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बिहार: सुशासन राज में अपराधी बेखौफ

बिगड़ती कानून-व्यवस्था से बढ़ी नीतीश की मुश्किलें, विपक्ष ही नहीं, सहयोगी भाजपा भी हमलावर
अपराध की रोकथाम के लिए नीतीश ने पुलिस को कड़े निर्देश दिए हैं

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले तीन कार्यकाल में अपराध और अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति की खातिर काफी ख्याति अर्जित की थी, लेकिन अपने नए कार्यकाल की शुरुआत में ही उन्हें कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। सत्ता की बागडोर संभालने के तुरंत बाद राज्य में हत्या, अपहरण, लूट और डकैती सहित अन्य अपराध की घटनाओं में अचानक उछाल से सरकार सकते में है और मुख्यमंत्री ने ‘डैमेज कंट्रोल के लिए खुद ही कमान संभाल ली है। विधानसभा चुनाव जीतने के एक महीने के भीतर राज्य की राजधानी से लेकर छोटे शहरों तक अराजकता का माहौल है। मुख्यमंत्री को कानून-व्यवस्था पर लगातार तीन बैठकें करनी पड़ी हैं। सूत्रों के अनुसार, उन्होंने पुलिस अधिकारियों से कहा है कि वे हालात फौरन नियंत्रण में लायें या कार्रवाई का सामना करने को तैयार रहें।

दरअसल, मुख्यमंत्री के शपथ लेने के बाद से ही राज्य में कई ताबड़तोड़ घटनाएं हुई हैं, जो चिंता का कारण बनीं। पिछले दिनों हथियारबंद अपराधियों ने एक विद्यालय की शिक्षिका की पटना में सरेआम हत्या कर दी। डेहरी-ऑन-सोन में रहने वाली वह महिला राजधानी में अपने पति के साथ शादी की पहली सालगिरह मनाने आई थी। बदमाशों ने उसका पर्स छीनने की कोशिश की और विरोध करने पर आंख में गोली मार दी, जिससे महिला की मौके पर ही मृत्यु हो गई। एक अन्य घटना में, चावल मिल मालिक दो व्यवसायी भाई, राकेश कुमार गुप्ता और अमित कुमार गुप्ता अचानक रहस्यमय तरीके से गायब हो गए। उनके परिवार ने अनहोनी की आशंका जताई, लेकिन दस दिन से ज्यादा बीत जाने के बाद भी पटना पुलिस उनका पता नहीं लगा पाई। परिजनों को फिरौती के लिए अपहरण की आशंका है। 

पटना से दूर, उत्तर बिहार की सांस्कृतिक राजधानी दरभंगा में, स्थानीय पुलिस स्टेशन से कुछ ही दूर स्थित एक आभूषण की दुकान से दिनदहाड़े 7 करोड़ रुपये के गहने लूट लिए गए। इस दौरान अपराधियों ने 20 राउंड गोलियां भी चलायीं। इधर, खगड़िया जिले में अलग-अलग घटनाओं में  एक सत्ताधारी जद-यू और एक राजद कार्यकर्ता की हत्या ने राज्य पुलिस प्रशासन की नींदें उड़ा दीं। छपरा में एक पूर्व विधायक के पुत्र की भी हत्या हो गई। 

राज्य भर में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिसने न केवल विपक्ष बल्कि सत्तारूढ़ जद (यू)-भाजपा गठबंधन के कुछ नेताओं को भी पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाने का मौका दे दिया। बिहार भाजपा के अध्यक्ष और सांसद, डॉ. संजय जायसवाल, पार्टी के वरिष्ठ सांसद छेदी पासवान और दरभंगा के विधायक संजय सरावगी ने बिगड़ती स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। रोहतास में एक पेट्रोल पंप के मालिक के बेटे की हत्या के बाद पासवान ने वहां के पुलिस अधीक्षक को अक्षम बताकर उन पर तुरंत कार्रवाई करने के मांग की।   

नीतीश को कानून-व्यवस्था पर सहयोगी दलों के नेता ही घेरने लगे, तो विपक्ष भी हमलावर हो उठा है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव का कहना है कि जद (यू) और भाजपा के नेताओं ने तथाकथित जंगल राज के नाम पर लोगों को डराने की हमेशा कोशिश की है, लेकिन वे अब कुछ नहीं कह रहे हैं। उन्होंने ट्वीट किया, “हे भगवान, बिहार में बहुत ज्यादा ही सुशासन है।”

पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने भी आरोप लगाया कि बिहार में आजकल अपराधियों का आत्मविश्वास चरम पर है, जबकि मुख्यमंत्री का आत्मविश्वास बिलकुल नीचे। वे पूछती हैं, “जंगलराज चिल्लाने वाले कहां हैं?”

