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जंग खाने लगा स्टील-फ्रेम

कई नौकरशाह देश की इस सबसे रसूखदार नौकरी से इस्तीफा दे चुके हैं, आखिर इसकी वजह क्या
पूर्व आइएएस कन्नण गोपीनाथन

पिछले साल अगस्त में भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी छोड़ने वाले कन्नण गोपीनाथन का बीता एक साल काफी संतोषप्रद रहा है। अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश (एजीएमयूटी) काडर के अफसर रहे गोपीनाथन के इस्तीफे ने सबको चौंका दिया था क्योंकि उन्होंने अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंधों को इसकी वजह बताया था। गोपीनाथन के इस्तीफे से देश की इस सबसे रसूखदार नौकरी के प्रति अफसरों का मोहभंग होने और नौकरशाही में बहुप्रतीक्षित सुधार लागू करने की बहस छिड़ गई।

सत्ता के शीर्ष गलियारों में असहजता तब और बढ़ गई जब कन्नण के बाद कई और अफसरों ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने वाले एक और आइएएस शशिकांत सेंथिल ने कहा कि जब लोकतंत्र की नींव कमजोर की जा रही हो, तब सेवा में बने रहना अनैतिक है। उसी हफ्ते एजीएमयूटी कैडर के कशिश मित्तल ने उत्तर पूर्व में पोस्टिंग दिए जाने के विरोध में इस्तीफा दे दिया। उस समय उनकी पोस्टिंग नीति आयोग में थी। बेहतर भविष्य के लिए नौकरशाहों का पद छोड़ना असामान्य नहीं, लेकिन दो अधिकारियों ने राष्ट्रीय मुद्दों पर इस्तीफा दिया था। इसलिए सिविल सेवा के राजनीतिकरण का मुद्दा जोर-शोर से उठा और इस सेवा में तत्काल सुधार की बात कही जाने लगी।

2012 बैच के अधिकारी गोपीनाथ ने आउटलुक को बताया कि सत्ताधारी पार्टी से अलग विचारधारा रखने वाले लोगों को जेल में डालने के लिए उन पर काफी राजनीतिक दबाव था। लोगों को प्रताड़ित करने के लिए सरकार असामाजिक गतिविधि निरोधी कानून (पासा) भी लागू करना चाहती थी। इस्तीफा देते वक्त गोपीनाथन दमन ऐंड दिव और दादरा एवं नागर हवेली में ऊर्जा विभाग के सचिव थे।

34 साल के गोपीनाथन का नौकरी में लौटने का कोई इरादा नहीं है। वे कहते हैं, “एक तंत्र के रूप में नौकरशाही का अपना दिमाग नहीं होता। मैं नौकरशाही को एक खानसामा कहूंगा। ग्राहक जो भी खाना चाहता है वह उसे बना कर देता है। मौजूदा शासन व्यवस्था नौकरशाही के साथ ऐसा ही सुलूक कर रही है।”

वे कहते हैं, “सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ हमने बड़े पैमाने पर जन आंदोलन देखा। मैं 19 राज्यों की यात्रा कर चुका हूं और मुझे खुशी है कि युवा लोकतंत्र और असंतोष जताने के अपने अधिकारों के प्रति सजग हो रहे हैं।” आंदोलन खत्म हो जाने या सरकार की तरफ से दंडात्मक कार्रवाई किए जाने से वे मायूस नहीं हैं। उनका मानना है कि इतिहास छह महीने या एक साल में नहीं लिखा जाता, यह लंबी लड़ाई है।

कर्नाटक कैडर के आइएएस शशिकांत सेंथिल की राय भी कुछ ऐसी ही है। उन्होंने गोपीनाथन के बाद दक्षिण कन्नड़ जिले के डिप्टी कमिश्नर पद से इस्तीफा दिया था। 2009 बैच के इस अधिकारी को भी अपने फैसले पर पछतावा नहीं है। हालांकि पद पर रहते उन पर किसी तरह का राजनीतिक दबाव नहीं था। उनके इस्तीफे की वजह वह आचार संहिता थी जो किसी भी नौकरशाह को असंतोष जताने की अनुमति नहीं देती। वे कहते हैं कि जब देश संकट का सामना कर रहा हो तब मैं चुप नहीं रह सकता।

सेंथिल के अनुसार, “यह एक वैचारिक लड़ाई है। हमें भविष्य में मुश्किल भरे दिनों के लिए तैयार रहना चाहिए। आने वाले दिनों में हो सकता है मुझे जेल में डाल दिया जाए। विरोध करना और लोगों को संवेदनशील बनाना इसका एकमात्र समाधान है। फासीवाद ने देश को जकड़ लिया है और हमें तेजी से काम करना है।”

आउटलुक से बातचीत में कई नौकरशाहों ने माना कि ये तीन इस्तीफे सिस्टम की सड़न बताते हैं, जिसे ठीक करने की जरूरत है। वे हर्ष मंदर जैसे अफसरों का भी उदाहरण देते हैं, जिन्होंने 2002 में गुजरात दंगों में सरकार की भूमिका की आलोचना करते हुए इस्तीफा दे दिया था। हालांकि इन सबके बावजूद युवाओं में सबसे ज्यादा चाह आइएएस बनने की ही है। हर साल केंद्रीय लोक सेवा आयोग की परीक्षा में करीब 10 लाख ग्रेजुएट हिस्सा लेते हैं। फिर भी रिटायर्ड आइपीएस एन.सी. अस्थाना मानते हैं कि मौजूदा सिविल सेवा एक सामंती व्यवस्था प्रणाली है और इसे खत्म करने की जरूरत है।

