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केजरी वाल कितनी मजबूत

दिल्ली में सीधी लड़ाई आम आदमी पार्टी और भाजपा में, लेकिन क्या कांग्रेस चौंकाने का रखती है दम
ताकत का प्रदर्शनः नामांकन से पहले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली में रोड शो करते हुए

सिर पर मफलर बांधे अरविंद केजरीवाल, 2015 में भ्रष्टाचार के खिलाफ गूंजे अन्ना आंदोलन से, खड़े हुए नायक के रूप में, दिल्ली की गद्दी पर 67 सीटों के भारी-भरकम जनादेश के साथ बैठे थे। वे इस समय अपनी सबसे बड़ी परीक्षा का सामना कर रहे हैं। लेकिन इस परीक्षा में वे न सिर्फ "मफलरमैन" वाली छवि तोड़ना चाहते हैं, बल्कि बात-बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने वाले आतुर केजरीवाल भी नहीं दिखना चाहते। सत्ता में वापसी के लिए आम आदमी पार्टी की यह नई रणनीति है। उसका सारा जोर केजरीवाल को ऐसे नेता के रूप में पेश करने पर है, जो सबका है। वह वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त में तीर्थयात्रा कराता है, तो बच्चों की पढ़ाई से लेकर दिल्लीवासियों की सेहत का भी ख्याल रखता है। बिजली, पानी से लेकर बस यात्रा तक में निचले तबके और मध्यम वर्ग को राहत देने का काम करता है। यही नहीं, दिल्ली के 1.46 करोड़ मतदाताओं को यह भरोसा देने की भी कोशिश करता है कि अगले पांच साल तक ऐसी ही सुविधाएं मिलती रहेंगी। इस भरोसे को मजबूत करने के लिए पार्टी केजरीवाल का “गारंटी कार्ड” का भी दांव चलती है।

दांव पर साखः नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी पर 20 साल बाद सत्ता में वापसी का दबाव

असल में, 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सभी सातों सीटें गंवाई थी, वह उसके लिए बड़े सदमे जैसा था। 2015 के विधानसभा चुनावों में 56.86 फीसदी वोट पाने वाली पार्टी महज चार साल में 18 फीसदी वोटों पर सिमट गई थी। पांच सीटों पर तो वह कांग्रेस से पिछड़कर तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी। विधानसभा चुनाव के महज एक साल पहले सत्ताधारी पार्टी के इस प्रदर्शन ने उसे नई रणनीति बनाने पर मजबूर कर दिया। इसी का परिणाम है कि जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपने बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहते हैं कि “मुख्यमंत्री केजरीवाल न केवल दिल्ली की जनता को बरगला रहे हैं, बल्कि विज्ञापनों के जरिए जनता के पैसे की बर्बादी भी कर रहे हैं,” तो इस तीखे प्रहार के बाद भी केजरीवाल अपना पहले जैसा तेवर नहीं दिखाते। वे केवल यही कहते हैं, “मैंने उनका पूरा भाषण सुना, उसमें वे केवल मुझे गाली दे रहे थे। मुझे तो उम्मीद थी कि दिल्ली के विकास के लिए क्या करना चाहिए, वे इस पर चर्चा करेंगे और हमारी सरकार की कमियों के बारे में बताएंगे।”

पार्टी की बदली हुई रणनीति पर प्रशांत किशोर की छाप साफ तौर पर दिखती है। चुनाव रणनीतिकार के रूप में अपनी खास पहचान बना चुके किशोर की कंपनी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी को आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनावों के लिए अपने साथ जोड़ा है। किशोर की रणनीति साफ है कि वह किसी भी हालत में टकराव करने वाले केजरीवाल की याद जनता को नहीं दिलाना चाहते हैं। वह भाजपा के इन आरोपों को भी तोड़ना चाहते हैं कि केजरीवाल तानाशाह हैं, राष्ट्र विरोधी हैं।

