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कच्ची उम्र, पक्का नशा

आसान उपलब्धोता ने छोटी उम्र से ही स्कूली बच्चों में नशे के सेवन की प्रवृति बढ़ाई, हालात खतरनाक मोड़ तक पहुंचे
मासूम बच्चे भी आ रहे नशे की चपेट में

स्कूलों के सामने छात्रों को नशीली दवाओं के सेवन और इससे होने वाले शारीरिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान से बचाना बड़ी चुनौती है। नशीली दवाओं की आसान उपलब्धता ने किशोरों पर प्रतिकूल असर डाला है। मुंबई के कोलाबा कॉजवे में जा कर देखिए, जहां शहर के कुछ सबसे अच्छे स्कूल और कॉलेज हैं। यहां की संकरी सड़कों और गलियों में युवाओं को आसानी से सिगरेट फूंकते देखा जा सकता है और गंध महसूस की जा सकती है। देश भर के कई जाने-माने स्कूलों में ड्रग्स ने मौजूदगी दर्ज करा ली है। इनमें कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जो नशा करने के साथ पैडलर्स भी बन गए हैं, ताकि वे अपने और अपने दोस्तों के लिए आसानी से ड्रग्स खरीद सकें।

मुंबई के मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी कहते हैं, “मेरे पास ड्रग्स लेने वाले कई स्कूली बच्चे परामर्श के लिए आते हैं। नशे से बाहर निकलने का यह बिलकुल पहला कदम है। 14 साल की उम्र से बच्चों में लत लगने की शुरुआत हो जाती है। इन लोगों के बीच भांग सबसे ज्यादा प्रचलित है।”

डॉ. शेट्टी कुछ मामले बताते हुए कहते हैं, “मेरे पास एक अभिभावक अपने 14 साल के बेटे को लाए थे, जिसने हाथ से शीशे का दरवाजा तोड़ दिया था। वह स्कूल में टॉपर था और अच्छा खिलाड़ी भी। मुझे शक हुआ तो मैंने उसका यूरिन टेस्ट कराया। टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद उसके माता-पिता सदमे में थे और विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि उनका बेटा नशा करता है।” वह कहते हैं, कि लंबे समय तक नशीले पदार्थों का सेवन करने के कारण याददाश्त को नुकसान पहुंच सकता है, भावनाएं खत्म हो सकती हैं और बच्चे का व्यवहार बदल सकता है।

दुर्भाग्य से, बदलाव की साधन ये नशीली दवाएं आसानी से उपलब्ध हैं, क्योंकि इन दवाओं का बाजार बहुत बड़ा है। लेकिन शराब और रोजमर्रा की सिगरेट के मुकाबले यह पता लगाना मुश्किल होता है कि बच्चा ड्रग्स ले रहा है। डॉ. शेट्टी कहते हैं, “बच्चों को अक्सर क्रिकेट और फुटबॉल खेलने के बाद वीड का नशा करते हुए देखा जा सकता हैं। यहां उन पर कोई निगरानी नहीं होती। ज्यादातर बड़े बच्चे छोटे बच्चों को इसकी लत लगवाते हैं।”

बच्चों के बीच, ‘म्याऊ म्याऊ’ ड्रग बहुत लोकप्रिय है और यह आसानी से उपलब्ध है। म्याऊ म्याऊ, मेफेड्रोन के लिए छद्म नाम है। यह बहुत ही शक्तिशाली ड्रग है, जो स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चों के बीच बहुत आम है। इसके अलावा 16 से 18 साल के बच्चों के बीच एमडीएमए बहुत आम है। सबसे सस्ती ड्रग्स के बारे में डॉ. शेट्टी कहते हैं, “स्कूली बच्चों के बीच वीड और हशीश आम हैं क्योंकि ये बहुत सस्ती हैं। इसमें शराब की तरह तीखी गंध भी नहीं होती, तो इसे माता-पिता से आसानी से छुपाया जा सकता है। बच्चे आंखों को साफ करने के लिए आई ड्रॉप डाल लेते हैं, क्योंकि ड्रग्स लेने के बाद आंखें आम तौर पर लाल हो जाती हैं। लंबे समय ऐसी दवाएं लेने के बहुत खतरे हैं। लेकिन क्षणिक आनंद के लिए बच्चे इन ड्रग्स को लेते हैं। आजकल हर शहर के बच्चों की जेब में खूब पैसे रहते हैं।” 

दुर्भाग्य से, ड्रग्स लेने वाले बच्चे इसे, ‘कूल’ मानते हैं और ज्यादातर हम उम्रों के दबाव में इसे लेते हैं। अतिशय मादक पदार्थ लेने की स्थिति में आ गए बच्चों को परामर्श देने वाली मुंबई की मनोवैज्ञानिक सीमा हिंगोरानी, कहती हैं, “टूटे हुए परिवारों के बच्चों में नशे की लत लगने की प्रवृत्ति होती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि ड्रग्स उन्हें सब कुछ भुला देगी। सिगरेट पीने से उन्हें अपने कूल ग्रुप में प्रवेश मिलता है और धीरे-धीरे वे इसके आदी हो जाते हैं। यह बहुत ही गंभीर परेशानी बनती जा रही है, जिसके समाधान की जरूरत है।”

ड्रग्स की आसान उपलब्धता बच्चों में नशीली दवाओं के दुरुपयोग का मुख्य कारण है। ऐसा नहीं है कि ये सस्ती हैं, हिंगोरानी का कहना है कि ऐसे भी बच्चे हैं, जो अपने माता-पिता के पर्स से पैसे उड़ाते हैं। कई बार माता-पिता भी बहुत पॉकेट मनी देते हैं। अगर वे बच्चों को खरीदारी के लिए भी पैसे देते हैं, तो वे इस पैसे से वीड और मरिजुयाना खरीद लेते हैं, जो कई दुकानों में आसानी से उपलब्ध हैं। उन्हें पता होता है कि ये ड्रग्स कहां मिलेंगी और ऐसी दवाएं ऐसी हैं, जिनकी होम डिलीवरी भी हो जाती है।

ड्रग्स न लेने के प्रति स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता पर कार्यशाला की जरूरत है। ड्रग्स के दुष्प्रभाव वाले पहलू के प्रति जागरूकता लाना और किशोरवय बच्चों को मनोवैज्ञानिक शिक्षा के देने की जरूरत है। उन्हें जोर देकर, स्पष्ट रूप से यह बताने की जरूरत है कि ये ड्रग्स उनके शरीर और मस्तिष्क को बर्बाद कर रही हैं। मैंने ड्रग्स लेने वाले बच्चों के व्यक्तित्व में भारी परिवर्तन देखा है।”

ऐसे बच्चे जो लंबे समय से ड्रग्स ले रहे हैं उनके लिए मनोवैज्ञानिक शिक्षा के साथ जागरूकता सत्र होना चाहिए। इसके बाद उन कारकों का पता लगाना चाहिए, जो उन्हें तनाव देता है। स्कूलों में कार्यशालाओं का संचालन करने वाले मनोचिकित्सक डॉ. अविनाश डीसूजा कहते हैं, “हम आठवीं, नवीं और दसवीं के बच्चों के बीच विभिन्न प्रकार की ड्रग्स, उनकी उपलब्धता और ड्रग्स बेचने वाले लोगों के बारे में बात करते हैं। कई बार हम ऐसे मरीज की भी बच्चों से बात कराते हैं, जो पहले ड्रग्स लेते थे लेकिन फिर इसे छोड़ कर सामान्य जीवन जी रहे हैं।”

दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मॉडर्न स्कूल की प्रिंसिपल अलका कपूर कहती हैं, “हम स्कूल खुलने और बंद होते वक्त स्कूल परिसर में टीचर्स को बाहर खड़े रहने के लिए बोलते हैं, ताकि स्कूल के आसपास मंडराने वाले उन अनजान लोगों पर नजर रखी जा सके, जो ड्रग पेडलर हो सकते हैं और मासूम बच्चों को बरगला सकते हैं।” प्रयोग के तौर पर ड्रग्स लेने का दौर चौदह से सोलह साल की उम्र में शुरू होता है। सभी बच्चे स्कूलों में सबसे लोकप्रिय समूह का हिस्सा बनना चाहते हैं और ये सभी इन लोगों में शामिल होना और दूसरों की पसंद बनना चाहते हैं। इसलिए वे ड्रग्स का रुख कर लेते और इसके आदी हो जाते हैं। मनोचिकित्सक यह पता लगाने में मदद कर सकते हैं कि समस्या की गंभीरता क्या है। उन्हें यह पहचानने की आवश्यकता है कि क्या यह केवल कच्ची उम्र में किया जाने वाला प्रयोग है या वे ड्रग्स के आदी हो चुके हैं। यदि उन्हें ड्रग्स की लत लग गई है तो फिर बच्चों को डीटॉक्सिफिकेशन के साथ दवाओं की जरूरत पड़ती है।

मुंबई की मनोचिकित्सक डॉ. अंजलि छाबड़िया कहती है कि बच्चे ड्रग्स लेने की शुरुआत जिज्ञासा की वजह से शुरू करते हैं। ज्यादा होशियार बच्चे ज्यादा जिज्ञासु होते हैं। इनमें कुछ को अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) हो सकता है क्योंकि ऐसे बच्चे ज्यादा हाइपर और रेस्टलेस होते हैं। ड्रग्स की लत वाले बहुत से बच्चों में अमूमन घबराहट की शिकायत रहती है। चूंकि वे घबराहट के बारे में जानते नहीं इसलिए उनके दोस्त उन्हें नशा करने की सलाह देते हैं। शुरुआत में वे बस इसे एक बार ले कर देखना चाहते हैं लेकिन फिर घबराहट में थोड़ी राहत और हमउम्रों के दबाव में वे इसके आदी हो जाते हैं।”

हेरिटेज एक्सपेरिमेंटल लर्निंग स्कूल में एक सामाजिक भावनात्मक शिक्षण पाठ्यक्रम है, जिसके माध्यम से ड्रग्स के उपयोग सहित सामाजिक मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला है। स्कूल की प्रिंसिपल नीना कौल कहती हैं, “हमारा मानना है कि यदि छात्रों के पास जिम्मेदार व्यस्क होंगे तो वे खुल कर अपनी बात रखेंगे और ड्रग जैसी खतरनाक बातों में नहीं पड़ेंगे। पाठ्यक्रम छात्रों के सामने आने वाली चुनौतियों पर खुलकर चर्चा करने के लिए प्रोत्साहित करता है और उन्हें किशोरावस्था के अक्सर जटिल और चुनौतीपूर्ण परिदृश्य में मार्गदर्शित करने में मदद करता है। पाठ्यक्रम विश्वास का माहौल भी बनाता है ताकि संचार का खुला द्वार हमेशा उपलब्ध रहे।”

बच्चा ड्रग्स ले रहा है, यह जानने के संकेत

. बच्चे के मूड में अचानक बदलाव

. बच्चा बिना कारण हिंसक या आक्रमक हो जाए

. बच्चा बेहद सतर्क हो जाए और अपने माता-पिता को कमरे में न आने दे, बैग या अलमारी न छूने दे।

. घर से पैसे चुराने लगे।

. घर के सामान अचानक गायब होने लगे, क्योंकि हो सकता है वो सामान को बेच दे।

.  अपने दोस्तों से अलग-थलग जाकर बात करे।

. बहुत ज्यादा पानी पिए और मुंह से बदबू हटाने के लिए दांत बार-बार साफ करे।

. आंखों की लाली छुपाने के लिए आंखों में दवा डालने लगे।

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