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ई-कॉमर्स की चांदी पर झंझट कई

बाजार जाना हुआ मुश्किल तो ऑनलाइन शॉपिंग के पौ बारह, नए खरीदार आए, नए शहरों में बढ़ा कारोबार
आवरण कथा/ई-कॉमर्स

दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले शाहिद की दुनिया लॉकडाउन में पूरी तरह थम गई, लेकिन जीवन नहीं थमा। बस दुकान-बाजार-ऑफिस की जगह वर्चुअल संसार ने ले ली। लॉकडाउन के पहले और दूसरे चरण में वे घर से बिलकुल नहीं निकले। उन्हें जरूरत सिर्फ खाने-पीने के सामान और कुछ दवाओं की थी, जिसे वे ऑनलाइन ऑर्डर देकर मंगवाते रहे। ऑफिस का काम घर से और बेटी की पढ़ाई भी ऑनलाइन क्लास से होने लगी। लॉकडाउन के तीसरे चरण में जब कुछ ढील दी गई, तब शाहिद भी घर से निकले और जरूरत की दूसरी चीजें खरीदीं। यह बदलाव अकेले शाहिद के जीवन में नहीं बल्कि करोड़ों लोगों के जीवन में आया। एक तो लॉकडाउन और दूसरा महामारी का डर, दोनों का मिला-जुला असर हुआ कि लोगों ने घर से निकलना बहुत कम कर दिया। ऐसे में उनका सहारा बना ई-कॉमर्स। पहले जो लोग ई-कॉमर्स पर थोड़ा बहुत सामान खरीदते थे, वे जरूरत का लगभग सारा सामान वहीं खरीदने लगे। जिन्होंने पहले कभी ऑनलाइन खरीदारी नहीं की थी उन्होंने भी इसे आजमाया। इसे आजमाने में ज्यादा उम्र के वे लोग भी पीछे नहीं रहे जो पहले दुकान जाकर ही सामान खरीदने को सबसे अच्छा तरीका मानते थे। इस बदलाव ने रिटेल बिजनेस के अनेक तौर-तरीके भी बदल दिए।

लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में तो ई-कॉमर्स कंपनियों को भी सिर्फ ग्रॉसरी, दवा और हेल्थकेयर का सामान बेचने की अनुमति थी। इसीलिए इन चीजों के अलावा अन्य सामान बेचने वाले रिटेलर की बिक्री लगभग बंद हो गई। कमी तो जरूरी वस्तुओं की बिक्री करने वाले रिटेलर के बिजनेस में भी आई। सरकार ने 40 दिन के लॉकडाउन के बाद जब ई-कॉमर्स कंपनियों को 4 मई से ऑरेंज और ग्रीन जोन में सभी तरह की वस्तुएं बेचने की अनुमति दे दी तब स्थिति थोड़ी सुधरी। दिल्ली, मुंबई, पुणे, हैदराबाद, बेंगलूरू जैसे बड़े शहरों के अनेक इलाके अब भी रेड जोन में हैं, इसलिए वहां सिर्फ जरूरी वस्तुओं की ही बिक्री हो पा रही है। आखिर पांच करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले देश के 1.5 करोड़ सामान्य रिटेल स्टोर की बिक्री जब महामारी के चलते प्रभावित हुई, तो ऑनलाइन सामान बेचने वाले इससे कैसे बच सकते थे।

रिसर्च और एडवाइजरी फर्म फॉरेस्टर के सीनियर फोरकास्ट विश्लेषक सतीश मीणा ने आउटलुक को बताया कि सप्लाई चेन में बाधा, स्टॉक की दिक्कतें, डिलीवरी में परेशानी और ग्रॉसरी तथा पर्सनल केयर के अलावा बाकी वस्तुओं की मांग में कमी के कारण ऑनलाइन रिटेलर्स को लॉकडाउन की अवधि में एक अरब डॉलर की मांग का नुकसान हो सकता है। फॉरेस्टर के अनुसार 2019 में भारत में ऑनलाइन रिटेल बिक्री (सिनेमा टिकट समेत) 33.5 अरब डॉलर की हुई थी। कोविड-19 से पहले 2020 में इसके 26 फीसदी बढ़ने का अनुमान था, लेकिन अब सिर्फ पांच फीसदी बढ़ोतरी की उम्मीद है।

