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किसान आंदोलन/ उत्तर प्रदेश: विपक्ष को मिली संजीवनी

पश्चिमी यूपी में बढ़ते जन समर्थन ने विपक्षी दलों का हौसला बढ़ाया, अब दूसरे इलाकों में भी सक्रियता बढ़ी
सहारनपुर में राकेश टिकैत

ह‌रियाणा और राजस्‍थान में पंचायतों के सिलसिले के लगभग महीने भर बाद फरवरी के आखिरी हफ्ते में भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत सहारनपुर में विशाल पंचायत के लिए पहुंचे तो वहां 'हर हर महादेव, अल्ला ओ अकबर' का वही नारा गूंज रहा था, जो 1987-88 में महेंद्र सिंह टिकैत की रैलियों में गूंजा करता था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हवा का रुख बदलने के संकेत 22 फरवरी को मुजफ्फरनगर के ऐतिहासिक सोरम गांव में भी बदस्तूर दिखे थे, जब इलाके के सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान वहां एक गमी में पहुंचे थे। लेकिन नए कृषि कानूनों के खिलाफ लोगों के गुस्से ने पूरा माहौल बदल दिया। किसान और भाजपा कार्यकर्ता भिड़ गए। भाजपा भले ही अपने नेताओं को कृषि कानूनों के फायदे समझाने के लिए लोगों के पास भेज रही है, लेकिन उसका यह दांव उल्टा पड़ता दिख रहा है। बतीसा खाप के चौधरी सूरजमल कहते हैं, “हमने मंत्रियों से साफ कह दिया कि पहले इस्तीफा दो, फिर हमसे बात करने आना।” 

कमोबेश पूरे पश्चिमी यूपी का यही मिजाज है, जिसने विपक्ष को नई संजीवनी दे दी है। राष्ट्रीय लोक दल से लेकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, भीम आर्मी तक पश्चिमी यूपी से मिली नई ऊर्जा के सहारे 2022 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से हटाने की रणनीति बनाने में लग गए हैं। उनकी यह कोशिश भी है कि पश्चिमी यूपी में मिल रहे समर्थन को कमजोर न होने दिया जाए और प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी यह समर्थन हासिल किया जाए।

इसी कवायद में पूर्वांचल अब किसान और विपक्षी नेताओं की नई उम्मीद बन गया है। राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने पूर्वांचल के गन्ना बेल्ट में बस्ती जिले में 24 फरवरी को किसान महापंचायत की। मुजफ्फरनगर में हुई मारपीट पर उन्होंने कहा, “भाजपा नेताओं को अहंकार छोड़ना चाहिए। विरोध को देखते हुए वे लोगों से मारपीट नहीं कर सकते।” उन्होंने आरोप लगाया कि यह सरकार किसान विरोधी है और किसानों को कृषि कानूनों के खिलाफ एकजुट हो जाना चाह‌िए। जयंत के बाद भारतीय किसान यूनियन के नेता नरेश टिकैत ने भी अगले दिन बस्ती में ही महापंचायत की।

अब समाजवादी पार्टी ने भी पश्चिमी यूपी के कई इलाकों में किसान पंचायत करने का फैसला किया है। इसकी शुरुआत अलीगढ़ से होगी। इसके बाद मथुरा और दूसरे इलाकों में भी ऐसी पंचायत करने की तैयारी है। जाहिर है, किसान नेता और विपक्षी दल अब अपना समर्थन बढ़ाने के लिए प्रदेश के दूसरे इलाकों में किसानों को एकजुट करने में लग गए हैं। राष्ट्रीय लोकदल के एक नेता का कहना है, “पूर्वांचल में आजमगढ़, बलिया और मऊ में किसान गन्ना भुगतान में देरी से काफी परेशान हैं। हमारे लिए इन किसानों को साथ जोड़ना आसान होगा। इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का मुद्दा भी अब गांव-गांव तक पहुंच गया है। इसकी वजह से गेहूं और धान की खेती करने वाले किसानों को भी यह बात समझ आ रही है कि बिना एमएसपी के उन्हें कितना नुकसान हो रहा है। इन इलाकों में तो किसानों को एमएसपी पर खरीद नसीब ही नहीं होती है।”

जयंत चौधरी

शामली में जयंत चौधरी

किसानों को एकजुट करने के साथ विपक्षी दल 2022 के लिए गठबंधन और सीटों के बंटवारे पर भी काम कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर से कई दौर की मुलाकात हो चुकी है।

गठबंधन और सीटों के बंटवारे पर राष्ट्रीय लोकदल के एक नेता का कहना है, “इस बार पश्चिमी यूपी में हमारा दावा काफी मजबूत है। जहां तक समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की बात है, तो यह साथ स्वाभाविक है। लेकिन इस बार उम्मीद है कि हमें ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। उनका कहना है कि पश्चिमी यूपी में करीब 90 सीटें ऐसी हैं जहां जाट और किसान काफी असर रखते हैं। ऐसे में हमें 35-40 सीटें मिलनी चाहिए।”

एक अन्य सूत्र ने बताया कि इस बार गठबंधन को लेकर अखिलेश यादव का रवैया काफी लचीला है। वे इस बात को भली-भांति जानते हैं कि गठबंधन कोई भी बने, विपक्ष का मुख्यमंत्री चेहरा वे खुद होंगे। ऐसे में सीटों के बंटवारे से ज्यादा उनका जोर इस बात पर है कि वोट बंटने न पाए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा ने पिछले चुनावों में जाट वोट बैंक में सेंध लगाई थी। जिसका उन्हें बड़ा खाम‌ियाजा उठाना पड़ा था। अखिलेश चाहते हैं कि उसे इस बार किसी तरह बिखरने न दिया जाए। हमेशा से जाट-मुस्लिम का गठजोड़ इस क्षेत्र में निर्णायक रहा है, जो 2014 के चुनावों से बिखर गया था। हालांकि बदलते समीकरण पर भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है, “यह बात सही है कि पार्टी के लिए इस क्षेत्र में एक नई चुनौती उभरी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सारे लोग भाजपा के खिलाफ हैं। जिन पार्टियों की आप बात कर रहे हैं, उनका आधार एक खास वर्ग तक ही है। और जहां तक चुनावों की बात है, तो 2022 अभी दूर है।” भाजपा सूत्रों के अनुसार, पार्टी इस बात को मान रही है कि पश्चिमी यूपी में कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है। लेकिन इस क्षेत्र में किसान आंदोलन जाटों तक ही सीमित है, ऐसे में बाकी लोग पहले की तरह उसके साथ होंगे।

विपक्ष दल इस बात को भी अच्छी तरह समझ रहे हैं कि सिर्फ पश्चिमी यूपी के दम पर बेड़ा पार नहीं हो सकता है। इसलिए उनका फोकस अब पूर्वांचल की तरफ बढ़ता जा रहा है। चाहे समाजवादी पार्टी हो या फिर कांग्रेस, सभी दल पूर्वांचल में भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में लग गए हैं।

अखिलेश यादव

अखिलेश यादव

पूर्वांचल के 28 जिलों में 160 से ज्यादा सीटें आती हैं। यहां का मिजाज ऐसा है कि हर चुनाव में मतदाता की पसंद बदल जाती है। मसलन 2017 के विधानसभा चुनावों में जहां पर भाजपा को 110 से ज्यादा सीटें मिली थीं, वहीं 2012 में समाजवादी पार्टी ने सीटों का शतक लगाया था। इसी तरह 2007 के चुनाव में भी जब बहुजन समाज पार्टी को बहुमत मिला था तो उसे 80 से ज्यादा सीटें पूर्वींचल ने दी थी। जाहिर है, जिसने पूर्वांचल के मतदाताओं को लुभा लिया, उसके लिए लखनऊ की गद्दी दूर नहीं रहेगी।

इसी सियासी समीकरण को देखते हुए अखिलेश यादव ने अब ट्विटर से ज्यादा जमीन पर ज्यादा दिखने की नई रणनीति अपना ली है। अखिलेश ने 25-27 फरवरी तक जौनपुर, बनारस और मिर्जापुर पहुंचकर पार्टी कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की कोशिश की। इस मौके पर अखिलेश ने बनारस में जहां संकटमोचन मंदिर में दर्शन किए, वहीं संत रविदास मंदिर भी गए। जाहिर है, अखिलेश सवर्णों के साथ दलितों को भी लुभाने में लगे हैं। बनारस में उन्होंने केंद्र सरकार की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “जो मां गंगा को धोखा दे सकते हैं, वे अर्थव्यवस्था के नाम पर जनता को धोखा दे रहे हैं।”

ऐसा नहीं है कि केवल समाजवादी पार्टी की पूर्वांचल पर नजर है। कांग्रेस महासचिव और प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने भी संत रविदास की जयंती पर बनारस में उनके मंदिर में मत्था टेका। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं, “इस समय प्रदेश में कांग्रेस हर मुद्दे पर जनता के साथ खड़ी है। और यही कोशिशें हमें 2022 में सत्ता दिलाएंगी।”

हालांकि उस वक्त क्या होगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन इस समय प्रियंका गांधी कांग्रेस की खोई जमीन वापस पाने के लिए सभी तरह के कदम उठा रही हैं। पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ और मथुरा में किसान पंचायतें की हैं। इसके अलावा प्रियंका ने शाकुम्भरी देवी मंदिर में पूजन, प्रयागराज में गंगा स्नान और वृंदावन में बांके बिहारी का दर्शन कर हिंदू वोटरों को लुभाने का भी प्रयास किया है। पार्टी ने मार्च से नदी यात्रा कर निषादों को लुभाने की कोशिश भी शुरू कर दी है।

प्रियंका

बनारस में प्रियंका गांधी

इस बीच भाजपाअध्यक्ष जे.पी. नड्डा का बनारस दौरा भी काफी कुछ कहता है। नड्डा का बंगाल चुनावों की सरगर्मी के बीच पूर्वांचल का दौरा यह बताता है कि पार्टी के लिए पूर्वांचल कितना अहम है। उन्होंने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में कहा कि हमें अभी से मिशन 2022 के लिए जमीनी स्तर पर काम करना होगा। राजनीतिक हलचलों से साफ है कि किसान आंदोलन ने जहां विपक्षी दलों में नई उम्मीदें जगा दी हैं, वहीं भाजपा की बेचैनी भी बढ़ा दी है।

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