Advertisement

साल भर बाद हाथरस: नाउम्मीद-सा इंतजार

बेटी की अस्थियां गंगा में विसर्जित करने के लिए अपने घर में कैद दलित परिवार को एक साल बाद भी न्याय का इंतजार
बुलगढ़ी गांव में वह कमरा, जो मां को अभागी बेटी की मर्मांतक याद दिलाता रहता है

कमरे के एक कोने में समय के साथ अपनी चमक खो चुका पीतल का कलश रखा है। यह वही कमरा है, जो कभी उसका हुआ करता था। अब सिर्फ उसकी अस्थियां बची हैं। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के बुलगढ़ी गांव के अगड़ी जाति के चार लोगों द्वारा कथित सामूहिक बलात्कार के एक पखवाड़े बाद, जब उसने दम तोड़ा तब वह सिर्फ 19 साल की थी। दलित परिवार की पांच संतानों में सबसे छोटी, वह घर की राजकुमारी थी। उसके शोक संतप्त पिता की अब केवल एक इच्छा है- रीति के अनुसार बेटी की अस्थियों को पवित्र नदी में विसर्जित करना, ताकि उसे मोक्ष मिल सके। लेकिन इसके लिए इंतजार करना होगा। वे कहते हैं, “न्याय मिलने तक हम अस्थियों को गंगा में प्रवाहित नहीं करेंगे। हम चाहते हैं सभी आरोपियों को फांसी दी जाए।”

दो कमरों वाले मामूली से दिखने वाले मकान में, जहां चौबीसों घंटे सीआरपीएफ की पहरेदारी रहती है, समय जैसे ठहर गया है। इस घर में रहने वालों को मवेशियों के लिए चारा लेने गई लड़की के साथ की गई क्रूरता की यादें परेशान करती हैं। यौन उत्पीड़न के बाद गंभीर रूप से घायल लड़की ने 29 सितंबर 2020 को दिल्ली के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया था। स्थानीय पुलिस ने उसके परिवार वालों को बिना सूचना दिए रात में गांव के खेत में ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया। घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश फैला तो मामला सीबीआइ को सौंप दिया गया। चारों आरोपी जेल में हैं और उनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है। लड़की के घरवालों का कहना है कि उन्हें बेटी का अंतिम दर्शन तक नहीं करने दिया गया।

लेकिन घर के हर कोने में उसकी यादें बसी हैं। जैसे, तुलसी का वह पौधा जिसे उसने खेत से लाकर आंगन में इस उम्मीद में लगाया था कि यह ‘पवित्र पौधा’ उसके परिवार को दुर्भाग्य से बचाएगा और सबको स्वस्थ रखेगा। तब वह 16 साल की थी। खूब सारे पत्ते लिए वह पौधा अब काफी बड़ा हो गया है और बीच आंगन में गर्व से खड़ा है। माता रानी को चढ़ाई जाने वाली सुनहरी किनारी वाली लाल चुनरी तुलसी को ढंके हुए है। लड़की के 52 साल के पिता कहते हैं, “इससे हमें उसके आसपास होने का एहसास होता है। आप जानते हैं कि तुलसी हमें उसकी इतनी याद क्यों दिलाती है? सिर्फ इसलिए नहीं कि उसने इसे लगाया था, बल्कि इसलिए कि ऐसा लगता है कि बेटी हमें संदेश भेजती है कि वह हमारे साथ है।” परिवार के सदस्यों के नामों का खुलासा नहीं किया जा सकता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित की पहचान की रक्षा के लिए मीडिया को उनके नाम, तस्वीरें और वीडियो प्रकाशित करने से रोका है।

पीड़िता की मां बरामदे में कपड़े की डोरी पर लटकी हरी-लाल साड़ी की ओर इशारा करती है। यह वही साड़ी है, जो उन्होंने उस दिन पहनी हुई थी, जिस दिन बेटी की मौत की खबर आई थी। कपड़े का वह टुकड़ा उस दिन की याद दिलाता है, जब परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।

हाथरस की घटना ने एक बार फिर भारतीय समाज में ऊंच-नीच की कटु वास्तविकता को उजागर कर दिया, जहां तथाकथित नीची जाति को ऊंची जाती के शक्तिशाली लोगों के हाथों लगातार शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। सवर्ण बहुल बुलगढ़ी में ज्यादातर लोग आरोपियों के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि उन्हें ऐसे अपराध में फंसाया गया, जो उन्होंने किया ही नहीं। आरोपियों के वकील मुन्ना सिंह पुडीर का कहना है कि चारों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। वे कहते हैं, “यह मीडिया ट्रायल का मामला है। एक आरोपी से युवती का प्रेम प्रसंग था। उनके बीच 104 कॉल के रिकॉर्ड हैं, जो रिश्ते को साबित करते हैं।”