इसलिए इस बार पार्टी की अधिकतर सभाओं में राष्ट्रगान बजता है। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी बड़ी होशियारी से अपने आपको नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ हो रहे आंदोलन से दूर रखा है। इसी तरह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में हुई हिंसा के बाद भी केजरीवाल वहां नहीं पहुंचे हैं। पार्टी की सीधी-सी रणनीति है कि चुनावों से पहले भाजपा को कोई ऐसा मौका न मिले, जिससे मतदाता पार्टी से दूर हों। पार्टी ने बैनर और पोस्टर में भी सफेद रंग की जगह पीला और काला रंग अपना लिया है। पीला रंग हिंदुओं में शुभ माना जाता है।

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और अरविंद केजरीवाल के सबसे भरोसेमंद सिपहसालारों में से एक मनीष सिसोदिया कहते हैं, “हम अपने सकारात्मक कामों के जरिए जनता के बीच जा रहे हैं। दिल्ली की जनता अकेले शिक्षा के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस को हरा देगी। आम आदमी पार्टी ने जो मॉडल तैयार किया है, वह किसी के पास नहीं है।” सिसोदिया पिछली बार की तरह इस बार भी पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भाजपा के रवि नेगी और कांग्रेस के लक्ष्मण रावत मैदान में हैं। उनके क्षेत्र में सीवर लाइन और पार्किंग लोगों की अहम समस्याएं हैं। कारोबारी सुशील कहते हैं, “बिजली और पानी कम आय वालों के लिए फ्री हो गया है, महिलाएं भी बसों में मुफ्त सफर कर रही हैं, सरकारी स्कूल और अस्पताल बेहतर हुए हैं। इसलिए आम आदमी पार्टी पर फिर भरोसा करेंगे। व्यापारी नोटबंदी, जीएसटी और सीलिंग से परेशान हैं, इसलिए भाजपा से दूरी रखेंगे।”

दिल्ली के किसी भी इलाके में जाइए, यह बात साफ नजर आती है कि लड़ाई सीधे आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में है। ऐसे में आम आदमी पार्टी के निशाने पर भाजपा ही है। पार्टी प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह कहते हैं, “भाजपा जैसी पार्टियां आम आदमी पार्टी की मुफ्त सेवाओं का विरोध कर रही हैं, जबकि हमारी जनहितकारी योजनाओं को यहां की जनता पसंद कर रही है।”

लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सातों सीटें जीतने वाली भाजपा इस समय 'केजरीवाल बनाम कौन' के सवाल से परेशान है। साथ ही पार्टी के अंदर गुटबाजी भी उसके लिए परेशानी खड़ी कर रही है। दिल्ली में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन, वरिष्ठ नेता विजय गोयल की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी भी कार्यकर्ताओं में कन्फ्यूजन बढ़ा रही है। केजरीवाल के मुकाबले चेहरे की कमी को पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी बखूबी समझ रहा है। उसे इस बात का अहसास है कि गुटबाजी और प्रमुख चेहरा नहीं होने की वजह से राजधानी में 20 साल से सत्ता से दूरी और लंबी हो सकती है। इसलिए चुनावों में पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही नाम पर वोट लेने की रणनीति अपनाई है। पार्टी उनसे 8-10 रैलियां कराना चाहती है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की ज्यादा से ज्यादा सभाएं कराने की तैयारी है। भाजपा का दिल्ली में इस बार बड़ी रैलियों से ज्यादा छोटी-छोटी जनसभाएं करने पर जोर है। पार्टी 400-500 ऐसी जनसभाएं करेगी। दिल्ली के चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं, “मैं भाजपा की जीत को लेकर सौ फीसदी आश्वस्त हूं। अब एक ही नारा है- देश बदला है, अब दिल्ली बदलो।” लेकिन सत्ता में भाजपा की कैसे वापसी होगी इस पर पार्टी के वरिष्ठ नेता विजय गोयल कहते हैं, “जनता प्रदूषण से त्रस्त है और गंदा पानी पीने को मजबूर है। केजरीवाल सरकार को सबक सिखाने के लिए लाखों की संख्या में साइलेंट वोटर तैयार हैं।”

