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घोटालों से पस्त गठबंधन सरकार

जजपा के 10 में से आधा दर्जन विधायक तीन महीने से दुष्यंत चौटाला के संपर्क में नहीं, ऐसी आशंका कि कभी भी बदल सकते हैं पाला
आई खटासः दुष्यंत चौटाला और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बीच अनबन के कयास

अक्टूबर 2019 में हरियाणा में गठबंधन से बनी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जननायक जनता पार्टी (जजपा) सरकार के आठ महीने के कार्यकाल में ही तकरार होने लगी है। वजहः एक के बाद एक सामने आ रहे घोटाले हैं। सरकार बनने के दूसरे ही महीने, नवंबर 2019 में धान घोटाला सामने आया। सबसे नया कोविड-19 लॉकडाउन में शराब तस्करी से करीब 1,000 करोड़ रुपये का आबकारी घोटाला हुआ है। सरकार विपक्ष के अलावा अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर है। घोटाले की जांच करा रहे गृह मंत्री अनिल विज और जजपा प्रमुख दुष्यंत चौटाला में तनातनी है। इस किरकिरी से बचने के लिए भाजपा ने सहयोगी दल जजपा पर दबाव बढ़ा दिया है। घोटालों की आंच से बचने के लिए जांच भी धीमी हो गई है। शराब घोटाले की जांच के लिए गठित स्पेशल इनक्वायरी टीम (एसईटी) के लिए रिपोर्ट सौंपने की अवधि 31 मई से बढ़ाकर 31 जुलाई कर दी गई है। इस पर गृह मंत्री अनिल विज ने आउटलुक से बातचीत में कहा, “भले ही एसईटी जांच पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, पर वे अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद मामले की जांच पर बराबर नजर बनाए हुए हैं।” विज ने कहा कि मामले में गिरफ्तार एक जजपा नेता जमानत पर रिहा हो गए हैं, पर घोटाले से जुड़े कई बड़े घाघ सियासी लोग निशाने पर हैं।

एसईटी पर विपक्ष के अलावा सत्ता पक्ष के नेताओं ने भी सरकार को घेरा है। जजपा प्रमुख उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के विभागों से ही धान और शराब घोटाला जुड़ा है। जजपा नेता सतविंद्र राणा समेत आठ लोगों की गिरफ्तारी से पार्टी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। राणा की गिरफ्तारी के तार जजपा सुप्रीमो दुष्यंत चौटाला से जोड़े जा रहे हैं। अक्टूबर 2019 के चुनाव में राणा ने कांग्रेस का टिकट न मिलने पर जजपा के टिकट पर कलायत से चुनाव लड़ा था। राणा के बचाव में आगे आए दुष्यंत चौटाला का कहना है कि उन्हें बेवजह फंसाया गया। राणा को जमानत मिलने से मामला और साफ हो गया है। बाकी आबकारी विभाग और पुलिस की मिलीभगत भी एसईटी की जांच रिपोर्ट आने के बाद स्पष्ट हो जाएगी।

उप-मुख्यमंत्री पद के साथ आबकारी तथा कराधान, लोक निर्माण, उद्योग, खाद्य और सामान्य आपूर्ति जैसे 11 अहम विभागों का दायित्व संभालने वाले चौटाला आठ महीने पहले गठबंधन सरकार के गठन के वक्त किंगमेकर की भूमिका में उभरे थे। अब आबकारी तथा कराधान, खाद्य तथा सामान्य आपूर्ति विभाग छीन कर उन्हें हल्का करने की तैयारी है। शराब घोटाले पर सरकार को 31 जुलाई तक आने वाली एसईटी रिपोर्ट का इंतजार है। इधर विधानसभा हलकों में काम न होने और सरकार में कोई दखल न होने से जजपा के आधा दर्जन से अधिक विधायकों में अपनी ही सरकार के प्रति अंसतोष के सुर तेज हो गए हैं। इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि जजपा के 10 विधायकों में से आधा दर्जन विधायक पाला बदल कर पार्टी को खतरे में डाल सकते हैं। पिछले तीन महीने से ये विधायक दुष्यंत के संपर्क में नहीं हैं।

मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में आठ महीने की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के मंत्रिमंडल में दो और विधायकों को शामिल किए जाने की गुंजाइश है, पर कोरोना महामारी के कारण मंत्रिमंडल का विस्तार फिलहाल टला हुआ है। मौजूदा मंत्रिमंडल में दुष्यंत के साथ अनूप धानक जजपा कोटे से मंत्री हैं। प्रस्तावित फेरबदल में जजपा के कोटे से एक और मंत्री बनाए जाने की संभावना भी खत्म हो गई है। भाजपा सूत्रों के मुताबिक मंत्रिमंडल विस्तार पर फिलहाल हाइकमान ने ही रोक लगा रखी है।

