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टोक्यो पैरालंपिक: सुनहरी साख के पदक

रियो 2016 में महज 19 एथलीटों से टोक्यो 2020 में 19 पदक तक हासिल कर लेने का करिश्मा
खेल मंत्री अनुराग ठाकुर, कानून मंत्री किरण रिजिजू और खेल राज्यमंत्री नीतीश प्रमाणिक के साथ पैरालंपिक विजेता

उपलब्धि की साख जैसे दीप-दीप कर रही है। यह यकीनन ऐतिहासिक है क्योंकि 2016 के रियो पैरालंपिक में भारतीय टोली के कुल खिलाड़ियों की संख्या महज 19 थी, और उसके अगले ही आयोजन टोक्यो 2020 में हम पांच स्वर्ण के साथ 19 पदक हासिल करने में कामयाब हुए। हमारे नौ एथलीट अगर पोडियम से नहीं चूकते, तो पदकों की संख्या 30 के करीब पहुंच सकती थी। प्रमोद भगत, अवनि लेखरा, कृष्णा नागर, सुमित अंतिल और मनीष नरवाल- इससे पहले कभी भारत की झोली में इतने पैरालंपिक स्वर्ण पदक नहीं आए थे। पैरालंपिक में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2016 और 1984 लॉसएंजिल्स में रहा था। दोनों ही खेलों में हमने चार पदक हासिल किए थे।

भाला फेंक

तीसरे पैरालिंपिक में नामी खिलाड़ी देवेंद्र झाझरिया पुरुषों की भाला फेंक में स्वर्ण से चूके, तो उनकी भरपाई सुमित अंतिल ने कर दी। सुमित एफ 64 श्रेणी में नए बादशाह के रूप में उभरे। स्वर्ण के रास्ते पर चलते हुए अंतिल ने अपना ही रिकॉर्ड तीन बार तोड़ा। जयपुर में रहने वाली 19 साल की निशानेबाज अवनी लेखरा की भूमिका को भी भूला नहीं जा सकता, जो पैरालिंपिक में सोना लाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं और भारतीय दल में ऊर्जा का संचार किया।

अवनि लेखरा

ऐसे समय में जब टोक्यो ओलंपिक में भारतीय निशानेबाजों को खाली हाथ लौटने के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है (15 निशानेबाजों में केवल एक फाइनल में जगह बना पाया था), तब पैरालंपिक के निशानेबाजों ने पांच पदक झटक कर देश को बड़ी राहत दी। इन पदकों में लेखरा और सिंहराज अधाना ने दो-दो पदक हासिल किए हैं।

टोक्यो पैरालंपिक में कुछ बातें भारत के लिए पहली बार हुईं। जैसे, देश में पहली बार भाविना पटेल टेबल टेनिस (रजत) में पदक लाईं, जबकि हरविंदर सिंह ने कांस्य जीतकर तीरंदाजी से बदकिस्मती का दाग हटा दिया। भाविना की उपलब्धि इसलिए भी बड़ी है कि उन्होंने रजत पर कब्जा जमाने के लिए सर्बिया की बोरिस्लावा रैंकोविक पेरिक को हराया जो विश्व की पांचवें नंबर की खिलाड़ी हैं। 

आश्चर्यजनक रूप से ट्रैक ऐंड फील्ड के खिलाड़ियों ने टोक्यो पैरालंपिक में भारत के लिए सबसे ज्यादा आठ पदकों की कमाई की, जिसमें तीन भाला फेंक और चार ऊंची कूद से हैं। शटलर भी पीछे नहीं रहे। भारत के इतिहास में पहली बार इस खेल में दो स्वर्ण सहित चार पदक आए। भारत के यादगार अभियान के लिए कृष्णा नागर की हार से पहले ही दुनिया के नंबर एक प्रमोद भगत ने पैरालंपिक में धावा बोल कर देश के लिए बैडमिंटन में पहली बार सोना लाने की शुरुआत की। आइएएस अफसर सुहास यतिराज के रजत पदक से भी देश जगमगा रहा है। 

