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सीएए में संजीवनी ढूंढ़ता विपक्ष

नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के हिंसक होने और पुलिस की सख्त कार्रवाई पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश
सांत्वनाः मुजफ्फरनगर में पीड़ित परिवार के साथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी

“अफसोसनाक बातें अब हर रोज हो रही हैं। यहां जब भी कोई एजिटेशन होने वाला होता है तो दफा 144 लगा देते हैं। हमारे मुख्यमंत्री तो सबको पकड़के उपद्रवी और आतंकवादी बोल देते हैं। यानी आप एहतेजाज (जुल्म के खिलाफ आवाज उठाना) की इजाजत भी नहीं देते। हमें आप कहीं से कहीं जोड़ देते हैं। हमें आप पाकिस्तानी कह देते हैं।” ये अल्फाज मशहूर  शायर मुनव्वर राणा के हैं। वही मुनव्वर राणा जिन्होंने लिखा है, ये देखकर पतंगें भी हैरान हो गईं, अब तो छतें भी हिंदू और मुसलमान हो गईं।  सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदेशव्यापी हिंसा और उसके पुलिसिया दमन की कहानी सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश में हर तरफ असंतोष और शिकायतों का शोर है। सत्तापक्ष इसे विपक्ष की साजिश बता रहा है। विपक्षी दल प्रदर्शन के दौरान हिंसा के लिए योगी सरकार और उनकी बेकाबू पुलिस को कसूरवार बता रहे हैं। सरकार का कहना है कि सियासी फायदे के लिए विपक्ष लोगों को बरगलाने की कोशिश कर रहा है। इस बीच, हिंसा के बाद पुलिसिया कार्रवाई में पिस रहे लोगों की नाराजगी बढ़ रही है।

राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी आउटलुक से कहते हैं, “विपक्ष और सत्तापक्ष अपनी राजनीतिक गोटी खेल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने बहुत ही खूबसूरती से इसे विपक्ष के मत्थे मढ़ दिया। वे दिखाना चाहते हैं कि वे हिंदुओं के हितैषी हैं और विपक्ष मुसलमानों की बात कर रहा है। इन सबसे अलग प्रधानमंत्री के ‘कपड़ों से पहचान’ और यूपी के मुख्यमंत्री के ‘बदला लेंगे’ वाले बयानों ने तो जैसे पुलिस को खुली छूट दे दी। विरोध करने वाले लोगों को निशाना बनाया गया। आधी रात में घरों में तोड़फोड़ की गई। लोग उठा लिए गए और जेल भेज दिए गए।”

विरोध की इस आग में काफी नुकसान भी हुआ। लखनऊ के अलावा, संभल, मेरठ में हिंसा पर उतारू भीड़ ने आगजनी की। सरकारी बसें फूंक दी गईं। लखनऊ में बेकाबू प्रदर्शनकारियों ने पुलिस चौकियों को आग के हवाले कर दिया। पूरे प्रदेश में हुई इस हिंसा में 19 लोगों की जान चली गई। 288 पुलिसवालों के जख्मी होने की बात भी कही गई है। गृह विभाग का कहना है कि 61 पुलिसवालों को गोलियां लगी हैं। पुलिस का दावा है कि उसकी ओर से कोई गोली नहीं चलाई गई, हालांकि जिन प्रदर्शनकारियों की मौत हुई उनमें 14 को गोली लगने की भी खबरें आईं। राजनीतिक दलों का आरोप है कि भारी संख्या में लोगों को घर से उठाकर थाने में पूछताछ की गई और उनसे लगातार हाजिरी लगवाई गई। इस मामले में कुल 327 मुकदमे कायम किए गए हैं। सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में करीब 200 लोगों को वसूली का नोटिस जारी किया गया।

एक तरफ पुलिस की भूमिका पर सवाल है तो सवालों के घेरे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वह बयान भी रहा, जिसमें हिंसा के तत्काल बाद उन्होंने हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों से नुकसान की भरपाई करने की बात कही। निष्पक्ष आलोचक भी मानते हैं कि उस परिस्थिति में ऐसे तीखे बयानों से बचने की जरूरत थी। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने भी सीएम के बयान की आलोचना की। लेकिन उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, “केंद्र और प्रदेश सरकार को बदनाम करने की साजिश चल रही है। लखनऊ आज भी एकता और सौहार्द के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ लोगों ने राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोगों को दिग्भ्रमित किया। यह भ्रम फैलाया गया कि आपकी नागरिकता समाप्त की जाएगी, आपको भगा दिया जाएगा।” पूर्व आइएएस कैप्टन एस. द्विवेदी ने भी विपक्ष की मंशा पर सवाल उठाए हैं। द्विवेदी पुलिस की भूमिका का बचाव करते हुए कहते हैं, “विपक्ष की भूमिका नकारात्मक रही है। पुलिस ने लखनऊ में दो-दो पुलिस चौकियां फूंके जाने के बाद भी बहुत संयम दिखाया।” हालांकि उनका यह भी कहना है कि आइपीएस एसआर दारापुरी और ऐसे ही आम शहरी की गिरफ्तारी से पहले उनकी गतिविधियों के बारे में पर्याप्त जांच पड़ताल की जानी चाहिए थी।

