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इलाज भी ऑनलाइन

संकट के दौर में शुरू टेलीकंसल्टेंसी सेवा आगे भी जारी रहने की उम्मीद
समाधानः मरीजों का आना मुश्किल हुआ तो डॉक्टर दूर बैठे देने लगे सलाह

कोरोना से जंग में सामाजिक दूरी कायम रखना एक बड़ी समस्या है, जिसका सामना चिकित्साकर्मियों को करना पड़ रहा है। कोरोना संक्रमितों और कुछ इमरजेंसी सेवाओं को छोड़कर देश के तमाम अस्पतालों की ओपीडी सेवाएं करीब ढाई महीने तक ठप रहीं। जब गैर-कोविड मरीजों की संख्या बढ़ने लगी तो इलाज के विकल्प तलाशे जाने  लगे। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेज (एम्स) और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एेंड रिसर्च (पीजीआइएमईआर) जैसे प्रतिष्ठानों ने ओपीडी सेवा बहाल किए बिना मरीजों को टेलीकंसल्टेंसी के जरिए घर बैठे राहत देने का प्रयास किया।

संकट की इस घड़ी में टेलीमेडिसिन सेवाएं काफी हद तक कारगर साबित हुईं और हालात सामान्य होने पर भी इनके जारी रहने के आसार हैं। करीब 10 करोड़ लोगों तक पहुंच वाले आरोग्य सेतु ऐप में भी ऑनलाइन माध्यम से डॉक्टर की सलाह का प्रावधान किया जा रहा है। इस ऐप में जोड़े गए ‘आरोग्य सेतु मित्र’ के जरिए टेलीमेडिसिन की सुविधा प्राप्त होगी। राज्यों ने भी टेलीमेडिसिन के जरिए ओपीडी सेवाएं बहाल करने के प्रयास तेज किए।

20 मई से टेलीकंसल्टेंसी सेवाएं शुरू करने वाले पीजीआइ चंडीगढ़ के निदेशक डॉ. जगत राम ने आउटलुक को बताया, “देश भर के स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों का जोर कोरोना संक्रमितों को बचाने पर रहा, ऐसे में इमरजेंसी को छोड़कर बहुत सी स्वास्थ्य सेवाएं स्थगित भी करनी पड़ीं। ओपीडी में सामान्य दिनों में रोजाना 15 से 20 हजार मरीजों की आवाजाही बंद होने की सूरत में टेलीकंसल्टेंसी सेवाओं के जरिए व्हाट्सएप पर रिपोर्ट देखने के बाद मरीजों को परामर्श दिए गए। इस माध्यम से प्रतिदिन तीन से चार हजार मरीजों को सेवाएं दी जा सकीं। उम्मीद है कि हालात सामान्य होने के बाद भी टेलीकंसल्टेंसी सेवाओं का विस्तार जारी रहेगा।”

‘जनसहायक’ मोबाइल ऐप के जरिए कोरोना संकटकाल में टेलीमेडिसिन सेवा शुरू करने वाले हरियाणा के 979 विशेषज्ञ चिकित्सकों ने टेलीमेडिसिन परामर्श के लिए दो महीने में करीब 90,000 लोगों को सेवाएं दीं। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के मुताबिक, “मल्टीमीडिया नेटवर्किंग टेलीमेडिसिन के जरिए 40 विभिन्न सेवाएं और लगभग तीस प्रकार की क्लिनिकल सेवाएं सुलभ कराई गई हैं। मल्टीमीडिया नेटवर्किंग की मदद से एक डिजिटल कोड के जरिए मरीज के इलाज संबंधी जांच रिपोर्ट की जानकारी डाक्टर अपलोड कर फोन पर ही परामर्श सेवा देने में सफल रहे हैं।” उन्होंने भी उम्मीद जताई कि कोरोना काल में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुई मल्टीमीडिया नेटवर्किंग टेलीमेडिसिन सेवा का विस्तार जारी रहेगा। इससे हालात सामान्य होने पर भी अस्पतालों की ओपीडी में होने वाली भीड़ कम की जा सकेगी और दूरदराज से आने वाले लोग घर बैठे इलाज की सुविधा प्राप्त कर सकेंगे।

बठिंडा स्थित एम्स के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. सतीश गुप्ता के मुताबिक, कोरोनावायरस को लेकर लगाए गए कर्फ्यू के दौरान लोगों को एम्स अस्पताल आकर रजिस्ट्रेशन कराने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए अस्पताल ने पहल करते हुए टेलीमेडिसिन सेवा शुरू की। उन्होंने बताया कि एम्स के डॉक्टर टेलीफोन पर मरीज से 15 मिनट तक बात कर उनकी बीमारी के बारे में जानकारी लेते हैं और दवा बताते हैं। ओपीडी की भीड़ कम करने के लिए यह सुविधा हमेशा के लिए ही शुरू की गई है।

इधर 1,365 तंदुरुस्त पंजाब स्वास्थ्य केंद्रों (एचडब्ल्यूसी) के बाद पंजाब सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 300 स्वास्थ्य केन्द्रों को टेलीमेडिसिन हब से जोड़ने की परियोजना शुरू की है। इससे लोगों को हर बार इलाज के लिए बड़े अस्पताल जाने की जरूरत कम पड़ेगी। पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू ने बताया कि ये सेवाएं हब और स्‍पोक मॉडल के माध्‍यम से दी जा रही हैं। टेलीमेडिसिन कार्यक्रम चलाने के लिए सीडैक के ई-संजीवनी ऐप का उपयोग किया जा रहा है। सिद्धू ने कहा कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी वीडियो कॉलिंग के जरिए हब के चिकित्सा अधिकारियों से संपर्क साधते हैं और उनसे ऐप पर मिले सुझाव के अनुसार रोगियों को दवाओं की जानकारी देते हैं। इन केंद्रों पर 27 जरूरी दवाएं और छह तरह की जांच सेवा उपलब्‍ध हैं। चंडीगढ़ में पांच डॉक्टरों और एक टेलीमेडिसिन ऑपरेटर (टीएमओ) की निगरानी में टेलीमेडिसिन हब स्थापित किया गया है।

टेलीमेडिसिन की चुनौतियां

इतनी पहल के बावजूद टेलीकंसल्टेंसी और टेलीमेडिसिन अब भी आसान नहीं लगती है। इसके लिए विभिन्न किस्म के डिजिटल कैमरों और अन्य आधुनिक उपकरणों की जरूरत पड़ती है जो जिला स्तरीय छोटे अस्पतालों में उपलब्ध नहीं होते। ब्रॉड बैंड की मदद से एक्सरे, सीटी स्कैन और एमआरआइ फिल्म, हृदय तथा नाड़ी की धड़कनें सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठे विशेषज्ञों तक पहुंचती हैं। लेकिन दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी कमजोर होने के कारण इसमें काफी समस्याएं आती हैं।

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