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वर्चुअल दुनिया का दौर

कोविड-19 संकट में टेक्नोलॉजी ने नए आयाम खोले, लेकिन डिजिटल डिवाइड की खाई बड़ी चुनौती
आवरण कथा/डिजिटल दुनिया

जब चीन में 31 दिसंबर 2019 को कोरोना संक्रमण का पहला मामला मिला था, तो किसी ने कल्पना न की होगी कि अगले 150 दिनों में ऐसा कुछ होगा कि पूरी दुनिया ही बदल जाएगी। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। लोगों ने पहली बार देशव्यापी लॉकडाउन देखा, नेताओं ने लोगों से दूरी बना ली, सोशल डिस्टेंसिंग जीवन का हिस्सा बन गई, तीन से चार साल के बच्चों को भी ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करनी पड़ी, लोगों को यह भी एहसास हुआ कि घर में रहकर भी ऑफिस का काम हो सकता है, बिना अस्पताल गए डॉक्टर से सलाह ली जा सकती है, 15-20 लोगों के बीच शादियां की जा सकती हैं। साफ है कि कोरोना संक्रमण ने हमारे जीवन का ट्रैक ही बदल दिया है।

इस बदलाव पर एक एस्सेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी में लीगल एडवाइजर विपिन मीणा कहते हैं, “हमारे पेशे में वर्क फ्रॉम होम हो सकता है, ऐसा तो कभी हमने सोचना नहीं था। लेकिन जूम, व्हाट्सऐप पर इतनी आसानी से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हो जा रही है, जो पहले संभव ही नहीं थी।” मीणा के अनुसार करीब 7-8 साल पहले मैं जिस कंपनी में काम करता था, वहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए एक कमरा था, जहां वरिष्ठ अधिकारी कभी-कभार एक खास उपकरण के जरिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग किया करते थे, उस वक्त किसी ने सोचा नहीं था कि लोग घर बैठे ऐसा कर लेंगे। मीणा जिस बदलाव की बात कर रहे हैं, उस पर टेलिकॉम एक्सपर्ट आर.के. उपाध्याय कहते हैं, “आज ऐसा इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि भारत में डाटा सप्लाई का एक मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार हो गया है। 4जी सर्विस की वजह से वीडियोकॉल संभव हो पाई है। दूसरी अहम बात यह हुई कि लॉकडाउन में इंटरनेट कंपनियों ने जरूरत को देखते हुए कई अहम बदलाव कर दिए हैं, इस कारण लोगों को सेवाएं मिलने में सहूलियत मिल गई। जैसे गूगल, व्हाट्सऐप ने जूम से मिलती चुनौती को देखते हुए एक साथ कई लोगों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा दे दी। ऐसे में, लोगों के लिए काम करना आसान हो गया।”

तकनीकी सहूलियत ः वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात करते मोदी

इंटरनेट की पहुंच आसान

अहम बात यह है कि भारत में इंटरनेट यूजर्स अब ग्रामीण इलाके में काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार नवंबर 2019 तक देश में 43.2 करोड़ इंटरनेट के एक्टिव यूजर्स हो गए थे। अहम बात यह थी कि ऐसा पहली बार हुआ है कि शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में यूजर ज्यादा हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 22.7 करोड़ इंटरनेट यूजर्स और शहरी इलाकों में 20.5 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं। तेजी से बढ़ते यूजर्स की संख्या की एक बड़ी वजह सस्ता इंटरनेट है, जिसका इस्तेमाल लॉकडाउन में यूजर्स ने कहीं ज्यादा किया है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआइ) के अनुसार कोविड-19 महामारी के बाद भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल 20-30 फीसदी तक बढ़ गया है। उसके अनुसार, दिसंबर 2019 के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर महीने 6,900 पेटाबाइट डाटा का इस्तेमाल हो रहा था, जो लॉकडाउन में 8,280 पेटाबाइट तक पहुंच गया है।