बैडमिंटन

स्वरूप उनहालकर (शूटिंग), संदीप चौधरी, नवदीप और सोमन राणा (एथलेटिक्स) और तरुण ढिल्लों (बैडमिंटन) अपनी-अपनी स्पर्धाओं में चौथे स्थान पर रहे, जबकि सकीना खातून (पावरलिफ्टिंग), राम पाल और अमित सरोहा (एथलेटिक्स) और राहुल जाखड़ (शूटिंग) पांचवें स्थान पर रहे।

महामारी के समय एथलीटों की कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ, इसका श्रेय भारत की सभी पैरालंपिक समितियों, राष्ट्रीय खेल महासंघों, सरकार की टीओपी (टारगेट ओलंपिक पोडियम) योजना और भारतीय खेल प्राधिकरण को भी जाता है, जिसने भारत को खेल जगत के नक्शे पर मजबूत ताकत बनाने और पेरिस 2024 में शानदार प्रदर्शन का मार्ग प्रशस्त करने में योगदान दिया। 

भारत का एतिहासिक प्रदर्शन

पांच स्वर्ण, आठ रजत और छह कांस्य- टोक्यो में ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक में भारत ने अपनी सर्वश्रेष्ठ पदक तालिका हासिल की। 1984 के न्यूयॉर्क और 2016 के रियो खेलों में देश के पिछले सर्वश्रेष्ठ चार-चार पदकों की छाया से बाहर आते हुए, भारतीय पैरा-एथलीटों ने 20 पदक के करीब पहुंचकर सभी को चौंका दिया। इन लोगों ने निश्चित रूप से पेरिस 2024 में अपने सक्षम समकक्षों के सामने एक बेंचमार्क रखा है।

टेबल टेनिस में ऐतिहासिक पहले पदक से लेकर तीरंदाजी तक, जापान की राजधानी में अपने 12 दिनों के प्रवास के दौरान भारतीयों ने लगभग हर खेल में अपना दबदबा बनाया और आगामी पेरिस 2024 में और अधिक के लिए मार्ग प्रशस्त किया। पैरालंपिक स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला, उन्नीस साल की अवनि लेखरा स्टार बनीं। निशानेबाजी में दूसरा पदक जीतकर उन्होंने शानदार जगह बनाई।

टोक्यो पैरालंपिक 2020 के सभी भारतीय पदक विजेताओं पर एक नजर

शूटिंग

अवनि लेखरा (10 मीटर एयर राइफल शूटिंग, एसएच1 श्रेणी में स्वर्ण। इसी श्रेणी में 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन में कांस्य)

टोक्यो में भारत के लिए पहला स्वर्ण जीता। 249.6 अंकों का नया पैरालंपिक रिकॉर्ड बनाया। कांस्य पदक जीत टोक्यो को उन्होंने यादगार बना दिया। एक ही ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक में दो पदक जीतने वाली वे पहली भारतीय महिला बन गईं।

रीढ़ की हड्डी में लगी चोट की वजह से कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त।

सिंहराज अधाना (10 मीटर एयर पिस्टल एसएच1 श्रेणी में रजत और इसी श्रेणी में 50 मीटर पिस्टल में कांस्य)

फाइनल में 216.8 अंक हासिल किए। पोलियो की वजह से 39 वर्षीय अधाना के निचले अंग प्रभावित हैं।

मनीष नरवाल (50 मीटर पिस्टल एसएच1 में स्वर्ण)

भारत का तीसरा स्वर्ण पदक जीता। क्वालीफिकेशन राउंड के दौरान सातवें स्थान पर रहने के बावजूद नरवाल ने रिकॉर्ड 218.2 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीता। 19 साल के मनीष का दाहिना हाथ जन्मजात बीमारी के कारण खराब है।

बैडमिंटन

प्रमोद भगत (सिंगल एसएल3 श्रेणी में स्वर्ण)

ओडिशा के इस युवा ने भारत के लिए बैडमिंटन में पहला स्वर्ण जीता। 33 साल के भगत के बाएं पैर में चार साल की उम्र में पोलियो हो गया था।

कृष्णा नागर (सिंगल एसएच6 श्रेणी में स्वर्ण)

22 साल के कृष्णा ने हांगकांग के चू मान काई को 21-17, 16-21, 21-17 से हराया। कृष्णा की ऊंचाई महज चार फुट पांच इंच है।

