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किसान आंदोलन: लंबी लड़ाई की तैयारी

महीने भर से दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे किसान सरकार की पेशकश से असंतोष जाहिर करके लंबी लड़ाई की तैयारी में, आखिर इसका हल है क्या? क्या सरकार सिर्फ टालते रहने के मूड में
सरकार की तमाम कोशिश के बाद भी खत्म नहीं हो रहा किसान आंदोलन

हाड़ कपा देने वाली ठंड (3-4 डिग्री सेल्सियस तापमान) में खुले आसमान के नीचे हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर से सड़कों पर बैठे हुए हैं। मांग बस इतनी है कि सुधार के नाम पर बनाए गए तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं, क्योंकि ये उनके किसी काम के नहीं हैं। उनका कहना है कि नए कानून उन्हें कॉरपोरेट का गुलाम बना देंगे। इस मांग के बीच अब तक 40 से ज्यादा किसान अपनी जान गंवा चुके हैं। कोई नए कानून के विरोध में गोली मारकर या सल्फास खाकर मर गया तो किसी की जान ठंड से चली गई। लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से कानून में संशोधन के अलावा कोई आश्वासन नहीं मिला है। पांच दौर की बातचीत हो चुकी है और किसानों को लगता है कि सरकार केवल समय निकाल रही है। वह ऐसा कोई भरोसा नहीं दिला पा रही है, जिससे लगे कि नए कानून वापस लिए जाएंगे।

इस अविश्वास के बीच सरकार की तरफ से एक बार फिर बातचीत के प्रस्ताव को किसानों ने ठुकरा दिया है। सिंघु बॉर्डर पर मीडिया से बात करते हुए करते हुए राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार कक्का ने कहा, “सरकार को बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाना चाहिए, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि नए कानूनों को निलंबित कर अनुकूल माहौल बनाया जा सकता है। लेकिन वह ऐसा नहीं कर रही है।” स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव ने कहा, “सरकार को उन संशोधनों के प्रस्ताव को बार-बार नहीं दोहराना चाहिए, जिसे किसान पहले से ही खारिज कर चुके हैं। सरकार उन तथाकथित किसान नेताओं से बातचीत कर रही है, जो हमारे आंदोलन से नहीं जुड़े है। यह हमारे आंदोलन को तोड़ने की कोशिश है। सरकार प्रदर्शनकारी किसानों से उस तरह से निपट रही है, जैसे वह विपक्ष से निपटती है। जरूरी है कि सरकार लिखित में ठोस प्रस्ताव लेकर आए, जिससे की बातचीत का माहौल बने।”

इस मामले पर भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के जनरल सेक्रेटरी हरेंदर सिंह लाखोवाल का कहना है कि सरकार केवल प्रोपेगेंडा चला रही है। लाखोवाल का कहना है कि हमने 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने वाले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से अपील की है कि वे नए कृषि कानून के विरोध में भारत न आएं। इसके पहले पिछले हफ्ते भारत आने वाले ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमिनिक रॉब ने कहा था, “मैंने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ बातचीत में किसानों के मुद्दे पर चर्चा की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि आपकी राजनीति कुछ हद तक हमारी भी राजनीति है।” किसानों ने ब्रिटेन के पंजाबी सांसदों से अपील की है कि वे प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन पर भारत नहीं आने का दबाव बनाएं।

बात पहुंचाने के लिलए ट्रॉली टाइम्स निाकाला

बात पहुंचाने के ल‌िए ट्रॉली टाइम्स न‌िकाला

इस बीच गृह मंत्री अमित शाह से लेकर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तक, सभी बार-बार यह कह रहे हैं कि किसानों के साथ बातचीत जल्द ही शुरू हो जाएगी। मंगलवार (22 दिसंबर) को तोमर ने कहा, “सरकार किसी भी सुझाव पर खुले दिल से चर्चा करने को तैयार है, लेकिन इसके लिए बातचीत होना जरूरी है। हम किसानों से यही कह रहे हैं, क्योंकि बिना बातचीत के कुछ भी संभव नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि जब कोई सुधार किया जाता है तो पहले उसका मजाक उड़ाया जाता है, उसके बाद विरोध होता है और फिर लोग राजी होते हैं। मुझे उम्मीद है कि इस मामले में भी ऐसा ही होगा। हमें पूरा भरोसा है कि मामले का हल जल्दी निकल जाएगा।

