Advertisement

आवरण कथा/नजरियाः सफलता लगन से मिलती है, शहर के मिजाज से नहीं

सफलता दरअसल आपके प्रयास से ही आती है, शहर के मिजाज से नहीं
गुल पनाग

पहली बात, तो मैं छोटे या बड़े शहर जैसे किसी विचार से इत्तेफाक नहीं रखती हूं। न मैं इस विचार पर बहुत जोर देना चाहती हूं क्योंकि सफलता दरअसल आपके प्रयास से ही आती है, शहर के मिजाज से नहीं। अगर हम इस साल की मिस इंडिया रनर अप मान्या सिंह के संदर्भ में ही बात करें, तो उनकी मेहनत और आत्मविश्वास ने उन्हें वहां तक पहुंचाया है। हालांकि मैंने इस साल की प्रतियोगिता को बहुत फॉलो नहीं किया है। ऐसा बिलकुल नहीं है कि पहली बार कोई लड़की हंबल या मॉडेस्ट बैकग्राउंड से आई है। पहले भी ऐसा होता रहा है। जिनमें कुछ पाने की इच्छाशक्ति होती है, वे वहां तक पहुंचते ही हैं। साथ ही, मैं यह भी नहीं मानती कि मिस इंडिया बहुत ही एलीट प्रतियोगिता है और इसमें सिर्फ इसी वर्ग की लड़कियां पहुंचती हैं।

कानपुर, बरेली, जोधपुर जैसे छोटे शहरों की लड़कियां पहले भी यहां आई हैं। जिन्हें भी इस प्रतियोगिता में सफलता मिली है, वे अपनी मेहनत के कारण इसकी हकदार रही हैं। हां, यह जरूर है कि इस प्रतियोगिता में भी वक्त के साथ बहुत बदलाव आए हैं। 2000 के मध्य तक जब इस प्रतियोगिता में विजेता चुनने की बारी आती थी, तो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को ध्यान में रखा जाता था। एक तरह से हम अंतरराष्ट्रीय स्तर के विजेता को चुनते थे। उस स्तर पर सफलता के लिए नजरिया अलग था। लेकिन जब हमने एक बार वहां जगह बना ली, तो कई बातों में बदलाव हुआ। आप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो ज्यादातर बार टॉप 10 में हमारे देश की लड़कियां पहुंची हैं। नजरिये का जो बदलाव है, मेरे खयाल से वह पहली बार मानुषी छिल्लर के चुने जाने के बाद टूटा है।

यही वजह है कि जो पैरामीटर पहले थे, वे अब नहीं हैं। अब मिस इंडिया का क्राइटेरिया बहुत बदल गया है। अब ऐसी लड़की चुनी जाती है, जो भारतीय स्त्री के आत्मविश्वास को दर्शा सके। अब हम हर स्तर पर आत्मविश्वासी स्त्री चाहते हैं। इसलिए मैंने पहले भी कहा कि शहर या पारिवारिक पृष्ठभूमि से ज्यादा मंच पर आत्मविश्वास से कदम रखने वाली, सवालों के सटीक और सही उत्तर देने वाली लड़कियां आगे आ रही हैं और अपनी जगह बना रही हैं।

खूबसूरती तो बहुत सब्जेक्टिव है। हर व्यक्ति की खूबसूरती की परिभाषा अलग है। हर व्यक्ति की पसंद अलग है। इसलिए यह कहना गलत है कि यह प्रतियोगिता सिर्फ खूबसूरती की है। यही वजह है कि जो भी लड़की कड़ी मेहनत करती है, वह यहां पहुंचती है और जीतती है। लोगों के मन में एक भ्रांति है कि सैनिक परिवारों की पृष्ठभूमि से कई लड़कियां आती हैं और जीतती हैं। क्या सेना में मॉडेस्ट बैकग्राउंड के लोग नहीं रहते? आप सिर्फ आय की ही बात करें, तो सातवें वेतन आयोग के बाद ही वहां वेतन में परिवर्तन हुए हैं। रही बात ग्रूमिंग की तो मैं बता दूं कि मैंने जब इस प्रतियोगिता को जीता था, तब मैंने भी कोई ग्रूमिंग क्लास नहीं ली थी। ग्रूमिंग का नैरेटिव बनाया गया है। क्या बड़े शहरों और छोटे शहरों की लड़कियों के चलने, उठने-बैठने में कोई फर्क होता है? जो आत्मविश्वासी होगी, वह यहां आएगी। इसी तरह भाषा को लेकर भी भ्रांति थी कि इस प्रतियोगिता के लिए अंग्रेजी जरूरी है। पहले '80 या '90 के दशक में ऐसा होता था। लेकिन अब भाषा की बाधा भी इसलिए नहीं है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घाना, चिली, मैक्सिको जैसे देशों की लड़कियां अपनी ही भाषा में बात करती हैं और उन्हें अनुवादक मुहैया कराए जाते हैं। पहले तो हमें किसी भी तरह साबित करना था कि जो विकसित देश कर सकते हैं, वैसा ही हम भी कर सकते हैं इसलिए अंग्रेजी पर जोर दिया जाता था। क्या यह बड़ा बदलाव नहीं है? 

मेरा मानना है कि किसी प्रतियोगिता के परिणाम को छोटे या बड़े शहरों में नहीं बांटना चाहिए। जो आत्मविश्वासी, मेहनती और उस सफलता के काबिल है, उसे मौका मिले और वह जीते। मिस इंडिया उस लड़की को ही चुना जाता है, जो भारत का प्रतिनिधित्व करती हो। इसे ऐसे ही रहने दीजिए।

(1999 की मिस इंडिया विजेता)

Advertisement
Advertisement
Advertisement