Advertisement
27 जून 2022 · JUN 27 , 2022

आवरण कथा/इंटरव्यू/संजय जायसवाल: ‘पैमाना तय हो, जिससे परदेसी लाभ न उठा सकें’

भारतीय जनता पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल का मानना है कि जाति जनगणना का मॉड्यूल वैज्ञानिक और व्यावहारिक होना चाहिए, वोट की राजनीति से प्रेरित नहीं।
संजय जायसवाल

भारतीय जनता पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल का मानना है कि जाति जनगणना का मॉड्यूल वैज्ञानिक और व्यावहारिक होना चाहिए, वोट की राजनीति से प्रेरित नहीं। वरना बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान नागरिकता का दावा पेश कर देंगे। जायसवाल के अनुसार सीमांचल में अनेक बांग्लादेशी और रोहिंग्या आकर बस गए हैं। आउटलुक के लिए संजय उपाध्याय ने उनसे बात की, मुख्य अंशः

 

जाति आधारित जनगणना का पार्टी ने विरोध किया था। फिर सर्वदलीय बैठक में क्यों शामिल हुए?

संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है, राज्य को नहीं। इसलिए भाजपा ने संविधान का हवाला देते हुए विरोध तो जरूर किया, पर पार्टी विधानसभा की सर्वदलीय बैठक में भी शामिल थी जहां आम सहमति ली गई थी।

बैठक में शामिल होकर आपने तो अपना स्टैंड ही बदल दिया।

ऐसा नहीं है। स्टैंड तो विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने बदला है। राज्य सरकार स्वतंत्र है इस तरह की गणना के लिए, पर पैरामीटर निर्धारित होना चाहिए, मॉड्यूल ठीक होना चाहिए। पहले भी एक राज्य ने ऐसा किया था।

बिना पैरामीटर जाने आपकी पार्टी सर्वदलीय बैठक में कैसे शामिल हो गई?

जाति आधारित जनगणना का पैरामीटर और मॉड्यूल तो सरकार को ही बनाना है। अभी हमें इसकी जानकारी नहीं है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि सीमांचल में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या आकर बस गए हैं। मुझे डर है कि अगर उन्हें भी जाति गणना में जोड़ लिया गया तो कहीं वे नागरिकता का दावा न पेश कर दें। सीमांचल में 50 लाख से अधिक बांग्लादेशी और रोहिंग्या हैं। उन्हें चिन्हित करना राज्य सरकार का काम है। उनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है।

आपकी आपत्ति किस बात पर है?

केन्द्र सरकार की कई योजनाएं ओबीसी और ईबीसी के लिए हैं। मुस्लिमों की एक बड़ी जमात इसका लाभ लेना चाहती है। सीमांचल में यह धड़ल्ले से हो रहा है। वहां अनेक लोग फर्जी प्रमाणपत्र बनवाकर ओबीसी में शामिल हो गए।

इसका कोई प्रमाण है?

केन्द्र में मंत्री रहे एक नेता के कास्ट रिकॉर्ड की जांच होनी चाहिए। वे शेख थे, उनकी बिरादरी फॉरवर्ड में है। खुद को उन्होंने शेखैना या कुल्हड़िया जाति में कन्वर्ट करा दिया। ये दोनों मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्ग में आते हैं। इसी तरह सीमांचल से आने वाले बिहार के एक पूर्व मंत्री के रिकॉर्ड की भी जांच होनी चाहिए।

अभी तो आपकी सरकार सत्ता में है, तो क्यों नहीं भाजपा बांग्लादेशियों और रोहिंग्या की पहचान कर रही है?

ऐसा किया जा रहा है, तभी तो कह रहा हूं कि केंद्र और बिहार में मंत्री रहे नेता फॉरवर्ड थे। सीमांचल में सूक्ष्मता से जनगणना करानी होगी। सीमांचल में एक सिंडिकेट काम करता है जो भारतीय नागरिक होने की अर्हता पूरी करने के लिए लोगों को आवास प्रमाणपत्र और आधार कार्ड आदि जैसे कागजात उपलब्ध करवाता है।

जाति जनगणना में मॉडयूल से आपका मतलब क्या है?

गणना का वैज्ञानिक स्वरूप वह है, जिसमें यह साफ हो जाए कि अमुक व्यक्ति अमुक जाति विशेष का ही है। केंद्र सरकार ने जो ओबीसी अथवा ईबीसी की सूची बनाई है, सब उसी के अनुसार हो। कहीं-कहीं शब्दों को लेकर भ्रम की स्थिति है। जैसे, लोहार और लोहरा।

बिहार जैसे पिछड़े राज्य में आकस्मिक कोष से 500 करोड़ रुपये का खर्च अखरता नहीं है? इस राशि का उपयोग तो औद्योगीकरण या उद्योग के पुनरुत्थान के लिए हो सकता है।

जो सवाल नीतीश कुमार और तेजस्वी प्रसाद यादव से पूछना चाहिए, वह सवाल आप मुझसे पूछ रहे हैं। बात तो अखरने वाली है ही।

बिहार में अफसरों और कर्मचारियों की भारी कमी है। 13 करोड़ जनसंख्या वाले राज्य में डेडलाइन 2023 ही रखी गई है। क्या यह आपको व्यावहारिक लगता है?

ये तो उनकी समस्या है। हां, पार्टी की नजर बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों और फॉरवर्ड से बैकवर्ड बने मुस्लिमों पर जरूर है। इनकी गणना का तरीका जरूर ठीक होना चाहिए।

Advertisement
Advertisement
Advertisement