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आवरण कथा/शख्सियत: ‘दम’दार दावेदार

लड़कियों ने हर क्षेत्र में सफलता की नई इबारत लिखनी शुरू की, तो मर्दाना दमखम की पहचान रहे खेलों में भी साबित कर दिखाया कि शक्तिमान सिर्फ पुरुष नहीं, पहलवानी, मुक्केबाजी, कबड्डी, भारोत्तोलन के अखाड़ों में शौर्य दिखाने वाली लड़कियों के संघर्ष की चुनिंदा दास्तान
बॉक्सिंग चैंपियन मीनाक्षी सबर

मीनाक्षी हुड्डा

बॉक्सिंग, 48 किलो वर्ग

हरियाणा के रोहतक जनपद के रुरकी गांव की मीनाक्षी के पिता श्रीकृष्ण हुड्डा ऑटोरिक्शा चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते रहे हैं। 12 साल की उम्र में उन्होंने मुक्केबाजी में रुचि दिखाई। कोच विजय हुड्डा ने अपनी अकादमी में मीनाक्षी को प्रशिक्षण दिया। 2017 में उन्होंने सब-जूनियर चैंपियनशिप जीती और फिर 2018 के खेलो इंडिया स्कूल गेम्स में खिताब अपने नाम किया। 2019 में वे यूथ नेशनल चैंपियन बनीं और 2021 में सीनियर स्तर पर नेशनल चैंपियनशिप का रजत पदक हासिल कर लिया। 2022 में एशियाई एमेच्योर मुक्केबाजी चैंपियनशिप में उन्होंने 52 किलोग्राम फ्लाइवेट वर्ग में रजत पदक जीता। 2025 की शुरुआत में उन्होंने नेशनल चैंपियनशिप फाइनल में विश्व चैंपियन नीतू घनघस को हराकर स्वर्ण पदक जीता। उसके तुरंत बाद वर्ल्ड बॉक्सिंग कप में उन्होंने कांस्य पदक अपने नाम किया। लिवरपूल में हुई विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में उन्होंने महिलाओं के 48 किलोग्राम वर्ग का स्वर्ण पदक जीता। लिवरपूल में उनका आत्मविश्वास, दबाव में भी संयम बनाए रखना इस बात का सबूत है कि अब वे सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे खतरनाक लाइट फ्लाइवेट मुक्केबाजों में गिनी जाती हैं। यकीनन, यह उपलब्धि काबिलेतारीफ है।

ज्योश्ना सबर

वेटलिफ्टिंग, 40 किलो वर्ग

ज्योश्ना सबर

ओडिशा के गजपति जिले के एक छोटे-से गांव पेकाटा से निकलकर ज्योश्ना सबर ने भारतीय वेटलिफ्टिंग में अपनी अलग पहचान बना ली है। घर में खेल का माहौल नहीं था, लेकिन ज्योश्ना की शारीरिक क्षमता और फुर्ती पर गांव के शिक्षक ने ध्यान दिया। वे पहले ग्राम विकास विद्यालय कांकिया बाद में पेशेवर कोचिंग में गईं। यहां वे कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से जुड़ीं, जहां शिक्षा और खेल साथ बढ़े। दोहा में हुए एशियाई युवा वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप 2024 में ज्योश्ना ने 40 किलो भार वर्ग में स्नैच, क्लीन ऐंड जर्क में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। उन्होंने कुल 135 किलो भार उठाया, जिसमें 60 किलो स्नैच और 75 किलो क्लीन ऐंड जर्क शामिल था। यह एशियाई युवा रिकॉर्ड भी रहा। उसके बाद 2025 की युवा विश्व चैंपियनशिप में भी उनका प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा। 130 किलो से अधिक भार उठाकर पोडियम पर अपनी जगह बनाई। इस दौरान स्नैच और क्लीन ऐंड जर्क दोनों में उनका संतुलन और तकनीक देखने लायक थी। कम उम्र में ही इस तरह की स्थिरता और आत्मविश्वास उनकी सबसे बड़ी ताकत है। उनके कोच का कहना है कि ज्योश्ना खेल में दबाव नहीं लेतीं और बहुत शांत दिमाग से खुद को संभालती हैं। अब उनकी नजर आने वाले बड़े आयोजनों पर है। ज्योश्ना सबर की कहानी बताती है कि जज्बा और लगन हो तो सीमित संसाधन भी रुकावट नहीं बनते।