इसी तरह आइएनसी42 की एक रिपोर्ट के अनुसार ऑप्टिकल फाइबर के जरिए इंटरनेट सेवाएं देने वाली कंपनियों की डाटा की खपत 40 फीसदी तक बढ़ गई है। इसी तरह प्रति माह औसत डाटा खपत 400 जीबी तक पहुंच गई है। कंपनियों के अनुसार डाटा खपत में इतनी तेजी से हुई बढ़ोतरी की प्रमुख वजह से सस्ता डाटा, लॉकडाउन में खास तौर से अबाध इंटरनेट सेवाओं पर जोर और लोगों की बढ़ती जरूरत रही है।

पढ़ना तो है ः महामारी के बीच स्कूलों ने बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कीं

अहम बात यह रही है कि लॉकडाउन में कैसे लोगों ने इंटरनेट का इस्तेमाल किया है, इसका खुलासा मार्केट कॉलगेटो पीटीई लिमिटेड करती है। कंपनी की वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार, लॉकडाउन में वीडियो स्ट्रीमिंग, सोशल मीडिया, ग्रॉसरी डिलेवरी का इस्तेमाल सबसे ज्यादा लोगों ने किया है। फरवरी और अप्रैल के दौरान नेटफ्लिक्स के डेली एक्टिव यूजर्स की संख्या में 122 फीसदी और अमेजन प्राइम वीडियो के यूजर्स की संख्या में 72 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसी तरह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म जूम के डेली एक्टिव यूजर्स 185 फीसदी, स्काइप यूजर्स की संख्या में 100 फीसदी  बढ़ोतरी हुई है।

वर्चुअल राजनीति

देश में हर वक्त छाई रहने वाली राजनीति ने इस अहम बदलाव को आत्मसात कर लिया है। प्रमुख पार्टियां अब ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस करने लगी हैं। लोगों से संवाद के लिए वेबिनार और डिजिटल रैलियों का भी मॉडल अपना लिया है। इससे आने वाले समय की राजनीति का भी आभास हो गया है। 7 जून को भाजपा ने बिहार में वर्चुअल रैली की। पार्टी का दावा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसके जरिए बिहार के 56 लाख लोगों तक अपनी बात पहुंचाई। इसके लिए पार्टी की सदस्यता के लिए मिस कॉल करने वाले लोगों को अमित शाह की डिजिटल रैली का लिंक भेजा गया। भाजपा के कार्यकर्ता पूरे प्रदेश में इसके लिए लोगों के संपर्क में थे ताकि वे अमित शाह के लाइव संबोधन से जुड़ सकें। यही नहीं, पूरे राज्य में कथित तौर पर 72,000 एलईडी स्क्रीन लगाई गई। पार्टी ने बिहार की तर्ज पर ही ओडिशा, पश्चिम बंगाल में भी डिजिटल रैलियां कीं। भाजपा की इस रणनीति पर राष्ट्रीय प्रवक्ता नलिन कोहली कहते हैं, “कोरोना ने कई अहम बदलाव कर दिए हैं, हम लोग चाह कर भी पहले जैसे लोगों से नहीं मिल सकते हैं। ऐसे में, जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं से संवाद के लिए डिजिटल एक अहम माध्यम है। पार्टी ने वेबिनार, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, वर्चुअल रैली आदि पर जोर बढ़ा दिया है। सरकार के छह साल पूरे होने पर 1000 से ज्यादा डिजिटल कॉन्फ्रेंस की है।”

भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी जनता से संवाद के लिए अपनी रणनिति कोरोना काल में बदल दी है। पार्टी के प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर विपक्षी दलों पर हमले के लिए डिजिटल माध्यम पर फोकस बढ़ गया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी लगातार आर्थिक नीतियों और कोरोना संकट पर दुनिया के जाने-माने विशेषज्ञों से बातचीत के लिए वेबिनार, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी तरह बिहार में नवंबर तक होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डिजिटल संवाद की तैयारी कर ली है। इसके तहत वे अपने कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ेंगे। नीतीश कुमार की तैयारियों को देखते हुए विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने फेसबुक लाइव जैसी गतिविधियां बढ़ा दी हैं।

