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कोविड काल में शिक्षा: महामारी के अधूरे अध्याय

कोरोना की दूसरी लहर की पूरी आशंका के बावजूद सरकार ने परीक्षा के वैकल्पिक उपाय नहीं किए
समय बेकारः कोविड की पहली लहर के बाद सरकार शिक्षा नीति बनाती रही, परीक्षा नीति नहीं

बारहवीं कक्षा के लाखों छात्र उम्मीद में थे कि इस वर्ष स्कूल के बंधे जीवन से निकलकर कॉलेज के खुले वातावरण में कदम रखेंगे। लेकिन कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में उनकी परीक्षाएं अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई हैं। ऐसे में इन छात्र-छात्राओं के भविष्य को लेकर अनिश्चितता उत्पन्न हो गई है। इनका भविष्य कोरोना के बढ़ते मामलों पर टिका है, जिसे सरकार ने खत्म मान लिया था और बोर्ड परीक्षाओं की कोई वैकल्पिक व्यवस्था करने की जरूरत नहीं समझी थी। सीबीएसई ने दसवीं की परीक्षाएं रद्द और 12वीं की स्थगित की हैं। ऐसी ही परिस्थिति एक साल पहले कोविड-19 की पहली लहर के समय उत्पन्न हुई थी। इसलिए उम्मीद थी कि सरकार उससे कुछ सीख लेगी। लेकिन हकीकत तो यही है कि सीबीएसई के 12.9 लाख छात्रों समेत 12वीं के करीब 15 लाख छात्रों के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।

इन छात्र-छात्राओं की माताओं का फेसबुक पर ‘सीनियर स्कूल मॉम्स’ नामक एक ग्रुप है, जहां वे अपनी परेशानियों को बयां करती हैं, “प्रवेश परीक्षा, यूनिवर्सिटी और प्रोफेशनल कोर्स की तारीख सब अनिश्चित हैं। सैट और आइईएलटीएस के सेंटर बदले जा रहे हैं। क्या विदेशी विश्वविद्यालय देर से मार्कशीट जमा करने की छूट देंगे?”

करीब 7,200 महिलाएं इस ग्रुप से जुड़ी हैं। इसकी संस्थापक अनुपमा जैन बोर्ड और सरकार की अदूरदर्शिता से खफा हैं। वे कहती हैं कि दसवीं की परीक्षा रद्द करने से बड़ा असर नहीं होगा, लेकिन 12वीं की परीक्षाएं स्थगित करने से छात्र-छात्राओं का भविष्य प्रभावित हो रहा है। “जब महामारी ने पिछले साल ही परीक्षाओं का शेड्यूल उलट-पुलट दिया था तो बोर्ड को ऑनलाइन परीक्षा के विकल्प पर विचार करना चाहिए था।” अनुपमा का मानना है कि भारतीय कॉलेज और विश्वविद्यालय तो नरमी दिखा सकते हैं लेकिन विदेशी विश्वविद्यालयों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। शिक्षा मंत्रालय ने जेईई मेन परीक्षा भी स्थगित कर दी है। इससे आइआइटी, एनआइटी और अन्य तकनीकी संस्थानों में दाखिले में देरी होगी। बाद में इन संस्थानों को अपना अकादमिक वर्ष कम समय में पूरा करना पड़ेगा।

अनुपमा के अनुसार विदेशी विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं को समस्या होगी क्योंकि उन्हें अगस्त तक 12वीं के नतीजे मिल जाने की उम्मीद रहती है। अब वे विश्वविद्यालयों के साथ संवाद स्थापित कर रहे हैं ताकि आगे की कार्रवाई स्पष्ट हो। उनका कहना है कि इंटरनेशनल बैकलॉरियट शेड्यूल विदेशी विश्वविद्यालयों के हिसाब से तय होता है। इसलिए सबसे ज्यादा नुकसान सीबीएसई के छात्र -छात्राओं को होगा।