किस तरह के नए ट्रेंड

इस दौरान ई-कॉमर्स में कई नए ट्रेंड उभरे। कुछ लोगों ने पहली बार ऑनलाइन खरीदारी की तो अनेक ने ऑनलाइन शॉपिंग बढ़ा दी। छोटे शहरों में भी इसका चलन बढ़ा। लंदन स्थित मार्केट रिसर्च फर्म मिंटेल ने भारत में एक सर्वे के बाद बताया कि लॉकडाउन के दौरान 35 से 54 साल की उम्र वाले 41 फीसदी लोग ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे थे। तुलनात्मक रूप से 18 से 34 आयु वर्ग के 30 फीसदी लोग ही ऑनलाइन सामान खरीद रहे थे। ज्यादा उम्र वाले जो लोग पहले ऑनलाइन से दूर रहते थे, उनमें इसका चलन तेजी से बढ़ा है। मार्केट रिसर्च और डाटा एनालिटिक्स फर्म यूजीओवी ने भी एक सर्वे किया, जिसमें 21 फीसदी लोगों ने कहा कि लॉकडाउन खत्म होने के बावजूद अभी वे दुकान नहीं जाएंगे। टियर-1 शहरों में 51 फीसदी और टियर 2 तथा टियर 3 शहरों में 41 फीसदी लोगों ने कहा कि वे ऑनलाइन शॉपिंग जारी रखेंगे।

ग्रोफर्स के सीईओ और संस्थापक अलबिंदर ढींडसा ने आउटलुक को बताया कि नॉन-मेट्रो शहरों से ग्रॉसरी की ऑनलाइन डिमांड काफी तेजी से बढ़ी। इंदौर, आगरा, पानीपत जैसे शहरों में मांग 54 फीसदी बढ़ गई। लोग रोजाना खाने-पीने वाली वस्तुओं, डिटर्जेंट और स्नैक्स की खरीदारी ज्यादा मात्रा में कर रहे हैं। स्वास्थ्य और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट की मांग भी महामारी से पहले की तुलना में ज्यादा है। बिग बास्केट पर भी ग्राहकों की खरीदारी की औसत वैल्यू महामारी से पहले की तुलना में पांच से दस फीसदी बढ़ी है। ढींडसा के अनुसार लॉकडाउन के पहले महीने जो ग्राहक उनके प्लेटफॉर्म पर आए थे, उनमें से 62 फीसदी अब भी बने हुए हैं। नए ग्राहक सिर्फ पुराने शहरों से ही नहीं आए। पुराने बाजारों में भी पहली बार ऑनलाइन ग्रॉसरी खरीदने वाले 64 फीसदी और पहली बार ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले 15 फीसदी हैं।

ग्राहक तो बदले ही, परिस्थितियों को देखते हुए कंपनियों को भी अपने बिजनेस का तरीका बदलना पड़ा। फ्यूचर ग्रुप, स्पेंसर्स रिटेल, मेट्रो कैश ऐंड कैरी और वॉलमार्ट जैसे पारंपरिक और बड़े स्टोर भी अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए ऑनलाइन का रास्ता तलाशते नजर आए। स्पेंसर्स रिटेल ने फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विग्गी, टैक्सी एग्रीगेटर उबर और बाइक टैक्सी स्टार्टअप रैपीडो के साथ समझौता किया। कई राज्यों ने दुकानों पर भीड़ होने के कारण शराब की होम डिलीवरी की अनुमति दी, तो जोमाटो और स्विग्गी जैसे प्लेटफॉर्म ने भी इसमें उतरने का फैसला किया। लिकहब नाम का स्टार्टअप पहले लोगों को सिर्फ शराब के बारे में जानकारी मुहैया कराता था। जब राज्यों ने होम डिलीवरी की अनुमति दी, तो यह भी इस बिजनेस में उतर गई। लिकहब के संस्थापक और सीईओ आर्यन सोलंकी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन में ढील के बाद जैसे ही दुकानें खोलने की अनुमति मिली, बिक्री पहले की तुलना में 120 फीसदी तक पहुंच गई, लेकिन उसके बाद यह सामान्य दिनों के मुकाबले 40 फीसदी रह गई है। दुकानदारों का कहना है कि महामारी के डर और समय की पाबंदी के कारण ग्राहक कम आ रहे हैं। होम डिलीवरी से बिक्री बढ़ सकती है। यह भी संभव है कि आपको जिस ब्रांड की शराब चाहिए वह आपके इलाके में उपलब्ध न हो, और जहां इसकी उपलब्धता है वहां आपके लिए जाना मुश्किल हो। ऐसी परिस्थितियों में भी होम डिलीवरी कारगर हो सकती है।