भले ही भाजपा के नेता आम आदमी पार्टी की योजनाओं का सार्वजनिक रूप से विरोध करते नजर आ रहे हैं, लेकिन अंदर ही अंदर पार्टी को भी इस बात का अंदाजा है कि 200 यूनिट मुफ्त बिजली, 20 हजार लीटर मुफ्त पानी और महिलाओं को बस में मुफ्त यात्रा, मोहल्ला क्लीनिक जैसी योजनाएं लोगों के बीच काफी लोकप्रिय साबित हुई हैं। इसलिए मनोज तिवारी कहते हैं, “भाजपा की सरकार अगर बनती है तो दिल्लीवासियों को अभी जो मिल रहा है, उससे ज्यादा हमारी सरकार देगी।” पार्टी सूत्रों के अनुसार इस बार अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का सारा जोर डोर-टू-डोर कैंपेन पर है। पार्टी नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों को राष्ट्रवाद के नाम पर भुनाना चाहती है। 1700 से ज्यादा अवैध कॉलोनियों को नियमित करने का फैसला उसे फायदा पहुंचा सकता है। इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कैडर भी भाजपा की खातिर बूथ मैनेजमेंट के लिए उतारे गए हैं। इसका मकसद यह है कि भाजपा के समर्थक मतदान करने जरूर पहुंचें।

दिल्ली चुनाव की सबसे हाई-प्रोफाइल सीट नई दिल्ली है, जहां से मुख्यमंत्री केजरीवाल तीसरी बार जीत का परचम लहराने की तैयारी में हैं। पार्टी यही चाहती है कि इस बार जीत का मार्जिन पिछली बार से ज्यादा हो। इसीलिए चुनाव प्रचार में उनकी पत्नी सुनीता और बच्चे भी उतर गए हैं। पिछली बार केजरीवाल को 64 फीसदी वोट मिले थे। केजरीवाल ने पर्चा भरने से पहले रोड शो में भी अपनी मजबूती दिखाने की पूरी कोशिश की।

केजरीवाल के मुकाबले में किसे उतारा जाए, यह ऊहापोह भाजपा और कांग्रेस में साफ तौर पर दिख रहा है। इसलिए दोनों पार्टियों ने नामांकन के आखिरी दिन से ठीक पहले अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा की। भाजपा ने दिल्ली में अपने युवा मोर्चा के अध्यक्ष सुनील यादव को केजरीवाल के खिलाफ उतारा है, तो कांग्रेस से रोमेश सभरवाल मैदान में हैं। उम्मीदवारों की घोषणा होते ही आम आदमी पार्टी के सौरभ भारद्वाज ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा ने चुनाव से पहले ही हार मान ली है।

आम आदमी पार्टी और भाजपा के मुकाबले कांग्रेस क्यों पिछड़ती नजर आ रही है, इस सवाल पर दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा का कहना है, “आम आदमी पार्टी, भाजपा की बी टीम है। आम आदमी पार्टी सरकार का शिक्षा मॉडल सबसे बड़ा धोखा है। केवल एक साल में सरकारी स्कूलों में 1.50 लाख बच्चे कम हुए हैं। कांग्रेस पार्टी अपने 15 साल के शासन और अपनी साफ नीयत के साथ जनता के बीच जा रही है। हमें भरोसा है कि प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार बनेगी। हरियाणा चुनावों से पहले भी कांग्रेस को कमतर आंका जा रहा था, पर नतीजों से साफ है कि पार्टी वहां कैसे मजबूत हुई।”