डिजिटल नजदीकी ः सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए जूम पर लोग एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं

बदलते तौर-तरीके पर सीएसडीएस के डायरेक्टर संजय कुमार कहते हैं, “यह नए तरह की चुनौती है। अभी तक राजनीतिक दलों ने जनता से संवाद के लिए इन तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया था। लेकिन डिजिटल एक प्रमुख जरिया बन जाएगा क्योंकि कोरोना के असर से उबरने में काफी वक्त लगेगा। आने वाले बिहार चुनावों में यह बदली रणनीति दिखेगी।”

डिजिटल सरकारें

राजनीति की तरह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के कामकाज के तरीकों में डिजिटल का इस्तेमाल बढ़ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन के दौरान राज्य के मुख्यमंत्रियों से हर बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही मीटिंग की है, इसी तरह गृह मंत्री अमित शाह ने भी राज्यों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग की। ऐसा ही तरीका केंद्रीय मंत्रियों, राज्य सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों ने भी लॉकडाउन के दौरान अपनाया है (गवर्नेंस में आए बदलाव पर विस्तृत रिपोर्ट अगले पन्नों पर पढ़ें)। केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी कामकाज के तरीकों में आए बदलाव पर कहते हैं, “ब्यूरोक्रेसी को आम-तौर पर माना जाता है कि वह बदलाव के लिए जल्द तैयार नहीं होती है लेकिन कोरोना संकट ने डिजिटल यूज को तेजी से बढ़ा दिया है। मुझे याद है जब केंद्र में 2014 में नई सरकार आई थी, तो उसने एक लक्ष्य दिया था कि सारे काम डिजिटल होंगे, लेकिन वह काम उस समय उतनी तेजी से नहीं हो पाया। लेकिन तीन महीने के लॉकडाउन ने कार्य संस्कृति में बदलाव ला दिया है। अहम बात यह है कि इसके फायदे भी समझ में आने लगे हैं। सबसे बड़ा फायदा यह है कि समय काफी बचता है। दूसरे ट्रैवल का झंझट भी नहीं रहता है। यह अब मोबाइल से भी संभव है। पहले की तरह किसी बड़े सेट अप की अब जरूरत नहीं है। निश्चित तौर पर स्थितियां सामान्य होने के बाद भी नई कार्य संस्कृति बनी रहेगी।”

ई-अनुमति ः एक राज्य से दूसरे राज्य जाने के लिए राज्य सरकारों ने जारी किए ई-पास

वर्क फ्राम होम पर जोर

ऐसा नहीं है कि केवल राजनीतिक दलों और सरकारों को डिजिटल टेक्नोलॉजी भा रही है, कॉरपोरेट सेक्टर को भी यह बहुत तेजी से पसंद आने लगी है। इसके फायदे को देखते हुए प्रमुख आइटी कंपनी टीसीएस ने हाल ही में कहा है कि 2025 तक उसके 75 फीसदी कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम करेंगे। असल में टीसीएस और दूसरी कंपनियों को काम करने की यह संस्कृति इसलिए पसंद आ रही है क्योंकि इससे न केवल कंपनियों का खर्च घटा है, बल्कि कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी भी बढ़ गई है। एक टेक्नोलॉजी फर्म में काम करने वाले महेंद्र कुमार का कहना है कि लॉकडाउन में अपने गृह-शहर बहराइच चला आया हूं। कंपनी ने वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दे दी है। पिछले तीन महीने से मैं आराम से यहां काम कर रहा हूं। एक तो फायदा यह है कि ऑफिस आने-जाने का समय खर्च नहीं होता है। दूसरा होम टाउन में आने से मेरा खर्च भी कम हुआ है। साथ ही घरवालों के साथ रहने का भी मौका मिल रहा है। ऐसे में जो काम लगता था कि बिना ऑफिस गए नहीं हो सकता है, वह बेहद आसानी से हो रहा है। अगर कंपनी मुझे यह ऑफर देती है कि घर पर रहकर ही काम करो, तो मैं तुरंत उसे स्वीकार कर लूंगा।