एक और बदलाव हाइजीन को लेकर हुआ है। फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म जोमाटो के प्रवक्ता ने बताया कि 10,000 से अधिक रेस्तरां में डिलीवरी देने वालों के शरीर का तापमान जांचने और 70,000 से अधिक रेस्तरां में हैंड सैनिटाइजर की सुविधा शुरू की गई। इसके अलावा आरोग्य सेतु ऐप और मास्क का इस्तेमाल जरूरी किया गया। डिलीवरी करने वालों को रोजाना लॉगइन करने से पहले इस बात का स्वयं-प्रमाणपत्र देना पड़ता है कि उन्होंने अपने मास्क और बैग को सैनिटाइज किया है।

लॉकडाउन में शुरू में मांग

ग्रोफर्स के अलबिंदर ढींडसा ने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में जब लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे थे, तब ग्रॉसरी की मांग काफी तेजी से बढ़ी। मुंबई, बेंगलूरू, पुणे और अहमदाबाद में 80 फीसदी और दिल्ली-एनसीआर तथा हैदराबाद में 60 फीसदी बढ़ोतरी हुई। ऑर्डर की संख्या 45 फीसदी और ऑर्डर की औसत वैल्यू 18 फीसदी बढ़ गई। सबसे ज्यादा मांग हाइजीन कैटेगरी में ही थी- सैनिटाइजर की मांग 400 फीसदी, हैंडवॉश की 120 फीसदी और साबुन की 70 फीसदी बढ़ गई। शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाले शहद और च्यवनप्राश जैसे आयुर्वेदिक उत्पादों में भी 60 फीसदी अधिक मांग थी। फ्लिपकार्ट पर भी ग्रॉसरी, सैनिटाइजेशन और हाइजीन प्रोडक्ट की डिमांड ही ज्यादा रही।

लॉकडाउन में ढील के साथ ही कॉमर्स कंपनियों को ग्रॉसरी के अलावा दूसरे सामान बेचने की भी इजाजत दी गई। अमेजन इंडिया के प्रवक्ता ने बताया कि ग्रॉसरी सामान बेचने वाले अमेजन पैंट्री पर टियर 2 और टियर 3 शहरों से मांग दोगुना हो गई है। अंबाला, अनंतपुर, बीजापुर, कुडप्पा और इरोड जैसे शहरों से मांग में पांच गुना तक बढ़ोतरी है। ग्रॉसरी के अलावा कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, किचन और होम अप्लायंस, स्मार्ट डिवाइस, लैपटॉप, मोबाइल फोन, फोन एसेसरी और पर्सनल ग्रूमिंग प्रोडक्ट की डिमांड आ रही है। पूरे देश में वर्चुअल क्लास चल रहे हैं, इसलिए छात्र, शिक्षक और माता-पिता ऐसे प्रोडक्ट तलाश रहे हैं जिनसे पढ़ाई-लिखाई में मदद मिले। अमेजन डॉट इन पर सर्च के ट्रेंड से पता चलता है कि घर में पढ़ाई-लिखाई के लिए जरूरी चीजों में हेडफोन और ईयर फोन की सर्चिंग 1.7 गुना, स्टेशनरी की 1.2 गुना, लैपटॉप, टेबलेट, माउस और कीबोर्ड की दोगुना, प्रिंटर की 1.3 गुना, राउटर की तीन गुना और स्टडी टेबल की 2.5 गुना बढ़ी है।

फ्लिपकार्ट के अनुसार, लॉकडाउन में ढील के बाद मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक के समान, होम अप्लायंसेज और किताबों की मांग फिर से निकलने लगी है। बिग बास्केट पर गैर-जरूरी वस्तुओं और ब्यूटी प्रोडक्ट की बिक्री घटी है। जोमाटो ने बताया कि लॉकडाउन-4 के बाद दो हफ्ते में तेजी से रिकवरी हुई है।