कृषि मंत्री के इस दावे की वजह यह है कि बैकडोर से भी किसानों से सरकार की बातचीत चल रही है। सूत्रों के अनुसार गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की पंजाब के किसान नेताओं के साथ-साथ सिख समुदाय के नेताओं से भी बातचीत चल रही है। हालांकि इस बीच दो घटनाएं ऐसी हुई हैं, जिनसे किसानों का भरोसा डगमगा गया है।

असल में एक तरफ तो सरकार किसानों से खुले दिल से बातचीत करने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी तरफ वह उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों के तथाकथित किसान संगठनों से मिल कर यह साबित करने में लगी है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को छोड़कर बाकी देश के किसान नए कृषि कानूनों के समर्थन में हैं। सरकार यहीं तक नहीं रुकी है, उसने बाकायदा एक बुकलेट भी निकाली है, जिसका नाम है “किसान को सबसे आगे रखा”। इसके जरिए वह यह बताने की कोशिश कर रही है कि किसानों को नए कानूनों से काफी फायदा पहुंच रहा है। इसके लिए उसने  बुकलेट में कई किसानों के उदाहरण भी डाले हैं, जिनका दावा है कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग के जरिए 25-35 फीसदी तक अतिरिक्त कमाई रहे हैं।

खुशहाली दिखाने की इस कवायद में सरकार की किरकिरी भी हुई है। भाजपा की पंजाब इकाई ने अपने फेसबुक पेज पर किसान हरप्रीत सिंह की फोटो लगाकर खुशहाल किसान का हवाला दिया था। लेकिन सोशल मीडिया पर तस्वीर वायरल होने पर हरप्रीत सिंह खुद मीडिया के सामने आए और उन्होंने बताया कि वे तो 26 नवंबर से सिंघु बॉर्डर पर अपने किसान साथियों के साथ नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने बताया, "यह फोटो सात साल पुरानी है और उसे बिना मेरी सहमति के सोशल मीडिया पर डाला गया है। मैं भाजपा के खिलाफ मानहानि का केस करूंगा।"

सिंघु बॉर्डर पर टेंट में किसान

सिंघु बॉर्डर पर टेंट में किसान

ऐसी ही कवायद मीडिया और सोशल मीडिया में किसानों को खालिस्तान समर्थक बताने की भी हुई थी, जिसे भाजपा नेताओं ने भी काफी प्रचारित किया था। भाजपा के आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय और दिल्ली के भाजपा नेता मनोज तिवारी आदि ने भी किसान आंदोलन को लेकर सवाल उठाए थे, कि ये कौन से किसान हैं जो खालिस्तान का समर्थन कर रहे हैं। हालांकि इसके बाद किसानों के समर्थन में भी सोशल मीडिया पर कई पेज बने हैं। किसानों ने अपना आइटी सेल बनाकर किसान एकता मोर्चा नाम का फेसबुक पेज बना दिया है। फेक न्यूज से निपटने के लिए ट्विटर, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और यूट्यूब चैनल बनाए गए हैं।

किसानों की इस कवायद को रविवार (20 दिसंबर) को तब झटका मिला जब फेसबुक ने किसान एकता मोर्चा का पेज अस्थायी रूप से शटडाउन कर दिया। इसके बाद फेसबुक के खिलाफ सोशल मीडिया पर आवाजें उठने लगीं और उसके मुख्यालय पर प्रदर्शन भी हुए। तब जाकर करीब तीन घंटे बाद दोबारा पेज एक्टिव हुआ।

हालांकि फेसबुक ने सफाई दी है कि पेज ज्यादा ट्रैफिक होने की वजह से डाउन हुआ था, जिसे बाद में सुधार दिया गया।

