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आवरण कथा/इंटरव्यू/अंकुश सचदेवा/13 बार विफल होने के बाद बनाया शेयरचैट

शेयरचैट के 18 करोड़ और मौज के 16 करोड़ मासिक एक्टिव यूजर हैं
भारतीय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शेयरचैट के संस्थापक अंकुश सचदेवा, फरीद एहसान और भानु प्रताप सिंह

भारतीय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शेयरचैट के संस्थापक अंकुश सचदेवा, फरीद एहसान और भानु प्रताप सिंह तीनों आइआइटी कानपुर से ग्रेजुएट हैं। अंकुश बाकी दोनों से एक साल जूनियर थे। उनकी पहली मुलाकात याहू के एक इवेंट में हुई। वहां तीनों अलग टीमों में थे और अपनी-अपनी कैटेगरी में जीत दर्ज की थी। उसके बाद वे पढ़ाई के समय से ही अलग-अलग प्रोडक्ट बनाने लगे। एक डेटिंग ऐप बनाया था जो आज भी कानपुर आइआइटी में सबसे लोकप्रिय डेटिंग ऐप है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के लिए डेटा एनालिसिस सॉल्यूशन तैयार करने में मदद की थी। शेयरचैट से पहले उन्होंने 13 प्रोडक्ट बनाए लेकिन सब नाकाम हो गए। डेटिंग ऐप लोकप्रिय तो हुआ लेकिन उससे बिजनेस नहीं खड़ा हो सकता था। आखिरकार अक्टूबर 2015 में उन्होंने हिंदी, तेलुगू, मलयालम और मराठी भाषाओं में शेयरचैट लांच किया। पिछले साल जब सरकार ने टिकटॉक जैसे चाइनीज ऐप पर प्रतिबंध लगाया तो उन्होंने जुलाई 2020 में शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म ‘मौज’ लांच किया। आज शेयरचैट सबसे बड़ा भारतीय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है। यह 15 भाषाओं में उपलब्ध है। इस साल जो स्टार्टअप यूनिकॉर्न बने हैं उनमें शेयरचैट भी शामिल है। इसकी मौजूदा वैल्युएशन 2.88 अरब डॉलर है। ट्विटर और स्नैपचैट ने भी शेयरचैट में निवेश कर रखा है।

फरीद एहसान, 28 साल

सह-संस्थापक और सीईओः शेयरचैट

संपत्तिः 1,400 करोड़ रुपये

शुरुआतः 2015

 

भानु प्रताप सिंह, 29 साल

सह-संस्थापक और सीईओः शेयरचैट

संपत्तिः 1,400 करोड़ रुपये

शुरुआतः 2015

हुरून इंडिया रिच लिस्ट 2021ः 810वां स्थान

 

अंकुश सचदेवा, 27 साल

सह-संस्थापक और सीईओः शेयरचैट

संपत्तिः 1,400 करोड़ रुपये

शुरुआतः 2015

 

शेयरचैट के 18 करोड़ और मौज के 16 करोड़ मासिक एक्टिव यूजर हैं

 

शेयरचैट की वैल्युएशन 2.8 अरब डॉलर आंकी गई है

 

हर नाकामी कामयाबी की छलांग ले आती है

 

शेयरचैट के सीईओ अंकुश सचदेवा का मानना है कि विफलता यह बताती है कि हमें क्या नहीं करना है। कंपनी की स्थापना से लेकर अब तक के सफर पर उनसे बात की आउटलुक के एस.के. सिंह ने। मुख्य अंशः-

 

शेयरचैट की शुरुआत कैसे हुई?

मैं बीटेक चौथे वर्ष में था, तब हम तीनों सह-संस्थापक डिबेट के लिए एक प्रोडक्ट बना रहे थे। मैंने उसका लिंक फेसबुक के अलग-अलग ग्रुप में साझा किया ताकि लोग उस पर क्लिक करें। उन दिनों सचिन तेंडुलकर का कोई मैच होना था। प्रशंसकों ने सचिन के नाम से ग्रुप बना रखे थे जिसमें वे कमेंट करने के साथ अपना नंबर भी दे रहे थे। वहां से मैंने एक हजार नंबर लिए और 100-100 के 10 वाट्सऐप ग्रुप बनाए। घंटे भर बाद हर ग्रुप में सौ से ज्यादा मैसेज थे। अनजाने लोग सचिन के फोटो और वीडियो साझा कर रहे थे। तब मुझे लगा कि भारत में गैर-अंग्रेजी भाषाओं में कंटेंट की काफी मांग है। यह देख हमने पहला ऐप बनाया, उसका नाम भी शेयरचैट था। वह बड़ा ही सामान्य ऐप था। बाद में 2015 में औपचारिक तौर पर इसे लांच किया।

कभी ऐसा समय भी आया जब आपको लगा कि कंपनी नहीं चलेगी?

कई मौके आए जब लगा कि कंपनी बंद हो जाएगी। शुरू में फंड जुटाना मुश्किल था। ऐप खोलते ही चुटकुले और गुड मॉर्निंग के मैसेज दिखते हैं। यह देख अमेरिका से आए निवेशक सोचते थे कि इसमें पैसा क्यों लगाना। उन्हें यह समझाना मुश्किल था कि जब टीवी या प्रिंट में ज्यादातर कंटेंट गैर-अंग्रेजी भाषाओं में है तो डिजिटल में भी वही दिखेगा। एक समय ऐसा भी आया जब हमारे पास स्टाफ को वेतन देने तक के पैसे नहीं थे। किसी तरह हमने फंडिंग जुटाई और वेतन दिया। वह हमारे लिए बड़ा मुश्किल समय था। शुरू में नेटवर्क की भी समस्या थी। ज्यादातर लोग 2जी नेटवर्क में थे जिसमें इमेज और वीडियो भेजना बहुत ही मुश्किल होता है। तब हमें ऐप रीडिजाइन करना पड़ा।

आपके माता-पिता क्या करते हैं?

मां सरकारी अस्पताल में सिस्टर इंचार्ज हैं। पिताजी का बिजनेस है।

आपको लेकर उनकी क्या ख्वाहिशें थीं?

मैंने कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की। सब यही सोचते थे कि किसी एमएनसी में मोटे वेतन वाली नौकरी मिल जाएगी। उन दिनों एक रोचक घटना हुई। आइआइटी कानपुर में प्लेसमेंट शुरू होने थे। मुझे फैसला करना था कि प्लेसमेंट में बैठूं या स्टार्टअप के लिए मुंबई चला जाऊं। वहां फरीद और भानु पहले से थे। तब तक मैंने वाट्सएप ग्रुप बना लिए थे। लग रहा था कि इस आइडिया में दम है। मैंने मुंबई जाने का फैसला किया। दो दिन बाद अखबारों में खबर छपी कि आइआइटी कानपुर के एक लड़के की ओरेकल में दो करोड़ रुपये की नौकरी लगी है। घर वालों ने फोन किया कि तुम मुंबई में क्या कर रहे हो। स्टार्टअप शुरू करने के तीन साल बाद तक माता-पिता को लगता था कि मैं गलत दिशा में जा रहा हूं। धीरे-धीरे नाम होने लगा तो उन्हें संतोष हुआ।

रेवेन्यू के लिए आपने क्या किया?

पहले चार साल तक हमने रेवेन्यू के बारे में सोचा तक नहीं। हमारा फोकस इस पर था कि एक्टिव यूजर की संख्या बढ़ती रहे। दो-ढाई साल पहले ही रेवेन्यू आना शुरू हुआ। अब यूजर काफी हो गए हैं, तो रेवेन्यू भी तेजी से बढ़ रहा है।

कोविड-19 महामारी के समय ग्रोथ कैसी रही?

अच्छी ग्रोथ मिली। हम पहले से ‘ऑडियो चैट रूम’ पर काम कर रहे थे। लॉकडाउन की चर्चा हुई तो काम तेज कर दिया। हमें लगा कि लॉकडाउन में लोगों को अकेलापन महसूस होगा क्योंकि पूरे समय वे घर में ही रहेंगे। लॉकडाउन के समय ऑडियो चैट रूम खूब चला।

कंपनी के कब तक मुनाफे में आने की उम्मीद है?

हमारे दो प्रोडक्ट हैं- शेयरचैट और मौज। शेयरचैट अगले साल ब्रेकइवन में आ जाएगा, उसके बाद मुनाफे की उम्मीद है। मौज हमने पिछले साल ही लांच किया। उसे मुनाफे में आने में दो-तीन साल लग सकते हैं।

आप पहली पीढ़ी के उद्यमी हैं। अब तक क्या सीखा?

हमने 13 बार विफल होकर सीखा कि स्टार्टअप बनाते कैसे हैं और गलतियां कैसे करते हैं। इतनी विफलताओं के बाद भी जोश कम नहीं हुआ, बल्कि आत्मविश्वास आ गया कि अब हम कोई अच्छा प्रोडक्ट बना लेंगे। जब हमने 14वीं बार कोशिश की तो हमें मालूम था कि ये 13 काम नहीं करने हैं। हर विफलता के बाद सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं।

आपके प्रेरणास्रोत कौन हैं?

दुनिया में कई अच्छे उद्यमी हुए जिन्हें देखकर हम सीखते हैं। बिल गेट्स, जेफ बेजोस, एलोन मस्क सबके लिए प्रेरक हैं। लेकिन एक बात हमने सीखी कि अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है। परिस्थिति चाहे जैसी हो, आपको खुद उससे निपटना है। किसी से प्रेरित होना अच्छी बात है, लेकिन अपनी काबिलियत ही आपको आगे लेकर जाएगी। मुझे लगता है कि हमने अब तक की कोशिशों के बाद इन दोनों के बीच संतुलन बनाना सीख लिया है।

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