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बढ़ता ही जा रहा है खतरा

मई के आंकड़े काफी डरावने, टेस्ट कम होने से चिंता बढ़ी, कोरोना संक्रमण से जल्द राहत मिलने की उम्मीद बेहद कम
इलाज की समस्‍याः अस्पतालों में मरीजों की बढ़ती भीड़ से स्वास्‍थ्यकर्मी हलकान

उम्मीद और सरकारी दावा भी लगातार यही रहा है कि लॉकडाउन से कोरोनावायरस संक्रमण की शृंखला टूट जाएगी, कोविड-19 के मरीज घटते जाएंगे और मौत के आंकाड़ों पर अंकुश लग जाएगा। लेकिन लॉकडाउन-3 खत्म होने को है, चौथे की घंटी बजा दी गई है लेकिन संक्रमण छलांग मारने लगा है। मई के आंकड़े डरावने हैं। महीने का हर दिन मरीजों का नया रिकॉर्ड बना रहा है। महज 10 दिनों में कोरोना संक्रमण के मामले दोगुने हो गए हैं। 13 मई को दोपहर तक के आंकड़ों के अनुसार, देश में 74,954 लोग संक्रमण के शिकार हो चुके हैं और 2,437 लोगों की मौत हो चुकी है। इन आंकड़ों से एक भयावह तसवीर उभर रही है कि सबसे ज्यादा संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में 12वें नंबर पर पहुंच गया है।

सबसे अहम बात यह है कि संक्रमण की दर में भी तेजी से छलांग लगा रही है। लॉकडाउन के पहले चरण से लेकर तीसरे चरण तक संक्रमण दर चार फीसदी से ज्यादा बनी हुई है। इस डर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया के बयान से भी समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि “भारत में कोरोना संक्रमण का उच्चतम स्तर जून-जुलाई में हो सकती है।” ऐसे में, इस बात की भी आशंका है कि कहीं लॉकडाउन में ढील देने के बाद भारत में यूरोपीय देशों जैसी स्थिति न खड़ी हो जाए। कुछ विशेषज्ञों की यह भी राय है कि जल्दी ही संक्रमण के मामले अमेरिका जैसे हो सकते हैं। हालांकि इस मामले पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन का कहना है, “देश में 319 जिले पूरी तरह संक्रमण से मुक्त हैं। भारत में अमेरिका और इटली जैसी स्थिति उत्पन्न होने की कोई संभावना दिखाई नहीं देती। उपचार के बाद ठीक होने वाले मरीजों की दर सुधरकर 31.15 फीसदी हो गई है जो पिछले 15 दिनों की दर के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा है। भारत में कोविड-19 की मृत्यु दर 3.2 फीसदी है जबकि विश्व में यह 6.9 फीसदी है। इससे हम यह कह सकते हैं कि संक्रमण का दायरा कम हो रहा है।”

हालांकि कोरोना के संक्रमण की केवल यही हकीकत नहीं है। सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. धीरेन गुप्ता का कहना है कि भारत में टेस्टिंग बहुत कम हो रही है। असल में बिना लक्षण वाले मरीजों की पहचान बहुत जरूरी है। अभी हो यह रहा है कि किसी गली में एक संक्रमित पाया जा रहा है, तो पूरी गली को सील कर दिया जा रहा है। जबकि जरूरत वहां के अधिकतर लोगों की टेस्टिंग करने की है, क्योंकि भारत में घर में भी जिस तरह लोग रहने को मजबूर हैं, ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग आसान नहीं है। टेस्टिंग के जिस तरीके की बात डॉ. धीरेन कर रहे हैं, वैसा ही हाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के रेड जोन का भी है। मसलन, हेल्थ वर्कर वहां जाकर रैपिड टेस्टिंग नहीं कर रहे हैं। बल्कि वे लोगों से ही पूछ रहे हैं कि आपके घर में कोई ऐसा व्यक्ति तो नहीं है, जिसे सर्दी-जुखाम के लक्षण हैं, अगर ऐसा कोई व्यक्ति है तो हमें बताएं, हम उसकी जांच करेंगे। इसके विपरीत आइसीएमआर की रिपोर्ट दावा करती है कि देश में 80 फीसदी संक्रमित ऐसे हैं, जिनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं पाए गए हैं। साफ है ऐसे में बहुत से लोगों की टेस्टिंग नहीं हो पा रही है।  बिना लक्षण वाले मामले बढ़ने पर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी चिंता जता चुके हैं।