समस्याएं और समाधान

लॉकडाउन की घोषणा अचानक हुई थी, इसलिए सामान की उपलब्धता की समस्या के साथ कर्मचारियों की भी कमी होने लगी। तब इसके समाधान के लिए भी कंपनियों ने तरीके निकाले। ग्रोफर्स ने टेक्सटाइल, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में नौकरी खोने वालों को तलाशा और वेयरहाउस तथा डिलीवरी स्टाफ के तौर पर 3,000 लोगों की भर्ती की। बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए यह जरूरी था। बिग बास्केट ने सिर्फ जरूरी वस्तुओं पर फोकस करने का फैसला किया और हर कैटेगरी में सिर्फ लोकप्रिय ब्रांड वाले प्रोडक्ट ही रखे। फूड डिलीवरी कंपनियों के सामने कच्चे माल की समस्या आई। हालांकि लॉकडाउन में ढील के साथ यह समस्या कम होती गई। जोमाटो प्रवक्ता के अनुसार, कच्चे माल की उपलब्धता को देखते हुए रेस्तरां पार्टनर ने अपना मेन्यू नए सिरे से तैयार किया। रेस्तरां पार्टनर की कच्चे माल की परेशानी दूर करने के लिए जोमाटो ने उन्हें अपने हाइपरप्योर स्टोर से जोड़ा और कच्चा माल सीधे किसानों से खरीदकर उपलब्ध कराने लगी।

ग्रामीण इलाकों में लॉकडाउन के दौरान जरूरी वस्तुओं की डिलीवरी के लिए सरकार ने करीब 2,000 कॉमन सर्विस सेंटर को जोड़ने का फैसला किया। देश में करीब 3.8 लाख कॉमन सर्विस सेंटर हैं और इनकी पहुंच 60 करोड़ लोगों तक है। ग्राहक इन सर्विस सेंटर को ऐप के जरिए ऑर्डर देते हैं और ये उन तक सामान पहुंचाने की व्यवस्था करते हैं।

आगे क्या उम्मीद

ग्रोफर्स के अलबिंदर ढींडसा ने बताया कि लॉकडाउन में डील के बाद भी ऊंची मांग बनी हुई है। उम्मीद है कि महामारी से पहले की तुलना में 30 फीसदी अधिक मांग बनी रहेगी। महामारी से पहले की तुलना में ऑर्डर वैल्यू भी औसतन 40 फीसदी बढ़ी है। फॉरेस्टर के सतीश मीणा भी मानते हैं कि ग्रॉसरी की ऑनलाइन बिक्री की रफ्तार आगे भी बनी रहने की उम्मीद है। हालांकि कुल ऑनलाइन रिटेल में ग्रॉसरी की हिस्सेदारी छोटी है। यह 2019 में दो अरब डॉलर से भी कम थी। ऑनलाइन रिटेल में स्मार्टफोन, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, फैशन और अप्लायंसेज की बिक्री ज्यादा होती रही है, लेकिन करोड़ों लोगों की नौकरियां जाने और वेतन घटने से फिलहाल इस सेगमेंट में सुस्ती के आसार हैं। सप्लाई चेन और इन्वेंटरी की दिक्कतों के कारण भी ऑनलाइन रिटेलर्स को ग्राहकों को आपूर्ति करने में परेशानी होगी।

यह स्थिति सिर्फ भारत में नहीं, पूरी दुनिया में है। फॉरेस्टर का अनुमान है कि 2020 में वैश्विक रिटेल बिक्री 2019 की तुलना में 9.6 फीसदी यानी 2.1 लाख करोड़ डॉलर कम होगी। हालात ज्यादा खराब हुए तो नुकसान 3.1 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है। महामारी से पहले के स्तर तक पहुंचने में रिटेलर्स को चार साल लग सकते हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित चीन होगा, वहां रिटेल बिक्री पिछले साल की तुलना में 14.7 फीसदी यानी 658 अरब डॉलर कम हो सकती है। एशिया-प्रशांत देशों में भारत में कठिन लॉकडाउन के चलते असर ज्यादा होगा। ऑनलाइन रिटेल बिक्री में दुनिया भर में 360 अरब डॉलर का नुकसान होने का अंदेशा है। हालात ज्यादा खराब हुए तो नुकसान 510 अरब डॉलर का हो सकता है। भारत के शहरों में गैर-कृषि क्षेत्र में नियमित वेतन पाने वाले 37 फीसदी श्रमिक अनौपचारिक हैं। इनमें अनेक बेरोजगार हो गए हैं, जिसका सीधा असर मांग पर दिखेगा। इसलिए भारत की जीडीपी में 10 फीसदी और रोजगार में आठ फीसदी हिस्सेदारी वाले रिटेल सेक्टर में कब तेजी लौटेगी, अभी कहना मुश्किल है। जैसा कि फॉरेस्टर के सतीश मीणा कहते हैं, इस साल त्योहारों में मांग फिर से बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर 2021 में ही मांग बढ़ेगी। फिर भी ई-कॉमर्स में जिस तेजी से बदलाव हुए हैं, उन्हें देखते हुए व्लादिमीर लेनिन की एक सदी पहले कही यह बात सही जान पड़ती है, “कई बार दशकों बीत जाते हैं और कोई बदलाव नहीं होता, और कई बार कुछ हफ्तों में ही दशकों के बदलाव हो जाते हैं।”