किसानों ने अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए अनोखी पहल की है। उन्होंने ट्रॉली टाइम्स नाम से पंजाबी और हिंदी में अखबार निकाल दिया है। 2000 प्रतियों से 18 दिसंबर को पहला अंक निकालने वाले छह युवा किसानों के इस अखबार को किसानों से भारी समर्थन मिला, जिसके चलते 22 दिसंबर के अंक की 10,000 प्रतियां प्रकाशित हुईं। चार पन्नों के अखबार में किसान आंदोलन की तमाम गतिविधियां, किसान नेताओं और कृषि विशेषज्ञों के इंटरव्यू, किसानों के किस्से और किसानी पर कविताई करने वाले प्रतिष्ठित पंजाबी कवि सुरजीत पात्तर की कविताएं छप रही हैं। संपादक की भूमिका में बठिंडा के सुरमीत सिंह मावी ने आउटलुक को बताया कि किसानों के लिए अखबार का मुख्य संदेश 'जुड़ेंगे, लड़ेंगे, जीतेंगे' हैं। अखबार की संपादीय टीम ट्रैक्टर-ट्रॉली में बैठकर ही इस अखबार की प्लांनिंग करती है।

सरकार भी अपनी बात पर अड़ी लगती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के किसानों के साथ वर्चुअल मीटिंग कर दावा किया कि उनकी सरकार ने किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर एमएसपी दी है। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनकी नीयत गंगा जैसी पवित्र है और उनकी सरकार किसानों के साथ सिर झुकाकर बातचीत करने को तैयार है।

प्रधानमंत्री के इस दावे पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है, “प्रधानमंत्री का यह दावा कतई सही नहीं है। किसान को अगर एमएसपी मिल रही होती तो वह आत्महत्या क्यों करता और सड़क पर क्यों उतरता। हम तो यही मांग कर रहे हैं कि एमएसपी की हमें गारंटी दी जाए और तीनों कानून रद्द किए जाएं। लेकिन सरकार अपनी जिद पर अड़ी हुई है।”

कृषि मंत्री तोमर की तरफ से किसानों को बातचीत के लिए लिखे गए पत्र पर ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप ने कहा है, “कृषि मंत्री का पत्र दिखाता है कि सरकार कानून रद्द करने की किसानों की मांग को हल नहीं करना चाहती। समस्या कानून के उद्देश्य में ही लिखी है। इसमें कहा गया है कि कॉरपोरेट को अब कृषि उत्पादों में व्यापार करने, किसानों को ठेकों में बांधने और आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर की गई सामग्री को स्टॉक कर कालाबाजारी करने की छूट होगी। उन्हें इसका कानूनी अधिकार दे दिया गया है। कृषि मंत्री ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर दावा किया कि वे विनम्रता और खुले मन से चर्चा चाहते हैं। सच यह है कि एआइकेएससीसी और अन्य संगठनों ने सरकार को इन कानूनों को रद्द करने के लिए लाखों पत्र भेजे हैं, जिसे सरकार ने अनसुना कर दिया है। विश्व भर में कॉरपोरेट छोटे किसानों की जमीनें छीन रहे हैं और जल स्रोतों पर कब्जा कर रहे हैं ताकि वे इससे ऊर्जा क्षेत्र, रियल स्टेट और दूसरे व्यवसाय को बढ़ावा दे सकें। भारत में चल रहे वर्तमान आन्दोलन को इसी वजह से दुनिया भर में समर्थन मिला है और 82 देशों में लोगों ने किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किए हैं।”

धरना दे रहे किसानों का हाथ बटाने पहुंचे महिलाएं और बच्चे

धरना दे रहे किसानों का हाथ बटाने पहुंचे महिलाएं और बच्चे

दूसरी प्रमुख घटना पंजाब में आढ़तियों के यहां इनकम टैक्स के छापे पड़ने की है। इससे सरकार के खिलाफ किसानों और आढ़तियों का गुस्सा बढ़ गया है। आढ़तियों की फेडरेशन के प्रमुख विजय कालरा का कहना है कि सरकार बदले की कार्रवाई कर रही है। कम से कम छह आढ़तियों के यहां इनकम टैक्स के छापे पड़े हैं। इसके अलावा 14 को नोटिस दिया गया है। कालरा के अनुसार सरकार यह सब इसलिए कर रही है क्योंकि हम किसानों का समर्थन कर रहे हैं। आढ़तियों ने इसके विरोध में चार दिन की हड़ताल की। उन्होंने इनकम टैक्स कार्यालय का घेराव करने की भी चेतावनी दी है। पंजाब में इस समय 24 हजार कमीशन एजेंट हैं।

