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27 जून 2022 · JUN 27 , 2022

पुस्तक समीक्षा: गांधी का अहिंसक सभ्यता चिंतन

पुस्तक जटिल विषयों एवं बहसों को आसान बना कर समझाती हुई चलती है। कहीं भी ‘पोलेमिकल’ नहीं होती
नंदकिशोर आचार्य की गांधी हैं विकल्प पुस्तक ग्रंथमाला की 18वीं पुस्तक है

गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ने अहिंसा-शांति ग्रंथमाला परियोजना की शुरूआत की थी। इसके अंतर्गत अहिंसा-दर्शन के देश-विदेश के महत्वपूर्ण और अल्पज्ञात चिंतकों एवं प्रयोक्ताओं के विचारों को सामने लाने के लिए अधिकारी विद्वानों की पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं। कुल 50 पुस्तकों का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक 27 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिंदी के महत्वपूर्ण साहित्यकार और विचारक नंदकिशोर आचार्य ग्रंथमाला के संपादक हैं। परियोजना का उद्देश्य अकादमिक नहीं बल्कि आधुनिकतावादी हिंसक सभ्यता के स्थान पर अहिंसक सभ्यता की स्थापना का सक्रिय प्रयास है। निस्संदेह गांधी की 150वीं जयंती पर की गई अकादमी की यह सार्थक और प्रासंगिक पहल उन अनेकानेक खर्चीले विज्ञापनी आयोजनों से अलग है, जो केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से चलाए गए।  

नंदकिशोर आचार्य की गांधी हैं विकल्प पुस्तक ग्रंथमाला की 18वीं पुस्तक है। इसमें 19 लेख संकलित हैं। लेखों का संकलन पुस्तक के शीर्षक की सार्थकता की संगति में किया गया है। लेखक ने गांधी-चिंतन की व्याख्या एवं विश्लेषण अलगाव में नहीं किया है। बल्कि गांधी-चिंतन को विश्व में प्रचलित व्यवस्थाओं, शासन-प्रणालियों और विकास की अवधारणाओं की कसौटी पर कस कर निष्कर्ष निकाले हैं। इस सिलसिले में लेखक प्रचलित आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक धारणाओं और उनसे जुड़े विद्वानों के चिंतन का हवाला देता चलता है। लेखक ने गांधी-चिंतन का परीक्षण नेहरू, आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह आदि के चिंतन के संदर्भ में भी किया है। ऐसे प्रसंगों में पेशे से इतिहास के अध्यापक रहे लेखक की आधुनिक इतिहास की गहरी जानकारी और प्रगतिशील इतिहास-दृष्टि का पता चलता है। लेखक पर एमएन राय के विचारों का विशेष प्रभाव रहा है। वे आध्यात्मिक गांधी और भौतिकवादी एमएन राय के बीच संवाद की जरूरत पर बल देते हैं, यह मानते हुए कि दोनों अपने-अपने तरीके से अहिंसक सभ्यता के प्रस्तावक हैं। लेखक ने गांधी के स्त्री-सत्ता और शिक्षा-संबंधी चिंतन को अहिंसक सभ्यता के परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से व्याख्यायित किया है।

पुस्तक का शीर्षक पुस्तक का मुख्य लेख भी है। विशेष तौर पर इस लेख में और अन्यत्र भी गांधी-चिंतन के बीज पदों अथवा अवधारणाओं – अहिंसा, स्वराज, स्वदेशी और सत्याग्रह - का आधुनिक पूंजीवादी एवं समाजवादी ज्ञान-मीमांसा, विशेषकर अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र, की प्रमुख अवधारणाओं और अनुप्रयोगों के संदर्भ में विश्लेषण किया गया है। पूंजीवादी और समाजवादी दोनों प्रणालियों में आधारभूत उत्पादन के संबंधों, उत्पादन के साधनों/प्रक्रिया, तकनीकी (टेक्नोलॉजी) – अर्थात विकास के मौजूदा मॉडल और उससे प्रसूत रोजगार-विहीन ग्रोथ तथा पारिस्थितिकीय संकट - की भी गांधी की स्वराज और स्वदेशी की अवधारणा के आधार पर समीक्षा की गई है। लेखक का मानना है कि गांधी और उनके समानधर्मा चिंतक आधुनिकतावादी हिंसक सभ्यता का अहिंसक सभ्यता के रूप में विकल्प प्रस्तुत करते हैं; वह विकल्प मौजूदा हिंसक सभ्यता की संरचनाओं को क्रमश: बदलते हुए हासिल किया जा सकता है।