प्रीतिस्मिता भोई

वेटलिफ्टिंग, 40 किग्रा वर्ग

प्रीतिस्मिता भोई

ओडिशा की बेटी प्रीतीस्मिता भोई भारतीय खेलों में नया सितारा हैं। कम उम्र में वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी धाक जमा चुकी हैं। प्रीतीस्मिता ने क्लीन ऐंड जर्क श्रेणी में 76 किलोग्राम का नया युवा विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया। उन्होंने 2024 के युवा विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में 40 किलोग्राम स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। इतनी छोटी उम्र में यह उपलब्धि अपने आप में ऐतिहासिक है। भोई का जन्म ओडिशा के ढेंकनाल में हुआ। जब वे बहुत छोटी थीं, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। उनकी एक बहन हैं, विदुस्मिता। दोनों का पालन-पोषण उनकी मां जमुना देवी ने किया। प्रीतीस्मिता का बचपन अभावों में बीता। वे ओडिशा के छोटे से गांव से आती हैं, जहां खेल के संसाधन सीमित थे। लेकिन उनकी लगन और मेहनत ने हालात बदल दिए। कोच ने उनकी क्षमता पहचानी और उन्हें पेशेवर ट्रेनिंग लेने में मदद की। परिवार ने भी हर कदम पर उनका साथ दिया। भारोत्तोलन कोच गोपाल कृष्ण दास ने दोनों बहनों को एक ट्रैक इवेंट में भाग लेते देखा और उनकी मां को उन्हें भारोत्तोलक के रूप में प्रशिक्षित करने के लिए राजी किया। भोई की खासियत है कि वे अपने लिफ्ट में असाधारण स्थिरता और ताकत दिखाती हैं। स्नैच और क्लीन ऐंड जर्क दोनों में उनका नियंत्रण उम्र से कहीं आगे का है। यही कारण है कि उन्होंने युवा स्तर पर ही कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पदक जीते। 2025 में आयोजित कॉमनवेल्थ वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने साबित किया कि वे भविष्य में भारत की सबसे बड़ी वेटलिफ्टरों में शामिल होंगी। उनके नाम पर वर्ल्ड यूथ रिकॉर्ड होना दर्शाता है कि वे अपने वर्ग में विश्व की सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों में से एक हैं। प्रीतीस्मिता भोई की सफलता संदेश देती है कि उम्र केवल संख्या है। मेहनत और अनुशासन हो, तो कोई भी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। आने वाले समय में वे एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और ओलंपिक जैसे बड़े मंच पर भारत के लिए पदक जीतने की सबसे प्रबल उम्मीद होंगी। उनका संघर्ष कई खिलाड़ियों को प्रेरणा देता है।

रीतिका हुड्डा

कुश्ती, 76 किलो वर्ग

रीतिका हुड्डा

हरियाणा के रोहतक जिले की मिट्टी से निकली रीतिका हुड्डा भारतीय महिला कुश्ती का उभरता हुआ नाम हैं। 2002 में जन्मी रीतिका का बचपन गांव के साधारण माहौल में बीता। गांव के अखाड़े में जब लड़के अभ्यास करते, तो वे भी वहीं पहुंच जातीं। उन्होंने छोटी उम्र से ही स्थानीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर कुश्ती में रुचि दिखाई। धीरे-धीरे उनके खेल में गंभीरता और अनुशासन आने लगा। रीतिका ने छोटे-छोटे मुकाबलों में दमखम दिखाया और फिर जिला स्तर पर पहचान बनाई। आगे चलकर उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और लगातार बेहतर प्रदर्शन से कोच का ध्यान खींचा। 2023 में उनके करिअर को दिशा मिली, जब उन्होंने मिस्र में आयोजित इब्राहिम मुस्तफा रैंकिंग सीरीज में 72 किलो वर्ग का कांस्य पदक जीता। इतना ही नहीं, उसी साल एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में भी उन्होंने कांस्य पदक जीतकर साबित किया कि अब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थायी दावेदार हैं। 2023 में उन्होंने 76 किलो वर्ग में अपनी सक्रिय प्रतिस्पर्धा शुरू की और इसी साल अंडर 23 विश्व चैंपियनशिप में 76 किलो वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। हालांकि, पेरिस ओलंपिक में वे उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाईं लेकिन 2024 में उन्होंने विश्व मिलिट्री चैंपियनशिप में 76 किलो वर्ग में स्वर्ण पदक जीता था और 2025 एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में 76 किलो वर्ग में रजत पदक हासिल कर चुकी हैं। 76 किलो वर्ग में उनका दबदबा बढ़ता जा रहा है और वे इस वर्ग की मजबूत दावेदार हैं। दुर्भाग्य से रीतिका को डोप टेस्ट में पॉजिटिव पाए जाने के बाद एक वर्ष के लिए अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया। वापसी के बाद उनकी नजर एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और 2028 ओलंपिक पर होंगी। 76 किलो में कई विश्वस्तरीय पहलवान हैं, लेकिन रीतिका का जज्बा बड़ा है। 

