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“इस विघटनकारी एजेंडे से देश टूट जाएगा”

पूरे देश में एनआरसी लागू होता है तो अराजकता फैलेगी। यह देश को तोड़ेगा, संघीय ढांचे को तबाह करेगा। समझदारी यही है कि इस विचार को त्याग देना चाहिए
मुद्दा 2019 नागरिक प्रश्न, पूर्व गृहमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी.चिदंबरम

देश में इस समय नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है। कई राज्यों में तीखा विरोध हिंसक भी हो उठा है। समाज के एक बड़े तबके को लगता है कि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी संविधान के मूल्यों के खिलाफ है और इससे एक खास तबके को प्रताड़ित किया जाएगा। हालांकि केंद्र सरकार इन दावों को पूरी तरह से नकार रही है। उसका कहना है कि विपक्ष जानबूझ कर एक बड़े वर्ग को भड़का रहा है, जबकि इस समय नया कानून देश की जरूरत है। इन आरोपों पर विपक्ष का क्या कहना है? क्यों यह कानून संविधान के मूल्यों के खिलाफ है और क्यों मुस्लिम तबके के लिए यह विभाजनकारी कानून हो सकता है। इस मसले पर पूर्व गृहमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी.चिदंबरम ने आउटलुक के प्रशांत श्रीवास्तव के सवालों के जवाब दिए। प्रमुख अंशः

 

नागरिकता संशोधन कानून का इतने बड़े पैमाने पर विरोध की क्या वजह है?

नागरिकता संशोधन कानून भारत के संविधान का उल्लंघन करता है। यह पूरी तरह से गैर-समावेशी, गैर-बराबरी का पोषक, विभाजनकारी और संविधान के मूल्यों के खिलाफ है। खास तौर से नागरिकता संशोधन कानून संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। इसी वजह से समाज के सभी वर्गों में इसका विरोध हो रहा है।

नागरिकता संशोधन कानून क्या संविधान की भावना के खिलाफ है, क्या यह सुप्रीम कोर्ट  इसे खारिज कर सकता है?

यह कानून कई सारी शंकाएं पैदा करता है। इसकी वजह से लगातार सवाल उठ रहे हैं। कानून को लेकर कई प्रमुख कानूनविद और प्रबुद्ध विद्वानों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में यह टिक नहीं पाएगा। यह पूरी तरह से असंवैधानिक है। जहां तक मेरा सवाल है, मेरी भी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर ऐसी ही राय है।

लेकिन कई कानूनविदों का मानना है कि यह कानून अनुच्छेद-14 का उल्लंघन नहीं करता है, आपका इस पर क्या कहना है?

निश्चित तौर पर इस कानून को लेकर दूसरा पक्ष भी होगा। मैंने कानून के समर्थकों के तर्कों को भी देखा है। हमने बहुत ठोस सवाल कानून का समर्थन करने वालों से पूछे थे। मैंने राज्यसभा के अपने भाषण में इन सवालों को उठाया था। लेकिन हमें इसका संतोषप्रद जवाब नहीं मिला। जब तक कानून पर सवाल उठाने वालों को सरकार की तरफ से संतोषजनक जवाब नहीं मिलेगा, हमें यही मानना पड़ेगा कि सरकार के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं है। मेरे विचार से यह कानून पूरी तरह से संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।

केंद्र सरकार का कहना है कि विपक्ष मुसलमानों को भड़का रहा है, जबकि कानून में भारतीय मुसलमानों के खिलाफ कुछ भी नहीं है।

हम मुसलमानों या किसी भी दूसरे वर्ग को कानून के खिलाफ भड़का नहीं रहे हैं। अहम बात यह है कि इस कानून का विरोध करने वालों में मुसलमानों से ज्यादा हिंदू या दूसरे गैर-मुस्लिम धर्म के लोग हैं। विरोध करने वालों में कुछ लोग नास्तिक भी हैं। विरोध करने वालों को मुसलमान कहना और दूसरों पर उन्हें भड़काने का आरोप लगाना, भाजपा की छोटी सोच को दिखाता है। जब नागरिकता संशोधन कानून लागू हो जाएगा और उस पर अमल शुरू होगा, तब आपको एहसास होगा कि कानून को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि उसके जरिए मुसलमानों के साथ भेदभाव हो। मुसलमानों पर नागरिकता संशोधन कानून का बोझ बहुत भारी पड़ेगा। नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का मकसद ही मुसलमानों की पहचान कर उन्हें अलग-थलग करना है। इस कानून का दुष्परिणाम श्रीलंका से आए तमिल हिंदुओं और भूटान से आए ईसाइयों पर भी पड़ेगा। ऐसे में, सत्ता पक्ष विपक्ष पर जो आरोप लगा रहा है, वह पूरी तरह से आधारहीन है।

आप केंद्र में गृह मंत्री रह चुके हैं। आप शरणार्थियों की समस्याओं को किस तरह से देखते हैं, क्या इसे दूर करने का, एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून लागू करना ही एकमात्र तरीका है?