लेखक बताते हैं कि गांधी के लिए मानव-जीवन का लक्ष्य अहिंसा और सत्याग्रह के रास्ते नैतिकता की साधना है। मनुष्य को यह साधना इसी जगत में रह कर करनी होती है और मनुष्य, स्त्री-पुरुष दोनों ही यह साधना कर सकता है। लेखक गांधी-चिंतन के आधार पर स्पष्ट करते हैं कि हिंसा करने वाला भी दरअसल हिंसा का शिकार होता है। गांधी मनुष्य की मुकम्मल स्वतंत्रता चाहने वाले चिंतक हैं। मनुष्य की मुकम्मल स्वतंत्रता ही स्वराज है, जिसे हिंसा से मुक्त होकर ही प्राप्त किया जा सकता है।    

पुस्तक के अंदर जयप्रकाश नारायण का कथन है, “गांधीजी ने शुरू में ही ऐसी भविष्यवाणी कर दी थी कि स्वराज की लड़ाई के बाद अगर वे जिंदा बचे तो अंग्रेजों के साथ जिस तरह लड़ाई लड़नी पड़ी, वैसी ही अनेक अहिंसक लड़ाइयां स्वराज के बाद भी लड़नी पड़ेंगी। गांधीजी कितने क्रांतद्रष्टा, पारदर्शी पुरुष थे।” बैक कवर पर राममनोहर लोहिया का कथन है। 

राममनोहर लोहया का उद्धरण गांधी के चिंतन और कार्य-प्रणाली को लेकर लेखक की तरफ से सारगर्भित इशारा है।

लेखक हिन्दी के महत्वपूर्ण नाटककार भी हैं। पुस्तक के परिशिष्ट में ‘बापू’  (एकपात्रीय नाटक) दिया गया है। अंतिम दिनों में कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं द्वारा गांधी को, खास कर विभाजन के मुद्दे पर, अलग-थलग छोड़ देने की पीड़ा से भरा यह पूरा नाट्यालेख स्वगत शैली में है। मुझे जानकारी नहीं है कि नमक सत्याग्रह की हीरक जयंती के अवसर पर वर्धा में तैयार किए गए इस नाट्यालेख को किसी नाट्यसंस्था ने खेला है या नहीं। यह नाटक संभावनाओं से भरा काफी प्रभावपूर्ण है।

पुस्तक जटिल विषयों एवं बहसों को भी आसान बना कर समझाती हुई चलती है। यह पुस्तक गांधी के समकलीन, पूर्ववर्ती और बाद के विभिन्न विद्वानों, सिद्धांतों, अवधारणाओं, विचारधाराओं, स्थितियों के हवालों से भरपूर होने के बावजूद कहीं भी ‘पोलेमिकल’ नहीं होती। न ही लेखक गांधी के अहिंसा दर्शन का प्रतिपादन करते हुए किसी अन्य चिंतक अथवा नेता के प्रति आक्रामक होता है। पूरी पुस्तक सकारात्मक एवं रचनात्मक दृष्टिकोण से लिखी गई है। जो भी यह पुस्तक पढ़ेंगे, उन्हें गांधी के साथ विविध विषयों के कई महत्वपूर्ण विद्वानों के चिंतन और उनके सिद्धांतों/अवधारणाओं/विचारों को जानने-समझने का लाभ होगा। बेहतर होता आचार्य जी गांधी एवं अन्य विद्वानों के कथनों के उल्लेख के साथ संदर्भ भी देते चलते और अंत में सबकी पुस्तक-सूची दे दी जाती। उससे जिज्ञासु पाठकों को वे ग्रंथ प्राप्त कर अपना अध्ययन बढ़ाने में सुविधा होती। ग्रंथमाला की सभी पुस्तकों के सस्ते पेपरबैक संस्करण सुभीते से उपलब्ध होने चाहिए।  

गांधी हैं विकल्प

नन्दकिशोर आचार्य

प्रकाशक | प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर

मूल्य: 400 रुपये | पृष्ठ: 160   

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