अंतिम पंघाल

कुश्ती, फ्रीस्टाइल 53 किलो वर्ग

अंतिम पंघाल

हिसार जिले के भगाना गांव में जन्मी अंतिम का संघर्ष, साहस और अनुशासन की मिसाल है। गांव में पली-बढ़ी अंतिम ने बचपन से ही अखाड़े का रुख किया। स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ उनका पूरा ध्यान प्रशिक्षण पर रहता। गांव के छोटे से दायरे से निकलकर जब उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेला, तभी साफ हो गया था कि यह लड़की केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में नाम करेगी। अंतिम पंघाल ने एशिया अंडर-20 चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। इसके अलावा वर्ल्ड अंडर-17 में कांस्य और एशिया अंडर-23 में सिल्वर पदक हासिल किया। महज 17 साल की उम्र में अंतिम पंघाल ने जूनियर रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर भारत के लिए इतिहास रच दिया। विश्व रेसलिंग चैंपियनशिप में अंतिम पंघाल ने 53 किलो वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास में नाम दर्ज कराया। दरअसल, इस श्रेणी में स्वर्ण जीतने वाली वे भारत की पहली महिला पहलवान बनीं। सर्बिया के बेलग्रेड में हुई विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीता और भारत के लिए पेरिस ओलंपिक 2024 का कोटा पक्का किया। पेरिस ओलंपिक में हालांकि पदक की उम्मीद पूरी नहीं हो सकी और वे शुरुआती दौर में बाहर हो गईं। लेकिन उस अनुभव ने अंतिम को और मजबूत बनाया। उन्होंने अपने खेल को ज्यादा आक्रमक और धारदार बनाने पर जोर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि 2025 की विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल कर उन्होंने भारत का खाता खोला। उस संस्करण में यह भारत का पहला पदक था। अंतिम का खेल संतुलन और रणनीति उन्हें खास बनाती है। उनके कोच का मानना है कि उनकी सबसे बड़ी ताकत धैर्य और मानसिक मजबूती है। गांव की मिट्टी से उठी यह पहलवान अब भारत की सबसे बड़ी पदक उम्मीदों में शामिल है। एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और 2028 ओलंपिक की ओर उनका ध्यान है। उनकी उपलब्धियां कई दिग्गजों को पीछे छोड़ चुकी है। अंतिम पंघाल इस बात की प्रतीक हैं कि संकल्प और मेहनत साथ हो, तो शिखर तक पहुंचना संभव है।