राजद ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा नेता महज नीतीश पर दबाव बनाने के लिए कानून-व्यवस्था का सवाल उठा रहे हैं। पार्टी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, “मुख्यमंत्री जो गृह विभाग संभाल रहे हैं, उस पर भाजपा की नजर थी, लेकिन नीतीश ने मना कर दिया।”

हालांकि जवाब में जद-यू प्रवक्ता तथा पूर्व सूचना-प्रसारण मंत्री मंत्री नीरज कुमार का कहना है कि तेजस्वी ने भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी करार दिए गए अपने पिता (लालू प्रसाद यादव) से राजनीतिक प्रशिक्षण प्राप्त किया है। वे कहते हैं, “तेजस्वी अबोध हैं, इसलिए जंगल राज और मंगल राज का अंतर नहीं समझ पाएंगे।”

नीरज जिक्र करते हैं कि 17 जुलाई 1997 को पटना हाइकोर्ट ने तत्कालीन राजद शासन के लिए ‘जंगलराज’  शब्द का इस्तेमाल किया था और उसी साल 5 अगस्त को यह भी कहा कि जंगल राज में भी कुछ नियम-कायदे होते हैं, लेकिन ऐसा लग रहा है कि बिहार में वह भी नहीं है।

सत्तारूढ़ दल का दावा है कि 2005 में राज्य में सत्ता में आने के बाद नीतीश ने बिहार में कानून-व्यवस्था बहाल करने में सफलता पाई है और इस कार्यकाल के दौरान भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा। राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार, जहां तक कानून-व्यवस्था का प्रश्न है, वे अपनी पूर्व की उपलब्धियों पर निश्चिंत नहीं रह सकते। हालांकि नीतीश, पुलिस के आला अधिकारियों के साथ लगातार मंत्रणा कर रहे हैं और अपराध की घटनाओं की रोकथाम के लिए उन्होंने कई कड़े दिशा-निर्देश भी दिए हैं। उन्होंने नामजद अपराधियों पर फौरन कार्रवाई करने और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को राज्य भर में रात में गश्त तेज करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, अपने क्षेत्र में किसी भी चूक के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने को भी कहा है। राज्य पुलिस मुख्यालय ने आइजी, डीआइजी और जिला एसपी को नियमित रूप से रात्रि गश्त लगाने के लिए भी कहा है।

इन उपायों से जल्द ही कानून-व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण में आएगी या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन नीतीश के अपने पास गृह विभाग रखने के कारण चुनौतियां वाकई बड़ी हैं। पूर्व में भी गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास ही रहा है, लेकिन राज्य के सियासी गलियारों में यह चर्चा आम है कि इस बार इसे भाजपा अपने खाते में चाहती थी।

दरअसल, इस बार विधानसभा चुनाव में 74 सीटों के साथ एनडीए गठबंधन में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। नीतीश के जद-यू को मात्र 43 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा। अपने संख्याबल के कारण भाजपा अपने दो विधायकों - तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी - को उपमुख्यमंत्री बनवाने में सफल रही, लेकिन नीतीश ने महत्वपूर्ण गृह मंत्रालय अपने पास ही रखा।

पहले दौर में एनडीए के 15 मंत्रियों ने शपथ ली है। बिहार में अधिकतम 36 मंत्री हो सकते हैं, इसलिए 21 और मंत्री बनने हैं। नीतीश का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार के लिए वे भाजपा के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।

राज्य में एनडीए के पहले के कायदे का अगर पालन किया जाएगा तो संख्याबल के आधार पर भाजपा के सर्वाधिक मंत्री बनने के आसार हैं, जिसके कारण उसका मंत्रिमंडल पर दबदबा कायम रहेगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद पार्टी के दो अन्य वरिष्ठ विधायकों और पूर्व मंत्रियों नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार के नए मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने की भी अटकलें हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस बार नीतीश मंत्रिमंडल में भाजपा अपने अधिकतर नए चेहरों को शामिल करने का मन बना चुकी है। जाहिर है, अगर ऐसा होता है तो नीतीश को भाजपा की बिलकुल नई टीम के साथ सरकार चलाना होगा।

मंत्रिमंडल का विस्तार अब 15 जनवरी को ‘खरमास’ के खत्म होने के बाद होने का अनुमान है। तब तक नीतीश के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे बिहार में बिगड़ती कानून-व्यवस्था पर अंकुश लगाएं और राज्य में वैसा ही अमन-चैन बहाल करें जिसेक लिए वे जाने जाते रहे हैं, ताकि उनके विरोधी सहित उनके सहयोगियों को भी उन पर निशाना साधने का मौका न मिल सके।

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