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बिहार: अब समाज सुधार बाबू

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल शराबबंदी की आलोचनाओं से पार पाने के लिए समाज सुधार अभियान में जुटे
मुजफ्फरपुर में समाज सुधार यात्रा को संबोधित करते मुख्यमंत्री नीतीश

अनेक लंबित मुकदमों की संख्या के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एन.वी. रमना ने बिहार में लागू शराबबंदी के निर्णय को भले ही अदूरदर्शी कदम करार दिया हो, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस कानून को प्रदेश में और मुस्तैदी से पालन करवाने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। यही नहीं, उन्होंने राज्यव्यापी समाज सुधार अभियान की शुरुआत की है, जिसके तहत उन्होंने न सिर्फ शराब पीने बल्कि दहेज और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी हल्ला बोल दिया है। 

पिछले दिनों, आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में एक लॉ कॉलेज के कार्यक्रम के दौरान प्रधान न्यायाधीश रमना ने कहा था कि कानूनों, खासकर आपराधिक कानूनों को, बगैर समझे-बूझे और बगैर दूरदृष्टि के ऐसे ही लागू कर दिया जाता है तो वैसा ही होता है जैसा कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद हो रहा है, जिसकी वजह से न्यायालयों में मुकदमों की संख्या बढ़ रही है। इस टिप्पणी के बाद बिहार में शराबबंदी कानून की समीक्षा करने के मांग उठी, लेकिन नीतीश ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार का इस कानून को वापस लेने का कोई इरादा नहीं है। यही नहीं, उन्होंने अपने नए अभियान के अंतर्गत विभिन्न जिलों में शराबबंदी के खिलाफ मुहिम तेज कर दी है। 22 दिसंबर को मोतिहारी से अभियान की शुरुआत के दौरान उन्होंने महिलाओं से अपील करते हुए कहा कि जो भी शराब पीते हैं, उन्हें घेरकर वे खूब नारा लगाएं और पुलिस को सूचना दें। वे जहां बैंठे, लोगों को शराब नहीं पीने के लिए प्रेरित करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि समाज सुधार के बिना विकास का कोई मतलब नहीं है। यही नहीं, उन्होंने अधिकारियों को हिदायत दी कि शादी समारोह करने की इजाजत सिर्फ वहां दी जाए जो दहेज, बाल विवाह और शराब से मुक्त हो। उन्होंने कहा, ‘‘कोरोना काल में शादी समारोह की अनुमति लेने का जो फॉर्मेट है, उसमें यह भी कॉलम जोड़ा जाए कि यह शादी दहेजमुक्त, बाल विवाह रहित और नशामुक्त आयोजन है। यह अभियान गांव-शहर में निरंतर चलेगा।’’ इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि शराब पीने से 200 बीमारियां होती हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में होने वाली कुल मौतों में से 5.3 प्रतिशत सिर्फ शराब पीने से होती हैं। फिर, सासाराम में उन्होंने कहा कि वे दारू पीने वालों को विद्वान और काबिल नहीं मानते और ऐसे लोग दरअसल समाज और गांधी के विरोधी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम वैसे भी किसी को बिहार आने की इजाजत नहीं देंगे जो यहां शराब पीने की इच्छा रखता है। अगर शराब पीनी है तो बिहार मत आइए।’’ हाल में पटना में संपन्न हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के 96वें वार्षिक अधिवेशन में भी उन्होंने शराबबंदी की पुरजोर वकालत करते हुए डॉक्टरों से कहा कि वे लोगों से दारू न पीने के लिए कहें।

नीतीश के अभियान पर राष्ट्रीय जनता दल और बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा कि बिहार को समाज सुधार से अधिक व्यवस्था सुधार की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘व्यवस्था दुरुस्त होने से अधिकांश सामाजिक समस्याएं स्वत: दूर हो जाएंगी। क्या बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य, विधि-व्यवस्था, भ्रष्टाचार, महंगाई, गरीबी, पलायन और बेरोजगारी शासन की व्यवस्था से संबंधित समस्याएं नहीं हैं? प्रशासनिक विफलता पर अंकुश लगाकर इन समस्याओं को क्यों नहीं दूर किया जा रहा है?’’

सत्तारूढ़ जनता दल-यूनाइटेड के नेता ऐसे आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं कि नीतीश ने दिखा दिया है कि राजनीति में रहकर समाज सुधार भी किया जा सकता है। स्वयं नीतीश का मानना है कि उनके समाज सुधार अभियान का व्यापक असर हो रहा है। वे कहते हैं, ‘‘कौन क्या बोलता है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। हमलोग नशामुक्ति, बाल विवाह और दहेज प्रथा उन्मूलन को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं। हमलोग जो अभियान चला रहे हैं, उसमें बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी जुड़े हैं।’’

2016 में नीतीश ने महिलाओं की मांग पर बिहार में शराबबंदी कानून लागू किया था। पिछले दिनों, प्रदेश में जहरीली शराब से 40 से अधिक लोगों की मृत्यु के बाद राज्य में और राज्य के बाहर इस कानून को वापस लेने की मांग बढ़ी। यह भी आरोप लगे कि पड़ोसी राज्यों और नेपाल से शराब की तस्करी में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इस कानून के तहत होने वाली गिरफ्तारियां भी बढ़ीं, जिसके कारण लंबित मुकदमों के संख्या में तेजी आई। अब नीतीश ने आम लोगों, खासकर महिलाओं का समर्थन प्राप्त करने के लिए समाज सुधार अभियान शुरू किया है, हालांकि भाजपा सहित अन्य घटक दल के जीतन राम मांझी जैसे कई नेता इस कानून के विरोध में हैं।

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