Advertisement

यॉर्कर: नई पिच पर खेलेगी क्रिकेट की तिकड़ी

पहली बार गांगुली, द्रविड़ और लक्ष्मण जैसे बड़े खिलाड़ी एक साथ प्रबंधकीय भूमिकाओं में
गांगुली और लक्ष्मण पर नई पीढ़ी तैयार करने की भी जिम्मेदारी

क्रिकेट की मशहूर तिकड़ी लौट आई है। देश के खेल इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब पिच पर अपने दमदार प्रदर्शन से देश की सेवा करने वाले तीन पूर्व सुपरस्टार भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए प्रबंधकीय भूमिकाओं में आए हैं। सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण ने 1990 के दशक के मध्य से 2000 तक भारतीय क्रिकेट के लिए काफी पसीना बहाया, मजबूत विरोधियों के खिलाफ लड़ाइयां लड़ीं। भारतीय क्रिकेट को उन्होंने कई यादगार मौके दिए। अब इन तीनों की वापसी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के अध्यक्ष, भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच और नेशनल क्रिकेट अकादमी के प्रमुख के रूप में हुई है।

भारतीय क्रिकेट में कभी एकजुटता नहीं रही। खिलाड़ियों की कोई एसोसिएशन कामयाब नहीं हो सकी। स्टार खिलाड़ियों और घरेलू मैच खेलने वालों के बीच हमेशा बड़ा अंतर रहा है। प्रशासनिक स्तर पर भी बीसीसीआइ के आकाओं ने कभी महान खिलाड़ियों को गंभीरता से नहीं लिया। सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी भी क्रिकेट एडवाइजरी कमेटी के अंग के तौर पर राष्ट्रीय कोच चुनने जैसा छोटा-मोटा काम ही करते रहे। यह कमेटी शोपीस के अलावा और कुछ नहीं थी।

लेकिन समय तेजी से बदला है। हालांकि पूर्व खिलाड़ियों को बीसीसीआइ की गतिविधियों में शामिल करने की नीति क्रिकेट बोर्ड की तरफ से नहीं आई। यह विचार सुप्रीम कोर्ट के कई जजों ने दिया और अंततः 2018 में इसने आकार लिया। बिहार के पूर्व क्रिकेटर आदित्य वर्मा ने आइपीएल में भ्रष्टाचार पर जब 2013 में बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की तब शायद ही कोई जानता था कि एक दिन उनका यह कदम बीसीसीआइ के प्रशासन में सकारात्मक बदलाव लाएगा।

आइपीएल में सट्टेबाजी का मुद्दा जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब वह ज्यादा चर्चा में आया। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2017 में बीसीसीआइ का कामकाज देखने के लिए प्रशासकों की समिति (सीओए) नियुक्त की तो क्रिकेट के प्रशंसक जजों के दिमाग में एक खास बात थी। वे चाहते थे कि क्रिकेट बोर्ड को ऐसे लोग चलाएं जिन्होंने इस खेल को सर्वोच्च स्तर पर पूरे पैशन और ईमानदारी के साथ खेला है। साथ ही इसमें हितों का कोई टकराव न हो। अगले 33 महीने तक बीसीसीआइ का नियंत्रण इस समिति के पास रहा और उसने बोर्ड के संविधान की अनेक खामियों को दूर करने की कोशिश की।

उम्मीद है, द्रविड़ का तरीका कोहली पसंद करेंगे, कोहली धैर्य दिखाते हैं तो भारत के पास अच्छे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की नई पीढ़ी होगी

उम्मीद है, द्रविड़ का तरीका कोहली पसंद करेंगे, कोहली धैर्य दिखाते हैं तो भारत के पास अच्छे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की नई पीढ़ी होगी

भारतीय क्रिकेट बोर्ड पर हमेशा ताकतवर लोगों का कब्जा रहा है। या तो वे वरिष्ठ राजनेता होते थे या उनके साथ सांठगांठ रखने वाले बड़े उद्योगपति। पारंपरिक रूप से बोर्ड ऐसे लोग चलाते थे जिन्होंने कभी प्रोफेशनल क्रिकेट नहीं खेली, लेकिन राज्यों की एसोसिएशन को अपने काबू में रखने का वे हर तरीका जानते थे। बोर्ड की कमान हमेशा चंद लोगों के बीच रही। यहां विरोधी कभी स्थायी नहीं होता था।

