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सरकारों, सियासी दलों को भाए डिजिटल मंच

कैबिनेट बैठकों से लेकर रैलियों तक सब कुछ ऑनलाइन हुआ, विपक्ष ने भी ऑनलाइन ही निभाई भूमिका
पहली बारः मजदूरों के मुद्दे पर सोनिया गांधी ने 19 मई को 22 विपक्षी दलों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बैठक की

यूं तो सरकारी तंत्र में कोई भी बदलाव बड़ा मुश्किल होता है, लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते एक बदलाव बड़ी तेजी से हुआ है। पिछले करीब तीन महीने में केंद्र, राज्य सरकारों और सियासी दलों की बहुत सी गतिविधियों का डिजिटाइजेशन हुआ है। सरकारों के स्तर पर हुआ यह बदलाव ‘गुड गवर्नेंस’ की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। लॉकडाउन के दौरान आवाजाही के लिए लोगों को ई-पास जारी करने की प्रक्रिया केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा केंद्रीकृत किए जाने से कुछ ही घंटों के भीतर लोगों को ई-पास जारी करना संभव हुआ। कोरोना महामारी के प्रति जागरूकता और सावधानी के लिए 2 अप्रैल को नीति आयोग और नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआइसी) द्वारा 12 भाषाओं में जारी किया गया आरोग्य सेतु ऐप 40 दिनों में 10 करोड़ लोगों तक पहुंच गया। हालांकि इसकी एक वजह यह भी रही कि गृह मंत्रालय ने इसे डाउनलोड करना सरकारी और निजी क्षेत्र के सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया।

शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की कैबिनेट की बैठकें और विपक्षी दलों के नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस भी जूम और स्काइप जैसे ऐप पर डिजिटल हो गई। नेताओं ने ऐप के जरिए ही जनता के साथ अपना संवाद कायम रखा। गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार विधानसभा को देखते हुए 7 जून को रैली भी वर्चुअल कर डाली। टि्वटर, फेसबुक लाइव और यूट्‍यूब पर उनकी ई-जनसभा का सीधा प्रसारण किया गया। इसके बाद उन्होंने 9 जून को वर्चुअल जनसभा के जरिए पश्चिम बंगाल में लोगों को संबोधित किया। राज्य में 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं। कोरोना का प्रकोप जल्दी खत्म होता नहीं लगता, इसलिए संभव है कि दूसरे राजनीतिक दल भी आने वाले दिनों में वर्चुअल जनसभाएं करें। हालांकि ऐसी वर्चुअल जनसभाएं कितनी फायदेमंद होंगी, इनसे राजनीतिक दलों को वोट हासिल करने में कितनी मदद मिलेगी, यह कहना मुश्किल है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि इस तरीके से हम यह जान सकेंगे कि पार्टी अपने संसाधनों के बल पर कितने लोगों तक पहुंच बना सकती है। भाजपा की पहल पर कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने आउटलुक से बातचीत में कहा, “जब देश कोरोना संकट से जूझ रहा है, तब डिजिटल मंच पर भाजपा का एक साल के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाना और सियासी रैलियां शुरू करना अनैतिक और अमानवीय है।”

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या दूसरी ऑनलाइन तकनीक के उपयोग में विपक्षी दल भी पीछे नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 19 मई को मजदूरों के मुद्दे पर 22 विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक की। सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने 3 जून को पहली बार पार्टी पोलित ब्यूरो की वर्चुअल मीटिंग की। इन सबके बावजूद, भारत में राजनीति का जो तौर-तरीका रहा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि वर्चुअल जनसभाएं वास्तविक रैलियों का पूरक हो सकती हैं, ये उनका विकल्प नहीं बन सकतीं। इसका सबसे बड़ा कारण है इंटरनेट की पहुंच और इसका इस्तेमाल। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की नवम्बर 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 50.4 करोड़ सक्रिय इंटरनेट यूजर हैं। इनमें से लगभग 70 फीसदी रोजाना इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ऐसे लोग शहरों में अधिक हैं। ग्रामीण इलाकों में अब भी इंटरनेट की स्पीड बड़ी समस्या है। जहां मोबाइल पर वॉयस कॉल नेटवर्क के लिए लोगों को जद्दोजहद करना पड़ता हो, वहां इंटरनेट पर अच्छी स्पीड की अभी कल्पना ही की जा सकती है।

लिंक्ड इन पर प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी ने भी कहा, “मैंने भी लॉकडाउन के दिनों में ऐसे बदलावों को अपनाया। वक्त की जरूरत है कि हम ऐसे कारोबार और जीवनशैली के बारे में सोचें जिसे आसानी से अपनाया जा सके...। कोविड-19 के बाद की दुनिया में आइटी का प्रभाव लोगों के जीवन पर पड़ा है। आइटी नौकरशाही के अनुक्रमों को ध्वस्त करती है, बिचौलियों को समाप्त करती है और कल्याण योजनाओं को गति प्रदान करती है।” सरकारी विभागों में कामकाज को डिजिटल बनाने का सकारात्मक असर हुआ है। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने लॉकडाउन की अवधि में आधा दर्जन से अधिक ऐप लांच कर स्कूली और उच्च शिक्षा को बनाए रखने के प्रयास किए। केंद्र और राज्य सरकारों की अनेक कल्याणकारी योजनाओं में लाभार्थियों के खाते में अनुदान, भत्ते आदि का भुगतान और किसानों को उपयोगी सूचनाएं देने जैसी पहल ने भी लोगों को इंटरनेट अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है।

