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25 जुलाई 2022 · JUL 25 , 2022

देश के टॉप कॉलेज/आउटलुक-आइकेयर रैंकिंग 2022 : शिक्षा की नई दिशा

नई शिक्षा नीति में कई बुनियादी बदलाव किए गए हैं
आने वाले दिनों में ज्यादा संख्या में युवा उच्च शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे

नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद यूनिवर्सिटी और कॉलेज जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए यह दूसरा साल है। काफी बहस इस बात को लेकर हो रही है कि क्या दशकों पुरानी व्यवस्था में नई शिक्षा नीति के जरिए व्यापक बदलाव लाया जा सकता है। नई नीति से शिक्षा प्रणाली में बदलाव संभव हैं, बेशक इसके लिए सभी संबंधित पक्षों की प्रतिबद्धता चाहिए। नई नीति विदेशी संस्थानों को भारत में कैंपस खोलने को प्रोत्साहन देती है। इस नीति के परिणाम निश्चित रूप से छात्रों की संख्या और गुणवत्ता को प्रभावित करेंगे। सावधानीपूर्वक प्लानिंग, निगरानी, सामूहिक अमल, समय पर फंड की उपलब्धता तथा विभिन्न चरणों की समीक्षा कुछ ऐसे कार्य बिंदु हैं जिनकी प्राथमिकताएं तय करके लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

नई शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य हर स्तर (स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी) तथा क्षेत्र (पारंपरिक, प्रोफेशनल, टेक्निकल और वोकेशनल) में शिक्षा प्रणाली को नवजीवन प्रदान करना है। इसमें शिक्षा पद्धति में कई बुनियादी बदलाव किए गए हैं तथा प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए विस्तृत योजना बताई गई है। नई नीति को लागू करने के कई संदर्भ हैं। पहला, भारत तथा शेष विश्व में शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से हो रहे बदलावों के अनुरूप खुद को ढालना। दूसरा, उदार शिक्षा के सकारात्मक नतीजे मिले हैं लेकिन शिक्षा का यह रूप भारत में नहीं अपनाया गया है। तीसरा, सरकार चौथी औद्योगिक क्रांति के जरिए भारत को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहती है। चौथा, भारतीय भाषाओं में शिक्षा प्रदान करना।

आवश्यक विवेचना

आने वाले दिनों में ज्यादा संख्या में युवा उच्च शिक्षा ग्रहण करेंगे। ऐसे छात्रों की संख्या भी बढ़ाने की जरूरत है जो आर्थिक स्वतंत्रता और आजीविका के अलावा समाज के साथ जुड़ाव और उसे अपने योगदान को तवज्जो देंगे। इसके लिए नई नीति में हर जिले में कम से कम एक उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित करने की बात है जहां स्थानीय भाषा में पढ़ाई हो। इसके अलावा बहुविषयी स्नातक शिक्षा को बढ़ावा देने, अध्यापन का तरीका बदलकर छात्रों का अनुभव बेहतर बनाने, एसेसमेंट के तरीके तथा अध्यापन, शोध और सेवा के आधार पर फैकल्टी सदस्यों के करियर में लगातार विकास जैसी बातें भी नई नीति में कही गई हैं।

नई नीति के अनुसार उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए सिर्फ एक नियामक होगा। नई नीति से बेहतर प्रदर्शन करने वाले संस्थानों के लिए अधिक अवसर खुलेंगे। इसके अलावा फिलैंथ्रॉपी यानी परोपकार के माध्यम से छात्रवृत्ति को बढ़ावा देने तथा दूरस्थ शिक्षा की पहुंच बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है। अच्छी गुणवत्ता वाले उच्च शिक्षण संस्थान खोलना काफी खर्चीला काम है, इसलिए इसके विकल्प के तौर पर कम्युनिटी कॉलेज स्थापित करने की बात है जो दूरदराज के इलाकों में भी स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा दे सकें।