इस बीच, बंदी बनाए गए लोगों को कानूनी मदद नहीं मिलने की शिकायतें भी आईं। बार एसोसिएशनों को सफाई देनी पड़ी कि किसी भी एडवोकेट ने किसी का केस ठुकराया नहीं है। कैंसर पीड़ित पूर्व आइपीएस एसआर दारापुरी की गिरफ्तारी पर सवाल इसलिए भी उठे, क्योंकि उन्हें भी आधी रात को थाने पर पूछताछ के लिए बुलाया गया था। दारापुरी के साथ ही रंगकर्मी दीपक कबीर, कांग्रेस नेत्री और अभिनेत्री सदफ़ जफ़र की गिरफ्तारी भी सवालों में रही। दारापुरी तो प्रदर्शन के दौरान हाउस अरेस्ट थे।

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआइ) की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं। पूर्व डीजीपी सूर्य कुमार शुक्ल कहते हैं, “इस संगठन और उससे जुड़े लोगों को लेकर शंकाएं तो पहले से थीं, लेकिन इस घटना से पहले हिंसा में उनकी भूमिका सामने नहीं आई थी। अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों की आवाज उठाने की बात करने वाले हिंसा करने लग जाएं तो पुलिस को कार्रवाई तो करनी ही होगी।” पुलिस का दावा है कि इस संगठन को बनाने में प्रतिबंधित संगठन सिमी के लोगों की भूमिका है। इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भी भेजी गई है।

विपक्ष पुलिस कार्रवाई के नाम पर बर्बरता का इल्जाम लगा रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने आउटलुक से कहा, “लोगों का विरोध दबाने के लिए पूरे प्रदेश में पुलिस ने कोहराम मचाया। आधी रात में लोगों के घरों में तोड़फोड़ की गई। बुजुर्गों-महिलाओं-बच्चों को डराया गया। हमने पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपी है।” कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पुलिस कार्रवाई के खिलाफ खुद मोर्चा संभाल रखा था। उन्होंने सलमान खुर्शीद को जिम्मेदारी सौंपी कि वे पुलिस हिंसा के शिकार लोगों की कानूनी मदद करें।

समाजवादी पार्टी ने हिंसा में हुई मौतों के लिए पुलिस को कसूरवार माना है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, अगर ऐसा नहीं है तो इनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट क्यों छिपाई जा रही है। सपा सुप्रीमो कहते हैं, “देश में बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था का पटरी से उतर जाना और बैंकिंग सिस्टम का आइसीयू में चले जाना ऐसी समस्याएं हैं, जिनसे ध्यान हटाने के लिए ही केंद्र और राज्य सरकार साजिश के तहत तरह-तरह के विवादित मुद्दे उठा रही हैं।”

सामने आई वोटों की सियासत

सत्ता बनाम विपक्ष की इस लड़ाई में खास बात ये है कि विपक्ष बुरी तरह बंटा हुआ दिख रहा है। कांग्रेस के स्थापना दिवस पर लखनऊ पहुंची प्रियंका ने तो सरकार के साथ सपा-बसपा को भी निशाने पर ले लिया। उन्होंने कहा कि पता नहीं सपा-बसपा के लोग क्यों डरे हुए हैं। जवाब में अखिलेश कहते हैं, “कांग्रेस ने भी तो हमें डराया ही है। वह ईडी और सीबीआइ के नाम से डराती थी।” ये बहुत ही दिलचस्प सियासी तसवीर है कि विपक्ष का हर दल सत्तापक्ष के खिलाफ खड़ा दिखता है, लेकिन दूसरे विपक्षी दल के लिए भी उसके हाथ में कटार है। दलितों की सियासत करने वाली बसपा ने इस प्रकरण में खुद को एक सीमा में बांध रखा है। बसपा सुप्रीमो मायावती का एक ट्वीट काबिलेगौर है, “भारत बचाओ, संविधान बचाओ की याद कांग्रेस को तब क्यों नहीं आई जब वह सत्ता में रहकर जनहित की अनदेखी कर रही थी।” इस आंदोलन से बसपा की किनाराकशी इस बात से भी झलकती है कि मायावती ने सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए लोगों के बारे में एक लाइन का सांत्वना संदेश जारी कर उनके परिवारों से मिलने की जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद अली पर छोड़ दी। चुनाव विश्लेषक ओपी यादव कहते हैं, ‘‘सीएए और एनआरसी मामले में विपक्षी खेमेबंदी से साफ है कि वे भाजपा के फैसले से नाराज मुसलमानों को अपने पाले में करने की कोशिश में हैं। चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन तब ये सवाल जरूर उठेंगे कि कौन किसके साथ खड़ा था। प्रदेश के मुसलमान वोटरों को लेकर आज इनमें कोई भी दल ये दावा करने की स्थिति में नहीं कि वे उनके साथ होंगे। जाहिर है, वे अपने लिए वोट की नई जमीन तैयार करने को बेचैन हैं। बीजेपी इसे खूब समझती है और इसलिए वह बहुसंख्यक दांव खेल रही है।”

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आरोप: सपा के अखिलेश यादव ने हिंसा के लिए पुलिस को जिम्मेदार बताया

 

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लोगों में भ्रम फैलाया गया कि नागरिकता खत्म हो जाएगी, उन्हें भगा दिया जाएगा 

दिनेश शर्मा

उप-मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश

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