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आवरण कथा/ नए साल के पदचिन्ह: मुबारक या मुश्किल भरा

इस साल अनेक संभावनाओं के दरवाजे खुल सकते हैं तो आशंका और निराशा के काले बादलों के साए भी घने और डरावने, किस मद में क्या है इसकी झोली में?
पढ़ाई के हाइब्रिड मॉडल में हैं कई दुश्वारियां

क्या हाइब्रिड पढ़ाई स्थायी?

बीते दो वर्षों के दौरान कोरोना ने हमारे जीने का ढंग बदल दिया है। पढ़ाई-लिखाई से लेकर काम के तरीके और मनोरंजन के साधन सब बदल गए। इनमें कुछ बदलाव तात्कालिक तो कुछ स्थायी जान पड़ते हैं। जैसे, दफ्तर का काम और पढ़ाई-लिखाई का हाइब्रिड तरीका अब स्थायी रूप लेता जा रहा है। हाइब्रिड का मतलब कुछ पढ़ाई स्कूल में तो कुछ ऑनलाइन। शुरुआत में इसमें दिक्कतें जरूर आईं, लेकिन धीरे-धीरे यह सिर्फ ऑनलाइन की तुलना में छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए बेहतर साबित हो रहा है।

भले ही कोरोनावायरस के कारण पढ़ाई का हाइब्रिड तरीका लोकप्रिय हो रहा हो, वायरस पर नियंत्रण के बाद भी इसके बने रहने के आसार हैं। नोएडा एक्सटेंशन स्थित मॉडर्न पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल सुधा शिवदास आउटलुक से कहती हैं, “हालात सामान्य होने पर भी हाइब्रिड तरीका जारी रहेगा। शनिवार को छात्रों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं और कोचिंग कराई जाती है। ऑनलाइन से इसमें काफी मदद मिलती है। अगले सत्र में हमने छात्रों को हाइब्रिड तरीके से पढ़ाने की योजना बनाई है।” पिछले दिनों दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण अधिक हो जाने पर स्कूल बंद किए गए थे। ऐसे मौकों पर या खराब मौसम में ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित की जा सकती हैं।

पीडब्ल्यूसी इंडिया और सीआइआइ ने एक सर्वेक्षण के बाद साझा रिपोर्ट में कहा है कि उच्च शिक्षा में हाइब्रिड मॉडल अब स्थायी हो गया है। सर्वे में एक बात यह भी सामने आई कि 46 फीसदी शिक्षकों को लगता है कि पढ़ाने का मिश्रित तरीका ज्यादा प्रभावी है। छात्र भी ऑनलाइन पढ़ाई में कांसेप्ट को जल्दी समझ लेते हैं। एटीऐंडटी कंपनी ने अमेरिका में सर्वेक्षण के बाद ‘फ्यूचर ऑफ स्कूल रिपोर्ट’ जारी की, जिसमें 85 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि अगर उनका बच्चा बीमार है तो वे चाहेंगे कि वह बच्चा बिस्तर पर बैठे-बैठे पढ़ाई कर ले।

हालांकि शुरू में शिक्षकों को भी काफी प्रशिक्षण की जरूरत पड़ी। अनेक शिक्षक ऐसे थे जिन्होंने इस तरह की टेक्नोलॉजी का पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया था। नेटवर्क की भी समस्या आती थी। लेकिन एक साल में स्थिति काफी बदल गई है। एडोब स्पार्क, माइक्रोसॉफ्ट टूल्स, पैडलेट, वेकलेट, जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल बढ़ा है। सुधा कहती हैं, “शिक्षकों के लिए यह एक तरह से नए आयाम खुलने जैसा था। हम इसे और आगे ले जाना चाहते हैं।”

अब तो सालाना समारोह भी ऑनलाइन किए जा रहे हैं। छोटे बच्चे भी ऑनलाइन पढ़ाई की टेक्नोलॉजी भी बखूबी समझते हैं। सुधा कहती हैं, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कक्षा तीन के बच्चे अपना यू-ट्यूब चैनल चला रहे हैं और प्रमोशन के लिए उसे लाइक और शेयर भी करते हैं।

फिलहाल हाइब्रिड से बेहतर और कोई विकल्प नहीं है। इसलिए इन्फॉर्मेशन ऐंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (आइसीटी) टूल्स का इस्तेमाल बढ़ा है। छात्रों को क्लासरूम वीडियो उपलब्ध कराए जा रहे हैं, ताकि कोई विषय समझ में न आने पर वीडियो दोबारा देख सकें। 3डी एनिमेशन, विजुअल इफेक्ट और वर्चुअल रियलिटी के इस्तेमाल से छात्रों के लिए भी पढ़ाई आसान हुई है।

हालांकि ऑनलाइन पढ़ाई में कई समस्याएं भी हैं। शिक्षकों की शिकायत रहती है कि छात्र ऑनलाइन क्लास ज्वाइन तो कर लेते हैं लेकिन मोबाइल या लैपटॉप पर अपना वीडियो और ऑडियो बंद रखते हैं। इससे पता नहीं चलता कि वे शिक्षकों की बात सुन रहे हैं या हाजिरी लगाने के बाद कहीं और व्यस्त हैं। हालांकि छात्रों के नजरिये से देखा जाए तो 35-40 मिनट तक लगातार स्क्रीन देखना मुश्किल है।

इसके अलावा पूरे देश के स्तर पर देखा जाए तो अनेक छात्रों के पास ऑनलाइन क्लास करने के लिए स्मार्टफोन नहीं है। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट के 2021 के सर्वेक्षण के मुताबिक एक-चौथाई छात्रों के पास स्मार्टफोन नहीं है। शहरों में सिर्फ 42 फीसदी परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है। यानी एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो शिक्षा में तकनीक के इस्तेमाल से महरूम है।

क्या भारत-पाक क्रिकेट सीरीज होगी?