हालांकि नेशनल प्रोग्रेसिव स्कूल्स कॉन्फ्रेंस की पूर्व चेयरपर्सन और दिल्ली स्थित स्प्रिंगडेल्स स्कूल की प्रिंसिपल अमिता मुल्ला वातल को उम्मीद है कि विदेशी विश्वविद्यालयों का रवैया नरम होगा। उन्होंने कहा, “दुनिया भर के छात्र परीक्षाएं रद्द होने या स्थगित होने की समस्या झेल रहे हैं।”

सरकार को भले न हो, विशेषज्ञों को पूरी उम्मीद थी कि महामारी की दूसरी लहर आएगी। पिछले साल के अनुभव को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों के पास वैकल्पिक इंतजाम करने का बहुत वक्त था, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। गुरुग्राम स्थित सनसिटी स्कूल की प्रिंसिपल रूपा चक्रवर्ती कहती हैं, “अकादमिक वर्ष को तिमाहियों में बांटा जा सकता था और हालात अच्छे होते तो उन सबको मिलाकर छात्र-छात्राओं का आकलन किया जा सकता था।”

बोर्ड परीक्षाओं के लिए भी सेमेस्टर तरीका अपनाने की चर्चा है। इससे छात्रों का आकलन करने में आसानी होगी। रूपा के अनुसार सनसिटी जैसे स्कूलों में भी सेमेस्टर सिस्टम है। अगर किसी तरह की अड़चन आती है तो सेमेस्टर आधार पर छात्रों का आकलन किया जा सकता है। आकलन के नए तरीके की जरूरत से वातल भी सहमत हैं। वे कहती हैं, “कोरोना अब कहीं नहीं जाने वाला। हमें आकलन के नए रचनात्मक तरीके तलाशने होंगे और इसकी शुरुआत अभी करनी पड़ेगी। सरकार ने साल भर में क्या किया है?”

जाने-माने शिक्षाविद और राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के पूर्व निदेशक कृष्ण कुमार को आश्चर्य है कि सीबीएसई ने इस वर्ष 12वीं की बोर्ड परीक्षा ऑनलाइन क्यों नहीं आयोजित की, जबकि कई अन्य परीक्षाएं ऑनलाइन हुई हैं। वे कहते हैं, “सीबीएसई, इग्नू और एनआइओएस के पास देश के हर कोने में संसाधन हैं। अगर ये मिलकर काम करें तो बहुत ही अच्छे तरीके से ऑनलाइन परीक्षा आयोजित की जा सकती है।”

उनका सुझाव है कि जिन छात्रों के पास लैपटॉप नहीं हैं उन्हें परीक्षा के लिए यह दिया जा सकता है। ऐसे छात्रों की संख्या अधिक नहीं होगी क्योंकि सीबीएसई से जुड़े ज्यादातर निजी स्कूल हैं। वे कहते हैं, “यह कोई बड़ी बात नहीं। हमारे पास विपुल संसाधन हैं, हम बस उनका इस्तेमाल नहीं कर रहे।” उनकी राय है कि छात्रों को कुछ अंक उनके स्कूल असाइनमेंट के आधार पर और बाकी ऑनलाइन बोर्ड परीक्षा के आधार पर दिए जा सकते हैं।

स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के पूर्व सचिव अनिल स्वरूप कहते हैं, “सरकार ऑनलाइन परीक्षा आयोजित कर सकती थी, लेकिन शायद उसे महामारी की दूसरे लहर के इतने खतरनाक होने का अंदाजा नहीं था। परीक्षा के वैकल्पिक उपायों पर पिछले साल भी चर्चा हुई लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका।” स्वरूप के अनुसार यह चर्चा भी हुई कि क्या सैट, मैट और कैट की तरह टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके परीक्षा आयोजित की जा सकती है, जहां प्रश्न पत्र के कई सेट होते हैं और छात्र को उनमें से कोई एक सेट मिलता है। तैयारी के साथ सीबीएसई छात्रों के लिए भी इसी तरह परीक्षा आयोजित की जा सकती थी। लेकिन यह एक- दो महीने के नोटिस पर नहीं हो सकता है। इसके लिए ज्यादा समय चाहिए। बोर्ड को बहुत पहले इस विकल्प पर विचार करना चाहिए था।

