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हिमाचल प्रदेश: भाजपा जयराम के आसरे

हाल के उपचुनावों में हार के बावजूद भाजपा आलाकमान वर्ष के अंत में ठाकुर की अगुवाई में विधानसभा चुनाव लड़ने के पक्ष में
पीएम मोदी के साथ मुख्यमंत्री

विपक्षी पार्टी कांग्रेस जयराम ठाकुर को ‘एक्सीडेंटल चीफ मिनिस्टर’ कहती है और उनकी अपनी पार्टी में आलोचक उन्हें कमजोर प्रशासक बताते हैं। लेकिन, भाजपा आलाकमान उनमें इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए एक भरोसेमंद, ऊर्जावान और सक्षम चेहरा देख रही है। लेकिन जिस राज्य में हर पांच साल बाद बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा की सरकार बनती हो, क्या जयराम ठाकुर में परिवर्तन के इस मिथक को तोड़ने और भाजपा को सत्ता में बनाए रखने की क्षमता है? सत्ता के गलियारों में यह सवाल पहले की तुलना में आज ज्यादा पूछा जा रहा है, क्योंकि छह बार कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह और भाजपा के दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रेम कुमार धूमल जैसे बड़े कद वाले नेता भी पांच साल के शासन के बाद अपनी पार्टी को सत्ता में वापस नहीं ला सके थे। इसके बाबजूद 57 वर्षीय जयराम ठाकुर के कंधों पर हिमाचल प्रदेश में भाजपा के मिशन 2022 को सफल बनाने का सारा दारोमदार टिका है।

हालांकि राज्य में भाजपा के संगठनात्मक ढांचे में कमजोरी के अलावा कार्यकर्ताओं का एक वर्ग अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा है, जिसके कारण उसका शासन से मोहभंग होता प्रतीत हो रहा है। ऐसे में पार्टी के लिए सत्ता में वापसी के लिए सबको एकजुट करने की बड़ी चुनौती है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जयराम ठाकुर के लिए कांग्रेस के दिग्गज वीरभद्र सिंह का न होना राहत की बात हो सकती है। पिछले साल वीरभद्र सिंह का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया। एक सक्षम प्रशासक और कांग्रेस नेता के रूप में उन्होंने कई चुनाव जीते। उनकी राज्यव्यापी स्वीकार्यता और चुनावी कौशल से मेल खाने वाला कोई अन्य नेता उनकी पार्टी में नहीं है। कांग्रेस अब भी एक विभाजित समूह है और पार्टी के नेताओं के बीच अंतर्कलह जारी है। यही नहीं, कांग्रेस के पास सत्ताधारी भाजपा की बराबरी करने के लिए संसाधनों की भी भारी कमी है।

शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल जैसे नेताओं के बाद जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश में भाजपा में बदलाव का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे 2017 में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे क्योंकि पार्टी के संभावित मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए थे। सिराज से पांच बार के विधायक को सरकार का नेतृत्व करने के लिए पार्टी ने चुना था और उन्हें आरएसएस का भी समर्थन हासिल था।

उस समय मुख्यमंत्री पद की दौड़ में अन्य लोगों के अलावा भाजपा के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा भी थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दो कारणों से ठाकुर का समर्थन किया। पहला, वे वरिष्ठ और अनुभवी विधायक थे जो संगठन में भी लंबे समय तक काम कर चुके थे और दूसरा, उन्हें संघ परिवार का पूरा विश्वास प्राप्त था।

वर्ष 2017 में भाजपा की सत्ता में वापसी का अधिकांश श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे को जाता है। वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ एक सत्ता विरोधी लहर भी थी। सीबीआइ और ईडी का सामना कर रहे वीरभद्र सिंह के खिलाफ भाजपा ने भ्रष्टाचार को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था और एक मजबूत शासन का वादा भी किया था।

पिछले चार वर्षों के दौरान ठाकुर को पार्टी में किसी आंतरिक चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा। भाजपा ने 2019 में दो विधानसभा उपचुनाव जीतने के अलावा, लोकसभा चुनावों में रिकॉर्ड अंतर के साथ सभी चार सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया। जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है, उनका कार्यकाल कमोबेश गैर-विवादास्पद रहा है।