 

उच्च शिक्षा संस्थानों का कंसोलिडेशन

उच्च शिक्षा में बिखराव रोकने के लिए बड़े बहुविषयी संस्थान खोले जाएंगे, जिनमें हर एक की क्षमता तीन हजार से अधिक छात्रों की होगी, जैसे प्राचीन भारत में तक्षशिला, नालंदा, वल्लभी और विक्रमशिला विश्वविद्यालय हुआ करते थे। साल 2040 तक देश के सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के बहुविषयी दर्जा हासिल कर लेने और स्वायत्त (शैक्षिक और प्रशासनिक दृष्टि से) हो जाने की उम्मीद है। एकविषयी उच्च शिक्षा संस्थान धीरे-धीरे बंद हो जाएंगे। विश्वविद्यालय से कॉलेजों की संबद्धता खत्म हो जाएगी। कॉलेजों को ही स्वायत्तता दी जाएगी ताकि वे बहुविषयी उच्च शिक्षा संस्थान का दर्जा हासिल कर सकें। फोकस बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा संस्थान खोलने पर होगा, इसलिए निजी क्षेत्र की भागीदारी अहम होगी। उच्च शिक्षा संस्थान स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर अंतर्विषयी शिक्षा प्रदान करेंगे। वे सामुदायिक शिक्षा के साथ उच्च कोटि के अध्यापन और शोध को बढ़ावा देंगे और भावी फैकल्टी सदस्यों को भी तैयार करेंगे। विश्वविद्यालयों और स्वायत्त कॉलेजों को ‘शिक्षण-सघन’ अथवा ‘शोध-सघन’ के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। इन उपायों से ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) 2035 तक 50 फीसदी तक पहुंच जाने की उम्मीद है, जो 2018 में 26 फीसदी थी।

बहुविषयी शिक्षा

नई शिक्षा नीति के अनुसार इक्कीसवीं सदी में बहुविषयी शिक्षा महत्वपूर्ण है। इसके लिए टेक्निकल, प्रोफेशनल और वोकेशनल, सभी शाखाओं का एकीकरण जरूरी है। उदाहरण के लिए स्नातक और उससे नीचे के स्तर पर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (स्टेम) के साथ मानविकी को जोड़कर समग्र शिक्षा दी जा सकती है। उच्च शिक्षा संस्थान एक समग्र बहुविषयी शिक्षा प्रणाली की तरफ अग्रसर होंगे। इसके लिए वे नए विभागों का गठन करेंगे, लचीला पाठ्यक्रम तैयार करेंगे, पाठ्यक्रम तैयार करने और अध्यापन में फैकल्टी सदस्यों को अधिक आजादी देंगे तथा ऐसी इंटर्नशिप की शुरुआत करेंगे जिससे छात्र नए क्षेत्रों की तरफ जाने के लिए उत्सुक हों। बहुविषयी शिक्षण और शोध विश्वविद्यालय तथा इन्क्यूबेशन सेंटर स्थापित करने में उच्च शिक्षा संस्थानों को बढ़ावा देने से हर स्तर पर समग्र शिक्षा मिलेगी।

सीखने का आदर्श वातावरण

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नतीजे भी अच्छे हों इसके लिए सही पाठ्यक्रम, अध्यापन और निरंतर एसेसमेंट करना जरूरी है। विकल्प आधारित क्रेडिट व्यवस्था (सीबीसीएस) और संस्था विकास योजना (आइडीपी) लागू करके, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों पर फोकस करके और ओपन तथा दूरस्थ शिक्षा (ओडीएल) के जरिए शिक्षा तक पहुंच बढ़ाकर एक बेहतर शैक्षणिक वातावरण तैयार किया जाना चाहिए। विश्व गुरु का दर्जा फिर हासिल करने के लिए भारतीय शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण करना जरूरी है। इसके लिए चार बातों पर अमल करने की जरूरत है। पहला, छात्रों को विदेशी संस्थानों में पढ़ने और क्रेडिट हासिल करने की अनुमति दी जानी चाहिए। दूसरा, भारत में दूसरे देशों के छात्रों की संख्या बढ़ाई जाए। तीसरा, भारतीय और विदेशी संस्थानों के बीच शोध के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। चौथा, भारतीय संस्थानों को विदेश में और विदेशी संस्थानों को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति मिले।

