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कोविड-19 की नई लहर: डरावने तेवर में कोरोना

सितंबर से फरवरी तक संक्रमण घटने से बेपरवाही बढ़ी, अब फिर तेजी से फैल रही महामारी
नया स्ट्रैन घातक

हम एक बार फिर रिंग में हैं। सामने जो प्रतिद्वंद्वी है, उसके मूव काफी जाने-पहचाने हैं। पहला राउंड काफी मुश्किलों भरा था। हालांकि वह राउंड खत्म होते-होते परिस्थितियां कुछ बेहतर होने लगीं। सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम काम कर रहे थे। लेकिन दूसरे राउंड में प्रतिद्वंद्वी फिर पहले की तरह प्रहार करने लगा है। वह तेजी से पैंतरे बदल रहा है। ठीक एक साल बाद देश के अनेक इलाकों में कोविड-19 महामारी फिर से सिर उठा रही है। दोबारा लॉकडाउन का विकल्प तो है, लेकिन कोई उसे नहीं चाहता। हालांकि महाराष्ट्र में रात का कर्फ्यू लौट आया है, बेंगलूरू में प्रदर्शन, रैलियों और पार्टियों पर पाबंदी लगा दी गई है और दिल्ली में खुली जगहों पर होने वाले कार्यक्रमों में शरीक होने वालों की संख्या तय कर दी गई है। रिहायशी परिसरों, अस्पतालों और दफ्तरों में संक्रमण बढ़ने के साथ पाबंदियां भी सख्त हो रही हैं। रोजाना संक्रमण की संख्या 72,330 (1 अप्रैल) पहुंच गई है। सितंबर 2020 के मध्य में रोजाना संक्रमण एक लाख के करीब पहुंच गया था, जो घटते-घटते इस वर्ष फरवरी में 8,000 तक आ गया था।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि संक्रमण की लगातार घटती दर के कारण लोगों में एक तरह की बेपरवाही आ गई। हालांकि संक्रमण की दूसरी लहर की आशंका हमेशा बनी हुई थी। इसलिए नीति आयोग के नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन के प्रमुख वी.के. पॉल ने कहा, “अगर लोगों का यही रवैया रहा तो वायरस हमेशा हमारे पीछे पड़ा रहेगा, जबकि हमें उसके पीछे पड़ना चाहिए था।” पॉल के कहने का मतलब यह था कि लोग मास्क पहनने और शारीरिक दूरी रखने जैसे साधारण लेकिन सबसे प्रभावी तरीके को भी नहीं अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

लेकिन एक फर्क है। पहले राउंड की लड़ाई में हमारे पास कोई हथियार नहीं था। इस बार हमारे पास वैक्सीन है। 45 साल या इससे अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन लगाने का काम 1 अप्रैल से शुरू हो गया है। एक पखवाड़े पहले जब स्वास्थ्यकर्मियों और बुजुर्गों को वैक्सीन लगाई जा रही थी, तो उस समय के आंकड़ों पर गौर कीजिए। रोजाना 20 लाख से अधिक डोज लगाए जा रहे थे। 22 मार्च को तो यह आंकड़ा 30 लाख तक पहुंच गया। उस हफ्ते अमेरिका में एक दिन में 32 लाख लोगों को वैक्सीन लगाने का रिकॉर्ड बना था। वैक्सीन लगाने के मामले में अमेरिका फिलहाल दुनिया में सबसे आगे है। लेकिन वहां भी सरकार लोगों को बेपरवाह न होने की चेतावनी दे रही है, क्योंकि वहां भी रोजाना करीब 70 हजार संक्रमण हो रहे हैं।

वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील के अनुसार हाल के दिनों में वैक्सीन लगाने की दर बहुत ही अच्छी रही है। वे कहते हैं, “लेकिन हमें इस बात को भी समझना पड़ेगा कि 60 साल से अधिक उम्र के लोगों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या तीन करोड़ है। उन्हें वैक्सीन की दो डोज लगाने में नौ महीने लगेंगे।” अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर जमील के अनुसार हालात को काबू में लाने के लिए हमें वैक्सीनेशन की संख्या तेजी से बढ़ानी पड़ेगी।

भारत में जनवरी के मध्य में वैक्सीन लगाना शुरू किया गया था। स्वास्थ्यकर्मियों, फ्रंटलाइन वर्करों और 60 साल से अधिक उम्र के लोगों से इसकी शुरुआत की गई। अभी तक करीब 5.5 करोड़ लोगों को वैक्सीन की एक डोज और करीब एक करोड़ लोगों को दो डोज दी जा चुकी है। कोविड-19 से जितने लोगों की मौत हुई, उनमें 88 फीसदी 45 साल से अधिक उम्र के हैं। इसलिए स्वास्थ्य मंत्रालय उन जिलों में वैक्सीनेशन में तेजी लाने की बात कह रहा है जहां नए मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी कहा है कि ज्यादातर प्रभावित जिले ‘टेस्टिंग, ट्रैकिंग और आइसोलेटिंग’ के बुनियादी सिद्धांत को नहीं मान रहे हैं।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के पूर्व प्रमुख एन.के. गांगुली कहते हैं कि अगर सप्लाई की दिक्कत न हो तो ज्यादा संक्रमण वाले राज्यों में 29 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन लगानी चाहिए। इस उम्र के कामकाजी लोग ही अधिक यात्राएं करते हैं। वे कहते हैं, “मैं अमेरिकी एफडीए और यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी की तरफ से स्वीकृत वैक्सीन को भी भारत में अनुमति देने की सिफारिश करूंगा, क्योंकि वे बेहद परिपक्व रेगुलेटर हैं।”