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नॉन-मेट्रो शहरों से ग्रॉसरी की ऑनलाइन डिमांड 54 फीसदी बढ़ गई, पुराने बाजारों में भी पहली बार ऑनलाइन ग्रॉसरी खरीदने वाले 64 फीसदी और पहली बार ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले 15 फीसदी हैं

अलबिंदर ढींडसा, संस्थापक और सीईओ, ग्रोफर्स

 

सप्लाई चेन में बाधा, स्टॉक की दिक्कतें, डिलीवरी में परेशानी और ग्रॉसरी के अलावा बाकी वस्तुओं की मांग में कमी से ऑनलाइन रिटेलर्स को लॉकडाउन की अवधि में एक अरब डॉलर की मांग का नुकसान होने का अंदेशा

सतीश मीणा, सीनियर फोरकास्ट एनालिस्ट, फॉरेस्टर

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37% हिस्सेदारी डिजिटल कॉमर्स में ई-रिटेल की

2,37,124 करोड़ रुपये का पूरा डिजिटल कॉमर्स

73,845 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी ई-रिटेल की

(स्रोतः आइएएमएआइ-कैंटर आइएमआरबी, आंकड़े दिसंबर 2018 के)

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ऑनलाइन खरीदारी में धोखाधड़ी

ऑनलाइन खरीदारी के साथ ऑनलाइन भुगतान भी बढ़ा है। बड़ी और चर्चित वेबसाइट पर तो समस्या नहीं, लेकिन अनेक नई वेबसाइट ज्यादा डिस्काउंट का लालच दे रही हैं। जयपुर पुलिस के साइबर क्राइम विशेषज्ञ मुकेश चौधरी ने आउटलुक से कहा कि ज्यादा डिस्काउंट के लालच में किसी नई वेबसाइट पर पेमेंट से बचना चाहिए। ऐसे मामलों में कैश ऑन डिलीवरी का विकल्प बेहतर होगा। अगर किसी नई वेबसाइट पर ऑनलाइन पेमेंट करना ही है तो सबसे सुरक्षित तरीका है नेट बैंकिंग। इसमें यूजर अपने बैंक की वेबसाइट पर रीडायरेक्ट हो जाता है। वहां पेमेंट करने के लिए लॉगइन करना पड़ता है। अगर नुकसान हुआ भी तो यूजर ने जितना भुगतान किया है उतना ही होगा, हैकर उससे अधिक रकम नहीं निकाल सकता है।

केपीएमजी इंडिया में फॉरेंसिक सर्विसेज की पार्टनर एवं सह-प्रमुख मनीषा गर्ग के अनुसार ई-कॉमर्स में कई तरह के फ्रॉड देखने को मिल रहे हैं। यह किसी संस्थान के भीतर और बाहर, दोनों जगह हो सकता है। संस्थान के भीतर फ्रॉड का एक उदाहरण सप्लायर की तरफ से खराब क्वालिटी के सामान की बिक्री है। आमतौर पर यह सेल्स और डिस्ट्रीब्यूशन, खरीद और क्वालिटी कंप्लायंस डिपार्टमेंट में कमी से होता है। बाहरी फ्रॉड में डिलीवरी एजेंट के स्तर पर गड़बड़ी, असली की जगह नकली सामान की डिलीवरी आदि शामिल हैं। मनीषा कहती हैं, “फ्रॉड रिस्क असेसमेंट और स्मार्ट टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से संदिग्ध लेन-देन को पहचाना जा सकता है। बिजनेस प्रतिष्ठानों को थर्ड पार्टी से सिस्टम की नियमित जांच करानी चाहिए, इससे उनका ईकोसिस्टम सुरक्षित बना रहेगा। ई-कॉमर्स में बड़ी संख्या में लोगों की भर्तियां होती हैं। ऑपरेशन और वरिष्ठ स्तर, दोनों में कर्मचारियों की उचित स्क्रीनिंग होनी चाहिए। वरिष्ठ स्तर पर नियुक्तियों में यह खासतौर से जरूरी है। अगर कोई ऑनलाइन फ्रॉड होता है, तो उसकी तत्काल जांच की व्यवस्था होनी चाहिए, इससे भविष्य में ऐसी किसी घटना से बचा जा सकेगा।”

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