Advertisement

चीनी मिलों के ‘अच्छे दिन’

गन्ना मूल्य स्थिर रखकर किसान की आय दोगुनी करने के फॉमूले के लिए तो शायद किसी नोबेल अर्थशास्‍त्री को ही तलाशना होगा
धरती कथा

साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार और तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारा दिया था- अच्छे दिन आने वाले हैं। उनकी सरकार बनी भी और अब मोदी का प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल चल रहा है। इस बीच अच्छे दिन वाली बात जुमला बन गई, लेकिन यह जुमला अब भी चलन में है। यहां यह बात कहने की जरूरत इसीलिए पड़ी क्योंकि देश में चीनी मिलों और खास तौर से निजी चीनी मिलों के अच्छे दिन या तो आ गए हैं, या फिर आने वाले हैं। वजह है सरकार की मेहरबानी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी निर्यात की बढ़ती संभावना। लेकिन इसे लेकर किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि जिस गन्ने से चीनी बनती है, उसको उगाने वाले किसानों के भी अच्छे दिन आ गए हैं या आने वाले हैं। उनके तो बुरे दिन और बुरे होते जा रहे हैं।

देश में सबसे ज्यादा चीनी पैदा करने वाले उत्तर प्रदेश में करीब 40 लाख किसान परिवार गन्ने की खेती से जुड़े हैं। जब हाल ही में एक बुजुर्ग किसान ने इस लेखक से पूछा कि राज्य में इस बार गन्ने के दाम में बढ़ोतरी होगी या नहीं, तो जवाब था कि पिछले सीजन 2018-19 की तरह ही राज्य सरकार ने राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) को गन्ने की विभिन्न किस्मों के लिए 315 रुपये से 325 रुपये प्रति क्विंटल के बीच स्थिर रखा है। खास बात यह है कि चालू पेराई सीजन का एसएपी पिछले सप्ताह घोषित किया गया, जबकि मिलों में करीब एक माह से पेराई हो रही थी। यानी गन्ना किसान को नहीं मालूम था कि उसे क्या दाम मिलेगा, फिर भी वह चीनी मिलों को गन्ना-आपूर्ति कर रहा था। आपको किसी कारोबार में ऐसा उदाहरण शायद ही मिलेगा जहां उद्योग को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाले व्यक्ति को मालूम ही नहीं कि उसे क्या दाम मिलेगा और कब तक मिलेगा।

वैसे पिछले सीजन की पेराई अप्रैल-मई में पूरी कर चुकी मिलों पर 10 दिसंबर, 2019 तक गन्ना किसानों का 2,886 करोड़ रुपये का बकाया था। अब चालू सीजन (अक्टूबर 2019 से सितंबर 2020) के लिए तो दाम ही अभी तय हुआ है और मिलें पिछले साल से अधिक गन्ने की पेराई कर चुकी हैं, लेकिन भुगतान के बारे में अभी बात करना ही जरूरी नहीं समझा जा रहा है। इस सवाल का जवाब कौन नीति-निर्धारक देगा कि जब किसी फसल का दाम दो साल तक स्थिर हो, इनपुट के दाम बढ़ते जा रहे हों और किसान को समय से भुगतान की गारंटी नहीं हो, तो किसानों के अच्छे दिन कैसे आएंगे। वैसे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के पहले अखिलेश यादव के कार्यकाल में भी तीन साल गन्ने का दाम स्थिर रखा गया था।

लेकिन चीनी मिलों के लिए अच्छे दिनों का दौर शुरू हो चुका है या होने वाला है। पहली बात यह कि चीनी मिलें हमेशा चाहती हैं कि गन्ने का दाम ज्यादा न बढ़े। ऐसे में दाम स्थिर रखना उनके लिए लागत को स्थिर रखने की तरह है। दूसरे, इस साल दुनिया भर में खपत के मुकाबले चीनी की उपलब्धता करीब 120 लाख टन कम रहेगी। हमारे देश में पिछले साल 331.6 लाख टन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था और चालू सीजन के शुरू में बकाया स्टॉक भी 142 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर था। यानी हमारे पास चीनी निर्यात कर पैसा कमाने का अच्छा मौका है। वैश्विक बाजार में चीनी के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और ऊपर से केंद्र सरकार चीनी निर्यात के लिए दस हजार रुपये प्रति टन से अधिक की मदद मिलों को कर रही है। इससे मिलों को करीब 30 रुपये प्रति किलो की कमाई निर्यात से हो रही है। यही वजह है कि चालू साल में चीनी निर्यात करीब 70 लाख टन पार कर सकता है, जो अभी तक का सबसे ज्यादा होगा।

उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को एक बड़ा फायदा घरेलू बाजार में भी होने जा रहा है, क्योंकि बाढ़ और सूखे के चलते महाराष्ट्र में इस साल गन्ना उत्पादन में भारी गिरावट आने वाली है। यही वजह है कि इस समय सबसे अधिक निर्यात भी उत्तर प्रदेश से ही हो रहा है। इससे पहले सरकार घरेलू बाजार के लिए चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य तय कर चुकी है। यानी प्रतिस्पर्धा के चलते दाम एक स्तर से नीचे नहीं आ सकते हैं। ऐसे में अब किसी उद्योग को अच्छे दिन के लिए और क्या चाहिए। लेकिन जिस किसान की आमदनी दोगुना करने का वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था, दो साल तक गन्ना मूल्य स्थिर रखकर उसकी आमदनी कैसे बढ़ेगी, यह फॉर्मूला खोजने के लिए तो अब कोई नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्‍त्री भी तैयार नहीं होगा। इसलिए किसानों की कीमत पर किसके अच्छे दिन आ रहे हैं, इसके लिए किसी को ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement