नासिक के तपोवन में पेड़ों को बचाने के लिए घरेलू कामगार ‘चिपको आंदोलन’ की तर्ज पर उठ खड़े हुए हैं। 2026-27 कुंभ मेले से पहले प्रस्तावित साधु ग्राम के लिए 1,700 पेड़ों को काटने की मुहिम का पूरे महाराष्ट्र में विरोध हो रहा है। पिछले तीन हफ्तों से नागरिक समाज समूह और स्थानीय संगठनों ने इस प्रोजेक्ट के खिलाफ मोर्चा खोल दिया हैं। तपोवन वृक्ष आंदोलन स्थानीय मुद्दे से बढ़कर व्यापक जनआंदोलन बनता जा रहा है। 5 दिसंबर को नासिक की लगभग 25 घरेलू कामगारों ने पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलन शुरू किया था। उनकी प्रेरणा 1970 के दशक का वन रक्षा मुहिम चिपको आंदोलन है, जिसमें गांववाले पेड़ों को बचाने के लिए उनसे चिपक जाते थे, उसमें ज्यादातर महिलाएं थीं। प्रकृति की रक्षा के लिए आम लोगों के मोर्चा खोलने का वह अद्भुत आंदोलन था।
एआइटीयूसी से जुड़ी नासिक जिला घरेलू कामगार यूनियन की शहर अध्यक्ष मीना जाधव और शहर सचिव प्राजक्ता कपडने की अगुआई में तपोवन में भारी विरोध प्रदर्शन हुआ। उसमें महिलाएं लाल साड़ी में थीं। 38 साल की सुषमा उघाड़े अपनी 11 साल की बेटी के साथ वहां पहुंची थी।
सुषमा उघाड़े ने कहा, “मैंने प्रदर्शन में शामिल होने के लिए एक दिन की छुट्टी ली। मेरी बेटी इसलिए आई क्योंकि उसे यह जानना था कि आखिर पेड़ क्यों काटे जा रहे हैं। तपोवन के आसपास के लोगों ने हमसे इसके बारे में पूछा, हमारी कोशिश की तारीफ की और कहा कि वे भी इसमें शामिल होना चाहेंगे। पेड़ हमें फल से लेकर ऑक्सीजन तक सब कुछ देते हैं, इसलिए मुझे लगा कि मुझे विरोध करना चाहिए।” सुषमा के साथ छाया वरडे, हसीना शेख, सुषमा रामराजे, आशा शिवड़े, लता पठारे, प्रणाली चंद्रमोर, शोभा अभंग, बेबी वानखेड़े, ज्योति पवार, ललिता थोम्ब्रे और मुमताज शेख भी एआइटीयूसी के दूसरे कार्यकर्ताओं के साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल हुईं। इन महिलाओं ने आंदोलन को और बड़ा करने का इरादा जाहिर किया है।
प्रदर्शन में शामिल घरेलू कामगार 38 साल की प्रणाली चंद्रमोर ने कहा, “कल से हम अपने तरीके से जागरूकता फैलाना शुरू करेंगे, अपने पड़ोस में या अपने मालिकों के साथ। हम लोगों से पेड़ लगाने और उनकी रक्षा करने की अपील करेंगे। मैं नहीं चाहती कि अगली पीढ़ी प्रदूषित माहौल में परेशान हो। हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए पेड़ छाया और साफ हवा का स्रोत हैं। वे हमारा ऑक्सीजन हैं।”
पेड़ों को बचाने के लिए आगे आईं इन घरेलू कामगारों की आमदनी बहुत थोड़ी है। एक दिन की भी छुट्टी लेना उनके लिए मुश्किल होता है। ज्यादातर महिलाओं की आमदनी महीने में 10,000 से कम है। उनका दिन सुबह करीब 4 बजे शुरू हो जाता है। वे अपने घर के काम भी निपटाती हैं और बाकी दिन मालिकों के घरों में काम करती हैं।
इन महिलाओं ने यहां आने के लिए अपने मालिकों से छुट्टी मांगी थी। टेलीफोन पर हुई बातचीत में महिलाओं ने कहा कि कई मालिकों ने उनके फैसले का समर्थन किया, कोशिश की तारीफ की और भरोसा दिलाया कि मेहनताने में कोई कटौती नहीं होगी।
49 साल की मीना आधव ने आउटलुक से कहा, “ज्यादातर घरेलू कामगारों ने शहर के जंगल वाले टूरिस्ट स्पॉट तपोवन को कभी नहीं देखा था, क्योंकि उनके पास समय, मौका और पैसे नहीं होते हैं। एक दिन की छुट्टी का मतलब आम तौर पर मेहनताने का नुकसान होता है, फिर भी महिलाएं यहां पहुंचीं। प्रदर्शन के बाद सभी महिलाएं तपोवन घूमीं, जो घरेलू कामगारों के लिए नामुमकिन जैसा होता है।’’
इन घरेलू कामगारों के लिए पर्यावरण की रक्षा की बात उनके अपने अनुभव से आती है। हो सकता है कि उन्हें जलवायु परिवर्तन का मतलब न पता हो, लेकिन उनकी समझ मुश्किलों पर आधारित है।
मीना कहती हैं, “मुझे ऑक्सीजन की कीमत पता है। कोविड महामारी के दौरान, लाखों लोग उसके लिए तड़प रहे थे। अस्पताल भरे हुए थे। मैंने अपनी बस्ती के एक दोस्त को खो दिया क्योंकि ऑक्सीजन या इलाज नहीं मिला। मेरी बेटी ने उसे किसी तरह अस्पताल में भर्ती करवाया, लेकिन वह बच नहीं पाई। उसकी पूरी जिंदगी गरीबी से लड़ने में बीती। ऑक्सीजन से मेरा यही मतलब है। तो जब हमारे पास कुदरती जंगल हैं, तो महाराष्ट्र सरकार उसे खत्म क्यों करना चाहती है?”

