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फिल्म/इंटरव्यू/दिव्येंदु: सुपरहीरो बनने की ख्वाहिश है

जो स्टारडम उनकी कोई फिल्म न ला सकी, वो स्टारडम दिव्येंदु के लिए चर्चित वेब शो मिर्जापुर ने ला दिया
दिव्येंदु

जो स्टारडम उनकी कोई फिल्म न ला सकी, वो स्टारडम दिव्येंदु के लिए चर्चित वेब शो मिर्जापुर ने ला दिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर बने क्राइम थ्रिलर में 37 साल के इस अभिनेता ने अपने किरदार मुन्ना त्रिपाठी के लिए दर्शकों, समीक्षकों की खूब वाह-वाही बटोरी। अमेजन प्राइम वीडियो की सीरीज के दोनों ही सीजन में इस प्रतिभाशाली अभिनेता ने धूम मचा दी। गिरिधर झा के साथ बातचीत में दिव्येंदु ने अपने करिअर में इस भूमिका के असर और कई मुद्दों की चर्चा की। संपादित अंश:

  

2018 में आई वेबसीरिज मिर्जापुर और इसके दूसरे सीजन को बड़ी सफलता मिली। इससे आपकी जिंदगी बदली?

जीवन हमेशा से अच्छा रहा है। सिर्फ इतना है कि मैं बहुत खुश और संतुष्ट महसूस करता हूं। एक कलाकार के रूप में, मैं अपनी फिल्म यात्रा में ऐसा ही कुछ करना चाहता था। एक अभिनेता के तौर पर मैंने अपने अलग-अलग रंग दिखाए, जिसने मुझे एक किस्म की ऊंचाई दी। बेशक, अभी अभिनय के बहुत सारे रंग दिखाने बाकी हैं लेकिन शुरुआत में अगर आपके पास कुछ ऐसा हो, तो निश्चित रूप से खुद पर गर्व महसूस किया जा सकता है। ऐसे पल कई साल, थिएटर के दिनों के दौरान मिले प्रशिक्षण, कड़ी मेहनत और जगराते वाली रातों के बाद आते हैं। फिलहाल मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं।

मिर्जापुर में, विशेषकर इसके सीजन-2 में आपके प्रदर्शन के बारे में कैसी प्रतिक्रियाएं रहीं, जहां आपने मजमा लूट लिया?

जिस तरह लोग प्रशंसा कर रहे हैं, वह अद्भुत और जबरदस्त है। इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। इस प्रशंसा का सिर्फ दिल खोल कर स्वागत किया जा सकता है। मैं सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने मिर्जापुर को इतना पसंद किया। इस सम्मान और प्यार के बहुत मायने हैं।

मिर्जापुर का पहला सीजन बहुत हिट हुआ। दूसरे सीजन को लेकर उम्मीदें काफी बढ़ गई थीं। उम्मीदों का आप पर कोई दबाव पड़ा?

बिलकुल नहीं, बल्कि जब इसकी स्ट्रीमिंग शुरू हो गई, तो हम लोगों को थोड़ा सुकून आया। मिर्जापुर-2 के बारे में इतनी चर्चा और उत्सुकता थी कि इसकी रिलीज से पहले ही ऐसा लगने लगा कि चर्चा की अति हो गई है। इसे बहुत दिल से और कड़ी मेहनत से बनाया गया है। हम बस चाहते थे कि दर्शक इसे देखें। शुक्र है कि दर्शकों की प्रतिक्रियाएं बहुत अच्छी आईं। मिर्जापुर-2 को जिस तरह से निर्माताओं ने बनाया, वह भी कम साहस की बात नहीं है। सीजन एक की तुलना में यह ज्यादा डार्क था। इसमें ड्रामा भी ज्यादा था। यही वजह है कि मैं इसे साहसी कदम कहता हूं। लोग सुरक्षित खेलते हैं। यदि दर्शक किसी शो के पहले सीजन को देखते और पसंद करते हैं, तो आमतौर पर कहा जाता है है कि लोगों को वही देना चाहिए, जो वह देखना पसंद कर रहे हैं। लेकिन मिर्जापुर-2 में हम एक कदम आगे गए और लोगों ने भी उसे अच्छे ढंग से लिया।

मुन्ना भैया के चरित्र के लिए आपने कोई विशेष तैयारी की या जैसा स्क्रिप्ट में लिखा गया, वैसा करते गए?

स्क्रिप्ट के साथ तो आपको जाना ही पड़ेगा। लेकिन हां, खुद को इसके लिए तैयार करना होगा। मुन्ना का चरित्र बहुत जटिल है। वह विशेष प्रकार का चरित्र है, जो हमें रोजमर्रा में नहीं मिलता। वह भावनात्मक रूप से बहुत अस्थिर है। उसका अपना स्वैग है। वह एक खास तरीके से कपड़े पहनता है और खुली जीप में घूमता है। जिंदगी को समझने का उसका नजरिया अलग है। इसलिए उसे एक विश्वसनीय इंसान बनाना मेरे लिए महत्वपूर्ण था। मैं नहीं चाहता था कि इस चरित्र की छवि कागजी दिखे। इसके लिए बहुत तैयारी लगी।

इसके बाद आपने एकता कपूर का बिच्छू का खेल किया, जिसकी पृष्ठभूमि वाराणासी है, जो मिर्जापुर से बहुत ज्यादा दूर नहीं है। एक कलाकार के रूप में यह आपके लिए यह कितना अलग था?