शारीरिक दूरी की अनिवार्यता के चलते स्वास्थ्य, पुलिस और अन्य विभागों ने भी तेजी से डिजिटाइजेशन को अपनाया है। ऑनलाइन का उपयोग संकट की इस घड़ी में जितनी तेजी से बढ़ा, तीन महीने पहले उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। आउटलुक से बातचीत में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि इस संकट से राज्य को ढाई महीने में 15,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है पर शिक्षा, स्वास्थ्य और गवर्नेंस के क्षेत्र में आइटी की करीब एक दर्जन परियोजनाओं ने इस कदर गति पकड़ी है कि जो परियोजनाएं तीन-चार साल में शुरू होनी थीं, वे तीन महीने में ही शुरू हो गई हैं। शहरों और कस्बों की सरकारी स्कूली शिक्षा प्रणाली का काफी हद तक डिजिटाइजेशन हुआ है। सरकारी विभागों में भी ई-गवर्नेंस ने तेजी से जगह बना ली है। ‘सरल हरियाणा’ के तहत अभी 12 विभागों में 102 ई-सर्विसेज हैं, सितंबर तक 14 विभागों की करीब 180 सेवाएं डिजिटल हो जाएंगी। जनवरी 2021 तक हरियाणा देश का पहला राज्य होगा जहां सभी 380 से अधिक सेवाओं का डिजिटाइजेशन होगा।

आगे भी घर से काम

कोरोना खत्म होने के बाद जनजीवन सामान्य होने पर भी केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों-कर्मचारियों को निकट भविष्य में अलग-अलग समय पर काम करना पड़ सकता है। इसे देखते हुए कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने कर्मचारियों के लिए ‘घर से काम’ करने के संबंध में एक मसौदा तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि केंद्र के 48.34 लाख अधिकारियों और कर्मचारियों को नीतिगत रूप से एक साल में 15 दिन के लिए घर से काम करने का विकल्प दिया जा सकता है। मसौदे में कहा गया है कि जो मंत्रालय या विभाग ई-कार्यालय मॉड्यूल का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, वे समयबद्ध तरीके से अपने सचिवालय और अधीनस्थ कार्यालयों में इसका शीघ्र क्रियान्वयन करेंगे। अभी करीब 75 मंत्रालयों के विभाग ई-कार्यालय मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं। घर से काम करते हुए गोपनीय दस्तावेज प्राप्त नहीं किए जा सकेंगे।

ई-गवर्नेंस को इतनी जल्दी इसलिए अपनाया जा सका क्योंकि आइटी के रूप में इसका इन्फ्रास्ट्रक्चर काफी हद तक तैयार था। टेक महिंद्रा में कॉरपोरेट मामलों के प्रेसीडेंट सुजीत बक्शी का कहना है, “कोविड-19 ने दुनिया को बिजनेस ट्रांजिशन के लिए प्रेरित किया है। आइटी ने अर्थव्यवस्था की रीढ़ के रूप में इस संकट का तुरंत जवाब दिया, क्योंकि उद्योग तैयार था और डिजिटाइजेशन की दिशा में पहले से काम कर रहा था।”

एक्चुअल से वर्चुअल हुई दुनिया के खतरे भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ा खतरा डाटा में सेंधमारी का है। वर्चुअल काम करने वालों की बढ़ती तादाद के साथ हैकर्स और साइबर अपराध का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा है। भारतीय साइबर स्पेस की सुरक्षा के लिए तमाम साइबर हमलों का मुकाबला करने वाली एजेंसी इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी-इन) ने निजी मोबाइल फोन सुरक्षित रखने को लेकर एक दर्जन से अधिक सुझाव दिए हैं। जिस तरह ऑनलाइन के दूसरे इस्तेमाल में खतरे हैं, उसी तरह सियासी दलों के लिए वर्चुअल जनसभा या बड़े पैमाने पर होने वाली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भी खतरे हैं। हैकर ऐसी कॉन्फ्रेंस में चुपचाप घुसकर सारी बातें सुन सकता है और सभा में बाधा भी डाल सकता है। किसी सभा का वीडियो सोशल मीडिया पर डालने में भी खतरा है। इसमें ‘डीप फेक’ का जोखिम है। एक व्यक्ति के वीडियो पर दूसरे की आवाज डालकर उसे सोशल मीडिया पर फैलाया जा सकता है। वर्चुअल मीडिया के इस्तेमाल में यह राजनीतिक दलों के लिए काफी खतरनाक हो सकता है।

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कोविड संकट के समय गवर्नेंस के क्षेत्र में करीब एक दर्जन आइटी परियोजनाओं ने इस कदर गति पकड़ी है कि जो परियोजनाएं अगले तीन-चार साल में शुरू होनी थीं, वे पिछले तीन महीने में शुरू हो गई हैं

मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा

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