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क्रिकेट: जीत लाए लाजवाब तोहफा

निपट नए-नवेले खिलाड़ियों के दम पर ऑस्ट्रेलिया में सीरिज जीतने का ऐसा नजारा हमारे क्रिकेट इतिहास में विरले ही है, उनके जुझारूपन को सलाम
युवाओं ने दिलाई ऐतिहासिक जीत

जब भारत ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया दौरे में उसे उसके घर में ही मात दी थी, तो उस वक्त डेविड वार्नर और स्टीव स्मिथ की अनुपस्थिति की वजह से भारतीय जीत को कम आंकने की कोशिश की गई थी। लेकिन अब वे लोग क्या कहेंगे, जब लगभग पूरी भारतीय टीम ही चोट के कारण गैर-मौजूद थी। उसके बावजूद युवा ब्रिगेड ने चमात्कारिक जीत हासिल की। भारत ने पूरी दुनिया को दिखा दिया है कि उसकी टीम किसी भी टीम को हराने का माद्दा रखती है, भले ही उसके सभी प्रमुख 11 खिलाड़ी फिट न हों। इस शृंखला की कहानी किसी सनुहरे सपने और किवदंती जैसी है, जिसे आने वाले कई वर्षों तक दुनिया भर के भावी क्रिकेटरों की पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए बार-बार बताया जाएगा। प्रतिभावान युवा खिलाड़ियों ने टेस्ट क्रिकेट में अजेय गाबा मैदान पर वह कर दिखाया, जो पिछले 32 साल में कोई भी दूसरी टीम नहीं कर पाई थी। ऑस्ट्रेलिया पिछले 32 साल में पहली बार न केवल गाबा के मैदान में हारा, बल्कि भारत ने 2-1 से सीरीज भी जीत ली।

आखिरी टेस्ट मैच के पहले शार्दुल ठाकुर, मोहम्मद सिराज, टी. नटराजन और वाशिंगटन सुंदर ने मिलकर 2 टेस्ट और 10 गेंदे खेली थीं। लेकिन इस चौकड़ी ने पहली पारी में मिलकर न केवल 107 ओवर फेंके बल्कि 10 विकेट भी झटक लिये। ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में भी इस चौकड़ी ने कमाल किया और 10 विकेट झटके, लेकिन इस बार यह कारनामा करने के लिए उन्हें 36 ओवर कम फेंकने पड़े। चौथे टेस्ट मैच में पहले से खेल रहे ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों का पास जहां मिलकर 1033 विकेट लेने का अनुभव था, वही भारतीयों का सिर्फ 11 विकेट चटकाने का अनुभव था।

भारत के नियमित फ्रंटलाइन गेंदबाजों में से हर किसी के घायल होने के बाद, भारतीय टीम के पास नए गेंदबाजों का ही बेड़ा था। लेकिन उनके प्रदर्शन ने प्रमुख गेदबाजों की कमी ही नहीं खलने दी। हालिया स्मृति में किसी अन्य टेस्ट टीम ने कभी भी इस तरह चोटों का सामना नहीं किया होगा, जैसा भारतीय टीम ने इस दौरे में झेला है। न ही कभी विश्व क्रिकेट के सबसे कठिन फॉर्मेट (टेस्ट मैच) में इस तरह अनुभवहीन युवा ब्रिगेड ने किसी टीम को चुनौती दी होगी।

नटराजन, शुरू में टेस्ट, वन-डे और टी-20 टीम में से किसी का भी हिस्सा नहीं थे, जब उनका चयन पहली बार आइपीएल के लिए हुआ था, तो उनकी भूमिका केवल नेट पर अभ्यास कराने वाले एक गेंदबाज के रूप में थी। उस वक्त सुंदर केवल टी-20 टीम का हिस्सा थे और ठाकुर केवल वनडे टीम में शामिल थे। उन सभी को वनडे और टी-20 सीरीज खत्म होने के बाद घर लौटने की पूरी उम्मीद थी। लेकिन वे सभी, डेढ़ महीने बाद एक साथ एक ही टेस्ट मैच में खेलने के लिए उतरेंगे और फिर नायक बनकर उभरेंगे, यह सब एक परी कथा जैसा है। ऐसा सपना केवल स्कूल के बच्चे देखने की ही हिम्मत कर सकते हैं। ऐसा केवल इसलिए संभव हो पाया था क्योंकि भारतीय टीम के दिग्गज, चोटिल हो गए थे। और भारतीय टीम का ड्रेसिंग रूम अस्पताल में बदल चुका था। 