कांग्रेस दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध को अपने लिए संजीवनी मान रही है। उसे लगता है कि पिछली विधानसभा चुनावों में जो मुस्लिम वोटर उससे दूर हो गए थे, वे इस बार उसके साथ आ सकते हैं। खास तौर से जिस तरह आम आदमी पार्टी ने मुस्लिम वोटरों को लेकर सधा हुआ रुख अपना रखा है। इसलिए कांग्रेस के प्रमुख नेता लगातार शाहीनबाग में प्रदर्शनकारियों को समर्थन देने के लिए जा रहे हैं। सलमान खुर्शीद और शशि थरूर से लेकर मणिशंकर अय्यर जैसे नेता लगातार वहां पहुंचे हैं। शाहीन बाग में रहने वाले फैजान मुस्तफा का कहना है, “सीएए और एनआरसी को लेकर आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह के साथ आने से बड़ा संदेश गया है, लेकिन कांग्रेस के नेता भी हमारे साथ खड़े हैं।”

चुनावों में इस बार पूर्वांचली वोट भी काफी मायने रखने वाला है। इसकी वजह राज्य की करीब 30 सीटों पर इनकी निर्णायक भूमिका है। इसीलिए आप ने 13 पूर्वांचली नेताओं को टिकट दिया है, तो भाजपा की 57 सीटों की पहली सूची में आठ पूर्वांचली उम्मीदवारों के नाम हैं। साथ ही भाजपा अपने प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के भरोसे भी इन वोटरों को भुनाने की बड़ी आस लगाए हुए है। इसके अलावा भाजपा, जनता दल (यूनाइटेड) और कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन कर रही है। पूर्वांचली वोटर की तरह दिल्ली में पंजाबी वोटर भी 28-30 सीटों पर अहम भूमिका निभाते हैं। इन पर भाजपा का खासा प्रभाव रहा है। लेकिन पिछले चुनावों में यहां पर भी आम आदमी पार्टी ने सेंध लगा दी है। ऐसे में, दोनों पार्टियों की इन वोटरों पर खास नजर है। चुनावों से ठीक पहले भाजपा को बड़ा झटका अपने सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल से मिला है, जिसने सीएए का विरोध करते हुए दिल्ली में भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया है। सूत्रों के अनुसार अकाली दल दिल्ली में चार सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन भाजपा दो सीटें से ज्यादा देने को तैयार नहीं थी। चुनाव में इन समीकरणों के अलावा युवा मतदाता भी काफी मायने रखते हैं। राज्य में 51 फीसदी मतदाता ऐसे हैं, जिनकी उम्र 39 साल से कम है। 2015 में आम आदमी पार्टी को सत्ता का स्वाद चखाने में इन मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में युवा क्या सोच रहा है, इस पर दिल्ली विश्वविद्यालय में एमए इंग्लिश के छात्र चंदन कुमार कहते हैं, “युवा गुस्से में है। जिस तरह जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जेएनयू के छात्रों के साथ बर्बरता हुई है, वह दिखाता है कि मोदी सरकार छात्रों से असुरक्षित महसूस कर रही है।”

दिल्ली की जनता के मन में क्या है, यह सवाल सभी राजनीतिक दलों को परेशान किए हुए है। एक तरफ भाजपा नरेंद्र मोदी और राष्ट्रवाद के नाम पर तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी अपनी लोकलुभावनी योजनाओं से जीत का दावा कर रही है। कांग्रेस के पास अब भी पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के 15 साल के कामकाज की यादे हैं। अब आठ फरवरी को मतदाता किसकी बातों पर भरोसा कर वोट डालेंगे, यह 11 फरवरी को ही पता चल पाएगा।

(इनपुट अक्षय दुबे और प्रतीक वर्मा)

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1.46 करोड़ दिल्ली के मतदाता

70 विधानसभा में कुल सीटें

30 सीटों पर पूर्वांचली मतदाता निर्णायक

51% युवा मतदाता

2 लाख मतदाता पहली बार वोट देंगे

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हरियाणा में कांग्रेस को कम आंका गया लेिकन नतीजों ने चौंकाया, दिल्ली में भी यही होगा

सुभाष चोपड़ा

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष

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भाजपा और कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल मुख्यमंत्री केजरीवाल के मुकाबले कोई बड़ा चेहरा नहीं होना है। आम आदमी पार्टी इस प्लस प्वाइंट को भुनाने में लगी है

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