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दोस्ताना फार्मूले के अध्यक्ष

नए तालमेल से कांग्रेस को मिला पहला आदिवासी प्रदेश प्रमुख
कमानः नए प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम (दाएं). मुख्यमंत्री बघेल और पी.एल.पुनिया

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चल रही कवायद और भूपेश बघेल मंत्रिमंडल में रिक्त एक पद को भरने की माथापच्ची आखिरकार खत्म हो गई। विधायक मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष और अमरजीत भगत को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया। भगत को मंत्री बनने से प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री टी.एस. सिंहदेव रोक नहीं पाए। यह उनके लिए बड़ा झटका भी है।

अमरजीत भगत के मंत्री बनने के साथ अब भूपेश मंत्रिमंडल में आदिवासियों का प्रतिनिधित्व बढ़ गया। इस समाज से चार मंत्री हो गए। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अमरजीत भगत को प्रदेश अध्यक्ष बनवाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने काफी जोर भी लगाया, लेकिन सिंहदेव के विरोध के कारण अमरजीत भगत को पार्टी की कुर्सी नहीं मिल पाई। समझौता प्रत्याशी के तौर पर मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। छत्तीसगढ़ में 29 आदिवासी सीटों के अलावा दो सामान्य सीटों से भी अनुसूचित जनजाति के लोग चुनकर आए हैं, ऐसे में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाना कांग्रेस की मजबूरी थी। सरगुजा से प्रेमसाय सिंह टेकाम के साथ अब अमरजीत भगत भी मंत्री हो गए। टेकाम सिंहदेव के कोटे से मंत्री हैं। बस्तर से कवासी लखमा अकेले मंत्री हैं, इसलिए मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर क्षेत्रीय संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। 

प्रदेश अध्यक्ष के लिए बस्तर से सांसद दीपक बैज और भानुप्रतापपुर के विधायक मनोज मंडावी का नाम भी चर्चा में था। मोहन मरकाम की नियुक्ति अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी का आखिरी निर्णय है। भूपेश बघेल पांच साल से ज्यादा समय से प्रदेश अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में कई चुनाव लड़े गए। 2018 के विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता मिली लेकिन सरकार रहते 2019 के लोकसभा चुनाव में 11 में से केवल दो सीटें मिलने से कांग्रेस को झटका लगा। मोहन मरकाम के सामने नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी को अच्छी सफलता दिलाना चुनौती है। इसके अलावा दंतेवाड़ा और चित्रकोट विधानसभा उप-चुनाव में भी पार्टी को जीत दिलानी होगी। मरकाम को सत्ता और संगठन में तालमेल करके चलना होगा। वैसे भी जब राज्य में जिस पार्टी की सरकार होती है, वहां प्रदेश अध्यक्ष का कोई खास महत्व नहीं होता, उसे मुख्यमंत्री के इशारे पर ही चलना होता है, लेकिन अध्यक्ष तेजतर्रार हो तो पेच भी फंसता है।

कहा तो यह जा रहा है कि विवाद के चलते बघेल और सिंहदेव ने एक-एक पद बांट लिए। मंत्री भूपेश और प्रदेश अध्यक्ष सिंहदेव के कोटे में गया। दोनों में भले तालमेल हो गया हो, लेकिन कांग्रेस विधायकों का एक बड़ा धड़ा खुश नहीं है, खासतौर से वरिष्ठ विधायक नाराज बताए जाते हैं। कांग्रेस के पास दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत है, इसलिए सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री को नाराज विधायकों को साधकर चलना होगा। यह भी देखना होगा कि बघेल और सिंहदेव के बीच दोस्ताना फार्मूला कब तक ठीकठाक चलता है। इसके अलावा सरगुजा में सिंहदेव और अमरजीत की पटरी कैसी बैठती है, उस पर सबकी निगाह रहेगी।

 

राहुल ही हमारे नेता

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नए अध्यक्ष मोहन मरकाम से खास बातचीत के अंशः

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में आपकी पहली प्राथमिकता क्या होगी?

2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद संगठन को मजबूत करना होगा। बूथ स्तर तक पहुंचकर कार्यकर्ताओं को जोड़ेंगे। नगरीय निकाय, पंचायत चुनाव और बस्तर इलाके में विधानसभा के दो उप-चुनाव में बेहतर करने की कोशिश करेंगे। 

प्रदेश कांग्रेस की नई कार्यकारिणी कब तक बन जाएगी?

प्रदेश के प्रभारी महासचिव पी.एल. पुनिया और बड़े नेताओं से चर्चा कर जल्द से जल्द प्रदेश कार्यकारिणी का गठन कर दिया जाएगा। 

अपनी नियुक्ति का श्रेय किसे देते हैं?

निश्चित तौर से बस्तर की जनता को। बस्तर की जनता ने पिछले तीन विधानसभा चुनाव और इस बार लोकसभा में कांग्रेस का साथ दिया। 

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को लेकर आप क्या सोचते हैं?

देखिए, राहुल गांधी जी युवाओं की धड़कन हैं। देश की 65 फीसदी आबादी युवा है। वे देश की दिशा और दशा दोनों बदल सकते हैं। हम तो चाहते हैं राहुल गांधी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहें।

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