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जनादेश जुटाने की जुगत

आसन्न विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना, वोटरों को रिझाने की मुहिम तेज
भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी

दिल्ली में सर्दी की दस्तक के साथ ही चुनावी सरगर्मियां भी बढ़ने लगी हैं। अभी तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले की तसवीर साफ दिख रही है। आम आदमी पार्टी (आप) चुनावी कैंपेन की अगुआई के लिए जहां अपने राज्यसभा सांसद संजय सिंह पर भरोसा जता रही है, तो भाजपा ने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को इसकी कमान सौंपी है। वहीं, कांग्रेस ने देर से ही सही प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सुभाष चोपड़ा, तो चुनावी मुहिम की जिम्मेदारी कीर्ति आजाद को दी है। फरवरी 2015 में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने विधानसभा चुनाव में कुल 70 सीटों में रिकॉर्ड 67 सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा महज तीन सीटों पर सिमट गई, जबकि कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया था। 2019 यानी हालिया संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सातों सीटें जीत ली। यहां तक कि उसने पिछले चुनाव यानी 2014 की तुलना में वोट शेयर में उछाल दर्ज किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 46.6 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2019 में 56.6 फीसदी वोट मिले। वहीं, आम आदमी पार्टी की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ी और उसका वोट शेयर 2014 के 33.1 फीसदी से घटकर 2019 में 18.1 फीसदी हो गया। हालांकि, बिखरी कांग्रेस अपना वोट शेयर मजबूत करने में सफल रही। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे 15.2 फीसदी वोट मिले थे, तो 2019 में 22.5 फीसदी पाने में सफल रही।

आप का दांव

लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए काम करना शुरू कर दिया। जून में ही इसके विधायकों ने ‘आपका विधायक आपके द्वार’ अभियान शुरू कर दिया था। फिर लोकलुभावन वादों को अमलीजामा पहनाना शुरू किया और कुछ नई घोषणाएं भी की। जैसे, 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली, 400 यूनिट तक 50 फीसदी सब्सिडी, सीसीटीवी और वाई-फाई। दिल्ली के चुनाव प्रभारी और सांसद संजय सिंह का कहना है कि लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द नहीं लड़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे अहम होते हैं, तो विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। 2014 के चुनावी कैंपेन के बिलकुल उलट केजरीवाल ने इस बार प्रधानमंत्री मोदी या केंद्र सरकार पर तीखे हमले न करने की नीति अपनाई है। कई मौकों पर तो केंद्र सरकार की तारीफ भी करते दिखे। जैसे, अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर केंद्र सरकार को अपना समर्थन दिया। 

13 अक्टूबर को अरविंद केजरीवाल ने लाल किले पर वाल्मीकि जयंती के समारोह में शिरकत की। उनकी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तुगलकाबाद में संत रविदास मंदिर तोड़े जाने का विरोध भी किया। पार्टी का कहना था कि इससे हजारों दलितों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस कदम को दलित वोटों को साधने वाला बताया जा रहा है।

मिलेगा महिलाओं का साथ?

29 अक्टूबर को डीटीसी और क्लस्टर बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा लागू करने को आम आदमी पार्टी सरकार की चुनावी मुहिम में बढ़त के रूप में देखा जा रहा है। सरकार ने बसों में महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 13,000 मार्शलों की भी तैनाती की है। इसका लाभ सरकार को चुनाव में कितना मिलेगा यह आने वाला वक्त बताएगा लेकिन फिलहाल दिल्ली में हर रोज सफर करने वाली महिलाएं काफी खुश दिखाई दे रही हैं। मोहम्मदपुर से वसंत विहार जा रहीं विनीता टिकट मुफ्त होने से ज्यादा मार्शल की तैनाती को लेकर खुश हैं। तमिलनाडु से साल भर पहले दिल्ली आईं विनीता त्रिलोकपुरी में रहती हैं। उन्होंने बताया, “छह माह पहले जब मेरे साथ बस में यौन दुर्व्यवहार हुआ था, तब मुझे समझ में नहीं आया कि मैं किसके पास शिकायत करूं। लेकिन अब मैं सुरक्षा को लेकर काफी हद तक आश्वस्त हूं।” वहीं, बस में तैनात मार्शल सचिन कुमार भी विनीता की बातों से सहमति जताते हैं। उन्होंने कहा, “पहले महिलाओं की शिकायत सुनने के लिए मौके पर कोई नहीं होता था। चालक या परिचालक भी जवाबदेही नहीं होने से ऐसे मामलों से अक्सर बचते हैं। अब सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।” मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली मेट्रो में भी महिलाओं की मुफ्त यात्रा की बात कही थी। मामला सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा, जहां अदालत ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाई और कहा कि इससे मेट्रो को भारी नुकसान होगा।