सुप्रीम कोर्ट में आइपीएल सट्टेबाजी मामले की सुनवाई के दौरान एक बात स्पष्ट हो गई थी। भारत के तीन प्रधान न्यायाधीशों समेत शीर्ष न्यायपालिका मंत्रियों और नौकरशाहों से क्रिकेट को मुक्त करना चाहती थी। नतीजा यह हुआ कि बोर्ड के दो अध्यक्षों, उद्योगपति एन. श्रीनिवासन और भाजपा सांसद तथा मौजूदा खेल एवं सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को बाहर जाना पड़ा।

इन 33 महीनों में जिनके हाथों से सत्ता छिनी उन्होंने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर.एम. लोढा के सुझावों पर सवाल भी उठाए। उन्होंने कहा कि जज कैसे क्रिकेट की संस्था चला सकते हैं। उन्होंने पूर्व सीएजी विनोद राय को बीसीसीआइ की प्रशासनिक जिम्मेदारी सौंपने पर भी सवाल उठाए। तब बोर्ड में पैसा पानी की तरह बहाया जाता था। 7-स्टार होटल के कमरे इसके ऑफिस हुआ करते थे। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2018 में बोर्ड का संविधान बदला, जिसमें सभी एग्जीक्यूटिव अधिकार एक शीर्ष काउंसिल को दिए गए जिसमें पूर्व क्रिकेटरों को रखना जरूरी था। अक्टूबर 2019 में प्रशासकों के समिति ने बीसीसीआइ की चुनी हुई बॉडी को जिम्मेदारी सौंप दी। तब बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के प्रमुख सौरव गांगुली बीसीसीआइ का अध्यक्ष बनने वाले पहले क्रिकेटर हुए। गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह सचिव और अनुराग ठाकुर के भाई अरुण सिंह ठाकुर ट्रेजरर चुने गए। वास्तव में बीसीसीआइ एक बार फिर मजबूत राजनीतिक संबंध वालों के हाथों में चला गया।

भारतीय क्रिकेट में हमेशा मजबूत समीकरणों का बोलबाला रहा है। कोच और कप्तान, कप्तान और वरिष्ठ खिलाड़ियों, सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों के बीच संबंध कभी अच्छे तो कभी कड़वाहट भरे रहे हैं। कपिलदेव और सुनील गावस्कर के दिनों में भारतीय क्रिकेटर उत्तर और पश्चिम में बंटी थी। क्रिकेट का पावर सेंटर भी दिल्ली और मुंबई में बंटा था। लेकिन समय के साथ वह दूरी खत्म हुई। भारत ने एक टीम की तरह खेला और कपिलदेव के नेतृत्व में 1983 में लॉर्ड्स में प्रूडेंशियल वर्ल्ड कप जीता।

अब बात 2021 की करते हैं। गांगुली के बीसीसीआइ अध्यक्ष बनने से कई चीजें बदली हैं। सबसे अहम बात तो यह है कि उन्होंने अपनी विश्वस्तरीय टीम के सदस्यों को भविष्य की टीम बनाने की जिम्मेदारी सौंपी। गांगुली, द्रविड़ और लक्ष्मण ने भारतीय क्रिकेट में कई बदलाव देखे हैं। वे जानते हैं कि मैच फिक्सिंग के दिनों की भयावह यादों को भुलाने और साफ-सुथरी टीम बनाने के लिए क्या जरूरी है, प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को कैसे तैयार करना है और कैसे विदेशों में मैच जीते जा सकते हैं।

दुनिया की हर टीम को खिलाड़ियों के बाहर जाने की स्थिति का सामना करना पड़ता है। ऐसा तब होता है जब वरिष्ठ खिलाड़ी रिटायर होते हैं। क्लाइव लॉयड की अजेय टीम के रिटायर होने से अभी तक वेस्टइंडीज उबर नहीं पाई है। ऑस्ट्रेलिया को अभी तक वैसे टेस्ट खिलाड़ी नहीं मिले जिनका नेतृत्व एलन बॉर्डर और मार्क टेलर ने किया था। इंग्लैंड के पास ग्राहम गूच और एंड्रयू स्ट्रॉस के समय जैसे बल्लेबाज नहीं हैं। दक्षिण अफ्रीका को अभी तक जाक कैलिस, कर्स्टन बंधु और शॉन पोलॉक का विकल्प नहीं मिल सका है। भारत सौभाग्यशाली है कि जब तेंदुलकर, गांगुली, द्रविड़, लक्ष्मण, सहवाग और हरभजन गए तब धोनी, कोहली, रहाणे, पुजारा, रोहित शर्मा, अश्विन और इशांत शर्मा जैसे खिलाड़ी तैयार थे।