इसी तरह गूगल की सहयोगी कंपनी में काम करने वाले विकास भी इन दिनों इलाहाबाद अपने होम टाउन में हैं। उनकी कंपनी ने उनसे कह दिया है कि कंपनी कम से कम 2020 तक वर्क फ्रॉम होम ही कराएगी। विकास का कहना है कि यह काफी सुविधाजनक है। लॉकडाउन की वजह से कई सारी भ्रांतियां टूट गई हैं। लोगों को लगता था कि बिना ऑफिस गए काम नहीं हो सकता, लोग घर पर कामचोरी करेंगे। लेकिन टेक्नोलॉजी ने सब-कुछ बदल दिया है। घर पर भी कर्मचारी की आसानी से मॉनिटरिंग हो सकती है। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि वर्क फ्रॉम होम में हमारी प्रोडक्टिविटी बढ़ गई है। साथ ही जिम्मेदारी का एहसास भी बढ़ गया है। ऐसे में नया सिस्टम काफी प्रभावशाली है। हालांकि ऑफिस के दोस्तों से मिलना कम हो गया है। एक फाइनेंस कंपनी में काम करने वाले सीनियर वाइस प्रेसिडेंट कहते हैं, “आने वाले समय में केवल आइटी नहीं, हर सेक्टर में काम करने का तरीका बदलेगा। कंपनियों का जोर वेबिनार, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर ज्यादा रहेगा। यह किफायती है और काफी समय बचाने वाला है। ऐसे में कंपनियां लॉकडाउन में आए बदलावों को जारी रखेंगी। मसलन, फाइनेंस कंपनियों ने ऑनलाइन कस्टमर की केवाइसी करना, उनसे डिपॉजिट लेना शुरू कर दिया है। इसी तरह अब कर्ज देने की प्रक्रिया भी काफी पेपरलेस की जा रही है। निश्चित तौर पर यह कदम ग्राहकों के साथ-साथ कंपनियों के लिए फायदेमंद हैं।”

सियासत भी ऑनलाइन ः राहुल गांधी ने अर्थशास्‍त्री अभिजित बनर्जी से ऑनलाइन की बात

ऑनलाइन पढ़ाई

प्रोफेशनल क्षेत्र में ऑनलाइन का इस्तेमाल अब घरों में पढ़ाई के मामले में भी हो रहा है। यह गाजियाबाद के एक पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाली पांच साल की शाश्वती के दिनचर्या से समझा जा सकता है। कक्षा एक में पढ़ने वाली शाश्वती सुबह 10 बजे से ऑनलाइन क्लास के लिए तैयार हो जाती है। उसका पहला काम मोबाइल फोन पर अपनी अटेंडेंस लगाना होता है। उनकी मां शिखा धीमान का कहना है, अब तो यह रोज का काम हो गया है। लॉकडाउन से पहले हम बच्चों को मोबाइल से दूर रखते थे लेकिन अब खुद ही उन्हें इस्तेमाल के लिए दे रहे हैं। असल में शास्वती अकेली नही है, लॉकडाउन में सभी स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास शुरू कर दी है।

यूडेमी एकेडमी की रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन की वजह से भारत सबसे ज्यादा ऑनलाइन एजुकेशन ग्रोथ करने वाले देशों में शामिल हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार इटली में 320 फीसदी, स्पेन में 280 फीसदी, भारत में 200 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, ऑनलाइन एजुकेशन में सबसे ज्यादा भारत में कम्युनिकेशन स्किल सीखने पर फोकस है। लॉकडाउन में इस दौरान कम्युनिकेशन स्किल 606 फीसदी, फाइनेंशियल एनालिसिसिस 311 फीसदी और बिजनेस फंडामेंटल्स सीखने में 281 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म में 12-13 गुना बढ़ोतरी हुई है। मसलन, वेदांतु का सब्सक्राइबर बेस 50 हजार से बढ़ाकर 6.5 लाख हो गया है।

