Advertisement

सबके लिए फैशन

मोटे और दिव्यांग आरामदायक कपड़े पहन कर रैंप पर हैं, पुतलों की तरह के मॉडलों के दिन लद चुके। फैशन की दुनिया बदल गई है
नई इबारत: (बाएं से दाएं) प्लस साइज मॉडल अंबर कुरैशी, सोहाया मिश्रा की दो डिजाइन, एकांश ट्रस्ट के फैशन शो में दिव्यांग

उस चेहरे ने हजारों विज्ञापन किए। चाहे वह डेनिम में हो या टैंक टॉप में, उसकी खूबसूरती का कोई तोड़ नहीं था। ये थीं 1980 के दशक में हर दिल अजीज सिंडी क्रॉफर्ड, जिसके होंठ के ऊपरी हिस्से पर मौजूद तिल पर लोग मर मिटते थे। लेकिन प्रसिद्ध होने से वह अपने इस ‘हुस्न के पहरेदार’ को लेकर हमेशा सशंकित रहती थीं। स्कूल के दिनों में उनके सहपाठी तिल के लिए उसे छेड़ते थे, उनकी बहन को लगता था कि इस तिल को छुपा कर रखना चाहिए या फिर इससे छुटकारा पा लेना चाहिए। लेकिन सिंडी की मां तिल को छुपाने या हटाने के खिलाफ थीं, और इस तरह उनके लिए फैशन की दुनिया का सितारा बनने के रास्ते खुल गए। सिंडी की तरह ही अब भारतीय फैशन उद्योग भी ‘अपूर्णता’ लिए लोगों को गले लगा रहा है। हालांकि, चलती-फिरती हैंगर लगने वाली, अत्यधिक दुबली लड़कियों का अब भी रैंप पर बोलबाला है। फिर भी विभिन्न प्रकार के शरीर, उम्र, रंग, जातीयता और लिंग की पहचान के लिए जगह बन रही है, यहां तक कि व्हील चेयर वालों के लिए भी। अब फैशन पुलिस इस दुनिया के लोगों के लिए शर्तें निर्धारित नहीं कर सकती। आखिरकार ये लोग कॉरसेट (एक तरह का कसा ब्लाउज) पैमाने से मुक्त हैं। यह समावेशी फैशन है। और इसके चीयरलीडर्स में से एक ‘द पॉट प्लांट’ है, जो लिंग-भेद से परे कपड़ों का ब्रांड है। इसे रेशम कर्मचंदानी और सान्या सूरी चलाती हैं। सूरी कहती हैं, “हम फैशन का इस्तेमाल वास्तविकता बताने के लिए करते हैं। हमारे लिए, समावेशी फैशन हर किसी को आराम और स्वतंत्रता दे रहा है, चाहे वे जो भी हों। यह किसी लेबल से परे जीवन जीने और व्यक्तियों के रूप में हमारी पहचान खोजने के बारे में है।”

2016 में ग्राजिया यंग डिजाइनर अवॉर्ड से सम्मानित सोहाया मिश्रा, रूढ़ियां तोड़ने में विश्वास करती हैं। वह कहती हैं, “मेरा ब्रांड जेंडर न्यूट्रल है। मैं केवल पुरुषों या महिलाओं के लिए कपड़े डिजाइन नहीं करती। यह इस मूल सिद्धांत को दर्शाता है कि शैली व्यक्तिवादी और कलात्मकता का प्रतिबिंब है, यानी जो हम हैं, न कि वो जो समाज हमसे चाहता है। मैं जियो और जीने दो की अवधारणा को उजागर करना चाहती हूं। मैं स्वीकृति और सहिष्णुता को बढ़ावा देना चाहती हूं।”

फैशन उद्योग काफी हद तक अभिजात्य वर्ग का रहा है। लेकिन अब यहां अलग-अलग तबके के लोग दिखाई देने लगे हैं। नियमों में यह शिथिलता सराहनीय है। एक ढर्रे पर चलने के दिन लद गए हैं। कई डिजाइनरों के लिए आराम और व्यक्तित्व प्राथमिकता बन गए हैं। डिजाइनर सुनीता शंकर कहती हैं, “ग्राहक ही हैं जो हमारे काम को निर्धारित करते हैं। डिजाइनरों को उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कपड़े बनाने होंगे। आखिरकार हर कोई सुंदर दिखना चाहता है। एक विशेष तबके के लोगों को ही इस विशेषाधिकार का आनंद क्यों लेने  दिया जाए?”