स्वरूप ऐसा न हो पाने के पीछे की वजह भी बताते हैं। “पिछले एक साल के दौरान इन विकल्पों पर विचार करके उन्हें लागू किया जाना चाहिए था। लेकिन किसी के पास समय नहीं था। सब अधिकारी नई शिक्षा नीति को लेकर व्यस्त थे, क्योंकि शिक्षा से जुड़ी यही एक चीज थी जिसकी निगरानी प्रधानमंत्री कार्यालय कर रहा था। नई शिक्षा नीति से आप सुर्खियों में आते हैं, परीक्षा कराने के तरीकों से नहीं। जब सरकार सुर्खियों में आने के लिए व्यस्त हो तो परीक्षा के तौर-तरीकों के बारे में कौन सोचता है।”

इस पूर्व नौकरशाह का मानना है कि यह समय शिक्षा प्रणाली में बड़े बदलावों का है। वे 12वीं के नतीजों के आधार पर विश्वविद्यालयों में दाखिले को भी गलत मानते हैं। वे कहते हैं, “छात्र वास्तव में जितने नंबर के हकदार होते हैं, हम उससे अधिक नंबर देते हैं। ऐसे भी छात्र हैं जिन्हें अंग्रेजी साहित्य में 100 में से 100 अंक मिले। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? यह एक तरह की धोखाधड़ी है।” सभी विश्वविद्यालय डिजिटल प्रवेश परीक्षा आयोजित करें जहां 12वीं के अंकों की ज्यादा प्रासंगिकता ना हो।

कई अन्य शिक्षाशास्त्री भी स्वरूप की इस राय से इत्तेफाक रखते हैं। लेडी श्रीराम कॉलेज की प्रिंसिपल एमिरेट्स मीनाक्षी गोपीनाथ का कहना है कि पिछले साल ने हमें मूल्यांकन के तरीके पर पुनर्विचार करने और नए तरीके आजमाने का मौका दिया, लेकिन हमने उसे यूं ही गवा दिया। हर साल 100 फीसदी अंक पाने वाले छात्रों की संख्या बढ़ रही है। गोपीनाथ कहती हैं, “छात्रों के नंबर देखकर चक्कर आने लगते हैं। यूनिवर्सिटी में तो दाखिले की नहीं, बल्कि छात्रों को खारिज करने की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।”

गोपीनाथ के अनुसार, कॉलेजों के लिए यह अपनी चयन प्रक्रिया खड़ी करने का सुनहरा अवसर है, कि वे किस तरह का संस्थान बनना चाहते हैं और उन्हें किस तरह के छात्रों की जरूरत है। सभी कॉलेज सभी छात्रों के लिए नहीं हो सकते। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की प्रमुख गोपीनाथ का मानना है कि अब बोर्ड परीक्षा से आगे जाने का वक्त आ गया है। वे कहती हैं, “मैं इस तरह की बोर्ड परीक्षा के पक्ष में नहीं हूं। वर्ग, क्षेत्र, संसाधनों की उपलब्धता के मामलें में देश में काफी असमानताएं हैं। इसलिए असेसमेंट स्कूल केंद्रित होना चाहिए। मौजूदा व्यवस्था में हम एक ही पैमाने पर छात्रों का आकलन करते हैं। इसलिए बड़ी संख्या में छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जा रहे हैं। बोर्ड परीक्षा में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है।”

सीबीएसई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह तो माना कि भविष्य के लिए एक वैकल्पिक तरीके की जरूरत है, लेकिन फिलहाल वे पारंपरिक तरीके के पक्ष में ही हैं। वे कहते हैं, “ऑनलाइन परीक्षा जवाब नहीं है। इससे आप किसी छात्र का सिर्फ ज्ञान परख सकते हैं। सेकेंडरी स्कूल परीक्षाएं छात्रों के संपूर्ण विकास के आकलन का माध्यम हैं, सिर्फ ज्ञान परखने का नहीं।” 12वीं की परीक्षा के बारे में उनका कहना है कि ऑफलाइन परीक्षाएं होंगी, भले ही वे अगस्त-सितंबर में हों। अभी तक इसका कोई विकल्प नहीं है।

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