Advertisement

कोविड-19: वायरस फिर पड़ा भारी

कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या का रोजाना बन रहा रिकॉर्ड, वैक्सीन की कमी से लड़ाई हुई मुश्किल
जांच में भी तेजी जरूरीः दिल्ली में प्रवासी मजदूरों की टेस्टिंग करता स्वास्थ्यकर्मी

भारत में 4 अप्रैल को पहली बार कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या एक लाख के पार गई थी। उस दिन 1.03 लाख लोग संक्रमित पाए गए थे। उसके बाद रोजाना रिकॉर्ड बन रहे हैं और अब यह संख्या 1.7 लाख तक पहुंच गई है। दुनिया ने सबसे कम समय में कोविड-19 महामारी की वैक्सीन तैयार की, लेकिन महामारी ने तो जैसे वैक्सीन को ही चुनौती दे डाली है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा संक्रामक है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में पॉजिटिविटी रेट तीन हफ्ते में एक फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो गई है। एम्स दिल्ली के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि पिछले साल एक मरीज अपने संपर्क में आने वाले 30 से 40 फीसदी लोगों को संक्रमित करता था, इस बार 80 से 90 फीसदी लोग संक्रमित हो रहे हैं। यही कारण है कि कई बार पूरे परिवार की टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आ रही है।

महज एक हफ्ते में दैनिक संक्रमण की संख्या करीब 70 हजार बढ़ गई है। बिहार, असम और उत्तर प्रदेश में एक हफ्ते में संक्रमित मरीजों की संख्या करीब 300 फीसदी बढ़ गई। राजस्थान और झारखंड में करीब 200 फीसदी बढ़ी है। इस पर नियंत्रण के लिए दिल्ली-मुंबई समेत अनेक शहरों में आंशिक लॉकडाउन या कर्फ्यू लगा दिया गया है। रोजाना 50 हजार से अधिक मामले वाले महाराष्ट्र में तो पूर्ण लॉकडाउन पर विचार हो रहा है। कई राज्य बोर्ड परीक्षाओं की तारीख आगे बढ़ा चुके हैं, सीबीएसई भी इस पर विचार कर रहा है।

अभी जो नए मरीज आ रहे हैं उनमें फेफड़ों में संक्रमण की शिकायत अधिक है। यानी वायरस फेफड़ों तक जल्दी पहुंच रहा है। एक नई समस्या यह है कि 15 से 20 फीसदी मरीजों में सांस लेने में तकलीफ, ऑक्सीजन स्तर कम होने जैसे कोविड-19 के लक्षण के बावजूद टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आ रही है। इस बार 30 से 45 की उम्र के मरीज अधिक हैं। तेज बुखार, सूखी खांसी, सांस लेने में परेशानी जैसी समस्याएं ज्यादा हैं, लेकिन सूंघने की क्षमता और स्वाद की कमी तथा डायरिया जैसी समस्याएं भी बढ़ रही हैं।

डॉक्टरों का कहना है कि वायरस लगातार बदल रहा है, इसलिए इसकी प्रकृति के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल है। ग्लेनमार्क के वैज्ञानिक डॉ. रेहान अहमद कहते हैं, “जरूरी नहीं कि तेज बुखार और बदन दर्द हो तभी कोरोना की आशंका होगी। ऐसा ना होने पर भी आप संक्रमित हो सकते हैं। नमक और मिर्च का स्वाद नहीं मिलेगा। सूंघने की क्षमता भी कम हो जाती है। अगर ऐसे लक्षण आप देख रहे हैं तो तत्काल डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।”

इस बार अस्पताल पहुंचने वाले मरीज भी ज्यादा हैं। 9 अप्रैल को मंत्री समूह की बैठक में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि कुल एक्टिव केस में से 4.5 फीसदी ऑक्सीजन सपोर्ट पर, 2.3 फीसदी आइसीयू में और 0.4 फ़ीसदी वेंटिलेटर पर हैं। पिछले साल अगस्त में कुल एक्टिव मामलों में 2.4 फीसदी ऑक्सीजन सपोर्ट पर, 1.8 फीसदी आइसीयू में और 0.2 फीसदी वेंटिलेटर पर थे।