लेकिन नई भारतीय टीम लंदन के ब्लिट्जक्रेग के दिनों जैसी है, जो किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानने वाली थी। सुंदर और ठाकुर का जज्बा ऐसा था, मानो गेंद के साथ उनके कारनामे पर्याप्त नहीं थे, दोनों ने बल्ले के साथ भी अपना कारनामा जारी रखा। उन्होंने 60 के दशक के बिलकुल विपरीत तरीके से खेलकर रिकॉर्ड 123 रन की साझेदारी की और पूरे देश को कड़कड़ाती ठंड में गर्मी का अहसास करा दिया। उनका बनाया हर रन खरे सोने जैसे थे। ये रन भारतीय क्रिकेट टीम का आत्मविश्वास बढ़ा रहे थे और टीम की आक्रामकता भी दिखा रहे थे। खास तौर से उन परिस्थितियों में ये रन भारतीय टीम की जीवटता का प्रदर्शन कर रहे थे, क्योंकि जब ये दोनों क्रीज पर आए थे तो भारतीय टीम का ऊपरी बल्लेबाजी क्रम महज 186 रन बनाकर 6 विकेट गंवा चुका था। अहम बात यह थे कि सभी बल्लेबाज अच्छी शुरुआत के बाद आउट हो रहे थे।

हमें इस बात को भी स्वीकारना चाहिए कि ऑस्ट्रेलियाई टीम की बैंटिंग के धुरी स्मिथ ही थे। ऐसे में उनके आउट होने के बाद, वैसे बल्लेबाज ऑस्ट्रेलिया टीम को संभालने की स्थिति में नहीं थे। इसके अलावा बैंटिंग ऑर्डर में जिस तरह कंगारू टीम ने बदलाव किए, वह भी उनकी कमजोरी को दिखाता है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि जिस तरह एडिलेड में पैट कमिंस, नाथन लेयॉन, जोश हैजलवुड और मिशेल स्टार्क ने भारतीय टीम को 36 रनों के शर्मनाक स्कोर पर समेटा था, वैसे प्रदर्शन के करीब यह चौकड़ी दोबारा नहीं दिखी।

इस पहलू को हम दूसरे नजरिए से देख सकते हैं। यह उस भारतीय टीम की कहानी है, जिसने अपने चरित्र, साहस और कभी न हार मानने वाली जिजिविषा से एक ऐसी उतार-चढ़ाव भरी शृंखला को अपने पक्ष में किया, जो एक सपने जैसा है। शृंखला की शुरुआत से ही भुवनेश्वर कुमार, ईशांत शर्मा और रोहित शर्मा अनुपलब्ध थे, और कप्तान विराट कोहली पहले टेस्ट के बाद भारत लौट रहे थे। ऐसे में  यह स्पष्ट था कि अगर भारत को शृंखला जीतनी है तो उसे कुछ अलग ही करना होगा और युवा टीम ने वही कर दिखाया।

वास्तव में यह आश्चर्यजनक है कि पुजारा, रहाणे, अश्विन, बुमराह और जाडेजा, जैसे स्वाभाविक हीरो के अलावा युवाओं ने भी अपने नाम का पत्थर इस शृंखला में गाड़ दिया है। उन्होंने अपने प्रदर्शन से कई पूर्व अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों की भविष्यवाणियों को भी गलत साबित कर दिया, जिन्होंने भारतीय टीम की 4-0 से हारने की घोषणा कर दी थी। लेकिन विशेषज्ञों की भविष्यवाणी खारिज होने की एक बड़ी वजह आइपीएल जैसी प्रतियोगिताएं हैं, जिसने भारत में प्रतिभाओं का ऐसे खजाना तैयार कर दिया है, जिसके पास एक्सपोजर की कमी नही हैं। ऐसे में वह पूरी दुनिया को अचरज में डाल रही है।

एक ऐसा दौरा जहां तेज, उछाल भरी पिचें और घरेलू गेदबाजों के लिए अनुकूल माहौल हो, साथ ही गेंदबाजों की पिटाई का मौका कभी-कभार बल्लेबाजों को मिलता हो, और आक्रमता जिस दौरे की पहचान हो, वहां सफलता के लिए अलग तरह के जज्बे की जरूरत होती है। ऐसे दौरों में कई बार अप्रिय स्थिति भी बन जाती है। जैसे इस बार दर्शकों की नस्लीय टिप्पणियों से असहज स्थिति बन गई थी।

भले ही ऑस्ट्रिलयाई क्रिकेट इस तरह की टिप्पणियों को सही नहीं ठहराता है और उसका विरोध करता रहा है, लेकिन जिस तरह यह टीम जीतने के लिए हर दांव अपनाती है, जिसमें स्लेजिंग से लेकर बल्लेबाजों को बाउंसर के जरिए निशाना बनाया जाता है। यह किसी से छुपा नहीं है। इस बार भी ऐसा ही दिखा।