वैक्सीनेशन में लोगों की हिचक आड़े आ रही है। देश में करीब एक करोड़ स्वास्थ्यकर्मी है जिनमें से सिर्फ 51 लाख ने वैक्सीन की दो डोज ली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्षेत्रीय कार्यालय में संक्रामक रोग विभाग के पूर्व डायरेक्टर राजेश भाटिया ने आउटलुक से कहा, “सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में मैं करीब 45 वर्षों से हूं, लेकिन इससे आसान और बेहतर मेकैनिज्म मैंने पहले कभी नहीं देखा।” भाटिया देहरादून में रहते हैं। पहला टीका लगवाने के लिए वे अस्पताल जा रहे थे, तो उन्हें उम्मीद थी कि वहां लंबी कतार होगी। लेकिन ऐसा नहीं था। वे कहते हैं, “सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन लोग कहां हैं?”

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि उनके ब्लॉक में छह वैक्सीनेशन केंद्र हैं। हर केंद्र में रोजाना 100 लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य है, लेकिन हर केंद्र पर औसतन 30 वैक्सीन लगाए जा रहे हैं। इस तरह ब्लॉक में रोजाना 600 वैक्सीन के लक्ष्य की जगह सिर्फ 180 लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है। अधिकारी के अनुसार डर और अविश्वास इसकी बड़ी वजह है। लोग वैक्सीन के साइड इफेक्ट और मौतों की खबरें पढ़ते हैं, और वैक्सीन से डरते हैं।

वैक्सीनेशन के बाद भी दूरी का पालन आवश्यक

वैक्सीनेशन के बाद भी दूरी का पालन आवश्यक

भारत में अभी दो तरह की वैक्सीन उपलब्ध हैं- कोविशील्ड और कोवैक्सीन। दोनों विवादास्पद रही हैं। देश में विकसित कोवैक्सीन को शुरू में हड़बड़ी में मंजूरी दिए जाने को लेकर विवाद हुआ। लेकिन मार्च के शुरुआत में इसके अंतरिम नतीजे आए तो पता चला कि यह वैक्सीन 81 फीसदी प्रभावी है। अब ब्राजील ने क्वालिटी पर सवाल उठाते हुए कोवैक्सीन को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। इस बीच विदेशों में भी एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवाने वाले कुछ लोगों में खून का थक्का जमने की शिकायतें आईं। लेकिन यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी ने यह कहकर लोगों का डर दूर करने की कोशिश की, कि लोगों के बीमार पड़ने और मौत से बचाने में यह वैक्सीन जितनी प्रभावी है उसकी तुलना में खून का थक्का जमने की शिकायतें बहुत कम हैं। एजेंसी के अनुसार यूरोप में करीब दो करोड़ लोगों को यह वैक्सीन लगाई गई, जबकि खून का थक्का जमने की सिर्फ 15 शिकायतें आईं।

बजट सत्र के दौरान स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा में बताया, “16 मार्च तक वैक्सीन लगवाने वाले 89 लोगों की मौत हुई। लेकिन किसी भी मौत को कोविड-19 वैक्सीनेशन से सीधे नहीं जोड़ा जा सकता।” उन्होंने कहा कि वैक्सीनेशन के बाद किसी भी विपरीत प्रभाव (एईएफआइ) की मॉनिटरिंग का सिस्टम बहुत ही प्रभावी है। वैक्सीनेशन साइट पर जरूरी किट उपलब्ध कराने के साथ जरूरतमंद मरीजों को एईएफआइ मैनेजमेंट सेंटर भेजा जा रहा है। लेकिन इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स के संपादक अमर जेसानी कहते हैं, “सरकार भले ही कह रही हो कि इन मौतों का वैक्सीन से कोई संबंध नहीं है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मौत के कारणों की पर्याप्त जांच होती है। हमें वैक्सीनेशन रोकना नहीं चाहिए लेकिन हमें इसके प्रभावों को भी जानने की जरूरत है, ताकि विपरीत स्थिति में उसका पूरा फॉलोअप किया जा सके और उचित दवाएं दी जा सकें।”