आढ़तियों पर हुई इस कार्रवाई पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, “केंद्र सरकार किसान आंदोलन पर दबाव बनाने के लिए छापे डलवा रही है। यह पहली बार ही हुआ कि छापे से पहले स्थानीय पुलिस को सूचना न देकर सीआरपीएफ के जवानों के साथ आयकर विभाग के अधिकारी छापा डालने पहुंचे।” वहीं एनडीए के पुराने साथी और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने भी सरकार को चेताया है। उनका कहना है कि बदले की कार्रवाई से किसान पीछे नहीं हटेंगे। हर हालत में तीनों कृषि कानूनों को खत्म कराकर रहेंगे।

किसान पूरे देश से जुटा रहे समर्थन

दिल्ली की सीमा पर डटे किसान देश के बाकी किसानों का समर्थन भी जुटा रहे हैं। इसके लिए प्रमुख किसान नेता बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान का दौरा कर रहे हैं। उनकी कोशिश किसानों के साथ-साथ आम लोगों का भी समर्थन हासिल करने की है। इसलिए किसान नेताओं ने 23 दिसंबर को किसान दिवस पर लोगों से एक वक्त का उपवास रखने की अपील की। किसान नेताओं में हनन मुल्ला जहां महाराष्ट्र के दौरे पर थे, वहीं गुरनाम सिंह चढूनी बिहार में समर्थन जुटाने के लिए पहुंचे थे। इसी तरह योगेंद्र यादव राजस्थान में लोगों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।

सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर किसानों का जोश बनाए रखने के लिए स्थानीय कलाकार भी पहुंच रहे हैं। पिछले 10 दिनों से हिसार के लोक कलाकार रामदिया कोट लोकसंगीत का आयोजन कर रहे हैं। इसमें ज्यादातर गीत किसानों और बलिदान से संबंधित गाए जा रहे हैं। जाट मेहर सिंह का लिखा किसान गीत काफी लोकप्रिय हो रहा है।

किसानों की रणनीति से साफ है कि वे लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं। अब देखना यह है कि सरकार क्या कदम उठाती है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट भी यह साफ कर चुका है कि आंदोलन करना किसानों का अधिकार है। उसने सलाह दी है कि गतिरोध को तोड़ने के लिए सरकार नए कृषि कानूनों को निलंबित कर बात आगे बढ़ा सकती है। साथ ही उसने एक कमेटी बनाने की भी सलाह दी है, जिसमें किसानों और कृषि क्षेत्रों से जुड़े लोगों को शामिल किया जाए। हालांकि अभी तक इस पर सरकार के तरफ सेे खास पहल नहीं हुई है। देखना है कि आने वाले दिनों में आंदोलन क्या रुख लेता है।

(साथ में चंडीगढ़ से हरीश मानव)

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हनन मुल्ला

हनन मुल्ला

जूट मिल वर्कर के बेटे हनन मुल्ला सरकार के साथ किसानों की बातचीत में अहम चेहरा हैं। 76 साल के मुल्ला ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव और माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य भी हैं। आठ बार के सांसद मुल्ला, शुरू से किसानों के हक के लिए लड़ते रहे हैं। वे 2018 में पश्चिम बंगाल में किसान मार्च के लिए भी चर्चा में रहे थे। नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों को एकजुट करने और सरकार के सामने अपनी बात दमदार तरीके से रखने में वे अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। उनकी अगुआई में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के तहत विभिन्न किसान संगठनों को एकजुट किया गया है। इसका असर यह हुआ है कि सरकार जिस आंदोलन को पंजाब और हरियाणा के किसानों का आंदोलन बता रही थी, वह अब राष्ट्रव्यापी बन गया है। हनन मुल्ला की एक और खासियत उनका मृदुभाषी होना है, जिसकी वजह से लोग आसानी से उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। मुल्ला कहते हैं कि इस बार किसान आधे-अधूरे फैसले से सहमत नहीं होंगे। हमारी एक ही मांग है, सरकार इन काले कानूनों को वापस ले। सरकार के साथ छह दौर की बातचीत पर उनका यह बयान खासा लोकप्रिय हुआ था, “कुछ नहीं, मुर्गी बैठी रही पर अंडा नहीं दिया।”