लड़की के परिवार का कहना है कि गांव में निचली जातियों को हमेशा घोर भेदभाव का सामना करना पड़ा है। लड़की के 29 साल के भाई ने बताया, “घटना से पहले भी हमें अपनी भैंसों का दूध दूसरी जगहों पर बेचना पड़ता था क्योंकि ऊंची जाति के लोग हमसे नहीं खरीदते। अगर हम किसी कारण कोई सामान लौटाना चाहें, तो दुकानदार वापस लेने से मना कर देता था।”

परिवार की सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ की 120 सदस्यों की टीम छह घंटे की शिफ्ट में बारी-बारी से तैनात रहती है। एक बार में कम से कम 20 जवान ड्यूटी पर रहते हैं। पीड़िता के पिता कहते हैं, “कई बार सुरक्षा में दम घुटता है। यह जेल की तरह है। कहां है हमारी आजादी? विडंबना देखिए, आरोपियों के परिवार आजाद घूम रहे हैं, जबकि हम कैद में हैं।” परिवार के पुरुष सदस्य अब काम के लिए बाहर नहीं जाते हैं। घर का कोई सदस्य तभी बाहर कदम रखता है, जब पास की दुकान से राशन खरीदना हो। लड़की के पिता कहते हैं, “मैं एक स्कूल में काम करता था। दोनों बेटे दिल्ली-एनसीआर में काम करते थे। लेकिन घटना के बाद वे वापस आ गए। हम काम नहीं करते, इसलिए आय का कोई स्रोत नहीं है। हम सरकार के दिए 25 लाख रुपये के मुआवजे पर गुजारा कर रहे हैं।”

परिवार का कहना है कि उनकी बेटी का मामला सुर्खियों में आने और पूरे देश का ध्यान होने के बावजूद, दलित महिलाओं के साथ बलात्कार और हिंसा में कमी नहीं आई है। लड़की के भाई कहते हैं, “मेरी बहन के क्रूर अंत के बाद एक साल में जिले के अन्य गांवों में कम से कम तीन ऐसे मामले हुए हैं।”

एक्टिविस्ट और विशेषज्ञ इस ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि 2012 में दिल्ली में एक लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या के बाद बनाए गए कड़े कानून भी ऐसे मामलों को रोकने में नाकाम रहे। सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक डॉ. रंजना कुमारी कहती हैं, “न्याय देने का तंत्र विफल हो रहा है। न्यायालयों के निर्णयों की कमी के कारण कानून अपराधियों को रोक नहीं पा रहा है। हाथरस मामले में भी दस दिन तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई। मामले में कई खामियां हैं। तरह-तरह की कहानियां गढ़ी गईं...कि यह सामूहिक बलात्कार नहीं था, ऑनर किलिंग का मामला था।”

रंजना राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़ों को भी खारिज करती हैं, जो बताते हैं कि भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 8.3 प्रतिशत की कमी आई है। वे कहती हैं, “कोविड और लॉकडाउन के कारण अनेक महिलाएं रिपोर्ट दर्ज कराने नहीं जा सकीं। यही कारण है कि एनसीआरबी के आंकड़ों में तो गिरावट आई, लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराध में कहीं कोई कमी नहीं है।”

सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना का कहना है कि दलित महिलाएं सवर्णों के अत्याचार की शिकार ज्यादा होती हैं। वे कहती हैं, “देश में अनेक घटनाएं हो रही हैं, लेकिन उनकी गिनती ही नहीं होती। क्योंकि आरोपी ऊंची जाति का है, तो दलित परिवार में शक्तिशाली समुदाय के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं होती।”

हालांकि, गांव के निचली जाति के सभी परिवार शोषण के आरोप से सहमत नहीं हैं। लगभग 600 की आबादी वाले इस गांव में निचली जाति के और तीन परिवार रहते हैं। इन्हीं परिवारों के एक ग्रामीण ने बताया, “यह सच है कि हम अछूत हैं और ऊंची जाति के लोग हमसे कुछ भी नहीं लेते। लेकिन यह कहना गलत है कि हमारी महिलाएं बाहर जाते वक्त हमेशा डर के साए में रहती हैं।” आउटलुक ने आरोपी के परिवार से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।

लड़की के परिवार के लिए वर्तमान परेशानी भरा है, तो भविष्य डरावना है। लड़की के छोटा भाई का कहना है, “हमें भविष्य की चिंता है। हमें ताउम्र सुरक्षा नहीं मिलेगी। एक बार केस खत्म हो गया तो सुरक्षा वापस ले ली जाएगी। उसके बाद क्या होगा? आपको लगता है कि हम यहां रह पाएंगे?”

Advertisement
Advertisement
Advertisement