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“सरकारी अस्पताल का विकल्प नहीं”

कई लोगों ने कहा कि आप जरूरत से ज्यादा सावधानी बरत रही हैं, पर हमने स्क्रीनिंग जारी रखी, दो हफ्ते बाद ही पता चला कि वायरस पूरी दुनिया में फैल रहा है
के.के. शैलजा

 

शुरूआत में सबसे अधिक कोरोना संक्रमित मरीजों वाला केरल अब देश में 17वें नंबर पर आ गया है। महामारी से यहां मौतें भी कम हुई हैं। इसका काफी श्रेय प्रदेश की स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा को जाता है। टीचर नाम से मशहूर 65 साल की स्वास्थ्य मंत्री शैलजा ‘कोरोनावायरस नाशिनी’ और ‘रॉकस्टार हेल्थ मिनिस्टर’ नाम से भी जानी जाती हैं। उन्होंने इस महामारी पर कैसे नियंत्रण किया, लॉकडाउन में ढील को देखते हुए उनकी क्या तैयारी है, इन सब मसलों पर उनसे बात की आउटलुक के एस.के. सिंह ने। मुख्य अंशः

कोविड-19 से लड़ाई में केरल मॉडल को पूरी दुनिया में सराहा जा रहा है। आपकी राय में इस मॉडल का केंद्र क्या है?

सबसे महत्वपूर्ण हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य  प्रणाली है, जिससे कोरोनावायरस से निपटने में मदद मिली। जब हमारी सरकार आई तब 67 फीसदी लोग इलाज के लिए निजी अस्पतालों में जाते थे। निजी क्षेत्र में स्पेशिलिटी सेंटर जैसे अस्पताल अधिक थे। गांव में रहने वाले गरीबों को भी इन स्पेशिलिटी सेंटर में जाना पड़ता था, जहां छोटी-मोटी बीमारियों के लिए भी उनके ढेर सारे टेस्ट कराए जाते थे। हमने इस स्थिति को बदलने का निर्णय लिया। अल्मा अता डिक्लेरेशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के डिक्लेरेशन के अनुसार, प्राथमिक स्वास्थ सबसे महत्वपूर्ण है। शुरू में ही बीमारी को पकड़ना और उसकी रोकथाम जरूरी है। ‘आर्द्रम’ स्वास्थ्य मिशन के जरिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को परिवार स्वास्थ्य केंद्र में बदलने का फैसला किया। इसके लिए हमने इंग्लैंड और क्यूबा के सिस्टम का अध्ययन किया। हम चाहते थे कि स्वास्थ्य केंद्र पहुंचने के बाद मरीज को लगे कि वह अच्छी जगह आया है। इसलिए बढ़िया रिसेप्शन हॉल, टीवी, आधुनिक शौचालय, वाटर प्यूरीफायर आदि का इंतजाम किया गया। कोरोना संक्रमण फैलने से बहुत पहले हमने इन अस्पतालों में हैंडवाश की व्यवस्था की। हमने करीब 400 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को परिवार स्वास्थ्य केंद्रों में तब्दील किया, बाकी पर भी काम चल रहा है। तालुका और जिला स्तर के अस्पतालों को स्पेशलिटी अस्पताल बनाया। आज ये किसी कॉरपोरेट अस्पताल की तरह दिखते हैं। तालुका स्तर पर अभी 44 अस्पताल निर्माणाधीन हैं। इसी तरह, 2017 में हमने जिला स्तर पर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल स्थापित करने का निर्णय लिया।

शुरू में कोविड के सबसे ज्यादा मामले केरल में ही थे। अब यह 17वें नंबर पर है, मौतों की संख्या भी सिर्फ पांच है (24 मई तक)। यह कैसे संभव हुआ?

