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बॉलीवुड/“लालू जी जैसा तो नहीं”

महारानी में अपनी भूमिका के लिए सोहम शाह को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है
सोहम शाह

सोहम शाह ने शिप ऑफ थीसस (2012), तलवार (2015) और तुम्बाड (2018) जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम किया लेकिन महारानी वेब सीरीज जैसी लोकप्रियता उन्हें पहले नहीं मिली। गिरिधर झा के साथ बातचीत में 36 वर्षीय अभिनता-निर्देशक बताते हैं क्यों उन्होंने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की शैली और अंदाज को परदे पर उतारने से परहेज किया। संपादित अंश:

महारानी में अपने किरदार के लिए दर्शकों की कैसी प्रतिक्रिया मिल रही है? कहानी लालू प्रसाद और राबड़ी देवी से प्रेरित बताई जाती है, पर आपने लालू जी की शैली की नकल नहीं की। क्यों?

मुझे इस भूमिका के लिए जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है। लोगों ने इसे बहुत पसंद किया है क्योंकि भीमा भारती का किरदार सशक्त होने के साथ जटिल भी है। हमें कभी नहीं कहा गया था कि यह किरदार लालू जी या किसी से प्रेरित है। हमें एक स्क्रिप्ट दी गई और निर्देशक ने पूरी छूट दी कि मैं भीमा भारती के चरित्र को कैसे निभाऊं। मैंने बहुत सारे नेताओं के वीडियो देखे। भीमा भारती का किरदार कैसा होना चाहिए, यह मेरे अंदर से आया था। 

तो इस किरदार को आपने अपने मुताबिक ढाला?

बिलकुल! फिल्म की शूटिंग भोपाल में शुरू हो चुकी थी और मैं एक दिन बाद वहां पहुंचा। मैं होटल में था और थोड़ा नर्वस था कि इस किरदार को किस रूप में ढालूं। फिर एक डायलॉग ‘जेल के ताले टूटेंगे भीमा बाबू छूटेंगे’ ने मेरा ध्यान खींचा। मैंने उस दिन होटल में इस संवाद को सौ बार बोला होगा। इस किरदार का आत्मविश्वास मैंने इसी डायलॉग से पकड़ा।     

महारानी आपकी पिछली सभी फिल्मों से बिलकुल अलग है...

मैंने शिप ऑफ थीसस, तलवार और तुम्बाड जैसी फिल्में कीं, जिन्हें बहुत प्यार मिला, लेकिन उनके दर्शक वर्ग सीमित थे। मैं श्रीगंगानगर से हूं, और बच्चन साहब, शाहरुख खान या सलमान खान की फिल्में देख कर बड़ा हुआ हूं। लोगों ने पहली बार महारानी को इसे मेरे लिए देखा और फोन कर कहा कि मैंने बहुत अच्छा काम किया है।

आपने सात साल में तुम्बाड जैसी भव्य फिल्म बड़े परदे के लिए बनाई, लेकिन ओटीटी पर लगता है लोग जल्द से जल्द फिल्में या वेब सीरीज बनाना चाहते हैं। क्या इससे गुणवत्ता पर असर नहीं होगा?

ऐसा नहीं होता। हर फिल्म की अपनी तकदीर होती है। पाताल लोक जैसी वेब सीरीज शुरू हुई और बंद हो गई। स्टूडियो की हरी झंडी के बाद फिर शुरू हुई। गुणवत्ता को समय से नहीं माप सकते। मुझे आश्चर्य होता है कि तुम्बाड बनने में सात साल लगे, जबकि महारानी सात महीने में बन गई। हमने 16 नवंबर को शूटिंग शुरू की और 28 मई को यह रिलीज भी हो गई। उम्मीद है, जब तुम्बाड 2 बनाऊंगा तो सात साल का समय नहीं लूंगा।   

कोरोना काल के बाद ओटीटी प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता रहेगी

बिलकुल रहेगी। कोरोना काल के पूर्व ही इसकी लोकप्रियता बढ़ रही थी। हां, कोरोना नहीं आता तो इतना लोकप्रिय होने में तीन-चार साल लगते। ओटीटी अब कहीं जाने वाला नहीं।

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