पुष्पा यादव

कुश्ती, 59 किलो वर्ग

पुष्पा यादव

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से निकलकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बनाने वाली पुष्पा यादव भारतीय महिला कुश्ती की सबसे दमदार प्रतिभाओं में गिनी जाती हैं। साधारण परिवार में जन्मी पुष्पा का बचपन आर्थिक सीमाओं और जिम्मेदारियों में बीता। पिता चाय की दुकान चलाते है। उनकी मां बचपन में ही चल बसी थीं। शुरुआती दिनों में उन्होंने गांव के अखाड़ों में कुश्ती सीखना शुरू किया। मिट्टी में घंटों अभ्यास करना उनके लिए सामान्य दिनचर्या बन गई। अक्सर लोग लड़कियों के कुश्ती खेलने को ठीक नहीं मानते लेकिन पुष्पा ने नकारात्मक बातों को ही अपनी ताकत और प्रेरणा बनाकर लगातार मेहनत जारी रखी। गांव और जिला स्तर की प्रतियोगिताओं में जीत हासिल करने के बाद पुष्पा का नाम राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाने लगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कदम रखते ही पुष्पा ने अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया। कई युवा प्रतियोगिताओं में सफलता मिलने के बाद वह विश्व स्तर की प्रतियोगिताओं में भी भारत की मजबूत दावेदार बन गईं। उनके खेल में आक्रामकता और मानसिक दृढ़ता दोनों स्पष्ट दिखाई देती है। पुष्पा ने 2024 में एशियाई अंडर-23 एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा था। इससे पहले जयपुर और पुणे में आयोजित नेशनल चैंपियनशिप में भी उन्होंने रजत पदक जीता था। पुष्पा की सफलता केवल उनके खेल तक सीमित नहीं है। उनका संघर्ष और कहानी लाखों युवाओं, खासकर लड़कियों के लिए प्रेरणा है। उन्होंने यह साबित किया कि सीमित संसाधन, आर्थिक बाधाएं मजबूत संकल्प के सामने रोड़ा नहीं बन सकते। गांव से निकलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचना उनके धैर्य, मेहनत और समर्पण का परिणाम है। आने वाले समय में पुष्पा का लक्ष्य एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और ओलंपिक जैसे बड़े मंचों पर भारत के लिए पदक जीतना है। पुष्पा ने अपनी तकनीक, फिटनेस और मानसिक मजबूती के बल पर साफ कर दिया है कि वह भारत का नाम रोशन करने की क्षमता रखती हैं।

हर्षदा गरुड़

वेटलिफ्टिंग 45 किलो वर्ग

हर्षदा गरुड़

महाराष्ट्र के पुणे की रहने वाली हर्षदा गरुड़ भारतीय महिला वेटलिफ्टिंग में नई उम्मीद के रूप में उभर रही हैं। 45 किलो भार वर्ग की यह युवा एथलीट अपने छोटे से परिवार और सीमित संसाधनों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम चमका रही हैं। उनका जन्म 8 नवंबर 2003 को महाराष्ट्र में हुआ और उनकी रुचि बचपन से ही खेलों में थी। हर्षदा के पिता शरद गरुड़ भी वेटलिफ्टिंग खिलाड़ी थे। उन्होंने राज्य स्कूल खेलों में भारोत्तोलन में रजत पदक जीता था। परिवार ने शुरू में आर्थिक बाधाओं के बावजूद हर्षदा के खेल में रुचि और क्षमता को पहचाना और उन्हें हर संभव समर्थन दिया। हर्षदा ने अपनी खेल यात्रा स्थानीय खेल संस्थानों और ट्रेनिंग सेंटर से शुरू की। शुरुआती दिनों में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वेटलिफ्टिंग जैसे कठिन खेल में प्रतिस्पर्धा करना आसान नहीं था, विशेषकर महिला एथलीट के रूप में। लेकिन हर्षदा ने हर चुनौती को अवसर में बदल दिया और अपनी मेहनत से कोच का ध्यान खींचा। धीरे-धीरे हर्षदा ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में नाम कमाया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कदम रखते ही हर्षदा ने अपनी पहचान बनाई। उन्होंने 2020 के खेलो इंडिया यूथ गेम्स में अंडर-17 गर्ल्स वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण पदक और ताशकंद में 2020 एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। उन्होंने ओडिशा के भुवनेश्वर में आयोजित आइडब्लूएलएफ युवा, जूनियर और सीनियर राष्ट्रीय भारोत्तोलन चैंपियनशिप 2021-22 में 45 किलोग्राम जूनियर महिला वर्ग में तीसरा स्थान हासिल किया। 2022 में, हर्षदा ने ग्रीस के हेराक्लिओन में आयोजित विश्व जूनियर भारोत्तोलन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। यह कामयाबी हासिल करने वाली वे पहली भारतीय महिला बनीं। 2023 में हर्षदा ने मात्र 18 वर्ष की आयु में भारत की पहली जूनियर भारोत्तोलन विश्व चैंपियन बनकर इतिहास रच दिया। हर्षदा की सफलता सिर्फ पदकों तक सीमित नहीं है। उनका संघर्ष और समर्पण लाखों युवा लड़कियों के लिए प्रेरणा है। आने वाले वर्षों में हर्षदा का लक्ष्य एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और ओलंपिक जैसे बड़े मंच हैं।