डब्ल्यूएचओ ने 18 जनवरी को कहा था कि चीन में कोरोनावायरस का संक्रमण फैल रहा है। केरल के अनेक छात्र वुहान में पढ़ते हैं। मुझे आशंका थी कि वुहान से लोग आ सकते हैं, इसलिए अधिकारियों से तैयारी शुरू करने को कहा। सभी जिला चिकित्सा अधिकारियों को संदेश भेजे। 23 जनवरी को हमने बैठक की और जिला स्तर पर भी बैठक करने के निर्देश दिए। 24 जनवरी को राज्य स्तरीय कंट्रोल रूम बनाया और 25 जनवरी को सभी जिले में कंट्रोल रूम बनाने के निर्देश दिए। अलग-अलग कार्यों के लिए हमने 18 टीम बनाई। 27 जनवरी को जब चीन से फ्लाइट यहां पहुंची तो हमारी स्क्रीनिंग टीम एयरपोर्ट पर मौजूद थी। हमें तीन लोगों में संक्रमण के लक्षण मिले। उन्हें अस्पताल में आइसोलेट किया गया और बाकी होम क्वारंटीन में भेजे गए। इस तरह हमने उसी समय संक्रमण को फैलने से रोक लिया।

शुरू में तो मामले कम थे, तब आपने इतनी सघन जांच का फैसला क्यों लिया?

हां, कई लोगों ने कहा कि आप जरूरत से ज्यादा सावधानी बरत रही हैं, लेकिन हमने एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग टीम को तैनात रखा। करीब दो हफ्ते बाद ही पता चला कि यह वायरस पूरी दुनिया में फैल रहा है। कुछ लोग 9 मार्च को इटली से लौटे थे, लेकिन तब इटली कोरोनावायरस का एपिसेंटर नहीं बना था। वहां से आया एक परिवार स्क्रीनिंग से बचकर निकल गया। उस समय तक भारत सरकार ने विदेश से आने वाले सभी लोगों की जांच का निर्देश नहीं दिया था, इसलिए हमें इमिग्रेशन क्लीयरेंस की रिपोर्ट नहीं मिलती थी। वह परिवार तीन-चार दिनों तक कई रिश्तेदारों से मिलता रहा। तभी एक व्यक्ति के गले में दर्द और बुखार हुआ तो वह हमारे एक अस्पताल में इलाज के लिए आया। डॉक्टरों के पूछने पर उसने बताया कि वह तो विदेश नहीं गया, लेकिन उसका एक करीबी रिश्तेदार इटली से आया है और पड़ोस में ही रहता है। हमने तत्काल उनके घर टीम भेजी और उन्हें अस्पताल लेकर आए। वे सब पॉजिटिव पाए गए। हमने यह देखा कि इटली से आने के बाद ये लोग किससे मिले।

केरल का कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग सिस्टम मजबूत माना जाता है। इसे कैसे विकसित किया?

निपाह वायरस के संक्रमण के समय हमें इसका अनुभव हुआ था। कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए हमारे पास अच्छी टीम है, इसे हम हेल्थ सर्विस की सीआईडी टीम कहते हैं। मरीज के नाम का खुलासा किए बगैर हमने कांटैक्ट ट्रेसिंग का बढ़िया सिस्टम तैयार किया है। हमने मरीजों को नंबर देकर (जैसे 1, 2, 3...) फ्लोचार्ट बनाया और अखबारों में प्रकाशित किया, बताया कि मरीज-1 इतनी तारीख को अमुक होटल में था। इसके बाद उस दौरान उस होटल में रहने वाले हमें फोन करने लगे। हमने उन लोगों को होम क्वारंटीन में रखा। हमने सभी कांटैक्ट का पता लगाया और कम्युनिटी स्प्रेड से बचे।

हाल में विदेश से अनेक लोग केरल आए। लॉकडाउन में भी ढील दी गई है। इसके लिए क्या तैयारी है?

दूसरे चरण में हमें 512 मरीज मिले, क्योंकि खाड़ी के अलावा फ्रांस, इंग्लैंड और इटली से भी लोग आ रहे थे। इनमें से 70 फीसदी विदेश से आने वाले और बाकी उनके संपर्क में आने वाले थे। अब समस्या ज्यादा गंभीर है। लॉकडाउन में ढील के साथ गतिविधियां बढ़ रही हैं। हमने सभी एयरपोर्ट पर सर्विलांस टीम तैनात कर रखी है। सड़क मार्ग और ट्रेन से आने वालों की भी जांच की जा रही है। जांच में अगर किसी में लक्षण पाए गए तो उसे अस्पताल भेजा जाता है, वर्ना होम क्वारंटीन में रखते हैं। कई बार सात दिनों तक इंस्टीट्यूशनल क्वारंटीन में रखा जाता है, उसके बाद होम क्वारंटीन में भेजते हैं।

शुरू में सभी राज्यों में टेस्टिंग किट और उपकरणों की कमी थी। आपने इस समस्या का क्या समाधान निकाला?

