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इंटरव्यू/ भूपेश बघेल: ‘भारत में पदयात्राओं की एक समृद्ध परंपरा है’

केंद्र की सरकार तमाम आवाजों को दबा रही है, मीडिया का मुंह बंद कर रही है
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

राहुल गांधी ने हाल ही में जब कन्याकुमारी से अपनी भारत जोड़ो यात्रा शुरू की, उस वक्त वहां मौजूद कांग्रेस के नेताओं में भूपेश बघेल भी शामिल थे। पांच महीने तक चलने वाली यह पदयात्रा कांग्रेस द्वारा खुद की बहाली का एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। बघेल ने इस यात्रा पर पार्टी की योजनाओं और अपनी चर्चित गोधन न्याय योजना के बारे में आउटलुक के आशुतोष भारद्वाज से बात की। बातचीत के संपादित अंश प्रस्तुत हैं।

 

इस यात्रा का उद्देश्य क्या है?

कांग्रेस देश के हालात को लेकर गंभीर है। केंद्र की सरकार तमाम आवाजों को दबा रही है, मीडिया का मुंह बंद कर रही है, अपने हिसाब से अफसानों को गढ़ रही है, विपक्ष को बदनाम और परेशान करने के लिए विभिन्न एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है और संवैधानिक संस्थाओं पर दबाव बना रही है। इसलिए हमने तय किया कि यह भारत जोड़ो यात्रा निकाली जाए और इसके माध्यम से आम लोगों को एक छतरी के नीचे एकजुट किया जाए।

भारत में तमाम समुदाय और धर्म सद्भाव के साथ रहते आए हैं, लेकिन भाजपा ध्रुवीकरण की राजनीति करती है। अनेकता में एकता हमारी ताकत रही है। ऐसी विविधता का दावा कुछ ही देश कर सकते हैं। इस देश ने दुनिया को लगातार भाईचारे का संदेश दिया है, लेकिन आज हम लोग नफरत और हिंसा की ओर बढ़ रहे हैं। भाजपा इस राष्ट्र को, इसकी विविधता को नष्ट करने की कोशिश कर रही है।    

कांग्रेस अपनी सांगठनिक ताकत को बढ़ाने पर भी काम कर सकती थी। इस यात्रा की जरूरत क्या थी?

हमारे देश में पदयात्राओं की एक समृद्ध परंपरा रही है। तमाम साधु, संत, नेताओं ने समाज को जोड़ने के लिए, सद्भाव कायम रखने के लिए और देश में हो रहे सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक बदलावों को समझने के लिए पदयात्राएं की हैं।  

जगतगुरु शंकराचार्य ने केरल से पदयात्रा शुरू कर के देश के चारों कोनों में मठ स्थापित किए थे। उन्होंने भारत को एक सांस्कृतिक सूत्र में पिरोने का काम किया। गुरु नानक लंबी पदयात्रा कर मक्का गए। वे छत्तीसगढ़ भी आए थे। हमारी संस्कृति में यात्राओं की जड़ें बहुत गहरी हैं। हमारे अवतारों को ही लीजिए। कृष्ण ने पूरब में मथुरा से पश्चिम के द्वारका तक लंबी यात्रा की थी। राम उत्तर से दक्षिण गए। पदयात्राओं की यह परंपरा शंकराचार्य और गुरु नानक से शुरू होकर स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और विनोबा भावे तक आती है। पदयात्रा शक्ति प्रदर्शन नहीं है। इन यात्राओं से लोगों को आपस में जोड़ा जाता है।

गुजरात और हिमाचल में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं। यात्रा में इन्हें क्यों छोड़ा गया? बिहार जैसे राज्य को तो यात्रा छू तक नहीं रही और यूपी को बमुश्किल छूकर निकल जा रही है।    

हमने कन्याकुमारी से शुरुआत करने का निर्णय लिया। हमारी संस्कृित में संगम का बहुत महात्म्य है, चाहे वह प्रयागराज का संगम हो या छत्तीसगढ़ में राजिम का। कन्याकुमारी तो तीन महासागरों का संगम है।

पदयात्रा का प्रभाव उसके तय मार्ग तक सीमित नहीं है। उसके पार जाता है। गांधीजी ने जब नमक कानून को तोड़ने के लिए साबरमती से 250 किलोमीटर की लंबी यात्रा की थी तो क्या उसका असर केवल गुजरात पर पड़ा या समूचे देश पर और उसके पार भी? अभी तो भारत जोड़ो को महज कुछ ही दिन हुए हैं लेकिन देखिए, भाजपा कितनी बेचैन हो उठी है।  

भूपेश बघेल

यात्रा से क्या-क्या निकलने की गुंजाइश है?