सुहास यतिराज (एसएल4 श्रेणी में रजत)

फाइनल में फ्रांस के लुकास मजूर के खिलाफ मुकाबला खेला। उनके एक पैर में जन्मजात विकृति है।

मनोज सरकार (एसएल3 वर्ग कांस्य)

बंगाल में जन्मे सरकार ने जापान के डाइसुके फुजीहारा को 22-20, 21-13 से हराकर तीसरा स्थान हासिल किया। गलत इलाज की वजह से निचले अंग खराब हैं।

हाइ जंप

निषाद कुमार (टी47 श्रेणी में रजत)

हिमाचल प्रदेश के ऊना के रहने वाले निषाद ने 2.06 मीटर ऊंची छलांग लगाई। यह एशिया का रिकॉर्ड है। कुमार ने आठ साल की उम्र में एक दुर्घटना में दाहिना हाथ खो दिया था।

मरियप्पन थंगावेलु (टी42 श्रेणी में रजत)

26 साल के तमिलनाडु के इस खिलाड़ी ने पुरुषों की ऊंची कूद में 1.86 मीटर के साथ रजत पदक जीता। पांच साल की उम्र में बस ने कुचल दिया था।  दाहिने पैर में स्थायी विकलांगता।

प्रवीण कुमार (टी64 श्रेणी में रजत)

प्रवीण ने 2.07 मीटर ऊंची छलांग लगाई। उनके पैर में जन्मजात विकृति है।

शरद कुमार (टी42 श्रेणी में कांस्य)

1.83 मीटर की ऊंचाई पार की। दो साल की उम्र से बाएं पैर में लकवा।

टेबल टेनिस

भाविना पटेल (रजत)

भारत को टेबल टेनिस में पहला पैरालंपिक पदक दिलाया। एक साल की उम्र से पोलियो है।

डिस्कस थ्रो

योगेश कथुनिया (एफ56 श्रेणी में रजत)

टोक्यो पैरालंपिक में भारत को पहला पदक दिलाया। उन्होंने 44.58 मीटर दूर डिस्क फेंकी, जो उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ था। नौ साल की उम्र में एक बीमारी हो गई थी। 2006 से वह व्हीलचेयर पर ही सीमित हो गए। मां मीना देवी ने फिजियोथेरेपी सीखी और तीन साल के भीतर ही, कथुनिया ने मांसपेशियों की ताकत फिर हासिल कर ली।

भाला फेंक

सुमित अंतिल (एफ64 श्रेणी में स्वर्ण)

तीन बार अपना ही विश्व रिकॉर्ड तोड़ते हुए 23 साल के अंतिल ने अपना भाला 68.55 मीटर पर भेज कर दम लिया। 2015 में एक भयानक मोटरबाइक दुर्घटना के बाद उनका पैर घुटने के नीचे से काटना पड़ा था।

देवेंद्र झाझरिया (एफ46 श्रेणी में रजत)

दो पैरालंपिक (2004 और 2016) में स्वर्ण जीत चुके थे। 64.35 मीटर दूर भाला फेंका। फाइनल में श्रीलंकाई सेना के दिनेश हेराथ को हराया। बिजली का तार छू जाने के बाद 41 साल के झाझरिया का बायां हाथ आठ साल की उम्र में काटना पड़ा था।

सुंदर सिंह गुर्जर (एफ46 श्रेणी में कांस्य)

64.01 मीटर की दूरी के साथ कांस्य पदक जीता। 2015 में गुर्जर के हाथ पर मेटल शीट गिर गई थी, जिससे वे जीवन भर के लिए विकलांग हो गए।

तीरंदाजी

हरविंदर सिंह (कांस्य)

30 वर्षीय खिलाड़ी ने रोमांचक शूट-ऑफ में दक्षिण कोरियाई किम मिन सु को 6-5 से हराकर भारत का पहला तीरंदाजी पदक अपने नाम किया। हरियाणा के कैथल जिले के मूल निवासी। डॉक्टर द्वारा गलत तरीके से इंजेक्शन लगाने के बाद उनके बाएं पैर में खराबी आ गई थी। वे अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रहे हैं।

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