एकजुट रहवासी
एक और घरेलू कामगार नाम न छापने की शर्त पर कहती हैं, “पेड़ हमारे कुदरती एसी और हमारी साफ हवा हैं। हम एसी का खर्च उठा सकते हैं?”
तपोवन खत्म होने का मतलब आसपास रहने वाले कई गरीब परिवारों की रोजी-रोटी का नुकसान भी होगा। यहां कई लोग आने वाले टूरिस्ट और यूं ही तफरीह के आने वालों के लिए चाय और नाश्ते की छोटी दुकानें चलाते हैं। हालांकि म्युनिसिपल अधिकारियों और मंत्रियों, जिनमें गिरीश महाजन भी शामिल हैं, ने किसी दूसरी जगहों पर इतने ही पेड़ लगाने की बात की है, लेकिन लोग पेड़ काटने का कड़ा विरोध कर रहे हैं। यह मुद्दा हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र में भी नासिक से शिवसेना (यूबीटी) के सांसद राजाभाऊ वाजे ने उठाया था।
प्रदर्शन आयोजन करने में जुटी युवा एक्टिविस्ट प्राजक्ता कपडने कहती हैं कि “लाल साड़ी में महिलाओं” को देखकर उम्मीद जगती है। उन्होंने कहा, “हम अब घर-घर जाकर पर्चे बांटकर बड़ा जागरूकता अभियान चलाने की योजना बना रहे हैं।”
प्रदर्शनकारियों ने जोर देकर कहा कि वे कुंभ मेले या किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं हैं। वे कुंभ मेले को नासिक की पहचान का हिस्सा मानते हैं, लेकिन जोर देते हैं कि उसके नाम पर पेड़ नहीं काटे जाने चाहिए। उनकी मांग है कि सरकार पेड़ काटने के प्रोजेक्ट को फौरन रोके और कोई दूसरा विकल्प ढूंढे।
नासिक कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार होता है, जो ज्योतिषीय गणना के अनुसार होता है। चूंकि बृहस्पति सिंह राशि में आते हैं इसलिए इसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है। आम तौर पर यह जुलाई और सितंबर के बीच गोदावरी नदी के किनारे लगता है।
दो हफ्ते से ज्यादा हो गए, जबसे लोग गोदावरी के किनारे तपोवन जंगल में बरगद और इमली के पेड़ों के नीचे जुट रहे हैं, क्योंकि उन्हें म्युनिसिपल नोटिस से डर लग रहा है। यह जमीन 2026-27 के कुंभ मेले में आने वाले संतों के लिए कुछ समय के लिए रहने की जगह के तौर पर तय की गई है। खबरों के मुताबिक, लगभग 1,700 पेड़ काटे जा सकते हैं। इस योजना से लोगों में भारी गुस्सा है। एक्टर सयाजी शिंदे पश्चिमी महाराष्ट्र में पेड़ लगाने के लिए जाने जाते हैं और अब एक क्षेत्रीय राजनैतिक संगठन में सक्रिय हैं। वे भी प्रदर्शन में शामिल हुए। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक भी पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए।
नासिक में रहने वाले पर्यावरणविद 34 साल के रोशन केदार ने कहा, “शुरू में नगर निगम के अधिकारी ईमेल पर लोगों की आपत्तियों और सुझाव पर गौर ही नहीं किया। सबसे खुद आकर आपत्तियां देने को कहा गया, जो व्यावहारिक नहीं था। हमने उनसे ईमेल से भेजी गई आपत्तियों पर गौर करने की मांग की। ऐसी सैकड़ों आपत्तियां प्रशासन को भेजी गई हैं, फिर भी फैसले को वापस लेने के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है, लेकिन नासिक के हर तबके के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। धीरे-धीरे यह आंदोलन बड़ा बनता जा रहा है।”

यहां जुट रहे लोगों का साथ देना जरूरी है। किसी भी काम के लिए, कहीं भी एक भी पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए, फिर यह तो तपोवन है
सयाजी शिंदे, अभिनेता
साथ में जिनित परमार के इनपुट