एजुकेशन की तरह कोविड-19 के मरीजों के अलावा दूसरे मरीजों के लिए अस्पतालों ने भी ऑनलाइन तकनीकी का सहारा ले लिया है। कई अस्पताल अपने रेग्युलर कस्टमर के लिए ऑनलाइन ओपीडी की सुविधा दे रहे हैं। पल्मोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत गुप्ता का कहना है कि संक्रमण को देखते हुए हम लोगों ने ऑनलाइन ओपीडी पर फोकस किया है क्योंकि हमारे पास कई ऐसे मरीज आते हैं, जो हृदय रोग, मधुमेह, किडनी की समस्या आदि से जूझ रहे हैं, उन्हें नियमित अंतराल पर डॉक्टर की सलाह लेनी होती है, ऐसे मरीजों के लिए ऑनलाइन ओपीडी अच्छा विकल्प है (स्वास्थ्य सेवाओं में आए बदलाव पर अगले पन्नों पर पढ़ें)।

धर्म चंदे भी ऑनलाइन

लॉकडाउन में वैसे तो मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, गिरिजाघरों आदि धार्मिक स्थलों पर जाने की अनुमति नहीं थी, लेकिन फिर भी श्रद्धालुओं ने चंदा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लोगों ने ऑनलाइन चंदा दिया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के बीच शिरडी में श्रद्धालुओं ने करीब 2.5 करोड़ रुपये का चढ़ावा दिया है। इसी तरह अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को भी ऑनलाइन मिलने वाले चंदे में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि यह राशि सामान्य दिनों में मंदिर और गुरुद्वारे को मिलने वाले चंदा की तुलना में बेहद कम है।

इसी तरह लॉकडाउन में शादी-समारोहों पर ब्रेक लगा है। लेकिन कुछ लोगों ने इस दौरान भी कम लोगों की उपस्थिति में सगाई और शादी जैसे समारोह किए हैं। गोरखपुर में रहने वाली संजू ने अपनी बेटी की शादी कुछ इसी तरह की है। उन्होंने बताया कि 23 मई को मेरी बेटी की शादी थी, एक बार ऐसा लगा कि शादी टालनी पड़ेगी। लेकिन फिर दोनों पक्षों ने सोचा, पता नहीं यह स्थिति कब तक रहे, ऐसे में शादी को टाला नहीं जाए। सो मैंने बहुत कम लोगों की स्थिति में अपनी बेटी की शादी कराई। हालांकि, अरमान बहुत थे लेकिन अब लगता है कि स्थिति सामान्य होने पर फिर से एक आयोजन कर लिया जाएगा। उस वक्त सारे रिश्तेदारों और दोस्तों को बुलाऊंगी। अभी तो कोरोना ही सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। उसके खतरे से जल्द बाहर निकलने की जरूरत है। जाहिर है, लॉकडाउन में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जो पहले कभी नहीं हुआ था। लोगों का ऑनलाइन टेक्नोलॉजी पर भरोसा बढ़ा है। ऐसे में, लॉकडाउन के कई बदलाव आने वाले समय में हमारी जिंदगी के अहम हिस्सा बनने वाले हैं। लेकिन इसके साथ ही एक चुनौती भी खड़ी होने वाली है, जिसका नाम डिजिटल डिवाइड है।

डिजिटल फासला भारी

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में रहने वाले राजू के बच्चों के लिए लॉकडाउन में हुई डिजिटल क्रांति के कोई मायने नहीं हैं। उनके बच्चे विनय और और आरजू मार्च से स्कूल नहीं गए हैं। सर्वोदय नगर के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले दोनों बच्चों की कोई ऑनलाइन पढ़ाई नहीं होती है। चौदह साल की आरजू सातवीं कक्षा में है। उसका कहना है कि मेरी पिता जी चौकीदारी का काम करते हैं, वह बताते हैं कि जिस बिल्डिंग की वह रखवाली करते हैं, वहां के बच्चे मोबाइल और कंप्यूटर पर पढ़ाई करते हैं। स्कूल के टीचर उन्हें पढ़ाते हैं, हमें तो समझ में नहीं आता है कि वह कैसे पढ़ते हैं, हम तो तीन महीने से घर पर है, स्कूल से कोई संदेश नहीं आया है। विनय और आरजू देश के उन 32 करोड़ बच्चों में हैं, जो इस ऑनलाइन क्रांति से अछूते हैं। विनय का मासूम-सा सवाल है, मेरे पापा के पास भी स्मार्टफोन है, फिर हमें स्कूल वाले क्यों नहीं पढ़ा रहे हैं?