विशेषज्ञों के अनुसार कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने की वजह से संक्रमण तेजी से फैल रहा है। पिछले साल लोगों में डर था और वे प्रोटोकॉल का पालन कर रहे थे, इसलिए संक्रमण में गिरावट आई। दिसंबर से फरवरी के दौरान दैनिक संक्रमण की संख्या सैकड़ों में रह गई थी। इसलिए जो नए कोरोना सेंटर खोले गए थे, वे बंद कर दिए गए। उनकी मेंटिनेंस नहीं हो रही थी। अब अचानक डिमांड काफी बढ़ने से इंफ्रास्ट्रक्चर फिर चरमरा गया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 13 अप्रैल को सबसे ज्यादा 5.66 लाख एक्टिव केस महाराष्ट्र में थे। छत्तीसगढ़ में भी संख्या एक लाख पहुंचने वाली है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में एक्टिव मरीजों की संख्या 38 हजार से ऊपर है। कुल 12.64 लाख एक्टिव मरीजों में 81 फीसदी से ज्यादा इन नौ राज्यों के ही हैं।

वैक्सीन की किल्लत

बढ़ते मरीजों को देखते हुए दिल्ली और महाराष्ट्र ने 25 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन देने की मांग की थी, लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने यह कहते हुए उनकी मांग ठुकरा दी कि अभी लक्ष्य जरूरत के हिसाब से वैक्सीन लगाने की है। इसके बाद महाराष्ट्र, दिल्ली और पंजाब ने 30 अप्रैल तक रात का कर्फ्यू लगा दिया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि नाइट कर्फ्यू जैसे कदमों का सीमित असर होगा। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में कहा कि नाइट कर्फ्यू से जागरूकता में मदद मिलेगी।

45 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को दो से तीन महीने में वैक्सीन लगाने के लिए रोजाना 70 लाख डोज लगाने पड़ेंगे

अभी तक महामारी की कोई दवा नहीं तैयार हो पाई है। इसलिए एकमात्र सहारा वैक्सीन है, जिसकी कमी की शिकायत महाराष्ट्र समेत कई राज्य कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के नोएडा-गाजियाबाद समेत कई शहरों में अनेक अस्पतालों को वैक्सीन उपलब्ध नहीं होने का बोर्ड लगाना पड़ा। ओडिशा में न सिर्फ अनेक वैक्सीनेशन केंद्र बंद करने पड़े, बल्कि रोजाना वैक्सीनेशन ढाई लाख से घटाकर एक लाख करना पड़ा, ताकि वैक्सीन लगाना पूरी तरह बंद न हो जाए। लेकिन वैक्सीन की कमी की शिकायत को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ‘राजनीति’ करार दे दिया।

अभी भारत में सिर्फ दो वैक्सीन दी जा रही हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में तैयार कोवीशील्ड और भारत बायोटेक में बनी कोवैक्सीन। सीरम की मासिक क्षमता छह से सात करोड़ डोज और भारत बायोटेक की 60 लाख है। यानी रोजाना अधिकतम 25 लाख वैक्सीन बन सकती हैं, जबकि मांग काफी ज्यादा है। 12 अप्रैल तक 10 करोड़ लोगों को ही वैक्सीन लगाई जा सकी है। इसकी उपलब्धता कम से कम अप्रैल में नहीं बढ़ने वाली।

देश में भले वैक्सीन की कमी हो, लेकिन भारत से अभी तक 80 देशों को 6.4 करोड़ डोज वैक्सीन निर्यात की जा चुकी है

अगले दो महीने में सीरम की छमता 10 करोड़ और भारत बायोटेक की 1.5 करोड़ मासिक हो जाने की उम्मीद है। थोड़ी सी राहत की बात है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआइ) ने 12 अप्रैल को रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-V को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दे दी। इसके 91.6 फीसदी प्रभावी होने का दावा है। रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड ने भारतीय कंपनियों के साथ एक साल में 85 करोड़ डोज तैयार करने का समझौता किया है। इसमें से करीब आधा भारत में उपलब्ध होगा। डॉ रेड्डीज लैब रूस से यह वैक्सीन आयात कर भारत में बेच सकती है, लेकिन वह मई से पहले संभव नहीं लगता। भारत में उत्पादन शुरू होने में तीन महीने का वक्त लग सकता है।

अन्य वैक्सीन की बात करें तो जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन के लिए बायोलॉजिकल ई. का भारत में अध्ययन जल्दी शुरू होने की उम्मीद है। जाइडस कैडिला की वैक्सीन का फेज 3 ट्रायल चल रहा है। भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन का अभी पहले चरण का ट्रायल चल रहा है। नोवैक्स का भी ट्रायल शुरू हो गया है। भारत बायोटेक अपनी कोवैक्सीन की कांट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के लिए पैनेशिया बाइटेक के साथ बात कर रही है। सीरम ने भी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए सरकार से 3,000 करोड़ रुपये की मदद मांगी है। ब्राजील, मेक्सिको, थाईलैंड और वियतनाम में नई वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है।

वैक्सीन की बढ़ती मांग को देखते हुए केंद्र सरकार ने डब्ल्यूएचओ से अधिकृत या अमेरिका, यूरोप, इंग्लैंड और जापान के रेगुलेटर से मान्यता प्राप्त वैक्सीन को भारत में आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी देने का फैसला किया है। पहले वैक्सीन सिर्फ 100 लोगों को दी जाएगी, सात दिनों तक उन्हें ऑब्जर्वेशन में रखा जाएगा, उसके बाद ही बाकी लोगों को वह वैक्सीन दी जा सकेगी। हालांकि इस मंजूरी के बाद भी देखना होगा कि कितनी वैक्सीन का आयात हो पाता है, क्योंकि ज्यादातर देश पहले अपनी घरेलू जरूरतें पूरी कर रहे हैं। फाइजर और मॉडर्ना जैसी कंपनियों ने अमेरिका, कनाडा और यूरोपियन यूनियन से पहले ही बड़े पैमाने पर ऑर्डर ले रखा है।

भारतीय कंपनियों ने भी 6.4 करोड़ डोज वैक्सीन का निर्यात किया है। रायसीना डायलॉग 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 80 से ज्यादा देशों को वैक्सीन दी गई है। ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्युनाइजेशन ने मार्च-अप्रैल में नौ करोड़ डोज के ऑर्डर दिए ताकि गरीब देशों को वैक्सीन दी जा सके। इसके तहत भारत अभी तक 1.8 करोड़ डोज दे चुका है। भारत ने वैक्सीन मैत्री पहल के तहत भी कुछ देशों को एक करोड़ वैक्सीन दी थी, लेकिन 9 अप्रैल से उस पर कम से कम एक महीने के लिए रोक लग गई है। सीरम और भारत बायोटेक ने कॉमर्शियल सौदे भी किए हैं जिसके तहत दोनों ने 3.5 करोड़ से ज्यादा डोज दूसरे देशों को दिए हैं। नहीं देने पर उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है और पेनाल्टी लगाई जा सकती है।

उपलब्धता का संकटः कई राज्यों में वैक्सीन की कमी, लोगों को बिना टीका लगाए लौटना पड़ा

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर वैक्सीन निर्यात तत्काल रोकने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि यह अपने लोगों की जान की कीमत पर विदेश में वाहवाही लूटने की कोशिश है। हालांकि 12 अप्रैल को सरकार ने निर्णय लिया कि अभी निर्यात पर रोक नहीं लगाई जाएगी। दो हफ्ते बाद इस पर फिर विचार होगा। सरकार का मानना है कि निर्यात पर पाबंदी से वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचेगी।

विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन से प्रतिरोधी क्षमता तीन हफ्ते बाद ही विकसित हो पाती है। शरीर में एंटीबॉडी पूरी तरह तैयार होने और काम शुरू करने में आठ हफ्ते तक लग सकते हैं। अंतराल बढ़ाने पर ज्यादा लोगों को वैक्सीन दी जा सकती है। अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि अंतराल अधिक होने पर वैक्सीन ज्यादा प्रभावी हो सकती है। इंग्लैंड में अंतराल करीब तीन महीने का है इसके बावजूद वहां कोरोना से मरने वालों की दर कम हो गई है। कनाडा में चार महीने के अंतराल पर दूसरी वैक्सीन दी जा रही है। हालांकि भारत सरकार का कहना है कि आठ हफ्ते से ज्यादा का अंतराल फायदेमंद नहीं होगा।

वैक्सीन से शिकायत

कई देशों में वैक्सीन के बाद शरीर में खून का थक्का जमने की शिकायतें आई हैं। इस कारण अमेरिका ने जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन पर फिलहाल रोक लगा दी है। दक्षिण अफ्रीका ने भी रोक लगाई है। यूरोप ने इसका इस्तेमाल फिलहाल टाल दिया है। इंग्लैंड और यूरोपियन यूनियन के रेगुलेटर ने कहा है कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन और मस्तिष्क में खून का थक्का जमने के बीच संबंध हो सकता है। हालांकि रेगुलेटर का यह भी कहना है कि थक्का जमने की शिकायतें बहुत कम हैं और उसकी तुलना में वैक्सीन से लाभान्वित होने वाले बहुत ज्यादा हैं। भारत में सीरम इंस्टीट्यूट जो वैक्सीन (कोवीशील्ड) बना रही है, वह एस्ट्राजेनेका की ही है।

खबरों के मुताबिक 9 अप्रैल तक वैक्सीन लगाने के बाद भारत में करीब 20,000 लोगों में साइड इफेक्ट देखने को मिले। करीब 97 फीसदी में असर हल्का था, लेकिन कुछ मरीजों की हालत गंभीर हो गई। एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्यूनाइजेशन (एईएफआइ) की राष्ट्रीय समिति को कंपनियों की तरफ से दिए गए प्रेजेंटेशन के मुताबिक 31 मार्च तक गंभीर प्रभाव के 617 मामले सामने आए। इनमें से 180 की मौत हो गई। हालांकि अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं जिसके आधार पर यह कहा जाए कि मौत वैक्सीन की वजह से हुई है। एईएफआइ की राष्ट्रीय समिति 700 गंभीर मामलों की दोबारा जांच कर रही है। इसके बाद गाइडलाइन जारी किए जा सकते हैं।

कोविड-19 के कुछ मरीजों पर डॉक्टर एंटीवायरल दवा रेमडेसिविर का इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकार ने रविवार को इस दवा और इसे बनाने में इस्तेमाल होने वाली एक्टिव फार्मा इनग्रेडिएंट (एफपीआइ) के निर्यात पर पाबंदी लगा दी ताकि घरेलू मांग पूरी की जा सके। अमेरिकी दवा कंपनी गिलियड साइंसेज से लाइसेंस लेकर सात कंपनियां भारत में रेमडेसिविर बना रही हैं। इनकी क्षमता करीब 38 लाख यूनिट प्रति माह की है।

ड्रग रेगुलेटर ने जून 2020 में रेमडेसिविर के इस्तेमाल की अनुमति दी थी, लेकिन साथ ही खुले बाजार में इसकी अनियंत्रित बिक्री पर रोक लगाई थी। इसके बावजूद भाजपा गुजरात में इसे मुफ्त में बांट रही है। पार्टी का कहना है कि जरूरतमंदों को दवा देने और लोगों की जान बचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। हालांकि स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि यह दवा सिर्फ आपातकालीन इस्तेमाल के लिए है और वह भी डॉक्टर की सलाह पर।

इसके बावजूद लोग इसे खरीद कर घर में रख रहे हैं। इससे इसकी कालाबाजारी शुरू हो गई है और दस गुना तक अधिक कीमत ली जा रही है। ग्लेनमार्क के डॉ. अहमद कहते हैं, “रेमडेसिविर का संकट कृत्रिम है। लोग जिस तरह लाइन लगाकर इसे खरीद रहे हैं और स्टॉक कर रहे हैं, उसकी कोई जरूरत नहीं है। इसके साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा हैं। उसे समझे बिना लोग बस खरीद कर स्टॉक कर लेना चाहते हैं।” नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल के अनुसार घर में रहने वाले मरीजों को रेमडेसिविर न दिया जाए। अस्पतालों में भी यह उन्हीं मरीजों को दिया जाए जो ऑक्सीजन पर हैं।

डॉ. अहमद सैनिटाइजर के अंधाधुंध इस्तेमाल पर भी चिंता जताते हैं। वे कहते हैं, अच्छी क्वालिटी के अल्कोहल की कीमत 1,000 रुपये प्रति लीटर से अधिक होती है। सैनिटाइजर में सबसे खराब क्वालिटी का अल्कोहल इस्तेमाल किया जाता है। त्वचा शरीर में सबसे बड़ी ऑब्जर्वेंट होती है। त्वचा के रास्ते अल्कोहल शरीर के अंदर जाता है। लंबे समय में इसका असर मांसपेशियों की कमजोरी जोड़ों में दर्द के रूप में सामने आएगा।

नया स्ट्रेन खतरनाक

वायरस लगातार रूप बदल रहा है और उसके मुताबिक वैक्सीन में बदलाव करना भी चुनौती है। भारत में मार्च के अंत में डबल म्युटेंट स्ट्रेन (बी.1.617) का पता चला था। महाराष्ट्र, दिल्ली और पंजाब समेत कम से कम पांच राज्यों में यह पहुंच चुका है। अमेरिका, इंग्लैंड, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में भी यह पकड़ में आया है। दो म्युटेंट एक साथ होने के कारण इसे डबल म्युटेंट कहा जा रहा है।

कोरोना की दूसरी लहर जिस तरह बढ़ रही है उसके आधार पर विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि इसकी पीछे डबल म्युटेंट स्ट्रेन ही है। संभवतः इसी वजह से वैक्सीन लगाने के बाद भी लोग संक्रमित हो रहे हैं। फिर भी विशेषज्ञ वैक्सीन लगाने की सलाह दे रहे हैं क्योंकि इससे मरीज की हालत ज्यादा गंभीर नहीं होगी। विश्व में अभी तीन स्ट्रेन को लेकर चिंता है। इंग्लैंड का स्ट्रेन (बी.1.1.7), दक्षिण अफ्रीका का स्ट्रेन (बी.1.351) और ब्राजील का स्ट्रेन (पी.1)। इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के स्ट्रेन के बारे में पहली बार दिसंबर में पता चला। ब्राजील के स्ट्रेन की जानकारी जनवरी में मिली। मार्च तक दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन कम से कम 48 देशों में फैल चुका था।

कोरोना की दूसरी लहर के सामने अभी तक सभी उपाय नाकाफी साबित हुए हैं। फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक वैक्सीन नहीं मिलती तब तक मास्क, शारीरिक दूरी और सैनिटाइजेशन ही सबसे अच्छा उपाय हैं। कोकिलाबेन अस्पताल के सीनियर डॉ. काजी गजवान के अनुसार वैक्सीन लगने के बाद भी लोग संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन उनकी स्थिति ज्यादा खराब नहीं होती। इसलिए वैक्सीन लगाने के बाद भी बचाव के तरीके अपनाने चाहिए।

Advertisement
Advertisement
Advertisement