भारत तेजी से ऐसे मुकाम की ओर बढ़ रहा है जहां कोहली, रोहित, पुजारा, रहाणे, इशांत और अश्विन के जाने के बाद खाली जगह भरने की जरूरत पड़ेगी। ये सब खिलाड़ी 30 की उम्र को पार कर चुके हैं और बहुत हुआ तो तीन से पांच साल तक और बढ़िया खेल दिखा सकते हैं। ऐसे में हमें नई पीढ़ी को तैयार करने की जरूरत है।

गांगुली की कप्तानी का समय दूरदर्शिता और प्लानिंग के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि उन्होंने वास्तव में नेतृत्व की क्षमता दिखाई थी। उन्हीं का विजन था कि लक्ष्मण बंगाल के बैटिंग कोच नियुक्त किए गए। जब रवि शास्त्री भारतीय टीम के प्रमुख कोच थे तब द्रविड़ इंडिया टीम के कोच बन चुके थे। विराट कोहली के साथ उनके अच्छे संबंध थे। 2020 वर्ल्ड कप खत्म होने के साथ बतौर मुख्य कोच शास्त्री की पारी खत्म हो रही थी। बीसीसीआइ को नए कोच की तलाश थी। दो नाम सामने थे- अनिल कुंबले और द्रविड़। रिकी पोंटिंग का दावा है कि उन्हें भी कोच पद का ऑफर आया था। कई बातें द्रविड़ के पक्ष में गईं। एक तो कुंबले और कोहली के बीच संबंधों में खटास पहले दिख चुकी थी। इंडिया ए टीम के युवा खिलाड़ियों में द्रविड़ काफी लोकप्रिय थे। उन्हें दुनियाभर में हर तरह की परिस्थितियों में खेलने का बड़ा अनुभव है। टीम मैनेजमेंट का उनका तरीका भी ईमानदार है।

उम्मीद है द्रविड़ का तरीका कोहली को पसंद आएगा। अगर कोहली धैर्य दिखाते हैं तो भारत के पास अच्छे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की नई पीढ़ी होगी। इसकी एक झलक भारत-न्यूजीलैंड सीरीज में दिखी जिसमें मोहम्मद सिराज, श्रेयस अय्यर, अक्षर पटेल, मयंक अग्रवाल और जयंत यादव जैसे नए चेहरे उभरे। दक्षिण अफ्रीका दौरे में पुजारा, साहा और रहाणे जैसे खिलाड़ियों के लिए अपने आप को साबित करने की चुनौती होगी। लेकिन द्रविड़ और कोहली आश्वस्त होंगे कि खिलाड़ियों की अगली कतार तैयार है।

अच्छे प्रदर्शन का मतलब सिर्फ रन बनाना और विकेट लेना नहीं होता। आधुनिक क्रिकेट में खिलाड़ियों के दिमाग और शरीर पर भी सवाल उठते हैं। इसलिए फिटनेस बहुत जरूरी है। बेंगलूरू स्थित नेशनल क्रिकेट अकादमी खिलाड़ियों के पुनर्वास का मुख्य केंद्र है। दो वर्षों से द्रविड़ के पास इसकी जिम्मेदारी थी। लेकिन बहुत कुछ करने की जरूरत है क्योंकि पैसे के लालच में खिलाड़ी अपनी चोट अक्सर छुपाते हैं। हाल के दिनों में खिलाड़ियों की फिटनेस में पारदर्शिता एक मुद्दा रहा है। उम्मीद है कि लक्ष्मण के अकादमी प्रमुख बनने के बाद यह समस्या भी दूर हो जाएगी।

सौमित्र बोस

(लेखक आउटलुक के खेल संपादक हैं)

Advertisement
Advertisement
Advertisement