हमने जनवरी में ही किट और दूसरे उपकरण मंगाना शुरू कर दिया था। इन्हें बनाने वाली कंपनियों को पूरी दुनिया से ऑर्डर मिल रहे थे और इनकी उपलब्धता सीमित थी। इसलिए हमने सीमित जांच का फैसला किया। कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि केरल में ज्यादा जांच नहीं हो रही है, लेकिन हमने रणनीति के तहत ऐसा किया था। अमेरिका समेत कई देशों में अस्पताल आने वाले सभी लोगों की जांच की गई। इससे जांच सामग्री खत्म हो गई, और जब वास्तविक पॉजिटिव केस आने लगे तो उनके पास जांच किट की कमी पड़ गई। हम जिन्हें होम क्वारंटीन में भेजते हैं, स्वास्थ्यकर्मी उन पर लगातार निगाह रखते हैं। अगर उनमें संक्रमण का लक्षण मिला, तो हम उन्हें अस्पताल लाकर जांच करते हैं।

अभी तक कितने टेस्ट किए गए हैं और रोजाना कितने टेस्ट किए जा रहे हैं?

23 मई तक कुल 60 हजार टेस्ट किए गए। टेस्टिंग किट की उपलब्धता बढ़ने के साथ जांच बढ़ा रहे हैं। अब हम रोजाना लगभग 2,000 जांच कर रहे हैं, इसे और बढ़ाने पर भी विचार किया जा रहा है। हम स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसकर्मियों के सैंपल लेकर भी जांच करते हैं। हमें एंटीबॉडी टेस्ट के लिए नए किट का इंतजार है, उसके बाद ज्यादा टेस्टिंग कर सकेंगे।

कई राज्यों में अस्पताल उपकरणों की कमी की शिकायत कर रहे हैं। आपने इसका क्या समाधान निकाला?

हमने एक पोर्टल बनाया है। किस अस्पताल में कितने किट और अन्य उपकरण खत्म हुए और कितने बचे हैं, यह हमेशा पोर्टल पर उपलब्ध होता है। जिस अस्पताल में जिस चीज की कमी नजर आती है, उसे पहले ही भेज दिया जाता है।

केरल में प्रवासी मजदूरों की समस्या से जुड़ी खबरें कम ही आई हैं। इस समस्या को आपने कैसे हल किया?

हम उन्हें प्रवासी नहीं, अतिथि मजदूर मानते हैं। मुख्यमंत्री के आग्रह पर अतिथि मजदूरों की मदद के लिए करीब ढाई लाख लोग आगे आए। इन वालंटियर और स्थानीय निकायों की मदद से शेल्टर बनाए। वहां पहले हमने पका हुआ खाना दिया था, लेकिन मजदूरों ने कहा कि हमें खाना बनाने का सामान दे दिया जाए, हम खुद पका लेंगे। उन्हें खाद्य सामग्री मुहैया कराई जा रही है। शेल्टर में टीवी के इंतजाम भी किए गए हैं। लेकिन हमें समझना पड़ेगा कि ये लोग बेचैन हैं, घर जाना चाहते हैं।

मुख्यमंत्री ने 20,000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी, इस्तेमाल कहां हो रहा है?

लोगों के खाने-पीने के इंतजाम किए जा रहे हैं। लोगों के हाथ में कुछ पैसे रहें, इसके लिए समाज कल्याण योजनाओं के तहत जो भी भुगतान रुका था वह सब जारी किया गया। उचित सुरक्षा मानकों को अपनाते हुए मनरेगा और दूसरे कृषि कार्य भी शुरू कर रहे हैं ताकि लोगों को आमदनी हो सके। को-ऑपरेटिव बैंकों के जरिए गरीबों को रियायती कर्ज दिए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीयकृत और निजी क्षेत्र के बैंकों से भी इसके लिए आग्रह किया है।

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