यह डिजिटल डिवाइड केवल एजुकेशन में नहीं है बल्कि देश के हर तबके में है, चाहे श्रमिकों को अपने घर जाने के लिए ई-पास बनवाना हो या फिर गरीब तबके को अस्पताल में इलाज कराना हो। हर जगह यह खाई साफ तौर पर दिखती है। अकेले ग्रामीण इलाकों में देश की 66 फीसदी यानी 80 करोड़ आबादी रहती है। डिजिटल डिवाइड की खाई ट्राई की रिपोर्ट से साफ हो जाती है। उसकी रिपोर्ट के अनुसार देश में 63 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट घनत्व केवल 25 फीसदी है। जबकि 34 फीसदी शहरी आबादी में इंटरनेट घनत्व करीब 98 फीसदी है। ऐसे में साफ है कि लॉकडाउन के बाद जो इंटरनेट क्रांति की उम्मीद जताई जा रही है, उससे देश की बड़ी आबादी अछूती रह जाएगी।  क्योंक‌ि अगर गाजियाबाद (एनसीआर) में रहने वाले राजू के बच्चे ड‌िजिटल क्रांत‌ि का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं, तो दूर-दराज इलाकों में रहने वाले बच्चों को बदलाव की झलक कब दिखेगी, इसे सहज ही समझा जा सकता है।

डिजिटल डिवाइड की खाई कम हो इसके लिए केंद्र सरकार 2015 से भारत नेट प्रोजेक्ट चला रही है। उसके तहत 2018 तक 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी से जोड़ना था। लेकिन अभी तक यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया है। भारत नेट प्रोजेक्ट की रिपोर्ट के अनुसार, 31 जनवरी 2020 तक 1.34 लाख पंचायत ही सेवाएं देने के लिए तैयार हो पाई थीं। ऐसे में, अब मोदी सरकार के सामने यह चुनौती है कि जल्द से जल्द इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जाए। सरकार इसी प्रोजेक्ट के जरिए ग्रामीण इलाकों तक ई-एजुकेशन, टेलीमेडिसिन, ई-गवर्नेंस की सेवाएं देने पर जोर दे रही है। अब देखना है कि सरकार लॉकडाउन के बाद कितनी जल्द डिजिटल डिवाइड कम करने में कामयाब हो पाती है। अगर खाई चौड़ी होती है तो निश्चित तौर पर देश की एक बड़ी आबादी में असंतोष और कुंठा की भावनाएं पनपेंगी।

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इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन के अनुसार नवंबर 2019 तक देश में 43.2 करोड़ इंटरनेट एक्टिव यूजर्स थे। पहली बार ग्रामीण इलाकों में शहरों से ज्यादा यूजर हुए

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प्रमुख पार्टियां अब ऑनलाइन प्रेंस कॉन्फ्रेंस, वेबिनार और डिजिटल रैलियां कर रही हैं। इससे आने वाले समय की वर्चुअल राजनीति का भी संकेत मिलता है

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की है, ऐसा ही तरीका केंद्रीय मंत्रियों, राज्य सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों ने भी अपनाया

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यूडेमी एकेडमी की रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन की वजह से भारत सबसे ज्यादा ऑनलाइन एजुकेशन ग्रोथ करने वाले देशों में शामिल हो गया है। भारत में 200 फीसदी बढ़ोतरी हुई है

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ट्राई की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट घनत्व केवल 25 फीसदी है जबकि 34 फीसदी शहरी आबादी में करीब 98 फीसदी है। यह खाई अब और बढ़ सकती है

 

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