वे कहते हैं, “मैं आइएएस अधिकारियों के आदर्शों का सम्मान करता हूं, लेकिन ये इक्का-दुक्का मामले हैं। हजारों लोग इसमें आने के लिए मेहनत कर रहे हैं। इसमें मिलने वाला मान-सम्मान और अधिकार लोगों को लुभाता है। थोड़े लोग ही हैं, जो आदर्शवादी इरादों के साथ इस सेवा में आते हैं।

कुछ अधिकारी राजनीति में आने के लिए नौकरी छोड़ते हैं, लेकिन अस्थाना के अनुसार कश्मीर के शाह फैजल ने गलत नजीर पेश की है। उनके निर्णय से लगता है कि उनमें विश्वास की कमी थी। आइएएस से इस्तीफा देने वाले फैजल ने जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट नाम से पार्टी बनाई थी, लेकिन पिछले दिनों उन्होंने अपनी पार्टी से ही इस्तीफा दे दिया और कहा कि दोबारा कभी राजनीति में नहीं लौटूंगा। फैजल के शब्दों में, “मैंने राजनीति इसलिए छोड़ी क्योंकि मैं लोगों को झूठी उम्मीदें नहीं दे सकता। 20 साल बाद मैं लोगों से यह बात कहूं, उससे बेहतर है, मैं अभी यह कह रहा हूं।

फैजल एमबीबीएस डॉक्टर हैं और 2010 में सिविल सेवा परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले पहले कश्मीरी थे। नौ साल तक नौकरी करने के बाद जनवरी 2019 में उन्होंने इस्तीफा दिया। तब उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ न्याय नहीं किया, जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और अनेक लोगों को जान गंवानी पड़ी। मार्च 2019 में उन्होंने अपनी पार्टी लॉन्च की। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने का उन्होंने विरोध किया था। इसके बाद 14 अगस्त 2019 को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया। इस साल फरवरी के मध्य में उन पर लोक सुरक्षा कानून (पीएसए) लगाया गया। जून में उन्हें जेल से तो रिहाई मिल गई लेकिन सरकार ने उन्हें घर में ही नजरबंद कर दिया।

गोपीनाथन का मानना है कि शाह फैजल को गिरफ्तार करना और जेल में रखना सिस्टम की विफलता है। उन्होंने कहा, “मैं उनके फैसले का सम्मान करता हूं। फैजल को लगा कि वे राजनीति में बेहतर काम कर सकते हैं। उन्हें भारत की राजनीतिक प्रणाली में भरोसा था। हमें उनके फैसले का स्वागत करना चाहिए था। इसके विपरीत हमने एक अपराधी की तरह उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया।

गोपीनाथन को लगता है कि इस्तीफा देने वालों को सरकार बदले की भावना के साथ परेशान करती है। गोपीनाथन के खिलाफ दो एफआइआर दर्ज हैं। सेंथिल को भी परोक्ष रूप से धमकियां मिलती रहती हैं और सार्वजनिक सभाओं में भाग लेने से रोका जाता है। महामारी के दौरान ड्यूटी ज्वाइन करने का सरकार का आदेश नहीं मानने के कारण गोपीनाथन के खिलाफ एपिडेमिक डिजीज एक्ट और डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत एफआइआर दर्ज की गई। वे कहते हैं, “मुझे अप्रैल में ज्वाइन करने के लिए कहा गया। विचित्र बात है कि जो वरिष्ठ अधिकारी वेतन ले रहे हैं उन्हें ज्वाइन करने के लिए नहीं कहा गया, जबकि इस्तीफा देने के बाद मुझसे ऐसा कहा गया।

सरकार का नियम है कि इस्तीफा स्वीकार किया जाना चाहिए। इसके बावजूद गोपीनाथन और सेंथिल के इस्तीफे लंबित हैं। हालांकि पिछले साल मई में दक्षिण बेंगलूरु के डिप्टी कमिश्नर पद से इस्तीफा देने वाले के. अन्नामलाई को इसके लिए इंतजार नहीं करना पड़ा। कर्नाटक का सिंघम कहे जाने वाले 2011 बैच के आइपीएस अन्नामलाई कहते हैं कि उन्होंने जनसेवा के लिए नौकरी छोड़ी। 34 वर्ष के अन्नामलाई निकट भविष्य में तमिलनाडु की राजनीति में प्रवेश करने का इरादा रखते हैं। उन्होंने ‘वी द लीडर फाउंडेशन’ नाम से एक गैर सरकारी संस्था बनाई है।

अधिकारों को बोझ समझने वाले अन्नामलाई ने आउटलुक से कहा, “मुझे कोई पछतावा नहीं। राजनीति में उतरने से पहले मैं बुनियादी स्तर पर काम करना और बदलाव लाना चाहता हूं।" उन्हें भी लगता है कि सिविल सेवा में तत्काल सुधारों की जरूरत है और इसे अमेरिका की तर्ज पर बनाया जाना चाहिए। वे कहते हैं, “आजादी के 74 साल बाद भी सिविल सेवा नहीं बदली है क्योंकि इस सिस्टम में नई ऊर्जा नहीं आ रही है। अमेरिका की तरह अफसरों को पांच साल तक निजी कंपनियों में काम करने की अनुमति होनी चाहिए।

सेंथिल यह तो मानते हैं कि युवाओं के लिए राष्ट्र निर्माण का हिस्सा बनने का सबसे अच्छा विकल्प सिविल सेवा ही है, लेकिन इसके साथ वे कहते हैं, “हमें यह समझना पड़ेगा कि हमारी जवाबदेही संविधान के प्रति है। अगर इस समझ के साथ काम करें तो हम बेहतरीन काम कर सकते हैं।

शशिकांत सेंथिल, अन्नामलाई और शाह फैसल जिन्होंने छोड़ी थी नौकरी

पूर्व सिविल सेवा अधिकारी

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