हाल ही में लक्मे फैशन वीक में पेशवाई कलेक्शन पेश करने वाले डिजाइनर गौरांग शाह कहते हैं, “फैशन तब तक फैशन नहीं है जब तक यह सभी लोगों को लेकर न चल सके। आपको विशिष्ट लोगों के साथ आम जनता के लिए भी होना चाहिए। ग्राहकों की इच्छाओं को पूरा करने की क्षमता ही सर्वोपरि है।”

सोशल मीडिया को व्यापक रूप से अपनाने के कारण भी फैशन अपने आइवरी टॉवर से बाहर निकल पाया है। शंकर कहती हैं, “सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने लोगों को लैंगिक समानता और शरीर के प्रकारों के साथ-साथ वृद्ध और विशेष रूप से विकलांग लोगों के मुद्दों के बारे में जागरूक किया है।”  

डिजाइनर अब दिव्यांगों के लिए परिधान तैयार कर रहे हैं और इसे उनके अनुकूल बना रहे हैं। सितंबर 2018 में फैशन डिजाइन काउंसिल ऑफ इंडिया ने ‘तमन्ना’ एनजीओ के साथ मिल कर दिल्ली के हयात रीजेंसी में एक शो आयोजित किया, जिसका विषय था- विभिन्नता में एकता। तमन्ना संगठन दिव्यांगों के लिए एक स्कूल चलाता है। तमन्ना के छात्रों ने मॉडल्स के साथ रैंप वॉक किया और नितिन बल चौहान, अमित अग्रवाल और रिमझिम दादू और अन्य डिजाइनरों के साथ-साथ दिव्यांगों द्वारा तैयार किए गए कपड़े पहने।

बुजुर्ग भी पारंपरिक कपड़ों के साथ संघर्ष करते हैं, क्योंकि उम्र शारीरिक और मानसिक सीमाओं के साथ आती है। इस उम्र में आसान लगने वाले काम, जैसे बटन लगाना या इजारबंद बांधना भी चुनौती लगता है। हाल ही में अनुकूल कपड़ों को पेश करने के लिए एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन करने वाली एकांश ट्रस्ट की संस्थापक और प्रबंध न्यासी अनीता नारायण कहती हैं, “हमें समाधान खोजना होगा और चीजों को सरल बनाना होगा। हमारे साथ काम करने वाले एक व्यक्ति ने इसे समझा और तब हमें दिव्यांगों के लिए एक फैशन शो करने का विचार आया।”

समावेशी फैशन जितना आरामदायक है, दिखता भी उतना ही अच्छा है। अय्यर कहती हैं, “आपके कपड़े आरामदेह और सहज नहीं हैं तो आपकी डिजाइन फेल है।” सुगमता और सुलभता पर समावेश के जोर से यह भविष्य में तेजी से बढ़ेगा। यही कारण है कि गौरांग शाह ने पिछले 14 सीजन से इस ट्रेंड को अपने कलेक्शन में शामिल कर लिया है। शाह और उनके जैसी विचारधारा रखने वाले डिजाइनर, फैशन

उद्योग को समावेश के मैदान में बदलने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं।

स्थूलकाय मॉडल, लेक्चरर और ब्लॉगर नीलाक्षी सिंह भी अपने शरीर को लेकर बहुत सी असुरक्षाओं के साथ पली-बढ़ीं। आठ साल पहले वह फैशन शो में जाने के लिए बहुत उत्साहित थीं। लेकिन जैसे ही उन्होंने समारोह स्थल में कदम रखा, वह वहां से भाग जाना चाहती थीं। वह फैशन की शौकीन थीं लेकिन इस उद्योग में वह खुद को फिट नहीं पाती थीं। लेकिन समावेश पर जोर से अब उन्हें इसकी चिंता नहीं है। वह कहती हैं, “तीन साल तक उस ब्रांड के साथ रैंप पर चलना सपने की तरह लगता है जो फैशन को समावेशी बनाने में विश्वास रखता है। अंततः मुझे महसूस होता है कि मैं यहां की हूं और मेरी भी आवाज है।”

Advertisement
Advertisement
Advertisement