प्रीति पवार

बॉक्सिंग, 54 किलो वर्ग

प्रीति पवार

प्रीति पवार भारतीय महिला मुक्केबाजी का उभरता हुआ सितारा हैं। उनके पिता हरियाणा पुलिस में सहायक उप-निरीक्षक हैं और चाचा विनोद साई पवार राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज रह चुके हैं। इसी पारिवारिक पृष्ठभूमि ने उन्हें छोटी उम्र से ही मुक्केबाजी की ओर आकर्षित किया। लगभग 14 साल की आयु में प्रीति ने मुक्केबाजी को गंभीरता से लेना शुरू किया। प्रीति की पहचान बाएं हाथ के मुक्केबाज (साउथपॉ) के रूप में है। उनके पंच तेज और सटीक होते हैं। रिंग में उनका दृष्टिकोण हमेशा निर्णायक होता है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर उन्हें सबसे बड़ी सफलता 2022 के एशियाई खेलों में मिली, जहां उन्होंने 54 किलो भार वर्ग में कांस्य पदक जीता। इस जीत ने पूरे देश का ध्यान उनकी ओर खींचा और उन्हें पेरिस 2024 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने का अवसर भी मिला। ओलंपिक में उन्होंने अपने पहले मुकाबले में वियतनाम की खिलाड़ी को हराकर शानदार आगाज किया, लेकिन अगले दौर में कोलंबिया की येनी अरियास से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस हार ने उन्हें पीछे नहीं खींचा, इसके बजाय उन्होंने इसे अनुभव और सीख में बदल दिया। उनके खेल में दिखा संयम, मानसिक मजबूती और आत्मविश्वास दर्शाता है कि प्रीति भविष्य में और मजबूत होकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर लौटेंगी। एशियाई खेलों का कांस्य पदक उनके करियर का निर्णायक मोड़ साबित हुआ, जिसने उन्हें भारत की नई मुक्केबाज शक्ति के रूप में स्थापित किया। आज प्रीति पवार के सामने आने वाले वर्षों में विश्व स्तर की कई प्रतियोगिताएं हैं, जिनमें उनका लक्ष्य लगातार पदक जीतना और 2028 ओलंपिक में स्वर्ण पदक प्राप्त करना है। उम्मीद है कि वे नई उपलब्धि गढें़गी।

नीतू घनघस

बॉक्सिंग, 48 किलो वर्ग

नीतू घनघस

हरियाणा में भिवानी को भारत का बॉक्सिंग हब कहा जाता है। नीतू घनघस महिला मुक्केबाजी में दमदार नामों में गिनी जाती हैं। पिता जयभगवान घनघस हरियाणा विधानसभा में कर्मचारी थे और माता मुकेश देवी गृहिणी हैं। नीतू के पिता ने बेटी को बॉक्सर बनाने के लिए नौकरी से तीन साल की अवैतनिक छुट्टी ली। बाद में कोच जगदीश सिंह ने उनके खेल को निखारा। पिता के साथ स्कूटर पर वे 40 किमी का सफर तय कर ट्रेनिंग पर जाती थीं। जल्द ही जूनियर स्तर पर उन्होंने कई राष्ट्रीय खिताब जीत लिए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्होंने भारत का नाम रोशन किया। दो बार युवा विश्व चैंपियन बनने वाली नीतू के लिए साल 2022 करिअर का महत्वपूर्ण पड़ाव बना। हरियाणा की मुक्केबाज ने 2016 में यूथ नेशनल्स में कांस्य पदक जीतने के बाद अगले ही साल बुल्गारिया के सोफिया में बाल्कन यूथ इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया। उनके छोटे से करियर का यादगार लम्हा साल 2017 गुवाहाटी और 2018 हंगरी के बुडापेस्ट में देखने को मिला, जहां उन्होंने दो विश्व चैंपियनशिप स्वर्ण पदक अपने नाम किए। नीतू ने 2018 में एशियाई और यूथ चैंपियन का भी खिताब जीता। चोट के साथ-साथ कोरोना काल के बाद वापसी कर इस युवा खिलाड़ी ने 2021 में फिर सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने पहली बार सीनियर नेशनल में खिताब जीता। फरवरी 2022 में, नीतू ने सीनियर स्तर पर अंतरराष्ट्रीय सफलता का पहला स्वाद चखा। सोफिया में यूरोप के सबसे पुराने मुक्केबाजी टूर्नामेंट स्ट्रैंड्जा मेमोरियल में महिलाओं के 48 किलोग्राम डिवीजन में स्वर्ण पदक जीत कर नीतू ने देश का नाम रोशन किया। कुछ महीने बाद ही उन्होंने सीनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में डेब्यू किया लेकिन वे पदक से चूक गईं। यह उनके लिए बड़ा झटका था। 48 किग्रा वर्ग में विश्व चैंपियन नीतू 54 किग्रा वर्ग में पेरिस ओलंपिक में जगह नहीं बना सकी थी। नीतू का करिअर वास्तव में अब तक बेहतरीन रहा है। उनकी नजर 2028 ओलंपिक पर है। एशियाई और आने वाली प्रतियोगिताओं में भी भारत की सबसे बड़ी दावेदार मानी जा रही हैं।

