है कि इससे कोरोना वायरस फैल सकता है।

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