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कांग्रेस तो मूल भी न बचा पाई

भाजपा ने ऐसा सूपड़ा साफ किया कि कांग्रेस का नशा उतरा
खुशी के क्षणः पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे

कुछ मिथक टूटे, कुछ नए बने। राजस्थान में भाजपा ने पिछले दो दशक से चली आ रही उस परिपाटी को तोड़ दिया, जिसके तहत विधानसभा चुनावों में बढ़त लेने वाले दल को ही लोकसभा चुनावों में भी सफलता मिलती है। भ्‍ााजपा ने राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस को ऐसी शिकस्त दी कि उसका लोकसभा चुनावों में खाता भी नहीं खुल सका। भाजपा ने राज्य में 25 में से 24 सीटें जीत लीं और एक सीट पर अपने सहयोगी दल को जिताने में कामयाब रही। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा ने राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण करके जीत हासिल की है। इन चुनावों में भाजपा ने बहुत मेहनत की और प्रचार अभियान कुशलता से चलाया। इसके उलट सत्तारूढ़ कांग्रेस का अभियान बिखरा और गुटों में बंटा नजर आया। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनावों से कोई सबक नहीं सीखा, बल्कि इसके नेता एक-दूसरे को सबक सिखाने में लगे रहे। पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने बेशक 200 में से 99 सीटें जीत कर भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया। मगर, कांग्रेस ने यह गौर नहीं किया कि भाजपा के विरुद्ध सरकार विरोधी लहर होने के बावजूद उसके एक दर्जन उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। मगर पार्टी राज्य में सत्ता मिलने के जश्न में इस कदर मशगूल हो गई कि इन संकेतों पर गौर नहीं किया।

इन चुनावों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बड़ा आघात तो लगा ही, उन्हें अपने गृह क्षेत्र जोधपुर में पुत्र वैभव गहलोत की पराजय से व्यक्तिगत क्षति भी हुई है। गहलोत के विधानसभा क्षेत्र सरदारपुरा में भी कांग्रेस पिछड़ गई। उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट के चुनाव क्षेत्र टोंक में भी कांग्रेस मात खा गई। इन परिणामों से लगता है कि कांग्रेस के उम्मीदवार अपने प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले कहीं ठहर नहीं पाए। भाजपा के 21 उम्मीदवार दो लाख या इससे अधिक अंतर से जीते। भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनावों के मुकाबले इस बार अपने वोटों में अच्छी बढ़ोतरी की है। जयपुर देहात से भाजपा के उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने भी करीब चार लाख वोटों के भारी भरकम अंतर से जीत हासिल की।

राजस्थान में 1998 से ही यह चलन बना हुआ है कि जो पार्टी विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करती है, उसे ही लोकसभा चुनावों में बढ़त मिलती है। यह सिलसिला 2014 तक बना रहा। मगर, इस बार भाजपा ने इस मिथक को तोड़ दिया। राज्य कांग्रेस के महासचिव महेश शर्मा ने आउटलुक से कहा, “भाजपा ने भावनात्मक मुद्दों का सहारा लेकर यह चुनाव जीता है। उसने झूठ का सहारा लिया।”  दूसरी ओर, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सतीश पुनिया कहते हैं, “कांग्रेस बहुत रूढ़िवादी सोच से चल रही है। अब वंशवाद की राजनीति का लोप हो गया है। अगर कांग्रेस ऐसे ही चलती रही तो वह खत्म हो जाएगी।”

विश्लेषक कहते हैं कि इन चुनावों में कांग्रेस अपना पारंपरिक वोट बैंक भी सुरक्षित नहीं रख पाई। राज्य में 17 फीसदी अनुसूचित जाति, 13 फीसदी जनजाति और 10 प्रतिशत अल्पसंख्यक मतदाता कांग्रेस के करीब माने जाते हैं। लेकिन इस बार इन वर्गों में कोई खास उत्साह नहीं था। कांग्रेस को राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल से सुलह न करना भारी पड़ा जबकि भाजपा ने इस अवसर को लपक लिया और बेनीवाल के लिए नागौर सीट छोड़कर जाट बहुल क्षेत्रों में स्थिति मजबूत कर ली।

भाजपा ने विधानसभा चुनाव के वक्त ही लोकसभा की तैयारियां शुरू कर दी थी। उस वक्त पार्टी के एक समर्थक वर्ग ने ‘वसुंधरा तेरी खैर नहीं, मोदी तुझ से बैर नहीं’ का नारा उछाला था, ताकि राज्य में भाजपा विरोधी गुस्सा विधानसभा चुनाव तक सीमित रहे और आम चुनाव में मोदी के अभियान पर कोई आंच नहीं आए। उसे इस रणनीति का लाभ मिला।

 

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