जैस्मीन लंबोरिया

बॉक्सिंग, 57 किलो वर्ग

जैसमीन लंबोरिया

हरियाणा के भिवानी से आने वाली जैस्मीन के परिवार खेल पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। उनके परदादा हवा सिंह को भारतीय मुक्केबाजी का जनक कहा जाता है। उन्होंने एशियाई खेलों में लगातार दो बार स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा था। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वे इकलौते भारतीय मुक्केबाज हैं। हवा सिंह ने ही भिवानी बॉक्सिंग क्लब की नींव रखी थी, जिसने विजेंदर सिंह और अखिल कुमार जैसे अंतरराष्ट्रीय सितारे देश को दिए। यही रहकर ही जैस्मीन के भीतर भी मुक्केबाजी का सपना जागा। उनके दादा मानद कैप्टन चंदर भान लंबोरिया कुश्ती के नामचीन खिलाड़ी रहे। जैस्मीन के चाचा संदीप सिंह और परविंदर सिंह भी राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज रह चुके हैं। जैस्मीन ने दसवीं कक्षा में पहली बार मुक्केबाजी में दिलचस्पी दिखाई थी। प्रारंभिक सफलता 2021 एशियाई चैंपियनशिप में आई, जब उन्होंने कांस्य पदक जीता। इसके बाद राष्ट्रमंडल खेल 2022 में भी उन्होंने कांस्य पदक अपने नाम किया। 2024 के ओलंपिक में उन्हें अप्रत्याशित मौका मिला, जब 57 किलोग्राम भार वर्ग की क्वालीफायर खिलाड़ी परवीन हुड्डा पर डोपिंग उल्लंघन के चलते 22 महीने का प्रतिबंध लग गया। इस अवसर को भुनाते हुए जैस्मीन ने बैंकाक में हुए विश्व ओलंपिक क्वालीफायर में क्वार्टर फाइनल में पैन-अफ्रीकी चैंपियन मरीन कैमरा को 5-0 से हराकर पेरिस ओलंपिक का टिकट हासिल किया। हालांकि, पेरिस से उन्हें बिना पदक लौटना पड़ा। पेरिस की निराशा ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया था इसलिए उन्होंने खेल में आक्रामकता जोड़ने का संकल्प लिया। इस बदलाव का नतीजा जुलाई में अल्माटी में हुए विश्व मुक्केबाजी कप में देखने को मिला। उन्होंने पैन-अमेरिकन चैंपियन जुसीलेन रोमेउ को हराकर स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप 2025 में महिलाओं के 57 किलोग्राम वर्ग का स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। इस जीत ने जैस्मीन को मैरी कॉम की कतार में खड़ा कर दिया है। वर्ल्ड कप, एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेल उनके सामने नई चुनौती होंगे। उनकी नजर 2028 के ओलंपिक पर है।

 

 

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