उन्होंने हिमाचल प्रदेश में प्रतिशोध की राजनीति को भी एक हद तक समाप्त करने में सफलता पाई। उनके कार्यकाल में कांग्रेस नेताओं के खिलाफ सतर्कता जांच या भ्रष्टाचार के मामले दर्ज नहीं किए गए, जैसा कि अमूमन पहले दोनों दलों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ किए जाते थे। हालांकि पिछले दो वर्ष में कोविड महामारी से निपटने के साथ प्रदेश में विकास जारी रखना ठाकुर के लिए अप्रत्याशित चुनौती थी। राज्य पर कर्ज का बोझ 62,000 करोड़ रुपये को पार कर चुका है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयराम ठाकुर के चार साल पूरे होने पर 27 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश का दौरा किया और उनके नेतृत्व और सरकार की भी प्रशंसा की।

मंडी में प्रधानमंत्री के शब्दों में, "जयराम ठाकुर और उनकी मेहनती टीम ने कोविड संकट के बावजूद विकास को रुकने नहीं दिया। उनके नेतृत्व में राज्य ने अच्छी प्रगति की है और कोविड-19 की वैक्सीन के दोनों डोज का 100 प्रतिशत टीकाकरण करके मील का पत्थर बनाया है।" इससे निश्चित रूप से मुख्यमंत्री को नई मजबूती मिली है और अगले विधानसभा चुनावों से पहले नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को भी एक हद तक विराम लगा है। अक्टूबर 2021 में हुए चार उपचुनावों में भाजपा की हार, खासकर कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा सिंह की मुख्यमंत्री के गढ़ मंडी लोकसभा सीट पर जीत के बाद ठाकुर की स्थिति भी डगमगा गई थी। भाजपा के भीतर कई लोगों ने मुख्यमंत्री के नेतृत्व की विफलता और उनकी सरकार की गिरती लोकप्रियता के ग्राफ को इसका जिम्मेदार ठहराया था।

लेकिन क्या जयराम ठाकुर परिस्थितियों में कुछ बदलाव ला पाएंगे ताकि उनकी सरकार और पार्टी जनता की उम्मीदों पर खरी उतरती दिखे। हालांकि कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि वर्ष के अंत के चुनाव में पूर्व की तरह सत्ता परिवर्तन तय है। कांग्रेस विधायक और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू नहीं मानते कि कांग्रेस के पास वीरभद्र सिंह का विकल्प नहीं है। उनका कहना है कि कांग्रेस की कमान प्रदेश में युवा पीढ़ी के हाथ रहेगी और चुनाव के बाद नया नेतृत्व सामने आएगा। वे कहते हैं, “हमें मेहनत करनी होगी। हम जनता के मुद्दों पर एकजुट होकर चुनाव लड़े तो मौजूदा सरकार नहीं टिक पाएगी। यह भाजपा का अंतिम वर्ष है और उसके बाद जनता कांग्रेस को सत्ता में लाने का रास्ता तैयार करेगी।"

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है, “जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा फिर सत्ता में वापसी करेगी क्योंकि पिछले चार सालों में हिमाचल प्रदेश में बहुत काम हुआ है। हमने जनता से किए सभी वादे पूरे किए हैं और हर वर्ग को कुछ न कुछ लाभ प्राप्त हुआ है। अभी हमारे पास एक साल का समय और है। पार्टी स्तर पर एक महासंपर्क अभियान चलाया जाएगा ताकि हम हर व्यक्ति तक पहुंचें। इसके अलावा विशेष जनसभाएं और रैलियां निकाली जाएंगी।” दूसरी ओर, उनका कहना है कि कांग्रेस हिमाचल में बिखराव के कगार पर है और पार्टी में सभी का ध्यान केवल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है। वे कहते हैं कि वीरभद्र सिंह के बाद कांग्रेस में कोई भी नेता भाजपा की संगठनात्मक ताकत का मुकाबला नहीं कर सकता। मोदी जी के नेतृत्व में हम आगे बढ़ेंगे और 2022 में फिर सरकार बनाएंगे।

राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश चंद लोहुमी का कहना है कि जयराम ठाकुर की प्रशानिक पकड़ कमजोर रही है और चार वर्षों में वह अपना व्यक्तिगत असर नहीं छोड़ पाए। “हर चुनाव में वादे बहुत किए लेकिन वे पूरे नहीं हुए। चार उपचुनाव हारने के बाद अब फिर बड़े-बड़े सपने दिखाने आरंभ कर दिए गए हैं। प्रधानमंत्री भी अब आ कर जनता से नए प्रोजेक्ट और निवेश की बात कर रह हैं। लगता है चार साल का काम अब अंतिम साल में पूरा किया जाएगा।” इसके अलावा, कोविड महामारी भी फिर से परेशानी पैदा कर रही है। अब देखना है कि जयराम ठाकुर सरकार अपने बचे हुए कार्यकाल में जनता के लिए क्या कर पाती है।"

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