गठबंधन सरकार पर निशाना साधते हुए हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने आउटलुक से बातचीत में कहा, “पांच साल तक चलने का दावा करने वाली भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार आठ महीने में ही एक दर्जन से अधिक घोटालों में घिर गई है। शराब घोटाले की जांच के नाम पर भी सरकार लीपापोती कर रही है। जांच के लिए सरकार गंभीर होती तो एसईटी के बजाय एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) का गठन किया जाता या जांच सीबीआइ से कराई जाती।”  उन्होंने कहा कि, इस सरकार के लिए एक साल भी पूरा करना मुश्किल है। आठ महीने की इस जोड़-तोड़ की सरकार से किसान, बेरोजगार युवा, कारोबारी और सरकारी कर्मचारी परेशान हैं।

गठबंधन सरकार पर निशाना साधते हुए जजपा के ही वरिष्ठ विधायक रामकुमार गौतम ने आउटलुक से कहा, “ऐसी गठबंधन सरकार का कोई मतलब नहीं है जिसमें उसके विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में ही कोई कार्य नहीं हो रहा हैं।” दुष्यंत को घेरते हुए उन्होंने कहा, “अकेले 11 बड़े विभाग नहीं संभल रहे हैं इसलिए उनके अधीन विभागों में ही बड़े घोटाले हुए हैं। इससे जजपा की ही नहीं बल्कि देवीलाल की सियासी विरासत पर बट्टा लगा है।” उन्होंने कहा कि अपने हलके के लिए वे बस एक विधायक के तौर पर कार्य कर रहे हैं, जजपा की कार्यकारिणी से उनका कोई वास्ता नहीं है और न ही लंबे समय से उन्होंने पार्टी की किसी बैठक में भाग लिया है। गौतम के साथ जजपा के वरिष्ठ विधायक ईश्वर सिंह, दवेंद्र बबली और रामकरण काला भी हैं। भ्रष्टाचार के मामले पर बबली पहले भी गठबंधन सरकार पर सवाल उठा चुके हैं।

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अकेले दुष्यंत से 11 बड़े विभाग नहीं संभल रहे, इसलिए उनके अधीन विभागों में ही बड़े घोटाले हुए हैं। इससे जजपा की ही नहीं बल्कि देवीलाल की सियासी विरासत पर बट्टा लगा है

रामकुमार गौतम, जजपा विधायक

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भाजपा में भी फेरबदल की तैयारी

हरियाणा भाजपा संगठन में भारी फेरबदल की तैयारी है। सुभाष बराला को अध्यक्ष पद से हटा कर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा की टक्कर में अपने किसी करीबी दलित चेहरे को आगे लाने की कोशिश में हैं। सिरसा से सांसद सुनीता दुग्गल का नाम आगे आ रहा है। अध्यक्ष पद के लिए पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु भी लगातार पार्टी हाइकमान के साथ लॉबिंग कर रहे हैं। सरकार, संगठन और जातिगत संतुलन बैठाने के लिए अभिमन्यु को अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना ज्यादा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंसद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की टक्कर में पार्टी में अभिमन्यु की ताजपोशी अमित शाह के रहमो-करम पर है। 90 सीटों वाली विधानसभा में 2014 के चुनाव में पहली बार अपने दम पर 47 सीटें जीतने वाली भाजपा की सरकार में मुख्यमंत्री बनने के लिए मनोहर लाल खट्टर और अभिमन्यु के बीच होड़ थी। तब मोदी की पहली पंसद के चलते खट्टर सीएम बने। पिछले साल उनके विरोधियों की करारी हार ने उनके दोबारा मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया।

खट्टर सरकार में भाजपा कोटे के मंत्रियों के छह महीने के रिपोर्ट कार्ड के आधार पर मंत्रिमंडल में फेरबदल की तैयारी है। भाजपा के कोटे से एक विधायक और एक निर्दलीय विधायक को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। जजपा से गठबंधन टूटने की आशंका में भाजपा का निर्दलीयों को अपने पाले में बनाए रखना मजबूरी है। भाजपा के पास 40 विधायक हैं, उसे बहुमत के लिए कम से कम छह और विधायक चाहिए। फिलहाल, उसे जजपा के 10 और आठ निर्दलीयों में से छह का समर्थन हासिल है। भाजपा के पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर को भ्रष्टाचार के आरोप में घेरने वाले बादली से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू ने मार्च में बजट सत्र के दौरान सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। सिरसा से आजाद उम्मीदवार गोपाल कांडा पहले ही सरकार से अलग हैं। भाजपा सूत्रों के मुताबिक, जिन वरिष्ठ मंत्रियों के पास दो या उससे अधिक अहम विभाग हैं, उनकी जिम्मेदारी कम करते हुए संतुलन स्थापित करने की कोशिश की जाएगी।

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