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट के. श्रीनाथ रेड्डी के अनुसार जनवरी में जब संक्रमण के मामले लगातार कम हो रहे थे और वैक्सीन की स्वीकार्यता कम थी, तब से लेकर अब तक हालात काफी बदल गए हैं। संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है और लोग म्यूटेंट को लेकर चिंतित हैं। इसलिए इन परिस्थितियों में हमें वैक्सीन देने क्षमता बढ़ानी चाहिए। इसके लिए ज्यादा लोग भर्ती किए जाएं, उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए और नए केंद्र खोले जाएं। वैक्सीनेशन में निजी क्षेत्र की भागीदारी अभी तक बहुत कम है। कुल 43,182 वैक्सीनेशन केंद्रों में से सिर्फ 5,630 निजी क्षेत्र में हैं।

रेड्डी के अनुसार अभी वैक्सीन लगाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि अगर कोई व्यक्ति संक्रमित होता है तो उसकी स्थिति ज्यादा न बिगड़े। अभी तक इस बात के सबूत नहीं हैं कि वैक्सीन लगाने से संक्रमण कम होता है, लेकिन तर्क के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा बीमार नहीं पड़ता है तो उसके शरीर से ज्यादा वायरस नहीं निकलेंगे। रेड्डी के अनुसार ट्रायल से तो नहीं, लेकिन वैक्सीनेशन के बाद के अध्ययनों से ऐसे साक्ष्य मिल रहे हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि वैक्सीन लगाने के बाद संक्रमण कम होता है। इसलिए हमें वैक्सीनेशन बढ़ाने की जरूरत है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग बचाए जा सकें। वे कहते हैं, “संक्रमण कम करने के लिए हम सिर्फ वैक्सीनेशन पर निर्भर नहीं रह सकते। मास्क लगाना, शारीरिक दूरी और बड़े इवेंट से बचने जैसे सभी उपायों पर हमें अमल करना चाहिए।” फिलहाल, सबसे अधिक एक्टिव केस वाले 10 जिलों में आठ महाराष्ट्र के हैं। बाकी दो बेंगलुरु और दिल्ली हैं। महामारी विज्ञानी जयप्रकाश मुलियिल कहते हैं, “लोग घरों से निकले और बेफिक्र होकर दूसरों से मिलने-जुलने लगे। इस तरह कोरोनावायरस को फैलने के लिए नए कैरियर मिल गए।”

म्यूटेशन की भी समस्या है, जो वायरस के मामले में प्राकृतिक है। दिसंबर से अभी तक करीब 11,000 सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग की जा चुकी है। इनमें से 807 सैंपल में इंग्लैंड का स्ट्रेन, 47 में दक्षिण अफ्रीका का स्ट्रेन और सिर्फ एक में ब्राजील का स्ट्रेन पाया गया। महाराष्ट्र में हाल में कुछ सैंपल में डबल म्यूटेंट वायरस का पता चला, जो चिंता का नया विषय बनकर उभरे हैं। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि अभी तक ऐसा कोई सबूत नहीं जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि डबल म्युटेंट वायरस की वजह से संक्रमण बढ़ रहा है।

शाहिद जमील के मुताबिक वायरस जब भी अपनी संख्या बढ़ाते हैं, तो ऐसा करते वक्त उनके आरएनए में गड़बड़ियां होती हैं। ये गड़बड़ियां बेतरतीब ढंग से होती हैं। ज्यादातर गड़बड़ियां वायरस के लिए ही नुकसानदायक होती हैं, इसलिए हमें वे वायरस कभी नहीं मिलते। लेकिन जमील के अनुसार डबल म्यूटेंट वायरस चिंताजनक हो सकता है, क्योंकि स्पाइक प्रोटीन में दो म्यूटेशन की वजह से वायरस कोशिकाओं को ज्यादा मजबूती से जकड़ सकते हैं।

मुलियिल कहना है कि म्यूटेंट अभी चिंता का बड़ा कारण नहीं बने हैं। हालांकि यह दोबारा संक्रमण की दर पर निर्भर करेगा, यानी कितने लोग दूसरी बार संक्रमित हो रहे हैं। वे कहते हैं, “दुनियाभर में करोड़ों लोग कोरोनावायरस से संक्रमित हुए, लेकिन बहुत कम लोग हैं जो दूसरी बार संक्रमित हुए।”

श्रीनाथ रेड्डी का मानना है कि एक साल में कोरोनावायरस से लड़ते हुए हमने जो अनुभव हासिल किया है, उसे देखते हुए इसके नए सिरे से संक्रमण को रोक पाना संभव है। वे कहते हैं, “इसे नियंत्रित करने के लिए हमारे पास जानकारी और तरीके दोनों हैं, बशर्ते हम ऐसा करना चाहें। रेड्डी के अनुसार यहां दो बातों पर गौर करना जरूरी है। पहला है संक्रमण का फैलना और दूसरा, गंभीर संक्रमण से बचाव। वैक्सीन से ही दूसरे पर विजय पाई जा सकती है। लेकिन पहले पर विजय के लिए हमें अनुशासन का पालन करना पड़ेगा।”

कोरोना ग्राफिक

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