भाजपा मोदी भरोसे

भाजपा के वरिष्ठ नेता मानते हैं कि केजरीवाल सरकार की ओर से मुफ्त की घोषणाएं जैसे पानी, बिजली, महिलाओं के लिए डीटीसी बसों में मुफ्त यात्रा वगैरह उनके लिए बड़ी चुनौतियां हैं। हालांकि, भाजपा ने पिछले दिनों दिल्ली की 1,797 अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने की घोषणा के साथ इसकी काट ढूंढ़ने की कोशिश की है। लेकिन इसे लेकर आप और भाजपा दोनों क्रेडिट लेने की होड़ में जनता के बीच जाने की तैयारी में हैं। दिल्ली में स्थानीय मुद्दों पर अक्सर राष्ट्रीय मुद्दे हावी रहे हैं। यह 2017 के एमसीडी चुनाव के दौरान भी देखने को मिला था, जब भाजपा ने मोदी लहर में शानदार वापसी की थी। इस बार भी पार्टी प्रधानमंत्री मोदी का नाम, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए में संशोधन, तीन तलाक कानून, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भरोसा कर रही है। हालांकि, हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजों से जाहिर होता है कि स्थानीय मुद्दों ने भाजपा का खेल बिगाड़ा। फिर, दूसरा पहलू यह भी है कि 2014 में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बूते लोकसभा चुनाव जीतने के बाद 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में मोदी नाम का सिक्का नहीं चल पाया और आप बड़े बहुमत से सत्ता में आई। इस पर दिल्ली के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी कहते हैं, “2013 में आम आदमी पार्टी आई। लोगों को आप के बारे में पता नहीं था, तो उन्हें चुना। ये कसम खाते थे कि कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे, फिर उन्हीं संग सरकार बना ली और 49 दिनों में छोड़कर भाग भी गए। लोगों को भ्रम था कि यह अच्छी पार्टी है, इसे एक बार पूरा मौका देना चाहिए, तो 2015 में फिर मौका दे दिया।” तिवारी आगे कहते हैं, “अब तो कुछ पहचानना बाकी नहीं है। इस बार लोगों के पास विकल्प है। अगर दिल्ली बेहाल है और 20 साल से भाजपा सरकार में नहीं है, तो एक बार भाजपा को मौका दे दीजिए और अगर सब ठीक है तो कोई समस्या ही नहीं है।”

भाजपा जिस एक और मसले को लगातार उठा रही है, वह है एनआरसी। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का कहना है कि कानून-व्यवस्था संभालने के लिए हर मुद्दे पर बात करनी पड़ेगी। तिवारी कहते हैं, “एनआरसी जरूरी है, क्योंकि जो घुसपैठ करके आ रहे हैं, वे अपराध करके निकल जाएंगे, तो उन्हें पकड़ेंगे कैसे? फिर लोगों को सरकार की तमाम योजनाओं की सुविधाएं देनी है, तो अपने लोगों को चिह्नित तो करना ही होगा। इससे अरविंद केजरीवाल जी को क्यों दिक्कत हो जाती है?”

भाजपा ने दिल्ली में पूर्वांचली मतदाताओं की एक बड़ी आबादी को देखते हुए नवंबर 2016 में मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। तिवारी ने 2014 में पहला लोकसभा चुनाव मोदी लहर और इन्हीं पूर्वांचली मतदाताओं के सहारे जीता था। इसके अलावा दिल्ली की दो करोड़ आबादी में लगभग एक-तिहाई पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की है।

बिखरी-बिखरी कांग्रेस

23 अक्टूबर को कालका जी विधानसभा सीट से विधायक रहे सुभाष चोपड़ा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, जबकि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए कीर्ति आजाद को चुनाव अभियान की कमान सौंपी गई है। हालांकि, इस नियुक्ति से पहले कांग्रेस में अंदरूनी कलह चरम पर रही। संदीप दीक्षित ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिखकर दिल्ली के प्रभारी पी.सी. चाको पर गंभीर आरोप लगाए। इसके बाद कुछ कांग्रेसी नेता सोनिया गांधी के पास इस मांग को लेकर पहुंच गए कि चाको को हटाने को लेकर जिन नेताओं ने मांग की, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

इन विवादों से इतर देखें तो कांग्रेस के नए पदाधिकारी चुनावी अभियान में जुट गए हैं। चुनावी मुद्दों के बारे में पार्टी के चुनाव प्रभारी कीर्ति आजाद कहते हैं कि आज केजरीवाल मुफ्त पानी देने की बात कर रहे हैं, लेकिन कहां मिल रहा है पानी। 24 घंटे बिजली किसके समय आई? शीला दीक्षित के समय आई। कीर्ति आजाद कहते हैं, “जहां तक अनधिकृत कॉलोनियों की बात है, तो इसके नाम पर आंख में धूल झोंक रहे हैं। इन्होंने चुनाव से दो महीने पहले घोषणा की। डीडीए का कहना है कि इन सभी का सर्वे होने में तीन से चार महीने लगेंगे। तब तक चुनाव आ जाएंगे। फिर अगले चुनाव में इस मुद्दे को उठाएंगे। केंद्र में लगभग 6 साल से भाजपा की सरकार है और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को लगभग पौने पांच साल हो गए। आखिर, चुनाव के पहले ही ये लुभावने सपने क्यों दिखाते हैं?” 

वहीं, पूर्वांचली मतदाताओं के मुद्दे पर आजाद कहते हैं, “सबसे पहली बात केजरीवाल और मनोज तिवारी जी ये बताएं कि जो लोग दिल्ली में रहते हैं, उनका सम्मान करना कब सीखेंगे। अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि पूर्वांचली 500 रुपये का टिकट लेकर आते हैं और लाखों का इलाज कराकर चले जाते हैं। मनोज तिवारी कहते हैं कि दिल्ली में अपराध करने वाले 80 फीसदी बाहरी हैं। तो मनोज तिवारी जी आप क्या हैं?”

(साथ में अक्षय दुबे साथी)

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