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साहित्य: विवाद के झरोखे

हिंदी में इस वर्ष नाटक को पुरस्कृत किया गया तो विवादों के बगूले उड़े
दयाप्रकाश सिन्हा

हिंदी में पहली बार किसी नाटककार को पुरस्कृत किया गया। यह पुरस्कार दयाप्रकाश सिन्हा को 'सम्राट अशोक' नाटक के लिए मिला। सिन्हा संस्कार भारती से जुड़े रहे हैं और अपने दक्षिणपंथी रुझान के लिए जाने जाते हैं। इसके पहले साहित्य अकादेमी से किसी भी भारतीय भाषा में गिने-चुने नाटककारों को ही यह सम्मान मिला है, जिनमें मौजूदा अध्यक्ष तथा प्रसिद्ध कन्नड़ नाटककार चंद्रशेखर कंबार प्रमुख हैं। इस साल बांग्ला में ब्रात्य बसु को मीरजाफर ओ अन्यान्य नाटक के लिए पुरस्कार मिला। हालांकि अमूमन नाटक, संगीत, कला वगैरह में संगीत नाटक अकादेमी लेखकों-कलाकारों को पुरस्कृत करती रही है या किया करती है। हिंदी के स्वनामधन्य महान नाटककारों जगदीश चंद्र माथुर, धर्मवीर भारती, मोहन राकेश, लक्ष्मी नारायण लाल, शंकर शेष, सुरेंद्र वर्मा, असग़र वज़ाहत, नंदकिशोर आचार्य, कृष्ण बलदेव वेद जैसे लेखकों को नाटकों के लिए साहित्य अकादेमी का पुरस्कार नहीं मिला है। इन सभी को या तो साहित्य की दूसरी विधा में साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला या फिर नाटक के लिए संगीत नाटक अकादेमी का पुरस्कार ही मिला।

गौरतलब यह भी है कि पूर्व आइएएस अधिकारी दयाप्रकाश सिन्हा को 2001 में नाट्य लेखन के लिए संगीत नाटक अकादेमी का पुरस्कार मिल चुका है। इसलिए कुछ हलकों में यह सवाल पूछा जा रहा है कि उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार किस आधार पर दिया गया। साहित्य अकादेमी से जुड़े एक व्यक्ति की दलील है, ''अकादेमी साहित्य की किसी भी विधा में पुरस्कार देती है और इसी वर्ष बांग्ला के लेखक को भी नाटक के लिए यह अवार्ड दिया गया। साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष कंबार को भी नाटक के लिए साहित्य अकादेमी अवार्ड मिल चुका है तो हिंदी में दयाप्रकाश सिन्हा को नाटक पर मिलने में आपत्ति क्यों?'' लेकिन दूसरी तरफ की दलील यह है कि नाट्य लेखन के लिए दो अकादेमी से पुरस्कार तो कभी किसी को नहीं मिला। धर्मवीर भारती को भी नहीं, जिनका नाटक अंधायुग, बकौल महान कन्नड़ नाट्य-कला शख्सियत गिरीश कर्नाड, ऐसी महान कृति है, जो हजार वर्षों में नहीं लिखी गई। कर्नाड, बादल सरकार, विजय तेंडुलकर जैसे महान नाटककारों को भी संगीत नाटक अकादेमी पुस्कार से ही सम्मानित किया गया है। इसी वजह से यह विवाद उठ खड़ा हुआ है कि क्या दयाप्रकाश सिन्हा की कृति ऐसी महान विभूतियों की कृति से भी बड़ी है।

दरअसल हर भाषा में पुरस्कारों के चयन के लिए तीन सदस्यीय जूरी बनाई गई थी। साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवास राव का कहना है कि पुरस्कार के लिए किताबों का चयन आम सहमति या बहुमत से किया गया और 30 दिसंबर को अध्यक्ष कंबार की अध्यक्षता में हुई कार्यकारी मंडल की बैठक में सूची को मंजूरी दी गई। कथित तौर पर हिंदी के नाटक का चयन आम सहमति से नहीं, बहुमत से किया गया। हिंदी की जूरी में चमनलाल गुप्ता, जयप्रकाश और दिविक रमेश थे। कहते हैं, दिविक रमेश ने यह कहकर अपनी असहम‌ति दर्ज की कि वे नाटकों के जानकार नहीं हैं। उनका यह भी कहना है कि सम्राट अशोक कमजोर कृति है, उससे बेहतर तो ज्ञान चतुर्वेदी की कृति है, जिसे यह अवार्ड मिलना चाहिए था। गौरतलब यह भी कि इन तीनों में कोई भी नाटकों का विशेषज्ञ नहीं है। बाकी दो सदस्यों को संघी पृष्ठभूमि का माना जाता है। सवाल उठाने वालों की दलील है कि अगर निर्णायकों में महेश आनंद, देवेंद्र राज अंकुर या जयदेव तनेजा जैसे जाने-माने रंग समीक्षक होते तो इस फैसले को न्यायोचित कहा जाता पर बिना किसी नाट्य विशेषज्ञ की अनुशंसा के यह पुरस्कार किस आधार पर दिया गया।

प्रसिद्ध आलोचक तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के पूर्व विभागाध्यक्ष गोपेश्वर सिंह के अनुसार दक्षिणपंथी या किसी धारा के लेखकों को पुरस्कार देने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए, बशर्ते रचना स्तरीय हो। लेकिन चर्चित नाटककार राजेश कुमार कहते हैं, "नाटक सम्राट अशोक बहुत ही कमजोर है और इस नाटक का दर्शन ब्राह्मणवादी है। लेखक बौद्ध धर्म को भारत के लिए नुकसानदेह मानता है, जबकि बाबा साहेब आंबेडकर, राहुल सांकृत्यायन, नागार्जुन जैसे लोग तो बौद्ध हो गए थे। दुनिया भर में बौद्ध धर्म फैला क्योंकि उसमें हिंदू धर्म की बुराइयां नहीं थीं।"

हिंदी साहित्य के हलकों में दयाप्रकाश सिन्हा को साहित्य अकादेमी का अवार्ड मिलने की अटकलें लग रही थीं। अवार्ड मिलने पर उनके प्रकाशित इंटरव्यू को वायरल करके यह दिखाने की कोशिश हुई कि उनके विचार सत्ता पक्ष से कितने मिलते हैं। वे खुद को राष्ट्रवादी साहित्यकार बताते हैं। असहिष्णुता के मुद्दे पर जब अनेक बड़े लेखकों ने साहित्य अकादेमी का अवार्ड वापस करने का अभियान चलाया था तो उसके विरोध में दयाप्रकाश सिन्हा और नरेंद्र कोहली जैसे खड़े हुए थे। सोशल मीडिया पर सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें भी वायरल हुईं। कथाकार, कवि प्रियदर्शन के मुताबिक, दयाप्रकाश सिन्हा नेहरू विरोधी और संघ समर्थक हैं। अब सवाल है कि क्या दयाप्रकाश सिन्हा को साहित्येत्तर कारणों से यह अवार्ड मिला? बहरहाल, साहित्य में विवाद उभरते रहे हैं, मगर कृति भी महान हो, तो विवाद खास मायने नहीं रखते।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये विचार निजी हैं)

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