मुल्ला 1980 से 2009 तक पश्चिम बंगाल की उलुबेड़िया संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 2009 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गए थे। इस दौरान 2008 में सिंगूर में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को लेकर वे अपनी पार्टी को निशाने पर ले चुके हैं। उसके बाद से वे मुख्य रूप से किसान संबंधी मुद्दों को लेकर ही सक्रिय रहे।

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गुरनाम सिंह चढूनी

गुरनाम सिंह चढ़ूनी

भारतीय किसान यूनियन, हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी उन नेताओं में हैं जिन्होंने इतनी बड़ी तादाद में हरियाणा के किसानों को एकजुट किया है। वे कुरुक्षेत्र के चढूनी जाटन गांव के रहने वाले हैं। 2008 में कर्ज माफी योजना को लेकर चलाए गए आंदोलन से चर्चा में आए थे। उस दौरान किसानों को एकजुट कर सरकार पर दबाव बनाने का सफल प्रयास किया था। उसके बाद वे कई किसान आंदोलनों के कारण चर्चा में रहे। किसानों के साथ खास अंदाज में प्रदर्शन करने के लिए भी वे चर्चा में रहे हैं। मसलन, शर्ट निकालकर सड़कों पर प्रदर्शन, सड़कों पर आलू फेंकना और सूरजमुखी की खरीद के लिए पानी की टंकी पर चढ़कर प्रदर्शन करना उनका खास अंदाज रहा है।

किसानों के दिल्ली कूच की जमीन तैयार करने में भी उनकी बड़ी भूमिका है। इस बीच उन पर आठ धाराओं के तहत एफआइआर भी दर्ज की गई है। इसके अलावा महामारी कानून के तहत संक्रमण का खतरा फैलाने की धाराएं भी लगाई गई हैं। किसान आंदोलन के दौरान संत बाबा राम सिंह की आत्महत्या से भी किसान काफी परेशान और उदास थे। तब चढूनी ने कहा था कि न तो यह सरकार किसानों की सुनती है और न ही अदालत उनकी सुन रही है। उनका साफ कहना है कि किसान किसी भी सूरत में ये तीनों काले कानून वापस करवाकर रहेंगे। उसके अलावा किसी भी बात पर नहीं मानेंगे। अगर सरकार यही चाहती है तो हम ऐसे ही सड़कों पर प्रदर्शन करते रहेंगे। चढूनी सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करने की मांग बार-बार कर रहे हैं।

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शिव कुमार ‘कक्का’

शिव कुमार कक्का

20 दिसंबर 2010 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को 15 हजार किसानों ने अपने ट्रैक्टरों के साथ तीन दिनों तक घेर कर रखा था। यही नहीं, मुख्यमंत्री निवास से लेकर शहर के सभी प्रमुख रास्तों को किसानों ने जाम कर दिया था। किसान अपनी 85 मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। बढ़ते दबाव का ही असर था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को खुद आकर किसानों से बात करनी पड़ी थी । शिव कुमार कक्का ने उस आंदोलन को पूरे देश में पहचान दिलाई थी। वे उस समय भारतीय किसान संघ के मध्य प्रांत के अध्यक्ष थे। उसी आंदोलन ने कक्का जी को नई पहचान दी। कक्का जी कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर डटे हुए हैं। उन्होंने सरकार पर किसानों के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश का आरोप लगाया है। मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों से किसानों को नए कृषि कानूनों के खिलाफ एकजुट करने में उनकी अहम भूमिका है।

