Advertisement

आवरण कथा/कांग्रेस: पंजाब में सियासी भंवर

कलह दूर करने के कांग्रेस आलाकमान के तरीके से बला की बिजलियों को बुलावा
कैप्टन अमरिंदर सिंह

कप्तान बदलने की कवायद संभल कर न की जाए तो कैसे कसैले नतीजे निकल सकते हैं, इसकी जीती-जागती मिसाल हाल में पंजाब कांग्रेस के घटनाक्रम हैं। विडंबना देखिए कि 17 मार्च को जब पंजाब की कांग्रेस सरकार ने चार साल का कार्यकाल पूरा किया तो माना जा रहा था कि 2022 में अगली पारी भी कांग्रेस ही खेलेगी। कमजोर विपक्ष और किसान आंदोलन के कारण समीकरण कांग्रेस के पक्ष में थे। लेकिन पिछले सात महीने में सतह पर आई पंजाब कांग्रेस की कलह से हालात डगमग हैं। कलह शांत करने के लिए पार्टी आलाकमान ने जो भारी उलटफेर किया, उससे 2022 में विधानसभा चुनाव की संभावनाएं भी अनिश्चित-सी हो गई हैं।

कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के साथ कैबिनेट में हुए फेरबदल के बावजूद कांग्रेस कुनबे की कलह नहीं थमी है। सुनील जाखड़ की जगह पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तो बन गए, लेकिन मुख्यमंत्री बनने की हसरत पूरी न होने पर दो महीने बाद ही अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे ने कांग्रेस की कलह और बढ़ा दी है। दूसरी तरफ विपक्षी दल चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं।

पंजाब कांग्रेस की कलह पर पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आउटलुक से बातचीत में कहा, “सब कुछ ठीक चल रहा था। जबसे सिद्धू कांग्रेस प्रधान बना है, सब कुछ तहस-नहस हो गया। कांग्रेस में रहते हुए वह किसी दूसरे को मुख्यमंत्री पद पर नहीं देख सकता। वह मुख्यमंत्री बनना चाहता है, पर मैं उसे विधायक भी नहीं बनने दूंगा। वह जहां से भी चुनाव लड़ेगा, उसके मुकाबले एक मजबूत चेहरा होगा। जब तक सिद्धू कांग्रेस में रहेगा, कांगेस का नाश करेगा। जल्द ही वह समय आने वाला है जब पंजाब में कांग्रेस का कोई नामलेवा नहीं होगा।” कैप्टन ने कहा कि जल्द ही वे अपनी पार्टी बनाकर कांग्रेस को पंजाब की सियासत से बाहर कर देंगे। कांग्रेस के कितने नेता उनकी नई पार्टी में शामिल होंगे, इस सवाल पर कैप्टन ने कहा, “कई विधायक और मंत्री संपर्क में हैं।”

 कैप्टन अमरिंदर सिंह साढ़े नौ साल मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके हैं और कद्दावर नेता हैं। 2014, 2019 के आम चुनावों और 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने मोदी लहर में 2014 में अमृतसर से भाजपा के बड़े नेता अरुण जेटली को हरा दिया था। इसलिए उनकी चुनौती को कमतर करके नहीं आंका जा सकता। फिर भी कांग्रेस ने उनकी जगह चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर दलित कार्ड खेलने की कोशिश की है। अब देखना है कि राज्य में पहले दलित मुख्यमंत्री का 32 फीसदी दलित मतदाताओं पर क्या असर पड़ता है। लेकिन 22 फीसदी जट्ट सिखों और शहरी मध्यवर्गीय आबादी में कैप्टन को 'बड़े बेआबरू करके' हटाया जाना शायद ही अच्छा माना जाए। कैप्टन जैसे सियासत के परिपक्व और मंझे हुए खिलाड़ी के मुकाबले कांग्रेस में जट्ट सिख नेता के तौर पर सिद्धू अभी तक अनाड़ी साबित हुए हैं।

सिद्धू

नए मुख्यमंत्री चन्नी के साथ अपनी नाराजगी दिखाने के लिए सिद्धू चन्नी के बेटे की शादी में जाने के बजाय वैष्णो देवी की यात्रा पर चले गए

तीन महीने पहले प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए सिद्धू की मुख्यमंत्री चन्नी से भी दूरी कम होती नहीं दिखती। हाल में चन्नी के बेटे की शादी में सिद्धू नहीं पहुंचे और वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा पर निकल गए। 2022 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी कांग्रेस का चेहरा होंगे या नवजोत सिंह सिद्धू, इस पर कांग्रेस में अभी से बवाल मचा हुआ है। यही बवाल टिकट वितरण में भी होगा, कि चन्नी की चलेगी या सिद्धू की।