पुजारा को निशाना बनाकर, मैच के आखिरी दिन कम से कम 10 बार गेंदबाजी की गई। इसके पहले अश्विन, विहारी भी ऑस्ट्रेलियाई गेदबाजों के निशाने पर थे। लेकिन इन सभी ने डटकर मुकाबला किया। लेकिन जिस तरह भारतीय बल्लेबाजों ने उनकी बाउंसर का अपनी शरीर पर मजबूती और निडरता से सामना किया, उससे ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर भी अचरज में थे।

इस सीरिज में भारतीय खिलाड़ियों ने यह साबित कर दिया, कि उन पर चाहे जिस तरह के हमले किए जाए, वह उन सबको सहकर, अपने खेल से उसका जवाब देंगे। उनके इसी प्रदर्शन की वजह से यह भारतीय टीम, पूरी दुनिया के क्रिकेट समुदाय से प्रशंसा की हकदार है, जिसका खड़े होकर अभिवादन किया जाना चाहिए। यह उपलब्धि इस टीम को इसलिए भी खास बनाती है क्योंकि जिस टीम ने जीत हासिल की है, वह एक तरह से भारत की बी-टीम है।

यह ऐसी टीम है जिसने अपने सितारे खिलाड़ियों की अनुपस्थिति का दबाव अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। यह ऐसी टीम है जिसने 'टीम' शब्द के अर्थ को फिर से मजबूत किया है। एक शांत नए कप्तान के नेतृत्व में, जिन्होंने अपनी टीम के इरादे का स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि वे मैदान पर अपने ही तरीकों से फैसला करते हैं। जिस तरह से उन्होंने ऋषभ पंत को ऊपरी क्रम में भेजा, वह भी उनकी नेतृत्व क्षमता को दिखाता है।

इस टीम की एक और खासियत को समझना भी जरूरी है। कैसे युवाओं ने जिस जगह भी मौका मिला, उसे भुनाया है। चाहे शुभमन गिल का ओपनिंग पर खुल कर स्ट्रोक लगाना हो, या फिर मध्य क्रम में बिना किसी डर के पंत का बैटिंग करना हो, या फिर बैट और बॉल से शार्दुल ठाकुर और वाशिंगटन सुंदर का कमाल का प्रदर्शन हो। और इन सबमें बेहद खास मोहम्मद शिराज का अपने पिता के निधन के बावजूद मैच जिताऊ प्रदर्शन करना और राष्ट्रगान के समय भावुक हो जाने का पल हो। मैं उनकी खेल भावना को सलाम करता हूं।

अंत में, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि गावस्कर-बार्डर ट्रॉफी फिर से भारत के पास ही रहेगी। भारत टेस्ट रैकिंग में नंबर एक पर पहुंच गया है। एक अरब भारतीयों को मिली इस खुशी के अलावा एक पहलू यह भी है कि टेस्ट क्रिकेट की एक बार फिर जीत हुई है। दोनों टीमों के प्रदर्शन ने दर्शकों को सीट पर चिपके रहने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसे में हम दोनों टीमों के आभारी हैं।

(लेखक भारतीय वायु सेना के सेवानिवृत्त विंग कमांडर हैं। उन्होंने सर्विसेज के लिए रणजी मैच भी खेले हैं और लेखक भी हैं)

शार्दुल ठाकुर

शार्दुल ठाकुर

स्टार होने के साथ-साथ लोगों की नजर में बने रहना हमेशा महत्वपूर्ण होता है। लेकिन इस बात को केवल वही लोग समझ सकते हैं जिनको साइडलाइन कर दिया जाता है। सामान्य तौर पर ऐसे लोगों को ऐसा नायक कहा जाता है, जिसकी चर्चा नहीं होती है। यानी ये ऐसे लोग होते हैं, जो कहानी को अंत तक पहुंचाते हैं। लेकिन उसका श्रेय उन्हें नहीं मिलता है। भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया में जो इतिहास रचा, उसमें कई खिलाड़ियों का योगदान है। लेकिन शार्दुल ठाकुर की भूमिका नहीं भुलाई जा सकती है। उन्होंने अपने टेस्ट करिअर की शुरुआत छक्का मारकर की, उसके बाद पहला पचास भी छक्का मारकर पूरा किया। उनका प्रदर्शन इस मैच में उनकी क्षमता को दर्शाता है।

मोहम्मद सिराज

मोहम्मद सिराज

 