यात्रा के समाप्त होने तक भारत की राजनीति में बहुत कुछ बदल चुका होगा। लोगों का मूड बदल चुका होगा। जो लोग राहुल गांधी के विरोध में लिखते थे आज वे भी उनके कठिन श्रम, संघर्ष और सहजता की सराहना कर रहे हैं। यह महंगाई, कृषि संकट और बेरोजगारी जैसे निर्णायक मसलों पर जनता की धारणा को निर्मित करेगा। 

मैं शुरुआती दो दिन यात्रा में था। हम लोग विवेकानंद स्मारक गए, कामराज मंडपम और गांधी मंडपम गए। अगले दिन हम दोपहर तक बिना रुके लगातार 12 किलोमीटर से ज्यादा चले। यह पदयात्रा हमें लोगों के लिए लड़ने की ताकत देगी। 

ऐसा लगता है कि यह यात्रा राहुल गांधी के करियर और छवि को निर्मित करने के उद्देश्य  से है।

राहुल गांधी चाहते तो यूपीए की सरकार में मंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी बन सकते थे, लेकिन उन्होंने इसके विरुद्ध फैसला लिया। आज वे कड़ी मेहनत कर रहे हैं। क्यों? क्या वे पीएम बनना चाहते हैं? नहीं। वे जनता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, देश को ध्रुवीकरण से बचाने के लिए और बेरोजगारी व महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दे उठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। संसद से लेकर टीवी चैनलों तक महंगाई पर कोई चर्चा नहीं है। जनता के मुद्दों को दबाने की कोशिशें की जा रही हैं। इसके उलट हम लोग इन मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहे हैं। 

छत्तीसगढ़ पर आते हैं। यहां किसानों की मदद करने के लिए उन्हें आधुनिक तकनीक देने के बजाय उनसे गोबर और गोमूत्र खरीदने की क्या जरूरत पड़ गई?

राज्य में आवारा मवेशी एक बड़ा मुद्दा बन चुके हैं। कोई भी बूढ़ा मवेशी नहीं रखना चाहता। खरीदने वाले भी नहीं हैं, तो लोग उन्हें ऐसे ही छोड़ दे रहे हैं। मवेशी कभी हमारी ताकत हुआ करते थे। जब कभी किसी को पैसे की जरूरत होती थी वह अपने गाय-बैल बेच देता था। इसलिए यह बदलाव देखकर मैं चौंक गया। एक और सामाजिक बदलाव आया है। चूंकि ज्यादा किसान अब ट्रैक्टर रखने लगे हैं तो बैल बीते जमाने की बात हो गए हैं।

इस मसले का हल करने के लिए हमने गोबर खरीद कर परंपरागत गोठान को जिंदा करने का फैसला लिया। गोठान मने दिन में मवेशियों की देखभाल के केंद्र। फिर हम एक नारा लेकर आए,  छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरवा, घुरवा बारी। हमने जल्द ही गोबर और गोठान योजनाओं को ग्रामीण उन्नयन के एक समग्र कार्यक्रम में बदल डाला।

अब गोठान महज मवेशी पालन केंद्र न रह कर ऐसी छोटी इकाइयों के रूप में विकसित हो चुके हैं, जो महिला स्वयं-सहायता समूहों को कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन और सब्जी उगाने में मदद कर रहे हैं। गोबर की खरीदी से जिन आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत हुई, उसके माध्यम से अब गोठान ग्रामीण औद्योगिक पार्कों में तब्दील हो चुके हैं।

गोधन न्याय योजना के बजट पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि आपने गोठान में मनरेगा का फंड इस्तेमाल किया है।

इस योजना पर हमने बहुत कम खर्च किया है। हमने गोठानों के लिए पैसा विभिन्न विभागों के समेकित सहयोग से जुटाया है, जैसे पंचायत, बागवानी और पशुपालन। कुछ निर्माण कार्यों के लिए हमने मनरेगा का कुछ फंड इस्तेमाल किया था, लेकिन इसमें गलत क्या है?

राज्य भर में हमने कुल 10,624 गोठानों को मंजूरी दी है। इनमें 8408 बनाए जा चुके हैं। योजना की शुरुआत से लेकर 31 अगस्त  तक हमने 80.4 लाख क्विंटल गोबर की खरीद की है जिसकी कीमत 160.94 करोड़ रुपये है। इससे 2,52,685 पशुपालकों को लाभ मिला है। इनमें से 40 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लोग हैं, 8 प्रतिशत अनुसूचित जाति से हैं और 49 प्रतिशत अन्य पिछड़ी जातियों से आने वाले लाभार्थी हैं। जाहिर है इस योजना ने राज्य के सबसे जरूरतमंद लोगों को फायदा पहुंचाया है।

इससे कहीं ज्यादा जरूरी हालांकि यह है कि गोबर से बने कम्पोस्ट जैसे विभिन्न उत्पादों की बिक्री के सहारे 3089 गोठान स्वावलंबी बन चुके हैं। अब तक हम 175 करोड़ रुपये के बराबर कम्पोस्ट  बेच चुके हैं। अब तक कुल 11,187 स्वयं-सहायता समूह काम कर रहे हैं जिनके सदस्यों की कुल संख्या  83,874 है। हर गोठान में बीस से तीस महिलाएं काम कर रही हैं। गोबर योजना की कामयाबी के बाद हमने गोमूत्र की खरीदी शुरू की जिनका इस्तेमाल स्वयं-सहायता समूह कीटनाशक बनाने के लिए कर रहे हैं।

गोबर से बनी कम्पोस्ट खाद उर्वरकों पर हमारी निर्भरता को कम करेगी और जैविक खेती को बढ़ावा देगी। हम लोग कार्बन क्रेडिट खरीदने की भी योजना बना रहे हैं। गोधन न्याय योजना की सराहना रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने की है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की है। मैं राज्य का मुख्यमंत्री रहूं या न रहूं, लेकिन मैं एक ऐसा मॉडल अपने पीछे छोड़ जाना चाहता हूं जो हर गांव को स्वावलंबी बना सके।

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