चन्नी

बेटे की शादी में पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी

कांग्रेसी हलकों में माना जा रहा है कि चन्नी कांग्रेस आलाकमान का मास्टर स्ट्रोक हैं। 54 विधानसभा क्षेत्रों में दलित कुल मतदाताओं के 30 प्रतिशत से अधिक हैं। अन्य 45 विधानसभा क्षेत्रों में  20 से 30 प्रतिशत के बीच दलित हैं। वे किसी भी राजनीतिक दल की जीत या हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इसलिए शिरोमणि अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन के बाद किसी दलित को उप-मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया है। आम आदमी पार्टी ने भी सत्ता में आने पर दलित को उप-मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया है।

पंजाब में 38 प्रतिशत हिंदू और 22 प्रतिशत जट्ट सिख मतदाता हैं, लेकिन चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस को अनुसूचित जाति मतदाता का गणित एकतरफा अपने पक्ष में दिख रहा है। सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के अनुसार 2002 में 33 प्रतिशत, 2007 में 49 प्रतिशत, 2012 में 51 प्रतिशत और 2017 में 41 प्रतिशत दलित सिख वोट मिलने के बावजूद कांग्रेस 2002 और 2017 में ही सरकार बना पाई। 2007 से 2017 तक अकाली दल-भाजपा गठबंधन सत्ता में रहा। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 निर्वाचन क्षेत्रों में से 21 पर जीत हासिल की, लेकिन इन निर्वाचन क्षेत्रों में उसका वोट शेयर उसके औसत वोट शेयर से कम था। अगले साल यह बढ़ता है या नहीं, यह देखने की बात होगी।

कांग्रेस की चुनौतियां

कैप्टन का असर

कैप्टन अमरिदंर सिंह की विदाई के बाद पंजाब कांग्रेस में बिखराव है। कैप्टन के फैसले का इंतजार है कि वे कब अपनी पार्टी खड़ी करेंगे। कैप्टन की नई पार्टी कांग्रेस में ही सेंध लगाएगी। विधायक अपने टिकट और पार्टी की संभावनाओं को लेकर चिंतित हैं। कहते हैं, 17-18 विधायक और चार-पांच सांसद उनके संपर्क में हैं। उन्हें नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कैसे विश्वास दिलाते हैं और कैप्टन की नई पार्टी से कांग्रेस को कैसे बचाते हैं, इसी से चन्नी का बतौर सीएम और कांग्रेस का सियासी भविष्य तय होगा।

किसानों में पैठ

पंजाब में किसानों का वोटिंग रुख क्या रहता है, यह अभी स्पष्ट नहीं है। मुख्यमंत्री चन्नी ने न सिर्फ तीन केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध किया है, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर इन कानूनों को वापस लेने की मांग भी की है। लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये भी दिए। उन्होंने पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि किसान हितों के लिए सिर कटाने को भी तैयार हैं। लेकिन किसान यूनियनें किसी तरफ झुकाव नहीं दिखा रही हैं। 

धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी

2015 और 2016 में धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के मामलों को लेकर बहबलकलां और बरगाड़ी में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस गोलीबारी में तीन लोगों के मारे जाने के आरोप तत्कालीन अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार पर लगे थे। पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट में मामले की पैरवी को रफ्तार देने के लिए मुख्यमंत्री चन्नी ने कानूनी विशेषज्ञों की नई फौज खड़ी की है, पर चुनौती अगले तीन महीने में दोषियों को सजा दिलाने की है।

नशे पर नियंत्रण

पंजाब में ड्रग्स की खपत पर लगाम लगाना एक संवेदनशील मुद्दा है। स्थानीय नेताओं के साथ पंजाब पुलिस और अंतरराष्ट्रीय ड्रग्स तस्करों की मिलीभगत तोड़ना भी एक कड़ी चुनौती है।

18 सूत्री एजेंडा

कांग्रेस आलाकमान ने 18 सूत्री एजेंडा दिया है, जिसे लागू करना चार महीने के मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं होगा। 2022 में चरणजीत सिंह चन्नी के समक्ष यह चुनौती रहेगी कि वे कांग्रेस की डूबती नैया पार लगा पाते हैं या नहीं। उनके सामने मुश्किलें कई हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement