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संक्रमण की दूसरी लहर

भारत दुनिया में चौथे नंबर पर पहुंचा, काबू पाने की रणनीति नाकाम, एक और लॉकडाउन की आशंका
इंसानियत शर्मसार ः खुले मैदानों में कोविड-19 से मृत हुए लोगों के शव मिले

गुरुग्राम में रहने वाले रत्नेश त्रिपाठी को अपने बीमार पिता को देखने के लिए अपने गृहनगर जाने की बात डरा रही है। लेकिन जिस तरह कोरोना का संक्रमण देश में पैर पसार रहा है, उन परिस्थितियों में उनका यह डर बेजा नहीं है। दो महीने से ज्यादा लॉकडाउन होने के बाद भी भारत सबसे अधिक कोविड-19 संक्रमण के मामले में दुनिया में चौथे नंबर पर पहुंच गया है। डराने वाली बात यह है कि भारत में  इटली-स्पेन-ब्रिटेन से भी ज्यादा संक्रमण के मामले हो गए हैं, जबकि एक समय इटली, स्पेन जैसे देश पूरी दुनिया में चिंता का विषय बने हुए थे। 12 जून तक के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2,98,323 लोग संक्रमित हो चुके हैं। 8,501 लोगों की मौत हो गई है।

डर केवल यही नहीं है। अनलॉक-1 के साथ पूरी तरह से लॉकडाउन खत्म करने की तैयारी कर रही केंद्र सरकार के लिए जापान की रिसर्च फर्म नोमुरा एक और चेतावनी लेकर आई है। रिपोर्ट के अनुसार अनलॉक करने से भारत दुनिया के उन 15 देशों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है, जहां सबसे ज्यादा कोविड-19 संक्रमण फैलने का खतरा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में संक्रमण की दूसरी लहर आ सकती  है और सरकार को दोबारा लॉकडाउन करने का फैसला लेना पड़ सकता है। नोमुरा की इस आशंका को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के उस बयान से भी बल मिलता है, जिसमें उन्होंने 11 जून को कहा, “लोग संक्रमण रोकने के लिए जारी सख्ती का पालन नहीं करेंगे तो दोबारा लॉकडाउन लगाया जा सकता है।” असल में देश में कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा महाराष्ट्र ही प्रभावित हुआ है। 11 जून तक के आंकड़ों के अनुसार राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या 97,648 पहुंच गई है जबकि 3,590 लोगों की मौत हुई है। 

दोबारा संक्रमण फैलने की आशंका अब कारोबारियों में भी फैलने लगी है। देश भर के व्यापारियों के प्रमुख संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआइटी) ने दिल्ली के कारोबारियों से ऑनलाइन सुझाव मांगा है। उसमें संगठन ने पूछा है कि क्या बढ़ते संक्रमण को देखते हुए बाजार को एक बार फिर से बंद कर देना चाहिए। जाहिर है, संक्रमण काबू में आता न देख अब आम आदमी, कारोबारी और नेताओं में भी चिंताएं बढ़ गई हैं। बढ़ते खतरे को अब केंद्र सरकार भी महसूस कर रही है। सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट सचिव ने राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हुई बैठक में वेंटिलेटर, कोविड बेडों की कमी पर सवाल उठाए हैं। सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 69 जिले ऐसे हैं, जहां कोविड से मरने वाले मरीजों की संख्या कहीं ज्यादा है और वहां स्वास्‍थ्य व्यवस्‍था चरमराने की कगार पर है। इसमें महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात और उत्तर प्रदेश के जिले शामिल हैं। इन राज्यों में बढ़ते मामलों को देखते हुए जुलाई-अगस्त में काफी बुरी स्थिति हो सकती है।

बिगड़ती स्थिति को देखकर सुप्रीम कोर्ट को मामले पर स्वत: संज्ञान लेना पड़ा है। 12 जून को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकारों पर काफी सख्त टिप्पणी भी कर डाली है। दिल्ली में आए मामलों पर अदालत का कहना है, “शवों के साथ किस तरह का बर्ताव किया जा रहा है, शव कचरे में पाए जा रहे हैं। लोगों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है।” दिल्ली में ऐसे मामले भी सामने आए हैं कि मरीजों के परिवारों को भी मौत के बारे में सूचित नहीं किया जा रहा है। कुछ मामलों में, परिवार अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए हैं। बदइंतजामी का आलम देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु सरकार से जवाब मांगा है। हालात कितने बिगड़ रहे हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मौत के आंकड़ों को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं। दिल्ली में जहां राज्य सरकार के अनुसार 1,085 लोगों की मौत हुई है। वहीं राज्य के नगर निगमों में भाजपा शासित निगम पदाधिकारियों ने मौतों की संख्या 2,000 के करीब बताकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। पदाधिकारियों का कहना है कि कोरोना से हुई मौतों के रजिस्ट्रेशन की जो प्रक्रिया है, उसके आधार पर उनका आकलन है कि दिल्ली में मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है। बिगड़ती स्थिति को खुद दिल्ली सरकार भी मान रही है, उसका कहना है कि जुलाई के अंत तक दिल्ली में कोरोना से संक्रमितों की संख्या 5.5 लाख तक पहुंच जाएगी।  इसी तरह तमिलनाडु में भी कोरोना से हुई मौतों की संख्या पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।

इन परिस्थितियों के आधार पर ही नोमुरा की रिपोर्ट में भारत में संक्रमण की दूसरी लहर का खतरा जताया गया है। उसके अनुसार, लॉकडाउन में ढील के बाद कुछ देश तो पटरी पर आ रहे हैं। लेकिन भारत डेंजर जोन में पहुंच गया है। ऐसे में, लॉकडाउन खोलने के नतीजे खतरनाक हो सकते हैं। इन परिस्थितियों में अर्थव्यवस्था को खोलने से रोजाना संक्रमितों के मामले बढ़ेंगे। जनता के बीच डर फैलेगा और लोगों की गतिविधियां प्रभावित होंगी।

पल्मोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत गुप्ता का कहना है कि संक्रमण के मामले जिस दर से बढ़ रहे हैं, वह अब चिंता की वजह बनता जा रहा है। अकेले जून के 11 दिनों में एक लाख से ज्यादा मामले आ चुके हैं, यानी औसतन हर रोज 10 हजार मामले आ रहे हैं, जो बहुत ज्यादा है। भारत संक्रमण के नए मामले आने में रूस के बराबर पहुंच गया है। निश्चित तौर पर यह अच्छी तसवीर नहीं है। लेकिन अच्छी बात यह है कि भारत में रिकवरी रेट 49 फीसदी तक पहुंच रही है। ऐसे में, संक्रमण रोकने के लिए खास रणनीति पर काम करना होगा, जिसमें संक्रमित जोन में काफी सख्ती करनी होगी। एक सवाल कोविड-19 के इलाज खर्च का है। जहां पर कई निजी अस्पताल एक हफ्ते के इलाज के ल‌िए 5-6 लाख रुपये मरीज के भर्ती से पहले मांग रहे हैं।

बढ़ते संक्रमण और लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव ऐंड सोशल मेडिसिन और इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियोलॉजिस्ट के विशेषज्ञों की ओर से प्रधानमंत्री को एक रिपोर्ट सौंपी है। इसमें कहा गया है कि देशव्यापी लॉकडाउन महामारी के प्रसार को रोकने और प्रबंधन के लिए प्रभावी योजना बनाने के लिए किया गया था। लेकिन चौथे लॉकडाउन में दी गई राहतों के कारण संक्रमण तेजी से बढ़ा है। कम्युनिटी संक्रमण का भी खतरा बढ़ गया है। उनके अनुसार, सरकार ने इस दौर में महामारी से निपटने वाले विशेषज्ञों से ज्यादा नौकरशाहों पर ही भरोसा किया, जिसके चलते देश इस समय मानवीय संकट और महामारी के रूप में बड़ी कीमत चुका रहा है। जाहिर है, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां, विशेषज्ञ और दूसरे सभी लोग भारत में बढ़ते संक्रमण को नए खतरे के रूप में देख रहे हैं। अब केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे कैसे बढ़ते खतरे को रोकते हैं।

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पेशवरों के अनुसार सरकार ने इस दौर में नौकरशाहों पर ज्यादा भरोसा किया है, जिसके चलते देश मानवीय संकट और महामारी के रूप में बड़ी कीमत चुका रहा है

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