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अपनों को भी कंधा देने से गुरेज

कोरोना संक्रमित लोगों की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार से इनकार कर रहे अपने रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी
कोरोना का डरः मोहाली में एक अंत्येष्टि में गिने-चुने लोग ही पहुंचे

महामारी कई तरह की सामाजिक विद्रूपताएं भी लेकर आती है। यह भी सही हो सकता है कि हर महामारी के दौरान सामाजिक व्यवहार अलग-अलग-सा होता रहा हो, लेकिन ऐसी असंवेदनशीलता और बेरुखी की मिसाल इतिहास के किसी कालखंड में बमुश्किल ही मिली कि लोग अपनों को भी कंधा देने से कतराने लगें और अंतिम संस्कार लावारिश की तरह हो। दुनिया के दूसरे देशों से भी कई शवों को एक साथ दफनाने की तसवीरें सामने आई हैं, लेकिन रिश्तों की पक्की गांठ पर इतराने वाले भारत में ऐसे नजारे दिल दहलाने वाले हैं।

पिछले 20 दिनों में कोरोना विषाणु से खौफजदा समाज में अलगाव की ऐसी तस्वीरें तेजी से उभरी हैं। इंदौर में मुस्लिम युवकों द्वारा हिंदू बुजुर्ग महिला की अर्थी को कंधा दिए जाने के अपवाद को छोड़ दें तो कोरोना पीड़ितों के संस्कार में ही नहीं, बल्कि 24 मार्च को हुए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद घरों में दुबके लोग किसी करीबी रिश्तेदार, मित्र और पड़ोसी की सामान्य मौत होने पर भी अंतिम संस्कार में जाने से गुरेज कर रहे हैं। कर्फ्यू में सीलबंद शहरों की सीमाओं ने दूसरे शहरों से आने वाले रिश्तेदारों को अंतिम संस्कार में शामिल होने से भले ही रोक दिया है, पर कड़ी बंदिश न होने के बावजूद स्थानीय रिश्तेदार भी अंतिम संस्कार में जाने से बच रहे हैं। अंतिम संस्कार के समय आने वाले स्थानीय रिश्तेदारों, मित्रों, पड़ोसियों की संख्या दर्जनभर से भी कम रह गई है। पिछले दिनों ऐसे कई मामले सामने आए जब अर्थी उठाने के लिए चार कंधे भी मौके पर नहीं थे।

ताकि डर छंटेः एक कोरोना पीड़ित के अंतिम संस्कार में पंजाब के मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और बलबीर सिंह सिद्धू भी शामिल हुए

अमृतसर: गुरबानी से पूरी दुनिया को निहाल करने वाले पद्मश्री निर्मल सिंह कोरोना के कहर से सदा के लिए खामोश हो गए। अमृतसर के गुरुद्वारा श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) के प्रमुख रागी निर्मल सिंह, जिनकी हाजिरी में लोगों का हुजूम उमड़ता था, को आखिरी वक्त में अपने पैतृक गांव वेरका की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई। कोरोना फैलने से खौफजदा निर्मल सिंह के अपने ही गांववालों ने उनका अंतिम संस्कार नहीं होने दिया, तो साथ लगते दूसरे गांवों के लोगों ने भी साफ इनकार कर दिया। अंतिम संस्कार के लिए 21 घंटे दर-बदर भटकते लाचार बेटे को अपने पिता का अंतिम संस्कार रात आठ बजे एक खेत में करना पड़ा। जैसा रागी निर्मल सिंह का कद था, उसे देखते हुए कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि सामान्य हालात होते तो श्रद्धांजलि के लिए दो दिन तक लोगों की कतारें नहीं टूटतीं।

अमृतसर: 8 अप्रैल को ही नगर निगम के पूर्व अतिरिक्त कमिश्नर जसविंदर सिंह की एक निजी अस्पताल में कोरोना उपचार के दौरान मौत हो गई। उनके परिजनों ने शव लेने से इनकार किया तो प्रशासन ने अंतिम संस्कार कराया। जसविंदर सिंह की अर्थी को कंधा देने से लेकर मुखाग्नि देने वालों में नगर निगम के कर्मचारी ही थे। परिवार का कोई सदस्य अंतिम संस्कार के लिए श्‍मशानघाट नहीं पहुंचा। अंतिम अरदास के लिए ग्रंथी का प्रबंध भी तहसीलदार अर्चना ने किया। जसविंदर की बेटी अमृतसर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की छात्रा है।

लुधियाना: यहां शिमलापुरी की 70 वर्षीय महिला कमला की कोरोना के कारण मौत हो गई थी। चार घंटे तक अस्पताल प्रबंधन परेशान था कि घरवाले लाश ले जाएं, तो इस आइसोलेशन वार्ड में और मरीजों को लाया जाए। कोई नहीं आया तो कमला की लाश मुर्दाघर भेज दी गई। इस बीच बेटे को कई दफा सूचना दी गई कि मुर्दाघर से मां की लाश ले जाएं। 22 घंटे तक मुर्दाघर में पड़ी लाश को उठाने से बेटे ने आखिर इनकार कर दिया तो अस्पताल ने अंतिम संस्कार के लिए नगर निगम कर्मियों को बुलाया। अंतिम संस्कार के वक्त कमला का पूरा परिवार श्मशानघाट के बाहर अपनी गाड़ी में बैठा रहा।

 सामूहिक कब्रः अमेरिका के न्यूयॉर्क में कोरोना संक्रमण के शिकार लोगों का सामूहिक अंतिम संस्कार

मोहाली: मोहाली के नया गांव के 65 वर्षीय रिटायर्ड पुलिसकर्मी ओमप्रकाश की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई। अंतिम संस्कार के लिए पिता की पार्थिव देह को पीजीआइ से अकेला बेटा एंबुलेंस में मोहाली के श्मशानघाट लेकर पहुंचा। उसे उम्मीद थी कि एंबुलेंस के पीछे कुछ रिश्तेदार, पड़ोसी और पिता के दोस्त पहुंचेंगे। आखिरकार पिता के शव को एंबुलेंस से उतारने के लिए चार कंधे नहीं मिल पाए। मौके से एंबुलेंस का ड्राइवर भी चला गया। फोन करने पर नगर निगम कमिश्नर द्वारा जबरन भेजे गए दो सफाईकर्मी पहुंचे, एंबुलेंस और ओमप्रकाश के पार्थिव शरीर को सेनेटाइज़ किया पर कंधा देने से उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए। आखिर अकेले बेटे ने ही पिता को कंधे पर लाद कर इलेक्ट्रिक भट्ठी में रखा।

8 अप्रैल को जालंधर में कोरोना मरीज के अंतिम संस्कार का विरोध करने वाले 60 लोगों के खिलाफ आइपीसी की धारा 188, 269, 270, 271, 353, 186, 149 एपीडेमिक डिजीज एक्ट 1893 की धारा 3 और डिजॉस्टर मैनेजमेंट एक्ट 1996 की धारा 51 के तहत पुलिस ने मामला दर्ज किया।

लुधियाना के डीएमसी अस्पताल और कुंदन विद्या मंदिर स्कूल के पीछे स्थित श्मशानघाट मुक्ति धाम के केयर-टेकर रमेश कपूर के मुताबिक यहां एक मार्च से छह अप्रैल तक हुए 171 अंतिम संस्कारों में शामिल होने वालों की संख्या में 25 मार्च को लॉकडाउन के बाद से तेजी से गिरावट आई है। कपूर ने आउटलुक को बताया कि कोरोना और कर्फ्यू के बीच प्रशासन की सख्ती के चलते कई संस्कारों में शामिल होने वालों की संख्या एक दर्जन से भी कम थी, जबकि पहले अमूमन एक अंतिम संस्कार में 100 से 150 लोग शामिल हुआ करते थे। पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव सरवेश कौशल के मुताबिक खासकर कोरोना पीड़ितों की मृत्यु के बाद बेटों और करीबियों द्वारा अंतिम संस्कार से इनकार करने से समाज की ऐसी भयावह तसवीर सामने आई है जिससे पूरी इनसानियत शर्मसार है। कोरोना से जिंदगी की जंग हारने वाली लुधियाना की शिमलापुरी की 70 वर्षीय बुजुर्ग कमला की मौत के बाद सगा बेटा और अन्य परिजन ही आगे नहीं आए। उनके अंतिम संस्कार से लेकर श्रद्धांजलि तक का जिम्मा उठाने वाले लुधियाना के एडीसी इकबाल सिंह संधू ने गहरा दुख जाहिर करते हुए कहा कि जिस मां ने जन्म दिया उसके पार्थिव शरीर को कंधा न देने और संस्कार तक से दूरी बनाने की घटना बेहद शर्मसार करने वाली है। महिला का अंतिम संस्कार तो प्रशासन ने किया ही, उनकी आत्मा की शांति के लिए गुरुद्वारा बाबा दीप सिंह में अखंड पाठ भी प्रशासन ने कराया।

लुधियाना, जालंधर और अमृतसर में लायंस क्लब से जुड़े ट्रैफिक मार्शल अंतिम संस्कार के लिए आगे आए हैं। पंजाब के दो कैबिनेट मंत्रियों ने भी कोरोना से मरने वालों के संस्कार में शामिल होने की पहल की है। ऐसे दो संस्कारों में शामिल हुए पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू ने आउटलुक को बताया, “कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार स्थानीय प्रशासन की देख-रेख में कराए जा रहे हैं, संस्कार में शामिल होने से कोरोना संक्रमित होने की आशंका बेवजह है। रसायन लेप लगी कोरोना मरीज की देह का अंतिम संस्कार स्थानीय निकाय और श्मशानघाट के कर्मचारी पीपीई किट पहन कर करते हैं। संस्कार के बाद इनकी राख और अस्थि से कोरोना विषाणु फैलने का डर नहीं है। ऐसे मौकों पर शामिल होने वाले सामाजिक दूरी बनाए रखें तो यह बहुत सुरक्षित है। यही साबित करने मैं और मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी चरणजीत चन्नी ऐसे कुछ संस्कारों में शामिल हुए।” सिद्धू का कहना है कि जो औलादें अपने मां-बाप के अंतिम संस्कार से पीछे हटी हैं, उनका मां-बाप की संपत्ति पर भी कोई अधिकार नहीं है।

कोरोना से एकाएक हजारों मौतों के चलते इटली में कॉफिन में बंद लाशों के ढेर कब्रिस्तानों में ऐसे निपटाए जाने की तसवीरें सामने आईं जैसे डंपिंग ग्राउंड में कूड़ा निपटाया जा रहा हो। पर भारतीय संस्कृति में परिजनों द्वारा अपनों के ही अंतिम संस्कार से मुंह फेरने की घटनाएं खून के रिश्तों पर सवाल खड़े करती हैं। कोरोना तो देर-सबेर चला जाएगा पर कोरोना के दंश से दम तोड़ने वालों के अंतिम संस्कार से खून के जो रिश्ते तार-तार हुए हैं, वह कैसे जुड़ेंगे।

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