खेल हमेशा मुकाबले पर टिका होता है। बड़े से बड़े खेल मुकाबले की एक राजनीतिक पृष्ठभूमि हो सकती है, लेकिन वह अंततः उसकी नाटकीयता को बढ़ाती ही है। भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव ने करीब एक दशक से खेलप्रेमियों को निराश किया है। किसी भी खेल में इन दोनों देशों के बीच होने वाला मुकाबला सभी मुकाबलों से बड़ा होता है। अगर खेल क्रिकेट या हॉकी हो तो मुकाबला और बड़ा हो जाता है। राजनीति में नफा-नुकसान वोटों की संख्या से आंका जाता है। दुबई में 24 अक्टूबर 2021 को भारत-पाकिस्तान टी-20 मैच के दर्शकों की संख्या देखी जाए तो क्रिकेट के सामने राजनीति कहीं नहीं ठहरती। उस मैच को रिकॉर्ड 16.7 करोड़ दर्शकों ने देखा था। पिछला रिकॉर्ड 2016 के टी-20 वर्ल्ड कप में भारत-वेस्टइंडीज मैच में बना था जिसे 12.1 करोड़ दर्शकों ने देखा था।

भारत-पाकिस्तान मैच देखने वालों में एक बड़ा वर्ग युवाओं का है। एशिया और इंग्लैंड में सीधा प्रसारण देखने वाले 18.5 फीसदी दर्शक 15 साल से कम उम्र के थे। खेल में दर्शकों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन अफवाहों और जानबूझकर गलत सूचनाएं फैलाने के कारण नफरत भी बढ़ रही है। सोशल मीडिया आग में घी का काम कर रहा है।

खेल की नजर से देखें तो भारत और पाकिस्तान के बीच फिर से खेल शुरू करना महत्वपूर्ण है। खेल टॉनिक की तरह है। बेहतर संबंध न सिर्फ भावी पीढ़ी की सोच को बेहतर बनाएगा, बल्कि इससे विश्व पटल पर एशिया खेल में ज्यादा मजबूत बनकर उभरेगा। ग्रीष्म ओलंपिक में भारत और पाकिस्तान ने मिलकर हॉकी में 11 स्वर्ण पदक जीते हैं। दोनों हॉकी महाशक्ति के बीच '80 और '90 के दशक में नियमित रूप से सीरीज होती थी। पिछले साल टोक्यो ओलंपिक में भारत ने 41 वर्ष बाद कांस्य पदक जीता और पाकिस्तान को कहीं जगह ही नहीं मिली। इससे पता चलता है कि खेल की एशिया में क्या स्थिति है।

भारत-पाकिस्तान के बीच आखिरी सीरीज 2012-13 में हुई थी। एकदिवसीय सीरीज पाकिस्तान ने 2-1 से जीता था और टी-20 सीरीज 1-1 से बराबर रहा। दोनों के बीच मुकाबला आइसीसी और एशियन क्रिकेट काउंसिल के टूर्नामेंट में ही हुआ है।

दोनों देशों के बीच खेल संबंध फिर से शुरू करने का यह संभवतः सबसे अच्छा समय है। पाकिस्तान के दो पूर्व कप्तान इमरान खान और रमीज राजा क्रमशः देश और क्रिकेट बोर्ड संभाल रहे हैं। भारत में गृह मंत्री के बेटे जय शाह बीसीसीआइ के सचिव हैं तो पूर्व करिश्माई कप्तान सौरभ गांगुली अध्यक्ष। तो, भारत मतभेदों से ऊपर उठकर क्यों नहीं खेल सकता? समस्या ज्यादा भारत में है जहां कुछ राजनीतिक ताकतों की रुचि सिर्फ सीमा पार आतंकवाद के नाम पर सांप्रदायिक भेद बढ़ाने में है।

भारत को क्रिकेट के हर फॉर्मेट में पाकिस्तान के साथ खेलना चाहिए, खासकर टेस्ट क्रिकेट। बीते साल जून में विश्व टेस्ट चैंपियनशिप में भारत न्यूजीलैंड के बाद दूसरे स्थान पर रहा था। लेकिन अब बाबर आजम, मोहम्मद रिजवान, शाहीन शाह अफरीदी, हैदर अली और शादाब खान जैसे युवा खिलाड़ियों के साथ पाक टीम दिनोदिन मजबूत हो रही है। टेस्ट के प्रति रुचि घट रही है, पर पाकिस्तानी खिलाड़ियों का नजरिया अलग है। जैसे भारत के केएल राहुल, मयंक अग्रवाल, श्रेयस अय्यर, हनुमा विहारी, ऋषभ पंत, जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज में है।

भला कौन बाबर आजम और विराट कोहली की टक्कर, या बुमराह को रिजवान को गेंद डालते या केएल राहुल को अफरीदी की गेंद खेलते देखना पसंद नहीं करेगा? सोबर्स ट्रॉफी के लिए आइसीसी मेन्स क्रिकेटर ऑफ द ईयर 2021 अवार्ड के लिए चुने गए चार खिलाड़ियों में दो पाकिस्तान (रिजवान और अफरीदी), एक इंग्लैंड (जो रूट) और एक न्यूजीलैंड (केन विलियम्सन) के हैं। एक भी भारतीय नहीं। खेल के हर फॉर्मेट में पाकिस्तान को परास्त करके ही भारत खुद को विश्व चैंपियन कह सकता है।

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