बिच्छू का खेल में बहुत डायलॉगबाजी है। इसे बहुत ही फिल्मी तरीके से लेकिन बहुत यथार्थवादी नजरिए से फिल्माया गया है। यह मेरे लिए पूरी तरह से अलग दुनिया है। इसका प्लॉट मिर्जापुर से बिलकुल अलग था। हालांकि इसकी पृष्ठभूमि भी पूर्वी उत्तर प्रदेश है लेकिन कहानी और बाकी सब बातें इसमें अलग हैं। इतनी ही समानता है कि पात्र एक तरह की भाषा बोलते हैं। मुझे लगता है, आप हमेशा एक नए शहर और नई भाषा का आविष्कार नहीं कर सकते। लेकिन हम जिस अनुभव से गुजरे वह बिलकुल अलग था। यदि मुन्ना दिल से बोलता है, तो अखिल (बिच्छू का खेल का नायक) दिमाग से बोलता है।

हाल के वर्षों में, फिल्में महानगरीय शहरों से छोटे शहरों में स्थानांतरित हो गई हैं। आप इसे कैसे देखते हैं?

ऐसा इसलिए है कि बहुत से लेखक और निर्देशक छोटे शहरों से आ रहे हैं। एक तरह से फिल्म-निर्माण लोकतांत्रिक हो रहा है। छोटे शहरों से आ रहे लोग अपनी कहानियां बताना चाह रहे हैं। इसके अलावा थोड़े वक्त के बाद आपको मुंबईया भाषा या दिल्ली की पंजाबी शादियों से अलग भी कहानी, चरित्र की जरूरत होती है। यह भी वजह है कि लोग इस बदलाव का आनंद उठा रहे हैं। बहुत से लोग इससे अपने आप को जुड़ा महसूस कर सकते हैं या नहीं भी कर सकते, जो भी हो लेकिन इसने दर्शकों को नई दुनिया दी है। यह निर्माताओं और दर्शकों दोनों के लिए फायदे का सौदा है। सिनेमा में नया मोड़ आना दिलचस्प है।

आप बॉलीवुड में तब आए जब हिंदी सिनेमा फॉर्मूला की जगह कंटेंट आधारित सिनेमा में स्थानांतरित हो रहा था। इस स्थिति ने आप जैसे अभिनेताओं की मदद की?

इससे मुझे बहुत मदद मिली। फिल्म स्कूल में आने से पहले मैंने थिएटर किया, लेकिन हमें ऐसे सिनेमा के बारे में ज्यादा नहीं सिखाया गया। शुक्र है, मैं ऐसे समय में आया जब बदलाव शुरू ही हुआ था। मैं उस आंदोलन का हिस्सा रहा हूं जहां हमने पुरानी दुनिया की झलक देखी और नए युग की भी। मैं भाग्यशाली हूं कि सही समय पर सही जगह हूं। अब, ओटीटी आ गया है और आप दोनों दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हो सकते हैं।

फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे का अनुभव कैसा रहा? अभिनेता के रूप में इससे कोई सहायता मिली?

सिनेमा के छात्र के रूप में इसने मेरी बहुत मदद की, इससे ज्यादा अभिनेता के तौर पर। एफटीआइआइ में, प्रकाश और ध्वनि से लेकर संपादन और निर्देशन तक, विभिन्न चीजें सिखाई जाती हैं। वहां आप पूर्ण सिनेमा छात्र बनते हैं, जो वास्तव में पेशेवर दुनिया में मददगार होता है। इससे आप साथी तकनीशियनों के दृष्टिकोण को समझ सकते हैं। आप समझ पाते हैं कि एक निश्चित कोण पर प्रकाश होना या कैमरा होना क्यों महत्वपूर्ण है। क्यों निरंतरता जरूरी है। एफटीआईआई ने मेरे सीखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।

पिछले कुछ वर्षों में आप, विक्रांत मैसी और आपकी पीढ़ी के कई युवा अभिनेताओं की सफलता ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि बॉलीवुड धीरे-धीरे स्टारों से चलने वाले सिनेमा के बजाय अभिनेताओं से चलने वाले सिनेमा की तरफ बढ़ रहा है। आपको लगता है कि निकट भविष्य में स्टार सिस्टम अपने ही वजन के नीचे दब जाएगा?

उम्मीद करता हूं ऐसा हो। जरूरी है कि बड़े नाम से चलने वाले सिनेमा के बजाय कंटेंट से चलने वाला सिनेमा आए। यह वह समय है, जब हम गर्व कर सकते हैं कि हमने ढर्रे से अलग सोचा और ज्यादा वास्तविकता की ओर मुड़े। यह महत्वपूर्ण समय है, जब बॉलीवुड नाच-गाने से आगे बढ़ गया है। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ओटीटी ऐसा मंच है, जहां सर्वश्रेष्ठ विश्व सिनेमा के साथ आपकी सीधी प्रतिस्पर्धा है। ओटीटी पर मिर्जापुर को गेम्स ऑफ थ्रोन्स और फार्गो के साथ दिखाया गया, जो सिर्फ एक क्लिक की दूरी पर है। हम जो भी बनाएं वह गुणवत्ता के मामले में अव्वल दर्जे का हो, जिस पर हम गर्व महसूस कर सकें। इस समय हमने कुछ गंभीर सिनेमा बनाए और अपनी कलात्मक दृष्टि को स्थान दिया।

आपके आगामी प्रोजेक्ट कौन से हैं?

हाल ही में मैंने मेरे देश की धरती का काम खत्म किया है, जो संभव है इस साल थिएटर में आ जाए।

कोई खास रोल जो आप निभाना चाहते हैं?

बहुत सारे हैं! पर इतना तो तय है कि मैं एक सुपरहीरो की भूमिका निभाना चाहता हूं। इसके अलावा एक जासूस। खून पीने वाला पिशाच भी बनना चाहता हूं। मुझे पता है यह सुनने में जरा अटपटा लगता है लेकिन ये मेरी इच्छा सूची में है।

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