किसी भी उदार लोकतंत्र में शरणार्थियों के लिए कानून होना बेहद जरूरी है। दुनिया के कई देशों में ऐसा कानून है। इसके लिए मॉडल कानून हैं। भारत के पास भी शरणार्थियों को लेकर एक ऐसा कानून होना चाहिए जो विस्थापन, शरण मांगने, नागरिकता और निवास की समस्याओं को बेहतर तरीके से हल कर सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड में एक चुनावी रैली में कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों की पहचान उनके पहनावे से की जा सकती है। उनके इस बयान को आप किस तरह से देखते हैं?

यह बहुत ही आश्चर्यजनक और किसी भी सूरत में आपत्तिजनक बयान था। हालांकि उनके बयान से यह समझ में नहीं आता है कि वह किसकी ओर इशारा कर रहे हैं। आप कैसे किसी के पहनावे से विरोध करने वालों की पहचान कर सकते हैं। मान लीजिए कोई छात्र जींस या टी-शर्ट पहना हुआ है तो आप उसके संबंध में उसके पहनावे के जरिए कोई धारणा कैसे बना सकते हैं? मेरा ऐसा मानना है कि प्रधानमंत्री ने यह बयान बिना सोचे-समझे दिया है।

नागरिकता संशोधन कानून के आलोचकों का कहना है कि केंद्र सरकार एनआरसी और नागरिकता कानून के जरिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदुत्ववादी एजेंडे को चुपके से लागू कर रही है।

मेरा ऐसा सोचना है कि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी निश्चित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने का जरिया है। ऐसे में जो लोग बहुलवाद, समावेशी और गैर-विभेदकारी समाज में विश्वास करते हैं, उन्हें हिंदू राष्ट्र के एजेंडे का विरोध करना चाहिए।

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि यह कानून केवल तीन देशों में धार्मिक रूप से प्रताड़ित हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी को नागरिकता देने की बात करता है। ऐसे में किसी भारतीय मुसलमान को डरने की जरूरत नहीं है।

हमनें सरकार से पूछा कि नागरिकता संशोधन कानून में केवल तीन देशों को क्यों शामिल किया गया? क्यों दूसरे पड़ोसी देशों और उनके अल्पसंख्यक समुदायों को शामिल नहीं किया गया? हमने यह भी पूछा कि क्यों उन सभी लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया, जिनके साथ किसी भी तरह का उत्पीड़न किया गया है? इससे आगे जाकर हमने यह भी पूछा है कि कैसे कोई व्यक्ति यह साबित करेगा कि उसका कई वर्षों पहले धार्मिक उत्पीड़न हुआ था? साथ ही धार्मिक उत्पीड़न की वजह से ही वह या उसका परिवार में भारत शरण लेना चाहता है।

सरकार कह रही है कि पूरे देश में वह एनआरसी को लागू करेगी। ऐसे में अगर यह लागू किया जाता है तो उसका क्या असर होगा?

अगर पूरे देश में एनआरसी को लागू किया गया तो जैसी अराजकता असम में देखी गई है, उससे कहीं बड़े स्तर पर देश में अराजकता फैलेगी। यह देश को तोड़ देगा। यह संघीय व्यवस्‍था को तबाह कर देगा। बड़े पैमाने पर हिंसा बढ़ेगी। असम की एनआरसी एक खंडहर पर खड़ी है। इसने 1,600 करोड़ रुपये बर्बाद कर दिए हैं। क्या हम पूरे देश में एनआरसी को लागू कर ज्यादा समय और पैसे की बर्बादी बर्दाश्त कर पाएंगे? समझदारी तो यही कहती है कि पूरे देश में एनआरसी लागू करने की योजना और नागरिकता संशोधन कानून को वापस ले लेना चाहिए।

 

 

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