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‘संकट में भी दूध की सप्लाई रखी बरकरार’

दूध की बड़ी मात्रा खपाने वाले हलवाई, आइसक्रीम निर्माता और अन्य उत्पाद बनाने वाले गायब
आर. एस. सोढ़ी

लॉकडाउन के दौरान दूध और इसके उत्पादों की सप्लाई को सुचारु रखना बड़ी चुनौती है। दूध की बड़ी मात्रा खपाने वाले हलवाई, आइसक्रीम निर्माता और अन्य उत्पाद बनाने वाले गायब हैं। इससे दूध उत्पादकों को नुकसान हो रहा है। कुछ उत्पाद हॉट केक बन गए तो कुछ गायब हो गए हैं। डेयरी क्षेत्र पर कोरोना महामारी के असर पर गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लि. (अमूल) के मैनेजिंग डायरेक्टर आर.एस. सोढ़ी से आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह ने बात की। प्रमुख अंशः

लॉकडाउन में अमूल की दूध की खरीद की क्या स्थिति है। क्या इसमें वृद्धि हुई है?

हम रोजाना औसतन 260 लाख लीटर दूध खरीद रहे हैं। इसमें से 210 लाख लीटर दूध गुजरात और 50 लाख लीटर बाकी राज्यों से खरीदा जा रहा है। इस समय आइसक्रीम निर्माताओं और हलवाइयों की खरीद बंद होने के कारण हमारी खरीद करीब आठ फीसदी बढ़ गई है। इसमें से 140 लाख लीटर ताजे दूध की बिक्री हो रही है। थैलियों और टेट्रा पैक में दूध की बिक्री भी बढ़ी है। दही, मक्खन, देसी घी, चीज और पनीर की बिक्री बढ़ी है लेकिन आइसक्रीम की 95 फीसदी घट गई है। बेवरेज और क्रीम की भी बिक्री लगभग खत्म हो गई है।

अगर कई उत्पादों की बिक्री लगभग खत्म हो गई है, तो बाकी दूध कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं?

ज्यादा बिक्री वाले उत्पादों का उत्पादन बढ़ा दिया है। बेबी फूड का उत्पादन किया जा रहा है। बाकी दूध से हम मिल्क पाउडर बना रहे हैं। गर्मियों में मिल्क पाउडर की मांग बढ़ेगी। लॉकडाउन के कारण घरों में दुग्ध उत्पादों की मांग बढ़ी है।

लॉकडाउन से दूध के संग्रह और अन्य गतिविधियों में कोई दिक्कत आ रही है?

दूध आवश्यक वस्तुओं में आता है, इसलिए इसके परिवहन और दूसरी गतिविधियों में दिक्कत नहीं है। बिक्री पर भी असर नहीं है। पिछले साल अप्रैल में जितनी बिक्री थी, इस साल भी उतनी बिक्री हो रही है। अब भी लोग घबराहट में ज्यादा खरीद कर रहे हैं। इससे कुछ उत्पादों की उपलब्धता में दिक्कतें हैं।

अमूल ने तो किसानों के लिए मूल्य में कोई बदलाव नहीं किया, लेकिन क्या प्राइवेट डेयरियों ने दूध की खरीद कीमत घटाई है?

महाराष्ट्र में दूध की खरीद कीमत छह से आठ रुपये प्रति लीटर तक कम हुई है। पूर्वोत्तर में भी खरीद मूल्य घटा है। सभी जगह मूल्य घटा है। लेकिन यह अस्थायी दौर है। निजी कंपनियों के मिल्क पाउडर और घी वगैरह बनाने का काम प्रभावित होने से कीमत में कमी आई है। लेकिन यह समस्या दस दिन से ज्यादा नहीं रहेगी। हालात रोजाना सुधर रहे हैं। प्राइवेट डेयरियों ने पूंजी फंसने से बचाने के लिए उत्पादन घटा दिया है।

क्या कोऑपरेटिव और प्राइवेट डेयरियों ने दूध की खरीद घटाई है?

इस समय सभी कोऑपरेटिव डेयरियों के पास 15 से 20 फीसदी ज्यादा दूध है, लेकिन निजी डेयरियों ने खरीद और कारोबार घटाया है। प्राइवेट डेयरियां जब अच्छा मुनाफा देखती हैं तो पूरी तरह सक्रिय हो जाती हैं लेकिन ऐसे मौके पर पीछे हट जाती हैं।

क्या आपको श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है?

ऐसी कोई समस्या नहीं है। हमारे भी आइसक्रीम प्लांट बंद हैं। ऐसे में हमने श्रमिकों और कर्मचारियों को मिल्क प्रोसेसिंग-पैकेजिंग और पनीर वगैरह के प्लांटों में लगा दिया है। मुंबई और दिल्ली में कुछ समस्या आई थी लेकिन हम श्रमिकों को खाने-पीने की पूरी सुविधा दे रहे हैं, इसलिए हमने जल्दी ही दिक्कत दूर कर ली।

मौजूदा चुनौतीपूर्ण दौर में आपने दूध सप्लाई दुरुस्त करने के लिए कैसी रणनीति बनाई?

हमारी प्रक्रिया शुरू होती है 36 लाख किसानों से और खत्म होती है दस लाख दुकानों पर। हमें स्थानीय प्रशासन से लेकर गृह मंत्रालय तक हर स्तर पर सहयोग मिला और हमें कहा गया कि दूध सप्लाई सुचारु रखी जाए। हमारे 5,000 दूध संग्रह केंद्रों से सप्लाई टैंकरों के जरिए खरीद करने और प्रोसेसिंग के बाद वितरण करने में एक घंटे की भी देरी नहीं हुई। कर्मचारियों, श्रमिकों और ड्राइवरों को प्रशासन से पास जारी करवाए गए। पैकेजिंग मैटेरियल के लिए हमने प्रशासन से आग्रह करके फैक्ट्रियां खुलवाईं और आवश्यक मेटीरियल की व्यवस्था की। हमारे लिए यह नई चुनौती नहीं है। नब्बे के दशक में गुजरात में दंगे हुए थे, तब हमें अपना कामकाज सुचारु रखने के लिए संबंधित अधिकारियों से संपर्क करना होता था।

आपने कोरोना वायरस के संक्रमण से अपनी सप्लाई चेन को कैसे बचाकर रखा?

हमने स्वास्थ्य विभाग से मदद ली। किसानों को जागरूक करने के लिए गांवों में बैनर लगाए, उन्हें बताया कि क्या करना है और क्या नहीं। दूध संग्रह के समय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं।

क्या अमूल ने अपनी मार्केटिंग और प्रचार रणनीति में भी बदलाव किया है?

कोरोना वायरस के चलते लोग समाचारों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। इसलिए हमने प्रचार रणनीति में बदलाव किया। जैसे ही रामायण और महाभारत के पुराने सीरियलों का प्रसारण शुरू हुआ, हम सामान्य मनोरंजन चैनलों की जगह न्यूज चैनलों पर विज्ञापन देने लगे। हमने प्रचार पर खर्च भी बढ़ा दिया, क्योंकि लोग घरों में बैठे हैं। दर्शकों का पूरा ध्यान टीवी कंटेंट, खासकर समाचारों पर है।

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