अच्छी क्वालिटी के अध्यापक

साल 2030 तक अध्यापकों के सभी शिक्षण संस्थान बहुविषयी हो जाने की उम्मीद है। उच्च शिक्षा संस्थानों में एक शिक्षा विभाग हो जो चार साल की बैचलर ऑफ एजुकेशन की डिग्री दे। उच्च शिक्षा संस्थानों के मौजूदा अध्यापक अपना प्रोफेशनल विकास जारी रखें।

समानता और समावेश

सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए पर्याप्त धन मुहैया कराया जाना चाहिए, छात्र-छात्रा संतुलन भी बनाए रखना चाहिए, स्थानीय भाषा या दो भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों को इन्सेंटिव दिया जाना चाहिए तथा शिक्षा के प्रसार में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

रैंकिंग और मान्यता

शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए नई शिक्षा नीति में मान्यता और रैंकिंग की व्यवस्था की गई है। एसेसमेंट और रैंकिंग की मौजूदा व्यवस्था से उच्च शिक्षा संस्थानों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिला है, लेकिन नई नीति के लक्ष्यों को देखते हुए इन पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है।

आउटलुक-आइकेयरः भारत के श्रेष्ठ कॉलेज

आउटलुक-आइकेयर की भारत के श्रेष्ठ कॉलेजों की रैंकिंग का मकसद भारतीय कॉलेजों के आकलन के विभिन्न मानदंडों के महत्व को रेखांकित करना है। इससे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की तरफ से दी जाने वाली सूचनाओं के जंजाल में छात्रों को अपने लिए सही संस्थान चुनने में मदद मिल सकती है।

रैंकिंग निर्धारण पद्धति

उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए पांच मानदंड रखे गए हैं- अकादमिक और शोध में उत्कृष्टता, उद्योगों से जुड़ाव और प्लेसमेंट, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं, गवर्नेंस एवं दाखिला और विविधता एवं दायरा। इन सबको फिर उप-मानदंडों पर परखा गया। इन मानदंडों के अंक इस तरह निर्धारित किए गए हैं कि कुल अंक 1000 हो। रैंकिंग के लिए आंकड़े हमारे सर्वे से जुटाए गए, फिर साक्ष्यों और भरोसेमंद थर्ड पार्टी स्रोतों के आधार पर उन्हें परखा गया। कुछ मामलों में हमने एआइएसएचई, एनएएसी, एनआइआरएफ आदि के डाटा स्रोतों पर भरोसा किया। इस रैंकिंग में प्रयुक्त आंकड़े 2016 से 2021 की अवधि के हैं। आंकड़े जुटाने के लिए हमने एक फॉर्मेट तैयार किया था, लेकिन कोविड-19 की बाधाओं को देखते हुए हमने संस्थानों को अलग-अलग फॉर्मेट में आंकड़े जमा करने की अनुमति दी ताकि ज्यादा संस्थान इसमें हिस्सा ले सकें। हालांकि यह पद्धति वर्षों के शोध का परिणाम है, फिर भी हम अकादमिक लीडर्स और उच्च शिक्षा विशेषज्ञों के फीडबैक तथा उनसे चर्चा, समीक्षा, हमारे अपने आंकड़ों के ट्रेंड, नए आंकड़ों की उपलब्धता के आधार पर इसमें संशोधन करते रहते हैं। इसके लिए कुलपति, डीन, शोधार्थी, अकादमीशियन और जानेमाने शिक्षाविदों के साथ भी चर्चा की जाती है।

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