असल में भारत में 13 मार्च से बड़े पैमाने पर टेस्टिंग होनी शुरू हुई है। कोविड-19 डॉट ओआरजी की रिपोर्ट के अनुसार, जब 24 मार्च को लॉकडाउन के पहले चरण का ऐलान किया गया था, उस वक्त 22,694 लोगों की टेस्टिंग हुई थी, उसमें से 2.54 फीसदी यानी 571 लोग संक्रमित पाए गए थे। अब यह दर चार फीसदी को भी पार कर चुकी है। एक सवाल और उठ रहा है कि भारत में आबादी की तुलना में टेस्टिंग बहुत कम की जा रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि प्रति 10 लाख आबादी पर भारत में टेस्टिंग की संख्या पाकिस्तान से भी कम है। भारत में जहां यह संख्या 1,275 है, वहीं पाकिस्तान में यह संख्या 1,438 है। इस पैमाने पर भारत काफी निचले पायदान पर है।

लेकिन दूसरे देशों खासकर यूरोप और अमेरिका में हो रही टेस्टिंग के आंकड़े हमसे काफी ऊपर हैं। मसलन, अमेरिका में प्रति दस लाख 30,017, स्पेन में 52,781, इटली में 44,221, जर्मनी में 32,891 और ईरान में 7,328 लोगों की टेस्टिंग की जा रही है। इसी डर को पलमोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत गुप्ता भी उठाते हैं। उनका कहना है कि कम संख्या में टेस्टिंग का सीधा मतलब है कि संक्रमण के वास्तिवक मामले सामने नहीं आएंगे। ऊपर से बिना लक्षण वाले मरीजों का अलग खतरा है। इस तरह संक्रमण बढ़ सकता है।

इसी तरह सबसे ज्यादा संक्रमण पाए जाने वाले देशों की तुलना में भी भारत में कम टेस्टिंग हो रही है। वर्ल्डमीटर डॉट ओआरजी (13 मई दोपहर तक) के अनुसार, भारत में 17.59  लाख से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग की जा चुकी है। वहीं अमेरिका में 99.35 लाख, रूस में 43 लाख, जर्मनी में 27.55 लाख और इटली में 26.73 लाख से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग की गई है। इन सभी आंकड़ों से साफ है कि सबसे ज्यादा संक्रमण वाले देशों की आबादी के अनुपात में भारत में टेस्टिंग नहीं की जा रही है। ऐसे में अगर उस स्तर तक टेस्टिंग पहुंचती है तो स्थिति काफी चिंताजनक हो सकती है। टेस्ट न होने से यह भी आशंका घर करने लगी है कि संक्रमण स्टेज-3 यानी सामुदायिक फैलाव की स्थिति में पहुंच गया हो और हमें इसकी जानकारी ही नहीं हो। अगर ऐसा हुआ या होता है तो हमारे यहां स्वास्‍थ्य ढांचे की जो स्थिति है, उससे स्थिति डरावनी हो सकती है। विश्व स्वास्‍थ्य संगठन भी बार-बार यह कह रहा है कि लॉकडाउन के सीमित फायदे हैं, ज्यादा से ज्यादा टेस्ट और इलाज ही संक्रमण रोकने में कामयाब हो सकता है।

10 शहरों में आधे मामले

पिछले साढ़े तीन महीने में एक डरावनी तसवीर सामने आई है कि देश के बड़े औद्योगिक शहर बुरी तरह कोरोनावायरस के चंगुल में फंस गए हैं। संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले मुंबई में आए हैं। 13 मई दोपहर तक वहां 1,4897 मामले आ चुके हैं। उसके बाद दिल्ली में 7,639, अहमदाबाद में 6,353, चेन्नै में 4,882, पुणे में 2,997 और इंदौर में 2,016 संक्रमण के मामले आ चुके हैं। शहरों में मामले बढ़ने पर डॉ. प्रशांत कहते हैं, “घनी आबादी की वजह से वहां संक्रमण तेजी से बढ़ा है। इसके अलावा ये शहर दुनिया से ज्यादा जुड़े हुए हैं, इसका भी यहां असर हुआ है। लेकिन स्थिति अगर जल्द नियंत्रण में नहीं आई तो हालत बेकाबू भी हो सकते हैं।” जाहिर है, कोरोना का खतरा लंबे समय तक नहीं जाने वाला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद यह कह चुके हैं, “हमें इसके साथ जीना सीखना होगा, क्योंकि इसकी लड़ाई लंबी है।”

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कम संख्या में टेस्टिंग का सीधा मतलब है कि संक्रमण के वास्तिवक मामले सामने नहीं आएंगे। इस तरह संक्रमण बढ़ता जा सकता है

 

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