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जगमोहन सिंह

जगमोहन सिंह

जगमोहन सिंह पंजाब के सबसे सम्मानित किसान नेताओं में एक हैं। वे करीब 30 साल से किसानों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे लगातार किसानों से जुड़े मुद्दों और सरकार की कृषि नीतियों पर सवाल उठाते रहे हैं। किसी भी तरह के किसान आंदोलन में उनकी अहम भूमिका रहती है। वे 1993 में भारतीय किसान यूनियन (एकता) में शामिल हो गए थे। बाद में 2008 में उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (डकोंडा) का गठन किया जो इस समय राज्य का प्रमुख किसान संगठन है।

जगमोहन सिंह भारत-पाकिस्तान सीमा से लगे पंजाब के फिरोजपुर जिले के करमा गांव से हैं। किसान संघर्ष के प्रति उनकी ईमानदारी के कारण, उन्हें न केवल अपने संगठन में, बल्कि दूसरे संगठनों में भी सम्मान मिलता है। इस समय वे 30 किसान संगठनों के गठबंधन में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की रणनीति बनाने में उनका अहम योगदान है। सरकार के रवैये पर वे कहते हैं, “मोदी जी अपने ही मन की बात बोल रहे हैं, किसानों के मन की बात नहीं सुन रहे।” उन्होंने कहा कि यहां सिर्फ पंजाब के किसान नहीं हैं, बल्कि मजदूरों और गरीबों का भी उन्हें साथ मिल रहा है। किसान जहां हैं वहीं डटे रहेंगे। सरकार को हमारी बात माननी पड़ेगी।

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बलबीर सिंह राजेवाल

बलबीर सिंह राजेवाल

पंजाब के प्रमुख किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के प्रमुख बलवीर सिंह राजेवाल पंजाब के बड़े जनाधार वाले किसान नेता माने जाते हैं। वे भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक नेताओं में एक हैं। यूनियन का संविधान भी उन्होंने ही लिखा है। किसानों को एकजुट कर दिल्ली कूच के लिए तैयार करने में उनकी अहम भूमिका रही है। राजेवाल संयुक्त किसान मोर्चा की सात सदस्यीय कोर कमेटी के सदस्य भी हैं।

बलबीर सिंह पंजाब के खन्ना जिले के राजेवाल गांव से हैं। मौजूदा किसान आंदोलन में किसानों के मांग पत्र का मसौदा तैयार करने में राजेवाल ने अहम भूमिका निभाई है। सिंघु बार्डर पर किसानों को एक जुट रखने और वहां जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने में भी उनकी अहम भूमिका है। उनका कहना है, “हम चाहते हैं कि सरकार तीनों कृषि कानून वापस ले, एमएसपी की गारंटी का कानून बनाए और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करे।”

राजेवाल 2006 में गठित भारतीय किसान यूनियन (एमआर) के सदस्य थे। 2008 में उसेसे अलग होकर उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) बनाई।

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जोगिंदर सिंह उग्राहां

जोगिंदर सिंह उग्राहां

जोगिंदर सिंह उगराहां, पंजाब के प्रमुख किसान नेता हैं और वे इस समय चल रहे किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरों में एक हैं। जोगिंदर संगरूर जिले के सुनाम शहर के रहने वाले हैं। उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ। बड़े होकर वे भारतीय सेना में शामिल हो गए। वहां से रिटायर होने के बाद उन्होंने खेती का रुख किया और तभी से किसानों के हितों की लड़ाई में भी उतर गए। उन्होंने 2002 में भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) का गठन किया और तब से लगातार किसानों के मुद्दों पर संघर्ष कर रहे हैं। पंजाब का मालवा क्षेत्र इस संगठन का गढ़ माना जाता है। यह पंजाब का सबसे बड़ा किसान संगठन है। यह छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों सबसे बड़ी किसान जत्‍थेबंदी है।

गृह मंत्री अमित शाह ने किसान नेताओं के साथ हुई बैठक में उन्हें नहीं बुलाया था। जोगिंदर सिंह का कहना था कि सरकार किसानों को बांटने की कोशिश कर रही है। दरअसल इन्हीं के मंच से बुद्घिजीवियों की रिहा करने की मांग उठी थी।