सबसे अच्छा जीवन वही है, जो अपने पिता के सपने को जी रहा है। मोहम्मद सिराज उस सपने को बेहद दुख और दर्द के साथ जी रहे थे। लेकिन इस दुख के साथ खुशी भी है, क्योंकि उन्होंने अपने खेल से एक अरब भारतीयों को गौरवान्वित किया है। सबसे कठिन समय में गजब का जज्बा दिखाते हुए, न केवल उन्होंने अपमान को भी शालीनता से स्वीकार किया बल्कि जीवन की वास्तविकताओं को भी स्वीकार किया। और पिता को खोने के बाद भी देश के लिए खेलना ही पहला कर्तव्य माना। इन परिस्थितियों में उन्होंने अनुभवहीन तेज गेंदबाजी को भी बखूबी संभाला। इस जज्बे की वजह से वे आज अपने देश, एक बैकअप गेंदबाज की जगह मुख्य गेंदबाज बनकर लौट रहे हैं। इस दौरान उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया है।

वाशिंगटन सुंदर

वाशिंगटन सुंदर

हारी हुई लड़ाई को केवल प्रतिभा के बूते नहीं जीता जा सकता है। इतिहास बताता है कि इस तरह की लड़ाइयां जीतने के लिए धैर्य और दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है। ऐसा ही उदाहरण ऑस्ट्रेलिया के गाबा मैदान में वाशिंगटन सुंदर ने पेश किया। वे चौथे टेस्ट मैच में रविंद्र जाडेजा जैसे खिलाड़ी की जगह भरने उतरे थे, जो बल्लेबाजी, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण में महारत रखते हैं। ऐसे में उनकी कमी न खलने देने का दबाव भी सुंदर पर था। लेकिन उनका ही प्रदर्शन था जिसने भारत की मैच में वापसी कराई। वे पिछले 74 साल में पहले भारतीय टेस्ट खिलाड़ी हैं, जिसने अपने पहले मैच में, केवल 21 साल की उम्र में न केवल 50 रन बनाए बल्कि तीन विकेट भी लिए। इस दौरान उनके आइपीएल में तेज रन बनाने और लंबे शॉट मारने की प्रतिभा भी टेस्ट मैच में देखने को मिली।

ऋषभ पंत

ऋषभ पंत

उसे एम.एस.धोनी का कमजोर उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन उसने उस छवि को तोड़कर गाबा के किले को भेदने में अहम भूमिका निभाई। जीत के लिए 328 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए ऋषभ पंत ने महज 138 गेंदों में 89 रन बना दिए। 23 साल के पंत ने उस मैदान पर अपनी प्रतिभा का जलवा दिखाया जिस पर पिछले 32 वर्षों में ऑस्ट्रेलिया ने कभी हार का मुंह नहीं देखा था। इसके पहले इस युवा विकेट कीपर ने सिडनी क्रिकेट मैदान में अपने खेल से भारत को जीत की झलक दिखा दी थी। पुराने प्रदर्शनों की वजह से पंत ये जानते थे कि उन पर कितना बड़ा दांव टीम प्रबंधन ने लगाया है। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह थी कि घायल टीम को वापस जीत की राह पर लाने के लिए जिस जुझारूपन और अक्खड़पन की जरूरत थी, वह सभी गुण पंत ने दिखाए और धोनी की कमी को खलने नहीं दिया।

शुभमन गिल

शुभमन गिल

जिस देश में एक अरब से ज्यादा दिलों में क्रिकेट धड़कता है, हर गली नुक्कड़ में इस खेल के लिए बच्चों में विलक्षण प्रतिभा दिखती है। ऐसे में वहां प्रतिभा खोजना कठिन नहीं है। लेकिन उन सभी को देश के लिए खेलने का मौका मिलना मुश्किल है। इस संघर्ष में जिसे पता है कि मौके को कैसे साध्‍ाना है, वह स्टार बन जाता है। भारतीय क्रिकेट ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। इस सूची में अब शुभमन गिल भी शामिल हो गए हैं। वे केवल 21 साल के हैं और भारतीय क्रिकेट का भविष्य हैं।

पंजाब की इस प्रतिभा को बेहद कठिन परिस्थितियों में अपनी योग्यता साबित करने का अवसर मिला। लेकिन इसके लिए उन्हें सबसे खतरनाक तेज गेंदबाजों का सामना करना पड़ा। गिल ने इस चुनौती में बेहतरीन पारियां खेलीं। आज वे भारत उस टीम के साथ लौट रहे हैं, जिसने लगातार दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया से उसी की जमीन पर शृंखला जीती है।

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