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डॉ. दर्शन पाल

डॉ. दर्शन पाल

डॉ. दर्शन पाल क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं। इस संगठन का मुख्य आधार पटियाला और आसपास के इलाकों में है। डॉ. दर्शन इस समय 30 किसान संगठनों के संयोजक हैं। वे 2 दिसंबर को तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की। इसके बाद 5 दिसंबर को उनके नेतृत्व में किसानों ने यह मांग की, कि किसान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कॉरपोरेट घरानों के पुतले जलाएं। इसके बाद वे भाजपा नेताओं के निशाने पर आ गए थे। उन पर यह भी आरोप लगाया कि वे माओवादी हैं और पीडीएफआई के संस्थापक सदस्यों में एक हैं। यह भी कि उनके संबंध जेल में बंद वामपंथी विचारक वरवर राव से हैं। वे एक सरकारी डॉक्टर थे, लेकिन 2002 में नौकरी छोड़कर सामाजिक और किसान संगठनों के साथ सक्रिय हो गए।

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कविता कुरुगंती

कविता कुरुगंती

कविता कुरुगंती अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की सदस्य हैं। वे करीब 27 वर्षों से किसानों के हित की लड़ाई लड़ रही हैं। वे मूल रूप से बेंगलूरू की रहने वाली हैं, लेकिन इस समय किसान आंदोलन को समर्थन देने के लिए दिल्ली में है। सरकार के साथ वार्ता में उन्होंने किसानों का पक्ष बखूबी रखा था। वे हाल ही में बने महिला अधिकार किसान मंच से भी जुड़ी हैं, जिसकी वे संस्थापक सदस्य हैं। उनका मानना है कि नए कृषि कानूनों से किसानों के अधिकार कम हो जाएंगे और वे कॉरपोरेट के आगे मोल-भाव करने की स्थिति में नहीं रह जाएंगे।

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राकेश टिकैत

राकेश टिकैत

आंदोलन में पंजाब और हरियाणा के किसान नेताओं के साथ भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का नाम भी तेजी से उभरा है। राकेश बड़े किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र हैं। शुरू में सरकार की तरफ से यह जतलाने की कोशिश की जा रही थी कि कृषि कानूनों के खिलाफ केवल पंजाब और हरियाणा के किसान आंदोलन कर रहे हैं, तो उस भ्रम को तोड़ने में राकेश टिकैत की अहम भूमिका रही। वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन के समर्थन में किसानों को लेकर आगे आए और गाजियाबाद में दिल्ली-यूपी बॉर्डर ब्लॉक कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान को भी सरासर भ्रम फैलाने वाला बताया है जिसमें उन्होंने मध्य प्रदेश के किसानों से चर्चा के दौरान कहा था कि सरकार ने स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू कर दिया है। टिकैत का कहना है कि सरकार को तीनों कानूनों को वापस लेना होगा।

राकेश टिकैत फिलहाल किसानों के उस कोर ग्रुप में शामिल हैं जो कृषि कानूनों पर लगातार सरकार से बात कर रही है। गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने वाले किसानों नेताओं में राकेश टिकैत भी शामिल थे। इसके अलावा वे पिछली पांच दौर की वार्ताओं में भारतीय किसान यूनियन का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

भारतीय किसान यूनियन की नींव 1987 में उस समय रखी गई थी, जब बिजली के दाम को लेकर किसानों ने शामली जनपद में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन किया था। दो किसानों की पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई थी। उसके बाद भारतीय किसान यूनियन बनी जिसके अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत थे। 15 मई 2011 को लंबी बीमारी के चलते महेंद्र सिंह टिकैत का निधन हो गया।

राकेश टिकैत दो बार सक्रिय राजनीति में भी आने की कोशिश कर चुके हैं। पहली बार 2007 में उन्होंने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था। उसके बाद उन्होंने ने 2014 में अमरोहा जनपद से राष्ट्रीय लोक दल पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़ा। लेकिन दोनों ही चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

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